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भगवान् शङ्कर की मार्मिक कथा
भगवान् शङ्कर की अधबुत कहानी - Full Story of भगवान् शङ्कर (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भगवान् शङ्कर]- भक्तमाल


नाम प्रभाव जान सिव नीको। कालकूट फल दीन्ह अमी को।

(श्रीरामचरितमानस)

भगवान् शङ्कर एवं भगवान् नारायण सदा ही अभिन हैं। आराधकोंकी रुचि एवं अधिकारभेदसे उन्हें अभीष्ट आराध्य रूपका अवलम्बन देनेके लिये वे एक सच्चिदानन्दघन हो नित्य मङ्गलमय दो रूपोंमें स्थित हैं। कर्पूरगौर, अहिभूषण वर्माम्बर, विभूति भूषण, गङ्गाधर, चन्द्रशेखर नीलकण्ठ, मुण्डमाली, त्रिशूलधारी, वृषभवाहन, उमानाथ और नवजलधर सुन्दर, रत्नाभरणभूषित, पीताम्बरधारी, श्रीवत्सवक्षाङ्कित कौस्तुभकण्ठ, वनमाली, शङ्ख-चक्रादिधारी, गरुडवाहन, श्रीपति- ये दोनों एक ही तत्त्वके दो नित्य चिन्मय लीला विग्रह है। इनमें से किसीमें भेदबुद्धि करनेवाला किसी एकका आराधक हो तो वह अपनी भेदबुद्धिसे अपने ही आराध्यका अपमान कर रहा है- यह उसे समझना चाहिये। भगवान् श्रीरामने स्वयं कहा है

सिव द्रोही मम भगत कहावा सो नर सपनेहुँ मोहि न भावा ॥ भगवान् नारायण मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम एवं लोलापुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र परम शैव हैं। भगवान् विष्णुने शङ्करजीकी पूजामें सहस्र कमल चढ़ानेका सङ्कल्प किया और जब उनमें एक कमल घट गया, तब अपना कमलरूपी नेत्र ही चढ़ा दिया। भगवान् श्रीरामने रामेश्वरलिङ्गको स्थापना की। श्रीकृष्णचन्द्रने भगवान् शङ्करकी आराधना करके स्वामिकार्तिकको ही महारानी जाम्बवतीके पुत्र साम्बके रूपमें पाया। इसी प्रकार भगवान् शङ्कर परम वैष्णव हैं। द्वादश भागवताचार्यों में शङ्करजी प्रमुख हैं। उन भोले बाबाको निरन्तर राम नाम-जप तथा भगवान् श्रीहरिके चिन्तनके अतिरिक्त और कोई काम ही नहीं। अपने अविमुक्तधाम काशीपुरीमें मरनेवाले प्रत्येक प्राणीको 'राम' इस तारकमन्त्रका उपदेश मृत्यु-क्षणमें करके शङ्करजी उसे मुक्त कर दिया करते हैं। श्रीभावार्थका पुष्टिमार्ग (शुद्धाद्वैत-) वैष्णव सम्प्रदाय मूलमें भगवान् शङ्करसे ही प्रवर्तित हुआ है। अनेक अन्य वैष्णव आराधनाग्रन्थ एवं ऐसी उपासनापरम्पराएं हैं, जिनके आदि आचार्य भगवान् शङ्करजी हैं। भगवान् विष्णु और भगवान् शङ्कर दोनों ही निय | एवं चिन्मय हैं। भगवान् ब्रह्माके भ्रूमध्यसे तो नीललोहित रूपमें रुद्रकी अभिव्यक्ति हुई है। कर्पूरगौर, त्रिनयन भगवान् शिवका श्रीविग्रह नित्य है। भगवान् शङ्करको मङ्गलमयी अनन्त लीलाएँ हैं। उनमेंसे उनका हलाहलपान तो लोकमङ्गलका मूल ही है। देवता और दैत्य- दोनों मिलकर क्षीरसिन्धुका मन्थन कर रहे थे। मन्दराचलको मधानी बनाकर, उसमें वासुकि नागको लपेटकर वे मध रहे थे। भगवान् नारायणने कच्छपरूपसे मन्दराचलको अपनी पीठपर ले रखा था जब देवता और दैत्य थक गये और कोई परिणाम न हुआ, तब स्वयं भगवान् विष्णु अपने हाथोंमें वासुकिका सिर तथा उसकी पूँछ पकड़कर समुद्र मथने लगे। अमृत पानेके इस प्रयत्नमें पहले समुद्रसे घोर हलाहल विष निकला। भगवान् विष्णु तथा सभी देवता समुद्र मथनेमें लगे थे। प्रजापतिगणने देखा कि हलाहल संसारमें व्यापक होता जा रहा है और | उसकी ज्वालासे संसारके जीव नष्ट हो रहे हैं। प्रजाकी रक्षाका उत्तरदायित्व प्रजापतिगणपर है। वे लोग दूसरा कोई रक्षक न देखकर भगवान् शङ्करको शरणमें गये और स्तुति करके उन्होंने आशुतोष प्रभुको प्रसन्न किया। भगवान् विश्वनाथने विषसे आर्त एवं पीड़ित जीवोंको देखा और उन दयामयने भवानीसे कहा-'देवि । ये बेचारे प्राणी बड़े ही व्याकुल हैं। ये प्राण बचानेको इच्छासे मेरी शरण आये हैं। मेरा कर्तव्य है कि मैं इन्हें अभय करूँ क्योंकि जो समर्थ हैं, उनकी सामा उद्देश्य हो यह है कि वे दोनोंका पालन करें। साधुजन अपने क्षणभर जीवनको बलि देकर भी प्राणियोंकों क्षणभङ्गुर रक्षा करते हैं। कल्याणी । जो पुरुष प्राणियोंपर कृपा करता है, उससे सर्वात्मा श्रीहरि संतुष्ट होते हैं और जिसपर वे श्रीहरि सन्तुष्ट होते हैं, उससे मैं तथा समस्त चराचर जगत् भी सन्तुष्ट होता है।'

