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बहुत गयी थोड़ी रही  [Spiritual Story]
आध्यात्मिक कथा - Hindi Story (हिन्दी कथा)

'बहुत गयी थोड़ी रही"

बात तबकी है, जब प्रथम जैन तीर्थंकर श्रीआदिनाथ पृथ्वीपर राज करते थे। राज करते-करते दीर्घकाल व्यतीत हो गया, तब देवलोकमें खलबली मच गयी कि मध्यलोकमें राजा ऋषभनाथ अर्थात् आदिनाथको इसी जन्ममें मोक्ष प्राप्त करना है, और वे महापुरुष अभी संसारी मोह जालमें फँसे हैं, उन्हें सचेत करना है और संसारके प्रति विरक्ति-भाव जगाना है। उन्होंने एक उपाय सोचा कि राजाको नृत्यकलासे अधिक लगाव है, अतः नृत्यकलाके ही माध्यमसे इनमें विरक्त भाव जाग्रत् होगा। तभी वे कल्याणमार्गमें अग्रसर हो सकते हैं।
देवोंने एक ऐसी सुन्दर देवीको राजदरबारमें नृत्य करनेको भेजा, जिसकी अल्प आयु ही अवशेष थी। राजदरवारमें नृत्य प्रारम्भ हुआ, नृत्य करते-करते उस देवांगनाकी आयुके निमेष पूरे होनेको थे, तभी देवोंने दूसरी देवांगनाको पलक झपकते ही उसकी जगह नृत्य करनेको खड़ा कर दिया। आदिपुरुषने अपने अवधि जानसे इस क्षणिक परिवर्तनको जान लिया और मनमें सोचा, अहो ! यह जीवन कितना अथिर (अस्थिर) है, मैं अभीतक इस संसारके रागमें फँसा रहा! यह सोचकर राजवस्त्रका त्यागकर, राज्यको अपने पुत्रको सौंप जिनेश्वरी मुद्रा धारण करके वे वनको चल दिये।
इस उदाहरणसे यह प्रमाणित होता है कि संगीत कला, नृत्यकला भी कहीं-कहीं कल्याणका कारण हो जाती है। एक ऐसा ही दृष्टांत आता है कि मार्मिक वाक्योंवाली एक कविताने एवं नट-नटनीके प्रहसनकला युक्त नृत्यने कंजूस राजाका मोह दूरकर उसे मोक्षपथपर अग्रसर कर दिया।
एक बारकी बात है, किसी कंजूस राजाके दरबारमें राजाकी उपस्थितिमें सामन्तों, राजकुमार, राजकुमारी, साधुजन एवं अन्य दरबारियोंकी सभामें नट-नटनीके कार्यक्रमका आयोजन किया गया। कंजूस राजाके डरसे कसीने भी आधी रातसे भी अधिक समय बीत जाने के सचात् भी उन्हें कोई उपहार देकर प्रोत्साहन नहीं दिया। तब नटनीने परेशान होकर नटसे कहा-'मैं बहुत थक गयी हूँ, अब आगे नृत्य नहीं हो सकेगा।' नटने ढोलककी थाप देकर उसे जोश दिलाया और निम्न वाक्य कहकर उसे ढाँढ़स दिया
बहुत गयी, थोड़ी रही, थोड़ी हू अब जात ।
अब मत चूको नट्टनी, फल मिलनेकी बात ॥
नटनीमें हिम्मत आयी, ढोलककी थापपर, उसके पैरोंमें जोश आया, और उसने पूरे उत्साहसे नाचना शुरू कर दिया। उसी सभामें राजदरबारियोंके साथ-साथ बैठे देख रहे थे जवान राजपुत्र, यौवनवती राजपुत्री और साधु प्रवृत्तिके श्रेष्ठ पुरुष राजपुत्रने नटके ये शब्द सुनकर सोचा कि बहुत-सा समय बीत गया, हमने नटनीकी कलाको पुरस्कृत नहीं किया है, ऐसा आभास होते ही राजकुमारने अपने गलेका हार उतारकर नटनीकी ओर फेंका। कंजूस राजाने यह देखा और वह मन मसोसकर रह गया। तभी राजकुमारीने भी अपने गलेका नौलखा हार उतारा और नटनीको दे दिया। राजाकी छातीपर तो मानो साँप लोट गया।
