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शिष्यकी परीक्षा  [Spiritual Story]
आध्यात्मिक कहानी - Story To Read (Short Story)

'दक्षिणेश्वर मन्दिरके परमहंसदेव समर्थ हैं मेरी विपत्ति दूर करनेके लिये। वे मुझे कितना चाहते हैं!' नरेन्द्र (विवेकानन्द) - ने दक्षिणेश्वर जानेका निश्चय किया। पिताके देहान्तके बाद उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो गयी थी। उन्होंने नौकरीके लिये बड़ी चेष्टा की पर असफल रहे।

'आप कालीके बहुत बड़े उपासक हैं। माँकी आपपर अपार कृपा है, आप मेरी दरिद्रताका नाश कर सकते हैं। नष्ट कर दीजिये न!' युवक नरेन्द्रने परमहंसदेवसे प्रार्थना की।

'वत्स! मैं जानता हूँ कि कालीने संसारमें तुम्हें अपने कार्यके लिये भेजा है। तुम्हारे कंधेपर बहुत बड़े और अत्यन्त पवित्र कार्यके सम्पादनका भार है। जबतक मेरा शरीर पृथ्वीपर है, तबतक तुम्हें इस बातकी चिन्ता नहीं करनी चाहिये।' परमहंसदेवने मुसकरा दिया।

"पर इस समय मेरी दरिद्रताको दूर करनेका प्रश्न उपस्थित है।' नरेन्द्रने अपनी बात दुहरायी।'तो तुम स्वयं कालीसे क्यों प्रार्थना नहीं करते ?' रामकृष्णने माँके श्रीविग्रहके सम्मुख जानेकी प्रेरणा दी। और नरेन्द्रने माँसे कहा-

'जगदम्बा ! मुझे अपनी भक्ति दो, अपने नामके प्रचारकी शक्ति दो, जिससे लोग आपका नाम स्मरणकर धन्य हो जायँ माँ! संसार-सागरसे पार होनेके लिये हाथका सहारा दो।' नरेन्द्र पवित्र श्रद्धासे सम्पन्न हो उठे। आवेशमें उन्होंने जगदम्बासे सांसारिक ऐश्वर्यके स्थानपर दिव्य सम्पत्तिकी याचना की। रामकृष्ण परमहंसने फिर प्रार्थना करनेके लिये कहा और नरेन्द्र किसी अदृश्य शक्तिद्वारा माँके विग्रहके सामने खींच लिये गये। उन्होंने | पूर्ववत् याचना की। तीसरी बार माँगने गये तो ज्ञान और वैराग्यके ही लिये प्रार्थना की।

* महाराज! आपने मेरा परम कल्याण किया। मुझे माँकी कृपा मिल गयी, संसारका नश्वर वैभव नहीं चाहिये मुझे।' नरेन्द्रमें भावी विवेकानन्दके बीज अंकुरित हो उठे। वे परमहंसदेवकी परीक्षामें सफल हुए।

-रा0 श्री0



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shishyakee pareekshaa

'dakshineshvar mandirake paramahansadev samarth hain meree vipatti door karaneke liye. ve mujhe kitana chaahate hain!' narendr (vivekaananda) - ne dakshineshvar jaaneka nishchay kiyaa. pitaake dehaantake baad unakee aarthik sthiti bahut hee kharaab ho gayee thee. unhonne naukareeke liye bada़ee cheshta kee par asaphal rahe.

'aap kaaleeke bahut bada़e upaasak hain. maankee aapapar apaar kripa hai, aap meree daridrataaka naash kar sakate hain. nasht kar deejiye na!' yuvak narendrane paramahansadevase praarthana kee.

'vatsa! main jaanata hoon ki kaaleene sansaaramen tumhen apane kaaryake liye bheja hai. tumhaare kandhepar bahut bada़e aur atyant pavitr kaaryake sampaadanaka bhaar hai. jabatak mera shareer prithveepar hai, tabatak tumhen is baatakee chinta naheen karanee chaahiye.' paramahansadevane musakara diyaa.

"par is samay meree daridrataako door karaneka prashn upasthit hai.' narendrane apanee baat duharaayee.'to tum svayan kaaleese kyon praarthana naheen karate ?' raamakrishnane maanke shreevigrahake sammukh jaanekee prerana dee. aur narendrane maanse kahaa-

'jagadamba ! mujhe apanee bhakti do, apane naamake prachaarakee shakti do, jisase log aapaka naam smaranakar dhany ho jaayan maan! sansaara-saagarase paar honeke liye haathaka sahaara do.' narendr pavitr shraddhaase sampann ho uthe. aaveshamen unhonne jagadambaase saansaarik aishvaryake sthaanapar divy sampattikee yaachana kee. raamakrishn paramahansane phir praarthana karaneke liye kaha aur narendr kisee adrishy shaktidvaara maanke vigrahake saamane kheench liye gaye. unhonne | poorvavat yaachana kee. teesaree baar maangane gaye to jnaan aur vairaagyake hee liye praarthana kee.

* mahaaraaja! aapane mera param kalyaan kiyaa. mujhe maankee kripa mil gayee, sansaaraka nashvar vaibhav naheen chaahiye mujhe.' narendramen bhaavee vivekaanandake beej ankurit ho uthe. ve paramahansadevakee pareekshaamen saphal hue.

-raa0 shree0

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