महाशकिको अपने आराध्यको अनुकम्पामें बाधा हो | देनी नहीं थी। उन ममतामयीको भगवान् विश्वनाथकाप्रभाव सर्वथा ज्ञात था । उन्होंने अनुमोदन किया और भगवान् शङ्करने उस व्यापक हलाहल विषको अपनी हथेलीपर एकत्र करके भगवान्‌का नाम लेकर पान कर लिया। शङ्करजीने उस विषको अपने कण्ठमें रख लिया, इससे उनके कण्ठका उज्वल वर्ण नीला हो गया। भगवान् शिवके कण्ठकी वह नीलिमा विश्वमङ्गलका उज्वल पदक है। वह उन विश्वनाथकी मूर्तिमती कृपा ही है, जो उनको भूषित करती है। उन नीलकण्ठ प्रभुके पावन पदपङ्कजकी महिमा अतुलनीय है।

हमारे वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास और तन्त्र भगवान् श्रीशङ्करकी महिमा, गौरव गरिमा विविध लोला तथा उनके विविध उपदेशों और उनकी बतलायी हुई असंख्य साधन-प्रणालियोंसे भरे हैं। पद्मपुराणमें उन्होंने एक जगह भगवान्‌के गुण-लीला-रसिक देवर्षि नारदजीसे श्रीराधाकृष्णकी उपासना, उनके स्वरूप और मन्त्रादिके विषयमें बड़े रहस्य और महत्त्वकी बातें बतलायी हैं। यहाँ भक्ति-साधकोंके लाभार्थ उनमें कुछका अनुवाद दिया जाता है। श्रीशङ्करजी कहते हैं

श्रीकृष्णके 'मन्त्रचिन्तामणि' नामक दो अत्युत्तम मन्त्र हैं- एक षोडशाक्षर है और दूसरा दशाक्षर।

मन्त्र

षोडशाक्षर मन्त्र है-

'गोपीजनवाजभचरणान् शरणं प्रपद्ये ।"

और दशाक्षर हैं

'नमो गोपीजनवल्लभाभ्याम्

इन मन्त्रोंके अधिकारी सभी वर्णोंके सभी आश्रमों के और सभी जातियोंके वे स्त्री-पुरुष हैं, जिनकी सर्वेश्वर भगवान् श्रीकृष्णमें भक्ति है (भक्तिर्भवेदेषां कृष्णो सर्वेश्वरेश्वरे') श्रीकृष्णभक्तिसे रहित बाज्ञिक दानशील, तान्त्रिक, सत्यवादी, वेदवेदाङ्गपारग, कुलीन, तपस्वी, व्रती और ब्रह्मनिष्ठ - कोई भी इनके अधिकारी नहीं हैं। इसलिये ये मन्त्र श्रीकृष्णके अथक, कृतघ्न, दुरभिमानी और श्रद्धारहित मनुष्योंको नहीं बतलाने चाहिये।

दम्भ, लोभ, काम और क्रोधादिसे रहित श्रीकृष्णके अनन्य भक्तको ही ये मन्त्र देने चाहिये। इनका यथाविधि न्यास करके श्रीकृष्णकी पूजा करनी चाहिये। फिर उनकाइस प्रकार ध्यान करना चाहिये

