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मेरा साधन-क्षेत्र

मेरे पिता गायत्रीके उपासक थे। जपादि अनुष्ठानोंमें
मेरी श्रद्धा उन्हींकी शिक्षाका फल है।

गायत्रीपर मेरी श्रद्धा है और एक चतुर्मास मैंने गायत्रीका अल्प-सा एक अनुष्ठान भी किया, इसके बाद प्रत्येक चतुर्मासमें मैं महारुद्राभिषेक बराबर करने लगा। प्रतिदिन यजुर्वेदीय अष्टाध्यायीसे रुद्रके दो अभिषेक करके चातुर्मास्यमें एक अभिषेकात्मक महारुद्र सम्पूर्ण करता । इस उपासनाके साथ मेरा प्रेम हो गया।

छः वर्ष इस तरह बीते। सातवें वर्ष अर्थात् सन् १९३३ ई० में मेरी स्त्री क्षयरोगसे पीड़ित हुई। रोग बड़ी तेजी से बढ़ने लगा। यहाँतक नौबत आयी कि डाक्टरों और वैद्योंने जवाब दे दिया। तब एक कर्मकाण्डी ब्राह्मणकी अनुमतिसे मैंने महाशिवरात्रिमें महामृत्युंजय मन्त्रका प्रयोग किया। विधि यह थी कि दाड़िम (अनार) की लेखनीसे एक ताड़पत्रपर अष्टगन्ध चन्दनसे यह मन्त्र लिखना—

'ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धना न्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः सः जूं हौं ॐ ॥'

- और किसी शिवमन्दिरमें जाकर इसे रातभर जपना । रुग्णा स्त्रीके करनेकी यह बात थी कि वह शय्यापर पड़े-पड़े 'नमः शिवाय' का जप बराबर करती रहे। रातभर उक्त विधिसे शिवमन्दिरमें मन्त्रका जप करनेके बाद वह ताड़पत्र नये वस्त्रमें लपेटकर एक कुएँ तलमें रख दिया गया। इसका फल यह हुआ कि कुछ ही दिनोंमें उसमें इतनी शक्ति आ गयी कि वह शिमलाके पहाड़ोंपर धरमपुरके किंग एडवर्ड सैनिटोरियम में इलाजके लिये भेजी जा सकी। धरमपुर जाते हुए रास्तेमें शिवजीकी उसपर ऐसी कृपा हुई कि उसे अपने भ्रूमध्यमें ज्योत्स्नामय अर्धचन्द्रके दर्शन हुए और खुले नेत्रोंसे विद्युत्स्फुलिंग दिखायी देने लगे। धरमपुरमें सात मास रहना पड़ा, तबतक उसे ये दर्शन बराबर हुआ करते थे। सात मास बाद वह बिलकुल चंगी होकर घर लौटी। मैंने
भी घरपर रहते हुए पूर्ववत् यथासमय महारुद्राभिषेक महामृत्युंजयमन्त्रका सम्पुट देकर किया।

सन् १९३७ में ११ वाँ महारुद्राभिषेक हुआ और इस तरह अतिरुद्रका क्रम सम्पूर्ण हुआ। इस प्रसंगमें ५ दिन २० ब्राह्मणोंद्वारा होम भी किया गया। इसी समय यज्ञके आचार्यने मेरी नित्य पूजामें जो एक त्रुटि हो रही थी; उसकी ओर मेरा ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि पूजामें शिवके साथ शक्तिका भी होना आवश्यक है। मैंने श्रीपार्वतीजीकी चाँदीकी एक मूर्ति बनवा ली और तबसे पुरुषसूक्त और श्रीसूक्तके द्वारा श्रीशंकर-पार्वतीका षोडशोपचार पूजन नित्य करता हूँ।

सन् १९३५ में मेरी उम्र ५५ वर्ष हो चुकी थी। राज्यके अधिकारियोंने मुझे नौकरीका एक्स्टेन्शन न देकर पेंशन दे दी। इससे इतने बड़े परिवारका खर्च चलाना और आश्रितोंकी सहायता करना मेरे लिये बहुत ही कठिन हो गया। इसलिये मैंने चैत्रके नवरात्रमें

