वेद, पुराण और धर्मशास्त्रोंमें देवपूजाका महान् फल लिखा है। इसकी साधनासे ब्रह्मकी उपासना स्वतः हो जाती है। संसारमें देवपूजा स्थायी रखनेके प्रयोजनसे वेदव्यासजीने ब्रह्मा, विष्णु, महेशादिसे सम्बन्धित भिन्न-भिन्न पुराणोंका निर्माण किया है। उनमें प्रत्येकमें प्रत्येक देवताका प्राधान्य प्रतिपादित किया है-यथा विष्णुपुराणमें 'विष्णु' का, शिवपुराणमे 'शिव' का गणेशपुराण गणेश' का सूर्यपुराणों 'सूर्य' का और शक्तिपुराणमें 'शक्ति' का। इन सभीको (अपने-अपने पुराणोंमें) सृष्टिके पैदा करनेवाले, पालन करनेवाले और संहार करनेवाले सूचित किया है और इन्हींको ब्रह्म बतलाया है। इसी कारण यजनयाजनके अधिकांश अनुरागी अपनी-अपनी रुचिके अनुसार कोई ब्रह्मा विष्णु-महेशादिको कोई सूर्य-शक्ति समीरादिको कोई राम कृष्ण-नृसिंहादिको और कोई भैरव, गणेश या हनुमानजीको पूजते हैं। किसीको भी पूजें, पूजा उपासना एक ब्रह्मकी ही होती हैं।
अति तुच्छ जीवसे लेकर महत्तम देवाधिदेवतक सभी साधनाके साध्य हैं। जिसे जिस साध्यको पानेकी इच्छा हो, उसके लिये उसकी साधना मौजूद है।
यदि आपको ब्रह्मकी साधना करनी हो तो नित्यानित्य-विवेकके द्वारा फलभोगका त्यागकर राम दमादिकी विपुल सम्पत्तिका संग्रह करना होगा और चलते-फिरते, खाते-पीते, उठते-बैठते मनको ब्रह्ममें ही लगाना होगा। 'ब्रह्म' का स्वरूप क्या है, यह जाननेके लिये चराचर सृष्टिके प्रत्येक प्राणी- पदार्थको ब्रह्मका प्रतिरूप मानकर सर्वत्र उसीका अनुसन्धान करना होगा।
यदि आप मन्त्र-तन्त्र साधना चाहें तो इस विषयके शास्त्रोंका अध्ययन या अवलोकन कीजिये। रहस्यज्ञानके बिना यों ही किसी सत्पात्रको सत्ताहीन करनेके लिये 'हो, ही, हूँ, फट्' से मन्त्रशास्त्रोंकी समाप्ति और दूसरोंके सुत-दारा और सम्पत्तिको मिटानेके लिये तन्त्रशास्त्रोंकी इतिश्री करना अच्छा नहीं; इनका अनर्थकारीअधम फल तत्काल नहीं तो अन्तकालतक अवश्य मिलता है। अतएव इनकी अपेक्षा'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', 'ॐ नमः शिवाय', 'ॐ नमो वक्रतुण्डाय', 'ॐ नमः सूर्याय', 'ॐ नमः शक्त्यै', 'ॐ नमो हनुमते' और 'ॐ नमः परमात्मने' आदिके अखण्ड प्रयोगोंसे मंत्रोंका साधन और गन्ध-पुष्पादिसे शोभित, घृतपूर्ण बत्तियोंसे प्रज्वलित और अनुष्ठानियोंके द्वारा पूजित प्रकाशमान दीपकको चौराहे में रखकर | दध्योदनादिकी बलि देनेके द्वारा तन्त्रोंका और जनपदनाशादि उत्पातकि उपशमनार्थ अखण्ड रामध्वनि, अहोरात्र होमाहुति, शतसहस्रायुत चण्डीप्रयोग और प्रतिदिनके प्रीतिभोज आदिकी कृत्याओंका प्रचार करना अच्छा है। ऐसे मन्त्र तन्त्र और कृत्याके अमिट और अमित फलसे अड़ोसी पड़ोसी और आप सकुटुम्ब सुखी रहेंगे और आपका यश फैलेगा।
साधनाके अनेक प्रकार हैं। उनमें प्रतिदिनकी सेवाके सिवा (१) एक सौ आठ तुलसी मंजरियोंसे विष्णुकी, (२) अर्कपुष्प, विल्वपत्र, पार्थिवपूजन और रुद्राभिषेकसे शिवकी, (३) प्रति परिक्रमामें मोदक अर्पण करनेसे गणेशको, (४) रक्तचन्दन और लाल कनेरके पुष्पोंसे युक्त १०८ अर्घ्यदान, नमस्कार और परिक्रमणसे सूर्यकी, (५) अनेक प्रकारके पुष्पोंकी सौ पुष्पांजलियोंसे 'शक्ति' की, (६) रामायणके पाठके साथ तिलोंके तेलके अविच्छिन्न अभिषेकसे हनुमान्जीकी, (७) नाम-जपके