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क्रोध मत करो, कोई किसीको मारता नहीं  [प्रेरक कथा]
आध्यात्मिक कथा - प्रेरक कहानी (Spiritual Story)

महाराज उत्तानपादके विरक्त होकर वनमें तपस्या करनेके लिये चले जानेपर ध्रुव सम्राट् हुए। उनके सौतेले भाई उत्तम वनमें आखेट करने गये थे, भूलसे वे यक्षोंके प्रदेशमें चले गये। वहाँ किसी यक्षने उन्हें मार डाला। पुत्रकी मृत्युका समाचार पाकर उत्तमकी माता सुरुचिने प्राण त्याग दिये। भाईके वधका समाचार पाकर ध्रुवको बड़ा क्रोध आया। उन्होंने यक्षोंकी अलकापुरीपर चढ़ाई कर दी।

अलकापुरीके बाहर ध्रुवका रथ पहुंचा और उन्होंने शङ्खनाद किया। बलवान् यक्ष इस चुनौतीको कैसे सहन कर लेते। वे सहस्रोंकी संख्यामें एक साथ निकले और ध्रुवपर टूट पड़े। भयंकर संग्राम प्रारम्भ हो गया। ध्रुवके हस्तलाघव और पटुत्वका वह अद्भुत प्रदर्शन था।सैकड़ों यक्ष उनके बाणोंसे कट रहे थे। एक बार तो यक्षोंका दल भाग ही खड़ा हुआ युद्धभूमिसे। मैदान खाली हो गया। परंतु ध्रुव जानते थे कि यक्ष मायावी हैं, उनकी नगरीमें जाना उचित नहीं है। ध्रुवका अनुमान ठीक निकला। यक्षोंने माया प्रकट की। चारों ओर मानो अग्नि प्रज्वलित हो गयी। प्रलयका समुद्र दिशाओंको डुबाता उमड़ता आता दीखने लगा, शत-शत पर्वत आकाशसे स्वयं गिरने लगे और गिरने लगे उनसे अपार अस्त्र-शस्त्र; नाना प्रकारके हिंसक जीव-जन्तु भी मुख फाड़े दौड़ने लगे। परंतु ध्रुवको इसका कोई भय नहीं था। मृत्यु उनका स्पर्श नहीं कर सकती थी, वे अजेय थे। उन्होंने नारायणास्त्रका संधान किया । यक्षोंकी माया दिव्यास्त्रके तेजसे ही ध्वस्त हो गयी। उस दिव्यास्त्रसेलक्ष लक्ष बाण प्रकट हो गये और वे यक्षोंको घासके समान काटने लगे।

यक्ष उपदेवता हैं, अमानव होनेसे अतिशय बली हैं, मायावी हैं; किंतु उन्हें आज ऐसे मानवसे संग्राम करना था जो नारायणका कृपापात्र था, मृत्युसे परे था । बेचारे यक्ष उसकी क्रोधाग्निमें पतंगोंके समान भस्म हो रहे थे। परंतु यह संहार उचित नहीं था । प्रजाधीश मनु आकाशमें प्रकट हो गये। उन्होंने पौत्र ध्रुवको सम्बोधित किया- 'ध्रुव! अपने अस्त्रका उपसंहार करो। तुम्हारे लिये यह रोष सर्वथा अनुचित है। तुमने तो भगवान् नारायणकी आराधना की है। वे सर्वेश्वर तो प्राणियोंपर कृपा करनेसे प्रसन्न होते हैं शरीरके मोहके कारण परस्पर शत्रुता तो पशु करते हैं। बेटा ! देखो तो तुमने कितने निरपराध यक्षोंको मारा है। भगवान् शंकरके प्रियजन यक्षराज कुबेरसे शत्रुता मत करो। उन लोकेश्वरका क्रोध मेरे कुलपर हो, उससे पूर्व ही उन्हें प्रसन्न करो।'ध्रुवने पितामहको प्रणाम किया और उनकी आज्ञा स्वीकार करके अस्त्रका उपसंहार कर लिया। ध्रुवका क्रोध शान्त हो गया है, यह जानकर धनाधीश कुबेरजी स्वयं वहाँ प्रकट हो गये और बोले- 'ध्रुव ! चिन्ता मत करो । न तुमने यक्षोंको मारा है न यक्षोंने तुम्हारे भाईको मारा है। प्राणीकी मृत्यु तो उसके प्रारब्धके अनुसार कालकी प्रेरणासे ही होती है। मृत्युका निमित्त दूसरेको मानकर लोग अज्ञानवश दुःखी तथा रोषान्ध होते हैं। तुम सत्पात्र हो, तुमने भगवान्‌को प्रसन्न किया है; अतः मैं भी तुम्हें वरदान देना चाहता हूँ। तुम जो चाहो, माँग लो।'