ध्यान

सुन्दर वृन्दावनमें कल्पवृक्षके नीचे सिंहासनपर भगवान् श्रीकृष्ण श्रीप्रियाजीके साथ विराजमान हैं। श्रीकृष्णका वर्ण नवजलधरके समान नील- श्याम है, पीताम्बर धारण किये हुए हैं, द्विभुज हैं, विविध रत्नोंकी और पुष्पोंकी मालाओंसे विभूषित हैं, मुखमण्डल करोड़ों चन्द्रमाओंसे भी सुन्दर है। तिरछे नेत्र हैं, ललाटपर मण्डलाकृति तिलक हैं, जो चारों ओर चन्दनसे और बीचमें कुङ्कुमबिन्दु बनाये हुए हैं। कानोंमें सुन्दर कुण्डल शोभायमान हैं, उन्नत नासिकाके अग्रभागमें मोती लटक रहा है। पके बिम्बफलके समान अरुणवर्ण अधर हैं, जो दाँतोंकी प्रभासे चमक रहे हैं। भुजाओंमें रत्नमय कड़े और बाजूबंद हैं और अँगुलियोंमें रत्नोंकी अंगूठियाँ शोभा पा रही हैं। बायें हाथमें मुरली और दाहिनेमें कमल लिये हुए हैं। कमरमें मनोहर रत्नमयी करधनी है, चरणोंमें नूपुर सुशोभित है बड़ी ही मनोहर अलकावली है, मस्तकपर मयूरपिच्छ शोभा पा रहा है। सिरमें कनेरके पुष्पोंके आभूषण हैं। भगवानको देहकान्ति नवोदित कोटि-कोटि दिवाकरोंके सदृश स्निग्ध ज्योतिर्मय है। उनके दर्पणोपम कपोल स्वेदकणोंसे सुशोभित हैं। चल नेत्र श्रीराधिकाजीकी ओर लगे हुए हैं। वामभागमें श्रीराधिकाजी विराजिता हैं, तपे हुए सोनेके समान उनकी देहप्रभा है, नील वस्त्र धारण किये हैं, मन्द मन्द मुसकरा रही हैं। चञ्चल नेत्रयुगल स्वामीके मुखचन्द्रकी ओर लगे हुए हैं और चकोरीकी भाँति उनके द्वारा वे श्याम मुख-चन्द्र-सुधाका पान कर रही हैं। | अङ्गुष्ठ और तर्जनी अंगुलियोंके द्वारा वे प्रियतमके मुखकमलमें पान दे रही हैं। उनके गलेमें दिव्य रामोंके और मुक्ताओंके हार हैं। क्षीण कटि करधनीसे सुशोभित है। चरणों में नूपुर, कड़े और चरणालियोंमें अङ्गुलीय आदि शोभा पा रहे हैं। उनके प्रत्येक अङ्ग-प्रत्यङ्गसे लावण्य छिटक रहा है। उनके चारों ओर तथा आगे-पीछे यथास्थान खड़ी हुई सखियाँ विविध प्रकारसे सेवा कर रही हैं। राधिकाजी कृष्णमयी हैं, वे श्रीकृष्णको आनन्द

रूपिणी हादिनी शक्ति हैं। त्रिगुणमयी दुर्गा आदि शक्तियाँउनकी करोड़वीं कलाके करोड़वें अंशके समान हैं। सब कुछ वस्तुतः श्रीराधाकृष्णसे ही भरा है। उनके सिवा और कुछ भी नहीं है। यह जड़-चेतन अखिल जगत् श्रीराधाकृष्णमय है

चिदचिलक्षणं सर्व राधाकृष्णमयं जगत्।

परन्तु वे इतने ही नहीं हैं। अनन्त अखिल ब्रह्माण्डसे परे हैं, सबसे परे हैं, सबके अधिष्ठान हैं, सबमें हैं और सबसे सर्वथा विलक्षण है। यह श्रीकृष्णका किञ्चित् ऐश्वर्य है।