ॐ ह्रीं क्लीं विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि क्लीं ह्रीं ॐ ॥

- इस मन्त्रका १२५०० जप किया। इसका तत्काल यह फल हुआ कि जिस दिन इसका होम किया गया, उसी दिन एक जैन-संस्थाके प्रबन्धकका काम मुझे मिला। प्रबन्धकके वेतन और प्रोफेसरीकी पेंशनसे मेरा काम ठीक चलने लगा। इस संस्थासे अथवा इसके किसी आदमीसे मेरी कोई जान-पहचान नहीं थी। इसकी कोई बात मैंने कभी स्वप्नमें भी नहीं सोची थी।

सन् १९३८ ई० में मैंने अपनी स्त्रीके साथ चारों धामकी यात्रा की। नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, चन्द्रभागा, गंगा आदि पावन तीर्थोंमें स्नान किये। मेरी स्त्री क्षयरोगसे अच्छी होनेके बाद भी इतनी क्षीण हो गयी थी कि घरपर गरम जलसे नहाना भी उसे बर्दाश्त नहीं होता था और बीच-बीचमें बीमार हो जाती थी, पर उसे तीन महीनेकी इस यात्रामें, गंगादि तीथोंमें स्नानादिसे कुछ भी कष्ट नहीं हुआ, यह भगवतीकी ही विशेष कृपा है। यात्रा बड़े आनन्दसे हुई, किसी प्रकारका कोई भी कष्ट नहीं हुआ और भगवत्प्रसादके साथ हमलोग घर लौटे।

सन् १९३९ ई० में मेरे तृतीय पुत्रके दोनों फेफड़ोंमें छेद हो गये थे। बम्बईके डॉक्टरोंने साफ ही कह दिया था कि यह अच्छा नहीं हो सकता। तब लड़केको धरमपुर भेजा गया। वहाँ भी डॉक्टरोंने कोई आशा नहीं दिलायी, पर मृत्युंजय जप तथा राहु-मन्त्र जपसे और श्रीजगदम्बाकी कृपासे ९ महीनेमें लड़का पूर्ण स्वस्थ हो गया और उसे हमलोग घर ले आये।

इन विषम परिस्थितियोंमें अद्भुत स्वप्नोंके माध्यमसे भगवान् शंकर एवं भगवती श्रीदुर्गाने हमें दुःख सहनेकी शक्ति एवं अभीष्ट सिद्धिहेतु दिव्यादेश प्रदान किये, जो आज भी उनकी कृपाका स्मरण कराते रहते हैं।

[ काठियावाड़के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर ]



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mera saadhana-kshetra

mere pita gaayatreeke upaasak the. japaadi anushthaanonmen
meree shraddha unheenkee shikshaaka phal hai.

gaayatreepar meree shraddha hai aur ek chaturmaas mainne gaayatreeka alpa-sa ek anushthaan bhee kiya, isake baad pratyek chaturmaasamen main mahaarudraabhishek baraabar karane lagaa. pratidin yajurvedeey ashtaadhyaayeese rudrake do abhishek karake chaaturmaasyamen ek abhishekaatmak mahaarudr sampoorn karata . is upaasanaake saath mera prem ho gayaa.

chhah varsh is tarah beete. saataven varsh arthaat san 1933 ee0 men meree stree kshayarogase peeda़it huee. rog bada़ee tejee se badha़ne lagaa. yahaantak naubat aayee ki daaktaron aur vaidyonne javaab de diyaa. tab ek karmakaandee braahmanakee anumatise mainne mahaashivaraatrimen mahaamrityunjay mantraka prayog kiyaa. vidhi yah thee ki daada़im (anaara) kee lekhaneese ek taada़patrapar ashtagandh chandanase yah mantr likhanaa—

'oM haun joon sah oM bhoorbhuvah svah oM tryambakan yajaamahe sugandhin pushtivarddhanam . urvaarukamiv bandhana nmrityormuksheey maamritaat oM svah bhuvah bhooh sah joon haun oM ..'