साथ चम्पक-पुष्प अर्पण करने से सीताकी (८) दुर्वाङ्कुरोंके अभिषेकसे गौरीकी, (९) तैलधारासे भैरवकी, (१०) मूँग भातसे 'भोमियाँ' की, (११) जलार्पण से पीपलकी, (१२) सूत्रार्पणसे 'वट' की, (१३) गुड़मिश्रित गोधूमचूर्णादिसे गौकी, (१४) सूखी अन्नराशिसे कपोतमण्डलकी, (१५) आश्रयदानादिसे अपाहिजोंकी और (१६) मनस्तुष्टिके प्रीत्युपहारोंसे परिवारकी साधना विशेष रूपसे सम्पन्न हो सकती है। उपासना ग्रन्थोंमें इनके विधि-विधान विस्तारपूर्वकलिखे हैं। उनको देखकर यथोचित कार्य करें।
अनुष्ठानप्रकाशादिमें हनुमानजी की उपासना के अद्भुत और अनुभूत अनेकों अनुष्ठान हैं। उनसे यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसके सिवा मन्त्रमहोदधि मन्त्रमहार्णव और मन्त्रसंग्रहादिमें इनके प्रत्यक्ष होनेके उपाय भी हैं और' हनुमत्-उपासना-कल्पद्रुम' तो इस विषयका सर्वोत्तम ग्रन्थ है ही। उपासकोंको चाहिये कि उनका अनुभव करें।
पूजापद्धतिमें इसके सब विधान हैं, उन्होंके अनुसार करना चाहिये। यह विशेष है कि स्नानमें कूपादिका शुद्ध, सद्य और गन्धादियुक्त जल लिया जाय और पर्वोत्सवादिर्गे दूध, दही, घी, मधु और चीनीके 'पंचामृत' से स्नान कराके फिर शुद्धोदकसे स्नान कराया जाय। 'उद्वर्तन' की जगह तिलोंके तेलमें मिले हुए सिन्दूरका सर्वागमें लेपन किया जाय। इससे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। कारण यह है कि लंकाविजयके बाद रामचन्द्रजीने सुग्रीवादिको पारितोषिक दिया, उस समय सीताजीने हनुमानजीको कई कोटिके मोतियोंकी माला दी थी; किंतु उसमें राम-नाम न होनेसे वे उदासीन रहे। तब सीताजीने अपने सीमन्तका 'सिन्दूर' देकर कहा कि यह मेरा मुख्य सौभाग्य चिह्न है और इसको मैं धन धाम और रत्नादिसे भी अधिक प्रिय मानती हूँ, अत: तुम इसको सहर्ष स्वीकार करो तब हनुमानजीने सिन्दूरको अंगीकार कर लिया। इसी हेतुसे उपासक लोग हनुमानजी के अंगमें तैल-मिश्रित सिन्दूरका लेप करते हैं और मन्त्रशास्त्रोंके मतसे यह आकर्षक भी है।
इष्टदेवको प्रसन्न करनेके लिये तदनुकूल आचरणोंकी भी आवश्यकता होती है। हनुमान्जी रामचन्द्रजीके चरित्रोंसे प्रसन्न होते हैं। अतएव वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामायण, मूलरामायण और सुन्दरकाण्ड आदिके सादे, सार्थ या सम्पुटसहित पाठ करने चाहिये। इनके सिवा कथा वार्ता, पुराण पाठ या रामलीला आदि जो भी अनुकूल हों, करने चाहिये।
(१) उपर्युक्त रामायणादिमें किसीके भी 'ॐ रामाय नमः' का पुट लगानेसे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं।
(२) 'ॐ हनुमते नमः' से कार्यसिद्धि होती है।
(३) अञ्जनीगर्भसम्भूत कपीन्द्र
(४) मर्कटेश रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनूमन् रक्ष सर्वदा॥ - से रक्षा और अभीष्टलाभ होता है। महोत्साह सर्वशोकविनाशन। शत्रून् संहर मां रक्ष श्रियं दापय मे प्रभो ।। - से शत्रुनिवारण, आत्मसंरक्षण और सम्पत्प्राप्ति
होती है। दातारं सर्वसम्पदाम् ।
(५) आपदामपहन्तारंलोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥
- से सर्वापत्तियोंका निवारण, सर्वसम्पत्तियोंका पुनरागमन और सर्वप्रकारके अभीष्टोंकी सिद्धि होती है। (६) जयत्यतिबलो राम्रो लक्ष्मणश्च महाबलः । राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः ॥ दासो कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः । हनुमाजशत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः ॥ न रावणसहस्वं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्। शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्त्रशः ॥
(वा० रा० सुन्दर० ४२।३३-३५) -से राष्ट्रविप्लव, मारीभय, महाशत्रुके आक्रमण, अनेक प्रकारकी असह्य आपत्तियाँ और देशोपद्रवादि शान्त होते हैं।
(७) औरसदेवि नित्यं परितप्यमान स्त्वामेवसीतेत्यभिभाषमाणः ।
घृतव्रतो राजसुतो महात्मा तवैव लाभाय कृतप्रयत्नः ॥
(वा० रा० सुन्दर० ३६/४६) - से उद्वाह या स्त्रीप्राप्ति होती है। अस्तु, उक्त मन्त्र विशेषकर वाल्मीकि रामायण, 'सुन्दरकाण्ड' और 'मूलरामायण' के उपयोगी हैं। सम्पुटित पाठके प्रयोगमें 'पहले मन्त्र, पीछे मूल, फिर मन्त्र, पीछे मूल और फिर मन्त्र' इस क्रमसे पाठ किया जाय। पाठारम्भके पहले हनुमान्जीका पूजन प्रार्थना और ध्यानादि किये जायें। इस प्रकार प्रीति, उदारता और शान्तिके साथ करनेसे सब प्रकारके अभीष्ट सिद्ध होते हैं।
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(2) 'oM hanumate namah' se kaaryasiddhi hotee hai.
(3) anjaneegarbhasambhoot kapeendra
(4) markatesh raamapriy namastubhyan hanooman raksh sarvadaa.. - se raksha aur abheeshtalaabh hota hai. mahotsaah sarvashokavinaashana. shatroon sanhar maan raksh shriyan daapay me prabho .. - se shatrunivaaran, aatmasanrakshan aur sampatpraapti
hotee hai. daataaran sarvasampadaam .
(5) aapadaamapahantaaranlokaabhiraaman shreeraaman bhooyo bhooyo namaamyaham ..
- se sarvaapattiyonka nivaaran, sarvasampattiyonka punaraagaman aur sarvaprakaarake abheeshtonkee siddhi hotee hai. (6) jayatyatibalo raamro lakshmanashch mahaabalah . raaja jayati sugreevo raaghavenaabhipaalitah .. daaso kosalendrasy raamasyaaklishtakarmanah . hanumaajashatrusainyaanaan nihanta maarutaatmajah .. n raavanasahasvan me yuddhe pratibalan bhavet. shilaabhishch praharatah paadapaishch sahastrashah ..
(vaa0 raa0 sundara0 42.33-35) -se raashtraviplav, maareebhay, mahaashatruke aakraman, anek prakaarakee asahy aapattiyaan aur deshopadravaadi shaant hote hain.
(7) aurasadevi nityan paritapyamaan stvaamevaseetetyabhibhaashamaanah .
ghritavrato raajasuto mahaatma tavaiv laabhaay kritaprayatnah ..
(vaa0 raa0 sundara0 36/46) - se udvaah ya streepraapti hotee hai. astu, ukt mantr visheshakar vaalmeeki raamaayan, 'sundarakaanda' aur 'moolaraamaayana' ke upayogee hain. samputit paathake prayogamen 'pahale mantr, peechhe mool, phir mantr, peechhe mool aur phir mantra' is kramase paath kiya jaaya. paathaarambhake pahale hanumaanjeeka poojan praarthana aur dhyaanaadi kiye jaayen. is prakaar preeti, udaarata aur shaantike saath karanese sab prakaarake abheesht siddh hote hain.