साधन

बहुत दिनोंसे विदेश गये हुए पतिकी पतिपरायणा पत्नी जैसे एकमात्र अपने पतिमें ही अनुरागिणी होकर, एकमात्र पतिका ही सङ्ग चाहती हुई, दोनभावसे सदा सर्वदा उस स्वामीके गुणोंका चिन्तन, गान और श्रवण किया करती है, वैसे ही श्रीकृष्णमें आसक्तचित्त होकर साधकको श्रीकृष्णके गुण-लीलादिका चिन्तन, गायन और श्रवण करते हुए ही समय बिताना चाहिये। और बहुत लंबे समयके बाद पतिके घर आनेपर जैसे पतिव्रता स्त्री अनन्य प्रेमके साथ तद्रतचित्त होकर पतिकी सेवा, उसका आलिङ्गन आदि तथा नयनोंके द्वारा उसके रूपसुधारका पान करती है, वैसे ही साधकको उपासनाके समय शरीर, मन, वाणीसे परमानन्दके साथ श्रीहरिकी सेवा करनी चाहिये।

एकमात्र श्रीकृष्णके ही शरणापत्र होना चाहिये और वह भी श्रीकृष्णके लिये ही दूसरा कोई भी प्रयोजन न रहे। अनन्य मनसे श्रीकृष्णको सेवा करनी चाहिये। श्रीकृष्णके सिवा न किसीकी पूजा करनी चाहिये और न किसीकी निन्दा। किसीका जूँठा नहीं खाना चाहिये और न किसीका पहना हुआ वस्त्र ही पहनना चाहिये। भगवान्की निन्दा करनेवालोंसे न तो बातचीत करनी चाहिये और न भगवान् और भक्तोंकी निन्दा सुननी ही चाहिये।

जीवनभरको अर्थ समझते हुए युगलक उपासना करनी चाहिये। चातक जैसे सरोवर, नदी और समुद्र आदि सहज ही मिले हुए जलाशयोंको छोड़कर एकमात्र मेघजलकी आशासे प्याससे तड़पता हुआ जीवनबिताता है; प्राण चाहे चले जायें, पर मेघके सिवा किसी दूसरेसे जलकी प्रार्थना नहीं करता, इसी प्रकार साधकको एकाग्र मनसे एकमात्र श्रीकृष्णगतचित्त होकर साधन करनी चाहिये।

परम विश्वासके साथ श्रीयुगलसरकारसे निम्नलिखित प्रार्थना करनी चाहिये

संसारसागरात्रार्थी पुत्रमित्रगृहाकुलात्।
गोप्तारौ भे युवामेव प्रपत्रभवभञ्जन |
यो ममास्ति यत्किञ्चिदिहलोके परत्र च
तत्सर्व भवतोरद्य चरणेषु समर्पितम् ॥ अहमस्म्यपराधानामालयस्त्यक्तसाधनः
अगतिश्च ततो नाथौ भवन्तावेव मे गतिः ॥
तवास्मि राधिकाकान्त कर्मणा मनसा गिरा।
कृष्णकान्ते तवैवास्मि युवामेव गतिर्मम ॥
शरणं वां प्रपन्नोऽस्मि करुणानिकराकरा ।
प्रसादं कुरुतं दास्यं मयि दुष्टेऽपराधिनि ॥

(पद्मपुराण, पातालखण्ड) 'नाथ ! पुत्र, मित्र और घरसे भरे हुए इस संसारसागरसे आप ही दोनों मुझको बचानेवाले हैं। आप ही शरणागतके भयका नाश करते हैं। मैं जो कुछ भी हूँ और इस लोक तथा परलोकमें मेरा जो कुछ भी है, वह सभी आज मैं आप दोनोंके चरणकमलोंमें समर्पण कर रहा हूँ। मैं अपराधोंका भण्डार हूँ। मेरे अपराधका पार नहीं है मैं सर्वथा साधनहीन हूँ, गतिहीन हूँ। इसलिये नाथ ! एकमात्र आप ही दोनों प्रिया-प्रियतम मेरी गति हैं। श्रीराधिकाकान्त श्रीकृष्ण और श्रीकृष्णका राधिके ! मैं तन-मन-वचनसे आपका ही हूँ और आप ही मेरी एकमात्र गति हैं। मैं आपको शरण हूँ आपके चरणोंपर पड़ा हूँ। आप अखिल कृपाकी खान हैं। कृपापूर्वक मुझपर दया कीजिये और मुझ दुष्ट अपराधीको अपना दास बना लीजिये।' जो भगवान् श्रीराधाकृष्णको सेवाका अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकोंको भगवान्‌के
चरणकमलोंमें स्थित होकर इस प्रार्थनामय मन्त्रका नित्य
जप करना चाहिये।