- aur kisee shivamandiramen jaakar ise raatabhar japana . rugna streeke karanekee yah baat thee ki vah shayyaapar pada़e-pada़e 'namah shivaaya' ka jap baraabar karatee rahe. raatabhar ukt vidhise shivamandiramen mantraka jap karaneke baad vah taada़patr naye vastramen lapetakar ek kuen talamen rakh diya gayaa. isaka phal yah hua ki kuchh hee dinonmen usamen itanee shakti a gayee ki vah shimalaake pahaada़onpar dharamapurake king edavard sainitoriyam men ilaajake liye bhejee ja sakee. dharamapur jaate hue raastemen shivajeekee usapar aisee kripa huee ki use apane bhroomadhyamen jyotsnaamay ardhachandrake darshan hue aur khule netronse vidyutsphuling dikhaayee dene lage. dharamapuramen saat maas rahana pada़a, tabatak use ye darshan baraabar hua karate the. saat maas baad vah bilakul changee hokar ghar lautee. mainne
bhee gharapar rahate hue poorvavat yathaasamay mahaarudraabhishek mahaamrityunjayamantraka samput dekar kiyaa.

san 1937 men 11 vaan mahaarudraabhishek hua aur is tarah atirudraka kram sampoorn huaa. is prasangamen 5 din 20 braahmanondvaara hom bhee kiya gayaa. isee samay yajnake aachaaryane meree nity poojaamen jo ek truti ho rahee thee; usakee or mera dhyaan dilaayaa. unhonne kaha ki poojaamen shivake saath shaktika bhee hona aavashyak hai. mainne shreepaarvateejeekee chaandeekee ek moorti banava lee aur tabase purushasookt aur shreesooktake dvaara shreeshankara-paarvateeka shodashopachaar poojan nity karata hoon.

san 1935 men meree umr 55 varsh ho chukee thee. raajyake adhikaariyonne mujhe naukareeka ekstenshan n dekar penshan de dee. isase itane bada़e parivaaraka kharch chalaana aur aashritonkee sahaayata karana mere liye bahut hee kathin ho gayaa. isaliye mainne chaitrake navaraatramen

oM hreen kleen vidhehi dvishataan naashan vidhehi balamuchchakaih . roopan dehi jayan dehi yasho dehi dvisho jahi kleen hreen oM ..

- is mantraka 12500 jap kiyaa. isaka tatkaal yah phal hua ki jis din isaka hom kiya gaya, usee din ek jaina-sansthaake prabandhakaka kaam mujhe milaa. prabandhakake vetan aur prophesareekee penshanase mera kaam theek chalane lagaa. is sansthaase athava isake kisee aadameese meree koee jaana-pahachaan naheen thee. isakee koee baat mainne kabhee svapnamen bhee naheen sochee thee.

san 1938 ee0 men mainne apanee streeke saath chaaron dhaamakee yaatra kee. narmada, godaavaree, kaaveree, chandrabhaaga, ganga aadi paavan teerthonmen snaan kiye. meree stree kshayarogase achchhee honeke baad bhee itanee ksheen ho gayee thee ki gharapar garam jalase nahaana bhee use bardaasht naheen hota tha aur beecha-beechamen beemaar ho jaatee thee, par use teen maheenekee is yaatraamen, gangaadi teethonmen snaanaadise kuchh bhee kasht naheen hua, yah bhagavateekee hee vishesh kripa hai. yaatra bada़e aanandase huee, kisee prakaaraka koee bhee kasht naheen hua aur bhagavatprasaadake saath hamalog ghar laute.

san 1939 ee0 men mere triteey putrake donon phephada़onmen chhed ho gaye the. bambaeeke daॉktaronne saaph hee kah diya tha ki yah achchha naheen ho sakataa. tab lada़keko dharamapur bheja gayaa. vahaan bhee daॉktaronne koee aasha naheen dilaayee, par mrityunjay jap tatha raahu-mantr japase aur shreejagadambaakee kripaase 9 maheenemen lada़ka poorn svasth ho gaya aur use hamalog ghar le aaye.

in visham paristhitiyonmen adbhut svapnonke maadhyamase bhagavaan shankar evan bhagavatee shreedurgaane hamen duhkh sahanekee shakti evan abheesht siddhihetu divyaadesh pradaan kiye, jo aaj bhee unakee kripaaka smaran karaate rahate hain.

[ kaathiyaavaada़ke ek sevaanivritt prophesar ]

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