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मैं स्वेच्छासे परपुरुषका स्पर्श नहीं कर सकती  [प्रेरक कहानी]
Story To Read - Shikshaprad Kahani (Short Story)

अशोकवाटिकामें श्रीसीताजीको बहुत दुखी देखकर | महावीर हनुमानजीने पर्वताकार शरीर धारण करके उनसे कहा-' माताजी! आपकी कृपासे मैं पर्वत, वन, महल, चहारदीवारी और नगरद्वारसहित इस सारी लङ्कापुरीको रावणके समेत उठाकर ले जा सकता हूँ। आप कृपया मेरे साथ शीघ्र चलकर राघवेन्द्र श्रीरामका और लक्ष्मणका शोक दूर कीजिये।' इसके उत्तरमें सतीशिरोमणि श्रीजनककिशोरीजीनेकहा - 'महाकपे ! मैं तुम्हारी शक्ति और पराक्रमको जानती हूँ। परंतु मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती; क्योंकि मैं पतिभक्तिकी दृष्टिसे एकमात्र भगवान् श्रीरामके सिवा अन्य किसी भी पुरुषके शरीरका स्पर्श स्वेच्छापूर्वक नहीं करना चाहती। रावण मुझे हरकर लाया था, उस समय तो मैं निरुपाय थी। उसने बलपूर्वक ऐसा किया। उस समय मैं अनाथ, असमर्थ और विवश थी। अब तो श्रीराघवेन्द्र ही पधारकर रावणको मारकर मुझे शीघ्र ले जायें।'



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main svechchhaase parapurushaka sparsh naheen kar sakatee

ashokavaatikaamen shreeseetaajeeko bahut dukhee dekhakar | mahaaveer hanumaanajeene parvataakaar shareer dhaaran karake unase kahaa-' maataajee! aapakee kripaase main parvat, van, mahal, chahaaradeevaaree aur nagaradvaarasahit is saaree lankaapureeko raavanake samet uthaakar le ja sakata hoon. aap kripaya mere saath sheeghr chalakar raaghavendr shreeraamaka aur lakshmanaka shok door keejiye.' isake uttaramen sateeshiromani shreejanakakishoreejeenekaha - 'mahaakape ! main tumhaaree shakti aur paraakramako jaanatee hoon. parantu main tumhaare saath naheen ja sakatee; kyonki main patibhaktikee drishtise ekamaatr bhagavaan shreeraamake siva any kisee bhee purushake shareeraka sparsh svechchhaapoorvak naheen karana chaahatee. raavan mujhe harakar laaya tha, us samay to main nirupaay thee. usane balapoorvak aisa kiyaa. us samay main anaath, asamarth aur vivash thee. ab to shreeraaghavendr hee padhaarakar raavanako maarakar mujhe sheeghr le jaayen.'

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कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
मेरी करुणामयी सरकार, मिला दो ठाकुर से
कृपा करो भानु दुलारी, श्री राधे बरसाने
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
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कही नज़र न लगे इनको हमारी
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
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दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
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बालम बोलो कब आओगे॥
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अपनी वाणी में अमृत घोल
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