भगवान् शङ्करने फिर नारदजोसे कहा-देवर्षि! मैं भगवान्के मन्त्रका जप और उनका ध्यान करता हुआ बहुत दिनोंतक कैलासपर रहा, तब भगवान्ने प्रकट होकर मुझे दर्शन दिये और वर माँगनेके लिये कहा। मैंने बारम्बार प्रणाम करके उनसे प्रार्थना की- कृपासिन्धो। आपका जो सर्वानन्ददायी समस्त आनन्दोंका आधार नित्य मूर्तिमान् रूप है, जिसे विद्वान् लोग निर्गुण, निष्क्रिय, शान्तब्रह्म कहते हैं, हे परमेश्वर! मैं उसी रूपको अपनी आँखोंसे देखना चाहता हूँ।'

भगवान्ने कहा- ' आप श्रीयमुनाजीके पश्चिमतटपर मेरे वृन्दावनमें जाइये, वहाँ आपको मेरे स्वरूपके दर्शन होंगे।' इतना कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। मैंने उसी क्षण मनोहर यमुनातटपर जाकर देखा- समस्त देवताओंके ईश्वरोंके ईश्वर भगवान् श्रीकृष्ण मनोहर गोपवेष धारण किये हुए हैं। उनकी सुन्दर किशोर अवस्था है। श्रीराधाजीके कंधेपर अपना अति मनोहर बायाँ हाथ रखे वे सुन्दर त्रिभङ्गी से खड़े मुसकरा रहे हैं। उनके चारों ओर गोपियोंका मण्डल है। शरीरको कान्ति सजल जलदके सदृश स्निग्ध श्यामवर्ण है। वे अखिल कल्याणके एकमात्र आधार हैं।

इसके बाद भगवान् श्रीकृष्णने अमृतोपम मधुर वाणीमें मुझसे कहा

यदद्य मे त्वया दृष्टमिदं रूपमलौकिकम्।
घनीभूतामलप्रेमसच्चिदानन्दविग्रहम् ll
नीरूपं निर्गुणं व्यापि क्रियाहीनं परात्परम्।
ममानघ ॥ द इदमेव प्रकृत्युत्थगुणाभावादनन्तत्वात्तथेश्वर असिद्धत्वान्मद्गुणानां निर्गुणं मां वदन्ति हि ॥ अदृश्यत्वान्ममैतस्य रूपस्य
अरूपं मां वदन्त्येते वेदाः सर्वे महेश्वर ।। व्यापकत्वाच्चिदंशेन ब्रह्मेति च विदुर्बुधाः । अकर्तृत्वात्प्रपञ्चस्य निष्क्रियं मां वदन्ति हि ॥ मायागुणैर्यतो मेंऽशाः कुर्वन्ति सर्जनादिकम्।
न करोमि स्वयं किञ्चित् सृष्ट्यादिकमहं शिव ॥

'शङ्करजी ! आपने आज मेरा यह परम अलौकिकरूप देखा है। सारे उपनिषद मेरे इस घनीभूत निर्मल प्रेममय सच्चिदानन्दघन रूपको ही निराकार, निर्गुण, सर्वव्यापी, निष्क्रिय और परात्पर 'ब्रह्म' कहते हैं। मुझमें प्रकृतिसे उत्पन्न कोई गुण नहीं है और मेरे गुण अनन्त हैं उनका वर्णन नहीं हो सकता। और मेरे वे गुण प्राकृत दृष्टिसे सिद्ध नहीं होते, इसलिये ये सब मुझको 'निर्गुण' कहते हैं। महेश्वर । मेरे इस रूपको चर्मचक्षुओंके द्वारा कोई देख नहीं सकता, इसलिये वेद इसको अरूप या 'निराकार' कहते हैं। मैं अपने चैतन्यांशके द्वारा सर्वव्यापी हूँ, इसलिये विद्वान् लोग मुझको 'ब्रह्म' कहते हैं और मैं इस विश्वप्रपञ्चका रचयिता नहीं हूँ, इसलिये पण्डितगण मुझको 'निष्क्रिय' बतलाते हैं। शिव! वस्तुतः सृष्टि आदि कोई भी कार्य मैं स्वयं नहीं करता। मेरे अंश ही (ब्रह्मा-विष्णु रुद्र) मायागुणोंके द्वारा सृष्टि संहारादि कार्य किया करते हैं।'

देवर्षि! भगवान् के इस प्रकार कहने और कुछ अन्य उपदेश करनेपर मैंने उनसे पूछा-'नाथ! आपके इस युगलस्वरूपकी प्राप्ति किस उपायसे हो सकती है? इसे कृपा करके बतलाइये।' भगवान्ने कहा- 'हम दोनोंके शरणापत्र होकर जो गोपीभावसे हमारी उपासना करते हैं, उन्हींको हमारी प्राप्ति होती है, अन्य किसीको नहीं।'