ध्रुवको माँगना क्या था ! क्या अलभ्य था, उन्हें जो कुबेरसे माँगते? लेकिन सच्चा हृदय प्रभुकी भक्तिसे कभी तृप्त नहीं होता। ध्रुवने माँगा - 'आप मुझे आशीर्वाद दें कि श्रीहरिके चरणोंमें मेरा अनुराग हो।'

कुबेरजीने 'एवमस्तु' कहकर सम्मानपूर्वक ध्रुवको विदा किया।

- सु0 सिं0 (श्रीमद्भागवत 4। 10-12)



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krodh mat karo, koee kiseeko maarata naheen

mahaaraaj uttaanapaadake virakt hokar vanamen tapasya karaneke liye chale jaanepar dhruv samraat hue. unake sautele bhaaee uttam vanamen aakhet karane gaye the, bhoolase ve yakshonke pradeshamen chale gaye. vahaan kisee yakshane unhen maar daalaa. putrakee mrityuka samaachaar paakar uttamakee maata suruchine praan tyaag diye. bhaaeeke vadhaka samaachaar paakar dhruvako bada़a krodh aayaa. unhonne yakshonkee alakaapureepar chadha़aaee kar dee.

alakaapureeke baahar dhruvaka rath pahuncha aur unhonne shankhanaad kiyaa. balavaan yaksh is chunauteeko kaise sahan kar lete. ve sahasronkee sankhyaamen ek saath nikale aur dhruvapar toot pada़e. bhayankar sangraam praarambh ho gayaa. dhruvake hastalaaghav aur patutvaka vah adbhut pradarshan thaa.saikada़on yaksh unake baanonse kat rahe the. ek baar to yakshonka dal bhaag hee khada़a hua yuddhabhoomise. maidaan khaalee ho gayaa. parantu dhruv jaanate the ki yaksh maayaavee hain, unakee nagareemen jaana uchit naheen hai. dhruvaka anumaan theek nikalaa. yakshonne maaya prakat kee. chaaron or maano agni prajvalit ho gayee. pralayaka samudr dishaaonko dubaata umada़ta aata deekhane laga, shata-shat parvat aakaashase svayan girane lage aur girane lage unase apaar astra-shastra; naana prakaarake hinsak jeeva-jantu bhee mukh phaada़e dauda़ne lage. parantu dhruvako isaka koee bhay naheen thaa. mrityu unaka sparsh naheen kar sakatee thee, ve ajey the. unhonne naaraayanaastraka sandhaan kiya . yakshonkee maaya divyaastrake tejase hee dhvast ho gayee. us divyaastraselaksh laksh baan prakat ho gaye aur ve yakshonko ghaasake samaan kaatane lage.

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dhruvako maangana kya tha ! kya alabhy tha, unhen jo kuberase maangate? lekin sachcha hriday prabhukee bhaktise kabhee tript naheen hotaa. dhruvane maanga - 'aap mujhe aasheervaad den ki shreeharike charanonmen mera anuraag ho.'

kuberajeene 'evamastu' kahakar sammaanapoorvak dhruvako vida kiyaa.

- su0 sin0 (shreemadbhaagavat 4. 10-12)

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जय जय श्री श्याम,
लिख भेजी पतिया आज रुक्मणि अर्ज करे,  
कान्हा ले जाओ आकर आज रुक्मणि याद करे,