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सूर्यदेवकी कृपासे वृद्धावस्थाकी निवृत्ति

महर्षि हारीत प्राणिमात्रके कल्याणार्थ तपोऽनुष्ठानमें निरन्तर निरत रहते थे। ऐसा करते-करते वे कालक्रमसे अत्यन्त वृद्ध हो गये, किंतु तपस्याके प्रति उनकी अनुरक्ति बढ़ती ही गयी। तब वे यौवनप्राप्तिके लिये सूर्योपासनाका निश्चय करके वाराणसीमें आये और गंगाजीके किनारेपर भगवान् सूर्यकी प्रतिमा स्थापित की। तदुपरान्त अर्चन, होम, ध्यान, जप आदिके द्वारा वे सतत सूर्याराधनमें तत्पर हो गये। उनकी उत्कट भक्तिभावनासे प्रसन्न विश्वचक्षु भगवान् सूर्य हारीतके समक्ष आकर कहने लगे- 'तपोधन हारीत ! तुम्हारा जो भी अभीष्ट हो, वह मुझसे प्राप्त करो। मैं तुम्हारी उपासनासे अत्यन्त प्रसन्न हूँ।' महर्षि हारीतने बड़ी ही विनम्रतासे निवेदन किया-

'हे भगवन्! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे युवावस्था प्रदान कीजिये। मैं बूढ़ा होनेसे तपस्या में असमर्थ हो गया हूँ। अब तरुण होकर पुनः तपस्या करना चाहता हूँ; क्योंकि बिना तपस्याके कभी किसीको कहींऐश्वर्य-सम्पत्ति क्या प्राप्त हो सकी है! भगवन्! मृत्यु होना अच्छा है, किंतु अत्यधिक शोचनीय बना देनेवाला बुढ़ापा कभी न हो; क्योंकि मृत्युमें तो क्षणभरका कष्ट होता है, परंतु बुढ़ापा तो हर क्षण कष्ट ही देता है। जितेन्द्रिय पुरुष इसीलिये दानके लिये धन, वंशपरम्पराके लिये पत्नी, मोक्षके लिये सद्बुद्धि और चिरकालतक निर्विघ्न तप करनेके लिये लम्बी आयुकी कामना करते हैं।'

महर्षिपर भगवान् सूर्य द्रवित हो उठे और उन्हें तत्काल युवावस्थासम्पन्न कर दिया। महर्षि हारीतने भगवान् सूर्यकी जिस मूर्तिकी आराधना की थी, वह आज भी 'वृद्धादित्य' के नामसे प्रसिद्ध एवं पूजित है। उसकी आराधना करनेसे भक्तोंको रोग, शोक, असामयिक बुढ़ापा आदिसे छुटकारा मिल जाता है

वृद्धादित्यं समाराध्य वाराणस्यां घटोद्भव । जरादुर्गतिरोगघ्नं बहवः सिद्धिमागताः ॥

(स्कन्द० काशी० ५१ । ४२)



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Real Life Experience प्रभुकृपा


sooryadevakee kripaase vriddhaavasthaakee nivritti

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'he bhagavan! yadi aap mujhapar prasann hain to mujhe yuvaavastha pradaan keejiye. main boodha़a honese tapasya men asamarth ho gaya hoon. ab tarun hokar punah tapasya karana chaahata hoon; kyonki bina tapasyaake kabhee kiseeko kaheenaishvarya-sampatti kya praapt ho sakee hai! bhagavan! mrityu hona achchha hai, kintu atyadhik shochaneey bana denevaala budha़aapa kabhee n ho; kyonki mrityumen to kshanabharaka kasht hota hai, parantu budha़aapa to har kshan kasht hee deta hai. jitendriy purush iseeliye daanake liye dhan, vanshaparamparaake liye patnee, mokshake liye sadbuddhi aur chirakaalatak nirvighn tap karaneke liye lambee aayukee kaamana karate hain.'

maharshipar bhagavaan soory dravit ho uthe aur unhen tatkaal yuvaavasthaasampann kar diyaa. maharshi haareetane bhagavaan sooryakee jis moortikee aaraadhana kee thee, vah aaj bhee 'vriddhaaditya' ke naamase prasiddh evan poojit hai. usakee aaraadhana karanese bhaktonko rog, shok, asaamayik budha़aapa aadise chhutakaara mil jaata hai

vriddhaadityan samaaraadhy vaaraanasyaan ghatodbhav . jaraadurgatirogaghnan bahavah siddhimaagataah ..

(skanda0 kaashee0 51 . 42)

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