गोपीभावेन देवेश स मामेति न चेतरः । 'एक सत्य बात और है-वह यह है कि पूरे प्रयत्नोंके साथ इस भावकी प्राप्तिके लिये श्रीराधिकाको उपासना करनी चाहिये। हे रुद्र ! यदि आप मुझे वशमें करना चाहते हैं तो मेरी प्रिया श्रीराधिकाजीकी शरण ग्रहण कीजिये

'आश्रित्य मत्प्रियां रुद्र मां वशीकर्तुमर्हसि। '

इसी प्रकार भगवान् शङ्करने विविध उपासनाओं के अमोध उपदेश किये हैं।

भगवान के भक्त, सखा और स्वामी भगवान् श्रीशङ्करजीको कोटि-कोटि प्रणाम।



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mantra

shodashaakshar mantr hai-

'gopeejanavaajabhacharanaan sharanan prapadye ."

aur dashaakshar hain

'namo gopeejanavallabhaabhyaam

in mantronke adhikaaree sabhee varnonke sabhee aashramon ke aur sabhee jaatiyonke ve stree-purush hain, jinakee sarveshvar bhagavaan shreekrishnamen bhakti hai (bhaktirbhavedeshaan krishno sarveshvareshvare') shreekrishnabhaktise rahit baajnik daanasheel, taantrik, satyavaadee, vedavedaangapaarag, kuleen, tapasvee, vratee aur brahmanishth - koee bhee inake adhikaaree naheen hain. isaliye ye mantr shreekrishnake athak, kritaghn, durabhimaanee aur shraddhaarahit manushyonko naheen batalaane chaahiye.

dambh, lobh, kaam aur krodhaadise rahit shreekrishnake anany bhaktako hee ye mantr dene chaahiye. inaka yathaavidhi nyaas karake shreekrishnakee pooja karanee chaahiye. phir unakaais prakaar dhyaan karana chaahiye

dhyaana

sundar vrindaavanamen kalpavrikshake neeche sinhaasanapar bhagavaan shreekrishn shreepriyaajeeke saath viraajamaan hain. shreekrishnaka varn navajaladharake samaan neela- shyaam hai, peetaambar dhaaran kiye hue hain, dvibhuj hain, vividh ratnonkee aur pushponkee maalaaonse vibhooshit hain, mukhamandal karoda़on chandramaaonse bhee sundar hai. tirachhe netr hain, lalaatapar mandalaakriti tilak hain, jo chaaron or chandanase aur beechamen kunkumabindu banaaye hue hain. kaanonmen sundar kundal shobhaayamaan hain, unnat naasikaake agrabhaagamen motee latak raha hai. pake bimbaphalake samaan arunavarn adhar hain, jo daantonkee prabhaase chamak rahe hain. bhujaaonmen ratnamay kada़e aur baajooband hain aur anguliyonmen ratnonkee angoothiyaan shobha pa rahee hain. baayen haathamen muralee aur daahinemen kamal liye hue hain. kamaramen manohar ratnamayee karadhanee hai, charanonmen noopur sushobhit hai bada़ee hee manohar alakaavalee hai, mastakapar mayoorapichchh shobha pa raha hai. siramen kanerake pushponke aabhooshan hain. bhagavaanako dehakaanti navodit koti-koti divaakaronke sadrish snigdh jyotirmay hai. unake darpanopam kapol svedakanonse sushobhit hain. chal netr shreeraadhikaajeekee or lage hue hain. vaamabhaagamen shreeraadhikaajee viraajita hain, tape hue soneke samaan unakee dehaprabha hai, neel vastr dhaaran kiye hain, mand mand musakara rahee hain. chanchal netrayugal svaameeke mukhachandrakee or lage hue hain aur chakoreekee bhaanti unake dvaara ve shyaam mukha-chandra-sudhaaka paan kar rahee hain. | angushth aur tarjanee anguliyonke dvaara ve priyatamake mukhakamalamen paan de rahee hain. unake galemen divy raamonke aur muktaaonke haar hain. ksheen kati karadhaneese sushobhit hai. charanon men noopur, kaड़e aur charanaaliyonmen anguleey aadi shobha pa rahe hain. unake pratyek anga-pratyangase laavany chhitak raha hai. unake chaaron or tatha aage-peechhe yathaasthaan khada़ee huee sakhiyaan vividh prakaarase seva kar rahee hain. raadhikaajee krishnamayee hain, ve shreekrishnako aananda

roopinee haadinee shakti hain. trigunamayee durga aadi shaktiyaanunakee karoड़veen kalaake karoड़ven anshake samaan hain. sab kuchh vastutah shreeraadhaakrishnase hee bhara hai. unake siva aur kuchh bhee naheen hai. yah jada़-chetan akhil jagat shreeraadhaakrishnamay hai

chidachilakshanan sarv raadhaakrishnamayan jagat.

