एक देशमें दो आदमी दुर्भाग्यसे गुलाम बन गये थे। एकका नाम एन्टोनिओ था और दूसरेका नाम रोजर । दोनों एक ही जगह काम करते, खाते-पीते तथा उठते बैठते थे। धीरे-धीरे उनमें परस्पर घना प्रेम हो गया। छुट्टीके समय दुःख-सुखकी बातें करनेसे उनको गुलामीका असह्य दुःख कुछ कम जान पड़ता था । वे दोनों समुद्र के किनारे एक पर्वतके ऊपर रास्ताखोदनेका काम प्रतिदिन करते थे। एक दिन एन्टोनिओने एकदम काम छोड़ दिया और समुद्रकी ओर नजर करके एक लंबी साँस छोड़ी। वह अपने मित्रसे कहने लगा - 'समुद्रके उस पार मेरी बहुत-सी प्यारी वस्तुएँ हैं। प्रतिक्षण मुझे ऐसा लगता है कि मानो मेरी स्त्री और लड़के समुद्रके किनारे आकर एक दृष्टिसे इस ओर देख रहे हैं और यह निश्चय करके कि मैं मर गया हूँ,रो रहे हैं। मेरी इच्छा होती है कि मैं तैरकर उनके पास पहुँच जाऊँ।' एन्टोनिओ जभी उस जगह काम करने जाता, तभी समुद्रकी और दृष्टि डालते ही उसके मनमें ये विचार उत्पन्न होते थे। बादको एक दिन एक जहाजको जाते देखकर उसने रोजरसे कहा- 'मित्र! इतने दिनों बाद अब हमारे दुःखोंका अन्त आ गया है। देखो, वह एक जहाज लंगर डालकर खड़ा है। यहाँसे दो-तीन कोससे अधिक दूरीपर नहीं है। हम समुद्रमें कूद पड़ें तो तैरते तैरते उस जहाजतक पहुँच जा सकते हैं। यदि नहीं पहुँच सकेंगे और मर जायेंगे तो इस दासत्वकी अपेक्षा वह मौत भी सौगुनी अच्छी होगी।' यह सुनकर रोजरने कहा 'तुम इस तरह अपनेको बचा सको तो इससे मैं बड़ा सुखी होऊँगा। तुम देशमें पहुँच जाओगे तो मुझे भी अधिक दिन दुःख नहीं भोगना पड़ेगा। यदि तुम सही-सलामत इस दुःखसे छूटकर घर पहुँच जाओ तो मेरे घर जाकर मेरे माँ-बापकी खोज करना। बुढ़ापेके कारण तथा मेरे शोकसे शायद वे मर गये हों। पर देखना, यदि वे जीते हों तो उनसे कहना कि इतना कहते-कहते एन्टोनिओने उसे रोक दिया और वह बोला-'तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो कि मैं तुमको इस अवस्थामें अकेला छोड़कर जाऊँगा? ऐसा कभी नहीं हो सकता, तुम और मैं जुदा नहीं। या तो हम दोनों छूटेंगे या दोनों ही मरेंगे।' एन्टोनिओकी बात सुनकर रोजर बोला- 'तुम जो कहते हो वह ठीक हैं; पर मैं तैरना नहीं जानता, इसलिये तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूँ ?' एन्टोनिओने कहा-'इसके लिये न घबराओ। तुम मेरी कमर पकड़ लेना। मैं तैरनेमें कुशल हूँ, इसलिये बिना किसी अड़चनके तुमको लेकर जहाजतक पहुँच जाऊँगा।' रोजरने कहा 'एन्टोनि! इसमें कोई आपत्ति नहीं, पर कदाचित् भयभीत होकर मैं तुम्हारी कमर छोड़ दूँ या खींचतान करके तुमको भी डुबा दूँ। इसलिये ऐसा करना जरूरी नहीं है। मेरे भाग्यमें जो होना होगा, वह होगा। तुम अपने बचावका उपाय करो और व्यर्थ समय न गँवाओ। आओ, हम अन्तिम भेंट कर लें।' इतना कहकर रोजरने आँसूभरी आँखोंसे एन्टोनिओका आलिङ्गन किया। तब एन्टोनिओने कहा- 'मित्र! यह रोनेका समय नहीं, बार-बार ऐसा अवसर न प्राप्त होगा।" एन्टोनिओने इतना कहकर अपने मित्रका उत्तरसुननेकी बाट जोहते उसको ढकेलकर समुद्रमें गिरा दिया और अपने भी उसके पीछे कूद पड़ा। रोजरने समुद्रमें गिरते ही घबराकर जीवनकी आशा छोड़ दी, पर एन्टोनिओने उसको हिम्मत दिलाकर बहुत मेहनतसे अपनी कमर पकड़ा दी और वह तैरते हुए जहाजकी और जाने लगा।
