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तपोधन पण्डित बचानि आचारी की मार्मिक कथा
तपोधन पण्डित बचानि आचारी की अधबुत कहानी - Full Story of तपोधन पण्डित बचानि आचारी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [तपोधन पण्डित बचानि आचारी]- भक्तमाल


तपोधन पण्डित बचानि आचारीका जीवन अत्यन्त संयमपूर्ण था। वे महान् व्रती और भगवद्भक्त । उनका जन्म उत्तर प्रदेशके रायबरेली जनपदके बछरावाँ ग्राममें संवत् 1882 वि0 में हुआ था। उनकी माता नन्दोदेवी बड़ी विदुषी थीं। वे अपने पुत्रसे संस्कृतमें ही बातचीत करती थीं। इससे वे बचपनमें ही धाराप्रवाह संस्कृत बोलने लग गये थे। एक बार वे अपने नाना पण्डित चंदीदीन अवस्थीके साथ एक पण्डितसभामें गये थे। उनकी विद्वत्ता और वादानुवाद- शैलीसे लोग बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने विरोधी पक्षको पराजित कर दिया। पर विद्याविवादमें विजित पक्षको बड़ा दुःख होता है, यह समझकर उन्होंने भविष्यमें कभी भी शास्त्रार्थ न करनेका कठोर व्रत लिया।

थोड़े समयके बाद एक दार्शनिक वैष्णव साधुके उपदेशोंने उनमें भगवान्‌की भक्तिभावना भर दी; वे नित्यप्रति श्रीमद्भागवतके कम-से-कम पाँच अध्यायोंका पाठ किया करते थे। उन्होंने जीवनपर्यन्त किसीकाअन्न द्रव्य नहीं स्वीकार किया। वे गृहस्थ भक्त थे, आचारी - सम्प्रदायमें दीक्षित थे। जो कुछ भगवान्‌की ओरसे खाने-पीनेको मिल जाता था, उसीमें संतोष करते थे। उनकी श्रीभागवतकी कथा बड़ी मधुर होती थी। धनी-मानी व्यक्ति उनको कथा कहनेके लिये आमन्त्रित करनेका साहस नहीं कर पाते थे। उनका प्रण था कि जहाँ भी कथा कहूँगा, वहाँ दूसरेका अन नहीं ग्रहण करूँगा, न कथाकी समाप्तिपर एक पैसा भी चढ़ने दूँगा। उनके त्याग और तपोमय जीवनसे लोग बहुत प्रभावित हुए। एक बार वे सेमरौताके राजाके अतिथि थे। राजाने बड़ा प्रयत्न किया कि वे उसका अन्न ग्रहण करें, भेंट स्वीकार करें, पर बचानि आचारीने कहा कि 'चातक स्वाति घनकी ही ओर देखा करता है; अन्य पक्षी सरोवरमें बिना किसी रोक टोकके जल पीते रहते हैं, पर चातक तो घनश्यामको ही चाहता है।'

आचारीजी महाराजकी रासपञ्चाध्यायीमें बड़ी निष्ठाथी, रासलीलाकी कथा वे अद्भुत ढंगसे कहते थे। भगवान् श्रीकृष्ण ही उनके उपास्यदेव थे। संत-सेवामें उनकी बड़ी अभिरुचि थी। एक बार उनकी पत्नीने कहा - 'आप पूर्वजोंकी सम्पत्ति उड़ा रहे हैं, बाल बच्चोंके लिये भी तो कुछ सोचना चाहिये।' आचारीजीने कहा कि 'जिसके खजांची स्वयं भगवान् हैं, उसे द्रव्यकेअभावकी चिन्ता ही किस तरह रह सकती है।' वे कहा करते थे कि लक्ष्मीकी प्राप्ति भगवान्‌की भक्तिसे ही सम्भव है; जहाँ लक्ष्मीपति हैं, वहीं लक्ष्मी हैं। वे भक्तिको लोक-परलोकसुखकी निधि मानते थे। उन्होंने आजीवन भगवन्नामाश्रय लिया। उनके जीवनमें तपस्या और भक्तिका सुन्दर समन्वय था ।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [tapodhan pandit bachaani aachaaree]- Bhaktmaal


tapodhan pandit bachaani aachaareeka jeevan atyant sanyamapoorn thaa. ve mahaan vratee aur bhagavadbhakt . unaka janm uttar pradeshake raayabarelee janapadake bachharaavaan graamamen sanvat 1882 vi0 men hua thaa. unakee maata nandodevee bada़ee vidushee theen. ve apane putrase sanskritamen hee baatacheet karatee theen. isase ve bachapanamen hee dhaaraapravaah sanskrit bolane lag gaye the. ek baar ve apane naana pandit chandeedeen avastheeke saath ek panditasabhaamen gaye the. unakee vidvatta aur vaadaanuvaada- shaileese log bahut prabhaavit hue. unhonne virodhee pakshako paraajit kar diyaa. par vidyaavivaadamen vijit pakshako baड़a duhkh hota hai, yah samajhakar unhonne bhavishyamen kabhee bhee shaastraarth n karaneka kathor vrat liyaa.

thoda़e samayake baad ek daarshanik vaishnav saadhuke upadeshonne unamen bhagavaan‌kee bhaktibhaavana bhar dee; ve nityaprati shreemadbhaagavatake kama-se-kam paanch adhyaayonka paath kiya karate the. unhonne jeevanaparyant kiseekaaann dravy naheen sveekaar kiyaa. ve grihasth bhakt the, aachaaree - sampradaayamen deekshit the. jo kuchh bhagavaan‌kee orase khaane-peeneko mil jaata tha, useemen santosh karate the. unakee shreebhaagavatakee katha bada़ee madhur hotee thee. dhanee-maanee vyakti unako katha kahaneke liye aamantrit karaneka saahas naheen kar paate the. unaka pran tha ki jahaan bhee katha kahoonga, vahaan doosareka an naheen grahan karoonga, n kathaakee samaaptipar ek paisa bhee chadha़ne doongaa. unake tyaag aur tapomay jeevanase log bahut prabhaavit hue. ek baar ve semarautaake raajaake atithi the. raajaane bada़a prayatn kiya ki ve usaka ann grahan karen, bhent sveekaar karen, par bachaani aachaareene kaha ki 'chaatak svaati ghanakee hee or dekha karata hai; any pakshee sarovaramen bina kisee rok tokake jal peete rahate hain, par chaatak to ghanashyaamako hee chaahata hai.'

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