parantu ve itane hee naheen hain. anant akhil brahmaandase pare hain, sabase pare hain, sabake adhishthaan hain, sabamen hain aur sabase sarvatha vilakshan hai. yah shreekrishnaka kinchit aishvary hai.

saadhana

bahut dinonse videsh gaye hue patikee patiparaayana patnee jaise ekamaatr apane patimen hee anuraaginee hokar, ekamaatr patika hee sang chaahatee huee, donabhaavase sada sarvada us svaameeke gunonka chintan, gaan aur shravan kiya karatee hai, vaise hee shreekrishnamen aasaktachitt hokar saadhakako shreekrishnake guna-leelaadika chintan, gaayan aur shravan karate hue hee samay bitaana chaahiye. aur bahut lanbe samayake baad patike ghar aanepar jaise pativrata stree anany premake saath tadratachitt hokar patikee seva, usaka aalingan aadi tatha nayanonke dvaara usake roopasudhaaraka paan karatee hai, vaise hee saadhakako upaasanaake samay shareer, man, vaaneese paramaanandake saath shreeharikee seva karanee chaahiye.

ekamaatr shreekrishnake hee sharanaapatr hona chaahiye aur vah bhee shreekrishnake liye hee doosara koee bhee prayojan n rahe. anany manase shreekrishnako seva karanee chaahiye. shreekrishnake siva n kiseekee pooja karanee chaahiye aur n kiseekee nindaa. kiseeka joontha naheen khaana chaahiye aur n kiseeka pahana hua vastr hee pahanana chaahiye. bhagavaankee ninda karanevaalonse n to baatacheet karanee chaahiye aur n bhagavaan aur bhaktonkee ninda sunanee hee chaahiye.

jeevanabharako arth samajhate hue yugalak upaasana karanee chaahiye. chaatak jaise sarovar, nadee aur samudr aadi sahaj hee mile hue jalaashayonko chhoड़kar ekamaatr meghajalakee aashaase pyaasase tada़pata hua jeevanabitaata hai; praan chaahe chale jaayen, par meghake siva kisee doosarese jalakee praarthana naheen karata, isee prakaar saadhakako ekaagr manase ekamaatr shreekrishnagatachitt hokar saadhan karanee chaahiye.

param vishvaasake saath shreeyugalasarakaarase nimnalikhit praarthana karanee chaahiye

sansaarasaagaraatraarthee putramitragrihaakulaat.
goptaarau bhe yuvaamev prapatrabhavabhanjan |
yo mamaasti yatkinchidihaloke paratr ch
tatsarv bhavatorady charaneshu samarpitam .. ahamasmyaparaadhaanaamaalayastyaktasaadhanah
agatishch tato naathau bhavantaavev me gatih ..
tavaasmi raadhikaakaant karmana manasa giraa.
krishnakaante tavaivaasmi yuvaamev gatirmam ..
sharanan vaan prapanno'smi karunaanikaraakara .
prasaadan kurutan daasyan mayi dushte'paraadhini ..

(padmapuraan, paataalakhanda) 'naath ! putr, mitr aur gharase bhare hue is sansaarasaagarase aap hee donon mujhako bachaanevaale hain. aap hee sharanaagatake bhayaka naash karate hain. main jo kuchh bhee hoon aur is lok tatha paralokamen mera jo kuchh bhee hai, vah sabhee aaj main aap dononke charanakamalonmen samarpan kar raha hoon. main aparaadhonka bhandaar hoon. mere aparaadhaka paar naheen hai main sarvatha saadhanaheen hoon, gatiheen hoon. isaliye naath ! ekamaatr aap hee donon priyaa-priyatam meree gati hain. shreeraadhikaakaant shreekrishn aur shreekrishnaka raadhike ! main tana-mana-vachanase aapaka hee hoon aur aap hee meree ekamaatr gati hain. main aapako sharan hoon aapake charanonpar pada़a hoon. aap akhil kripaakee khaan hain. kripaapoorvak mujhapar daya keejiye aur mujh dusht aparaadheeko apana daas bana leejiye.' jo bhagavaan shreeraadhaakrishnako sevaaka adhikaar bahut sheeghr praapt karana chaahate hain, un saadhakonko bhagavaan‌ke
charanakamalonmen sthit hokar is praarthanaamay mantraka nitya
jap karana chaahiye.