उस जहाजके आदमियोंने इन दोनोंको पहाड़परसे कूदते हुए देखा था, पर इतनेमें ऐसा मालूम हुआ कि गुलामोंको सँभाल रखनेवाले आदमी उनको पकड़नेके लिये नौका लेकर आ रहे हैं। रोजर इससे घबराकर बोला-'मित्र एन्टोनि! तुम मुझे छोड़कर अकेले चले जाओ। वह नाववाला मुझे पकड़ने लगेगा, इतनेमें तुम बिना बाधा जहाजपर पहुँच जाओगे। इसलिये अब तुम मेरी आशा छोड़कर अपना ही बचाव करो। नहीं तो वे हम दोनोंको पकड़कर वापस ले जायेंगे।'
इतना कहकर रोजरने एन्टोनिओकी कमर छोड़ दी। पर उत्तम प्रेमका प्रभाव देखिये! एन्टोनिओने उसको कमर छोड़कर पानीमें डूबते हुए देखा और तुरंत ही उसको पानीसे बाहर निकालनेके लिये डुबकी मारी। थोड़ी देखक ने दोनों पानी के ऊपर दीख न पड़े। इससे नौकावाले आदमी - यह निश्चय न करके कि किधर जायँ – रुक गये। जहाजके आदमी डेकसे इस अद्भुत घटनाको देख रहे थे। उनमेंसे कुछ खलासी भी एक नावको समुद्रमें डालकर उनकी खोज करने लगे। उन्होंने थोड़ी देरतक चारों ओर बेकार प्रयत्न किया। फिर देखा कि एन्टोनिओ एक हाथसे रोजरको मजबूती से पकड़े हुए है और दूसरे हाथसे नौकाकी ओर जानेके लिये बहुत मेहनत कर रहा है। खलासियोंने यह देखकर दयासे गढ़द होकर अपने में जितना बल था, उतने डाँड़ मारना शुरू किया। देखते-देखते वे वहाँ पहुँच गये और उन दोनोंको पकड़कर उन्होंने नावमें चढ़ा लिया।
उस समय एन्टोनिओ इतना थक गया था कि मिनटभर और देर लगती तो वे दोनों पानीमें डूब जाते 'तुम मेरे मित्रको बचाओ' कहते कहते वह अचेत हो गया। रोजर भी तबतक अचेत था, परंतु उसने कुछ ही क्षणोंमें आंखें खोलीं और एन्टोनिओको अचेत अवस्थामें पड़ा देखकर वह बहुत ही व्याकुल हो गया। एन्टोनिओके अचेतन शरीरका आलिङ्गन करके वह आँसू बहाते हुएकहने लगा- 'मित्र ! मैंने ही तुम्हारा वध किया है। तुमने मेरी गुलामी छुड़ाने और मेरे प्राण बचानेके लिये इतनी मेहनत की, पर मेरी ओरसे उसका यही बदला मिला। मैं बहुत ही नीच हूँ। नहीं तो, तुम्हें मरा देखकर मैं क्यों जी रहा हूँ ? तुमको खोकर अब मेरे जीनेसे क्या लाभ ?"
इस प्रकार शोकातुर होकर वह एकदम खड़ा हो गया और यदि खलासी उसे बलपूर्वक रोक न लेते तो वह समुद्रमें कूद पड़ा होता। फिर वह बहुत ही विलाप और पश्चात्ताप करके कहने लगा- 'क्यों तुमलोग मुझे रोकते हो ? मेरे ही कारण इसके प्राण गये हैं।' इतना कहकर वह एन्टोनिओके शरीरके ऊपर पड़कर कहने लगा – 'एन्टोनि! मैं जरूर तुम्हारा साथी बनूँगा । प्यारे खलासियो! तुम्हें परमेश्वरकी शपथ है। तुम अब मुझको न रोको। मुझे अपने मित्रका साथी बनने दो।' पर इतनेमें ही एन्टोनिओने एक लंबी साँस ली। रोजर उसे देखकरआनन्दसे अधीर हो उठा और उच्च स्वरसे बोला- 'मेरा मित्र जीवित है। मेरा मित्र जीवित है। जगदीश्वरकी कृपासे अबतक इसके प्राण नहीं गये हैं।' खलासी उसको होशमें लानेके लिये बहुत प्रयत्न करने लगे। थोड़ी देरके बाद एन्टोनिओने आँखें खोलकर अपने मित्रकी ओर दृष्टि डालते हुए कहा- 'रोजर तुम्हारी प्राणरक्षा हो गयी — इसके लिये जगदीश्वरको धन्यवाद दो।' उसके अमृत-जैसे वाक्य सुनकर रोजर इतना प्रसन्न हुआ कि उसकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा बहने लगी।
थोड़ी देरमें वह नाव जहाजपर पहुँच गयी। जहाजके सभी आदमी खलासियोंके मुँहसे सारी बातें सुनकर उनके ऊपर बहुत स्नेह दिखलाने लगे। वह जहाज माल्टाकी ओर जा रहा था। वहाँ पहुँचनेपर दोनों मित्रोंको किनारे उतार दिया गया और वहाँसे वे अपने अपने घर गये और सुखसे रहने लगे।
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