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सिद्धिका गर्व  [Spiritual Story]
हिन्दी कथा - Spiritual Story (Spiritual Story)

'समस्त जगत् उनके नृत्यसे मोहित होकर नाच रहा है, देव! यदि आप उन्हें न रोकेंगे तो महान् अनर्थ हो सकता है। आप आदिदेव हैं।' ब्रह्मा एवं अन्य देवताओंने महादेवको वायुद्वारा सुकन्याके गर्भसे उत्पन्न बाल-ब्रह्मचारी महर्षि मङ्कणकके सिद्धिमदोन्मत्त नृत्यकी सूचना दी। भोलानाथ हँस पड़े, मानो उनके लिये यह खेल था।

'आप इतने उन्मत्त होकर नाच क्यों रहे हैं, महर्षे ? आप तो वेदज्ञ और शास्त्रोंके महान् ज्ञाता हैं, आप परम पवित्र भगवती सरस्वतीमें स्नान करके यज्ञ आदि कृत्यविधिपूर्वक सम्पन्नकर वेद-गान करते रहते हैं, आप सत्यके महान् उपासक हैं, इस नश्वर जगत्की किस वस्तुने आपका मन इस तरह मुग्ध कर लिया है ?' ब्राह्मणने अमित विनम्रतासे महर्षि मङ्कणकको सचेत किया।

'रंगमें भंग डालना ठीक नहीं है, ब्राह्मणदेवता! आज सिद्धिने मेरी तपस्या सफल कर दी है। देखते नहीं हैं, अँगुलीमें कुशकी नोक गड़ जानेसे रक्तके स्थानपर शाक- रस निकल रहा है।' महर्षिके नृत्यका वेग बढ़ गया। 'पर इतना ही सत्य नहीं है ! वह तो इससे भी आगेहै।' ब्राह्मणने अपनी अँगुलीके सिरेसे अँगूठेपर आघात किया और रक्तके स्थानपर सफेद भस्म निकलने लगा।

'मुझे गर्व हो गया था, देवाधिदेव ! मैं आपकी महानता भूल गया था। ऐसी चमत्कारपूर्ण सिद्धि आप ही दिखा सकते हैं। मैंने सिद्धिके असार मदमें अनर्थ कर डाला। आप अपने सत्स्वरूपसे मुझे कृतकृत्य कीजिये, मेरे परमाराध्य!' महर्षि मङ्कणक स्वस्थ हो गये, उनके सिरसे सिद्धि-पिशाचिनी उतरकर नौ-दो ग्यारह हो गयी। ब्राह्मण वेषधारी भगवान् शङ्कर उनकीसत्यनिष्ठा और निष्कपट पश्चात्तापसे बहुत प्रसन्न हुए । मङ्कणकके रोम-रोममें अद्भुत हर्षोल्लास था । वे परमानन्दमें मग्न थे। सप्तसारस्वत-तीर्थ उनकी उपस्थितिसे दिव्यतर हो उठा।

'सिद्धिका गर्व पतनकी ओर ले जाता है' वत्स ! सिद्धिकी परमनिधि - परमेश्वरकी उपासना और भक्ति ही तपस्याका परम फल है, यही सत्य है।' शङ्करने मङ्कणकके मस्तकपर वरद हस्त रख दिया। महर्षि अपने उपास्यका दर्शन करके आनन्दसे नाच उठे।

-रा0 श्री0 (महाभारत, शल्य0 अ0 38)



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siddhika garva

'samast jagat unake nrityase mohit hokar naach raha hai, deva! yadi aap unhen n rokenge to mahaan anarth ho sakata hai. aap aadidev hain.' brahma evan any devataaonne mahaadevako vaayudvaara sukanyaake garbhase utpann baala-brahmachaaree maharshi mankanakake siddhimadonmatt nrityakee soochana dee. bholaanaath hans pada़e, maano unake liye yah khel thaa.

'aap itane unmatt hokar naach kyon rahe hain, maharshe ? aap to vedajn aur shaastronke mahaan jnaata hain, aap param pavitr bhagavatee sarasvateemen snaan karake yajn aadi krityavidhipoorvak sampannakar veda-gaan karate rahate hain, aap satyake mahaan upaasak hain, is nashvar jagatkee kis vastune aapaka man is tarah mugdh kar liya hai ?' braahmanane amit vinamrataase maharshi mankanakako sachet kiyaa.

'rangamen bhang daalana theek naheen hai, braahmanadevataa! aaj siddhine meree tapasya saphal kar dee hai. dekhate naheen hain, anguleemen kushakee nok gada़ jaanese raktake sthaanapar shaaka- ras nikal raha hai.' maharshike nrityaka veg badha़ gayaa. 'par itana hee saty naheen hai ! vah to isase bhee aagehai.' braahmanane apanee anguleeke sirese angoothepar aaghaat kiya aur raktake sthaanapar saphed bhasm nikalane lagaa.

'mujhe garv ho gaya tha, devaadhidev ! main aapakee mahaanata bhool gaya thaa. aisee chamatkaarapoorn siddhi aap hee dikha sakate hain. mainne siddhike asaar madamen anarth kar daalaa. aap apane satsvaroopase mujhe kritakrity keejiye, mere paramaaraadhya!' maharshi mankanak svasth ho gaye, unake sirase siddhi-pishaachinee utarakar nau-do gyaarah ho gayee. braahman veshadhaaree bhagavaan shankar unakeesatyanishtha aur nishkapat pashchaattaapase bahut prasann hue . mankanakake roma-romamen adbhut harshollaas tha . ve paramaanandamen magn the. saptasaarasvata-teerth unakee upasthitise divyatar ho uthaa.

'siddhika garv patanakee or le jaata hai' vats ! siddhikee paramanidhi - parameshvarakee upaasana aur bhakti hee tapasyaaka param phal hai, yahee saty hai.' shankarane mankanakake mastakapar varad hast rakh diyaa. maharshi apane upaasyaka darshan karake aanandase naach uthe.

-raa0 shree0 (mahaabhaarat, shalya0 a0 38)

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