यही नहीं, वहाँ सभामें सम्मिलित किसी साधुने भी अपना कीमती शाल उतारा और नटनीको भेंट कर दिया। अब तो राजासे रहा नहीं गया, उसने सर्वप्रथम पुत्रको बुलाया और कहा-'बेटा! क्या तुम्हारी अक्ल मारी गयी है ? अगर तुम्हें नाच पसन्द ही आया था, तो कुछ रुपये इनाममें दे देते। यह तुमने क्या मूर्खता की कि लाखोंका हार यूँ ही खो दिया ?
राजपुत्र बोला- 'पिताजी! 'बहुत गयी, थोड़ी रही, थोड़ी हू अब जात' इन शब्दोंने तो मेरे अन्दर क्या कर दिखाया, मैं आपसे क्या कहूँ ?
आपकी आयु 80 वर्षकी हो गयी है, लेकिन आप राज्य छोड़नेको तैयार नहीं हो रहे थे। मैंने आज यह निश्चय किया था कि प्रातः आपके भोजनमें विष मिलाकर, अपना रास्ता साफ कर लूँगा और राजा बन जाऊँगा । इस दोहेको सुनकर मैंने सोचा, बहुत बीत चुकी है, अब तो आपकी उम्र बहुत थोड़ी-सी रह गयी है, राज्य मुझे मिलना ही है, नाहक थोड़े दिनोंके लिये,
आपकी हत्या जैसा जघन्य पापकृत्य क्यों करूँ ?" जिसके कारण ही आपके प्राण बचे, मैं पापसे बचा, इस बातसे प्रसन्न होकर, यदि मैंने लाख रुपयोंका हार दे दिया तो कोई बुरा नहीं किया। यदि इसके लिये, कई गुना भी दे देता, तो वह भी थोड़ा था।'
अब बारी आयी पुत्रीकी। राजाने कहा-' अरे! तूने क्या नादानी की, अपना नौलखा हार दे दिया!' 'पिताजी! नौलखा तो क्या ? यदि मेरे पास गलेमें सौलखा हार भी होता तो वह देनेमें भी न हिचकिचाती, बात यह थी पिताजी! मैं आपके मन्त्रीजीके पुत्रसे प्रेम करती हूँ। उससे विवाह करना चाहती थी। आप मेरा विवाह मन्त्रीजीके पुत्रके साथ करनेके लिये कभी तैयार नहीं होते- ऐसा मैं जानती थी। इसलिये हम दोनोंने यह तय कर लिया कि कल रात्रिको दोनों यहाँसे कहीं भाग जायँगे। नटकी बात सुनकर सहसा विचार आया कि अब थोड़े ही दिनकी तो बात रह गयी है। आप तो किनारेपर बैठे ही हैं। मेरा भाई गद्दीपर बैठते ही हमारे विवाहकी सहर्ष स्वीकृति दे देगा। फिर नाहक ऐसी बदनामीका काम क्यों किया जाय ?'
राजाने साधुसे पूछा- 'साधुजी! आप भी बहक गये।' साधु बोले- 'राजन्! मुझे तो नटके शब्दोंने
झकझोर दिया। मेरी आँखें खोल दीं ! मैं सोचने लगा कि इतनी सारी उम्र तो यूँ ही चली गयी। अब थोड़ी-सी रह गयी हैं, क्यों न आत्मकल्याण करूँ। मैंने तभी पक्का निश्चय कर लिया कि प्रातः ही सब कुछ छोड़-छाड़कर निकल जाऊँगा, अपने आत्म-उत्थानके पथपर। नटके इन शब्दोंने मेरे सोये हुए ज्ञानको जगा दिया है। उसके लिये जो मैंने इनाम दिया, वह तो तुच्छ है, वह कुछ भी नहीं।'
यह सब सुनकर एवं जानकर राजाको भी होश आया कि 'अरे! मैंने 80 वर्ष यूँ ही गवाँ दिये। अपनी रत्तीभर परवाह नहीं की। भोग-विलासमें पड़कर जिन्दगी यूँ ही बर्बाद कर दी। न दान दिया, न सत्संग किया, न ही जीवनमें संयमको ही अपनाया। न किसीके आँसू पोंछे, न किसी गरीबको गले लगाया, और तो और अपने कल्याणके लिये भी तो कुछ नहीं किया। अब मैं मोहरूपी नींदसे जग गया हूँ, अब देर नहीं करूँगा।'
राजा पुत्रको राज्य सौंपकर, जंगलकी ओर चल पड़ा और निर्ग्रन्थ मुनिराजके चरणोंमें बैठ जिनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर ली। ऐसा होता है-शब्दोंका प्रभाव, ज्ञानकी क्षमता, घटनाका अनुभव; जिससे जीवन बदल जाता है।



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bahut gayee thoda़ee rahee

'bahut gayee thoda़ee rahee"

baat tabakee hai, jab pratham jain teerthankar shreeaadinaath prithveepar raaj karate the. raaj karate-karate deerghakaal vyateet ho gaya, tab devalokamen khalabalee mach gayee ki madhyalokamen raaja rishabhanaath arthaat aadinaathako isee janmamen moksh praapt karana hai, aur ve mahaapurush abhee sansaaree moh jaalamen phanse hain, unhen sachet karana hai aur sansaarake prati virakti-bhaav jagaana hai. unhonne ek upaay socha ki raajaako nrityakalaase adhik lagaav hai, atah nrityakalaake hee maadhyamase inamen virakt bhaav jaagrat hogaa. tabhee ve kalyaanamaargamen agrasar ho sakate hain.
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is udaaharanase yah pramaanit hota hai ki sangeet kala, nrityakala bhee kaheen-kaheen kalyaanaka kaaran ho jaatee hai. ek aisa hee drishtaant aata hai ki maarmik vaakyonvaalee ek kavitaane evan nata-nataneeke prahasanakala yukt nrityane kanjoos raajaaka moh doorakar use mokshapathapar agrasar kar diyaa.
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bahut gayee, thoड़ee rahee, thoda़ee hoo ab jaat .
ab mat chooko nattanee, phal milanekee baat ..
nataneemen himmat aayee, dholakakee thaapapar, usake paironmen josh aaya, aur usane poore utsaahase naachana shuroo kar diyaa. usee sabhaamen raajadarabaariyonke saatha-saath baithe dekh rahe the javaan raajaputr, yauvanavatee raajaputree aur saadhu pravrittike shreshth purush raajaputrane natake ye shabd sunakar socha ki bahuta-sa samay beet gaya, hamane nataneekee kalaako puraskrit naheen kiya hai, aisa aabhaas hote hee raajakumaarane apane galeka haar utaarakar nataneekee or phenkaa. kanjoos raajaane yah dekha aur vah man masosakar rah gayaa. tabhee raajakumaareene bhee apane galeka naulakha haar utaara aur nataneeko de diyaa. raajaakee chhaateepar to maano saanp lot gayaa.
yahee naheen, vahaan sabhaamen sammilit kisee saadhune bhee apana keematee shaal utaara aur nataneeko bhent kar diyaa. ab to raajaase raha naheen gaya, usane sarvapratham putrako bulaaya aur kahaa-'betaa! kya tumhaaree akl maaree gayee hai ? agar tumhen naach pasand hee aaya tha, to kuchh rupaye inaamamen de dete. yah tumane kya moorkhata kee ki laakhonka haar yoon hee kho diya ?
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aapakee aayu 80 varshakee ho gayee hai, lekin aap raajy chhoda़neko taiyaar naheen ho rahe the. mainne aaj yah nishchay kiya tha ki praatah aapake bhojanamen vish milaakar, apana raasta saaph kar loonga aur raaja ban jaaoonga . is doheko sunakar mainne socha, bahut beet chukee hai, ab to aapakee umr bahut thoda़ee-see rah gayee hai, raajy mujhe milana hee hai, naahak thoda़e dinonke liye,
aapakee hatya jaisa jaghany paapakrity kyon karoon ?" jisake kaaran hee aapake praan bache, main paapase bacha, is baatase prasann hokar, yadi mainne laakh rupayonka haar de diya to koee bura naheen kiyaa. yadi isake liye, kaee guna bhee de deta, to vah bhee thoda़a thaa.'
ab baaree aayee putreekee. raajaane kahaa-' are! toone kya naadaanee kee, apana naulakha haar de diyaa!' 'pitaajee! naulakha to kya ? yadi mere paas galemen saulakha haar bhee hota to vah denemen bhee n hichakichaatee, baat yah thee pitaajee! main aapake mantreejeeke putrase prem karatee hoon. usase vivaah karana chaahatee thee. aap mera vivaah mantreejeeke putrake saath karaneke liye kabhee taiyaar naheen hote- aisa main jaanatee thee. isaliye ham dononne yah tay kar liya ki kal raatriko donon yahaanse kaheen bhaag jaayange. natakee baat sunakar sahasa vichaar aaya ki ab thoड़e hee dinakee to baat rah gayee hai. aap to kinaarepar baithe hee hain. mera bhaaee gaddeepar baithate hee hamaare vivaahakee saharsh sveekriti de degaa. phir naahak aisee badanaameeka kaam kyon kiya jaay ?'
raajaane saadhuse poochhaa- 'saadhujee! aap bhee bahak gaye.' saadhu bole- 'raajan! mujhe to natake shabdonne
jhakajhor diyaa. meree aankhen khol deen ! main sochane laga ki itanee saaree umr to yoon hee chalee gayee. ab thoda़ee-see rah gayee hain, kyon n aatmakalyaan karoon. mainne tabhee pakka nishchay kar liya ki praatah hee sab kuchh chhoda़-chhaada़kar nikal jaaoonga, apane aatma-utthaanake pathapara. natake in shabdonne mere soye hue jnaanako jaga diya hai. usake liye jo mainne inaam diya, vah to tuchchh hai, vah kuchh bhee naheen.'
yah sab sunakar evan jaanakar raajaako bhee hosh aaya ki 'are! mainne 80 varsh yoon hee gavaan diye. apanee ratteebhar paravaah naheen kee. bhoga-vilaasamen pada़kar jindagee yoon hee barbaad kar dee. n daan diya, n satsang kiya, n hee jeevanamen sanyamako hee apanaayaa. n kiseeke aansoo ponchhe, n kisee gareebako gale lagaaya, aur to aur apane kalyaanake liye bhee to kuchh naheen kiyaa. ab main moharoopee neendase jag gaya hoon, ab der naheen karoongaa.'
raaja putrako raajy saunpakar, jangalakee or chal pada़a aur nirgranth muniraajake charanonmen baith jineshvaree deeksha angeekaar kar lee. aisa hota hai-shabdonka prabhaav, jnaanakee kshamata, ghatanaaka anubhava; jisase jeevan badal jaata hai.

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