bhagavaan shankarane phir naaradajose kahaa-devarshi! main bhagavaanke mantraka jap aur unaka dhyaan karata hua bahut dinontak kailaasapar raha, tab bhagavaanne prakat hokar mujhe darshan diye aur var maanganeke liye kahaa. mainne baarambaar pranaam karake unase praarthana kee- kripaasindho. aapaka jo sarvaanandadaayee samast aanandonka aadhaar nity moortimaan roop hai, jise vidvaan log nirgun, nishkriy, shaantabrahm kahate hain, he parameshvara! main usee roopako apanee aankhonse dekhana chaahata hoon.'

bhagavaanne kahaa- ' aap shreeyamunaajeeke pashchimatatapar mere vrindaavanamen jaaiye, vahaan aapako mere svaroopake darshan honge.' itana kahakar bhagavaan antardhaan ho gaye. mainne usee kshan manohar yamunaatatapar jaakar dekhaa- samast devataaonke eeshvaronke eeshvar bhagavaan shreekrishn manohar gopavesh dhaaran kiye hue hain. unakee sundar kishor avastha hai. shreeraadhaajeeke kandhepar apana ati manohar baayaan haath rakhe ve sundar tribhangee se khada़e musakara rahe hain. unake chaaron or gopiyonka mandal hai. shareerako kaanti sajal jaladake sadrish snigdh shyaamavarn hai. ve akhil kalyaanake ekamaatr aadhaar hain.

isake baad bhagavaan shreekrishnane amritopam madhur vaaneemen mujhase kahaa

yadady me tvaya drishtamidan roopamalaukikam.
ghaneebhootaamalapremasachchidaanandavigraham ll
neeroopan nirgunan vyaapi kriyaaheenan paraatparam.
mamaanagh .. d idamev prakrityutthagunaabhaavaadanantatvaattatheshvar asiddhatvaanmadgunaanaan nirgunan maan vadanti hi .. adrishyatvaanmamaitasy roopasya
aroopan maan vadantyete vedaah sarve maheshvar .. vyaapakatvaachchidanshen brahmeti ch vidurbudhaah . akartritvaatprapanchasy nishkriyan maan vadanti hi .. maayaagunairyato men'shaah kurvanti sarjanaadikam.
n karomi svayan kinchit srishtyaadikamahan shiv ..

'shankarajee ! aapane aaj mera yah param alaukikaroop dekha hai. saare upanishad mere is ghaneebhoot nirmal premamay sachchidaanandaghan roopako hee niraakaar, nirgun, sarvavyaapee, nishkriy aur paraatpar 'brahma' kahate hain. mujhamen prakritise utpann koee gun naheen hai aur mere gun anant hain unaka varnan naheen ho sakataa. aur mere ve gun praakrit drishtise siddh naheen hote, isaliye ye sab mujhako 'nirguna' kahate hain. maheshvar . mere is roopako charmachakshuonke dvaara koee dekh naheen sakata, isaliye ved isako aroop ya 'niraakaara' kahate hain. main apane chaitanyaanshake dvaara sarvavyaapee hoon, isaliye vidvaan log mujhako 'brahma' kahate hain aur main is vishvaprapanchaka rachayita naheen hoon, isaliye panditagan mujhako 'nishkriya' batalaate hain. shiva! vastutah srishti aadi koee bhee kaary main svayan naheen karataa. mere ansh hee (brahmaa-vishnu rudra) maayaagunonke dvaara srishti sanhaaraadi kaary kiya karate hain.'

devarshi! bhagavaan ke is prakaar kahane aur kuchh any upadesh karanepar mainne unase poochhaa-'naatha! aapake is yugalasvaroopakee praapti kis upaayase ho sakatee hai? ise kripa karake batalaaiye.' bhagavaanne kahaa- 'ham dononke sharanaapatr hokar jo gopeebhaavase hamaaree upaasana karate hain, unheenko hamaaree praapti hotee hai, any kiseeko naheen.'

gopeebhaaven devesh s maameti n chetarah . 'ek saty baat aur hai-vah yah hai ki poore prayatnonke saath is bhaavakee praaptike liye shreeraadhikaako upaasana karanee chaahiye. he rudr ! yadi aap mujhe vashamen karana chaahate hain to meree priya shreeraadhikaajeekee sharan grahan keejiye

'aashrity matpriyaan rudr maan vasheekartumarhasi. '

isee prakaar bhagavaan shankarane vividh upaasanaaon ke amodh upadesh kiye hain.

bhagavaan ke bhakt, sakha aur svaamee bhagavaan shreeshankarajeeko koti-koti pranaama.

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तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
सांवरिया है सेठ ,मेरी राधा जी सेठानी
यह तो सारी दुनिया जाने है
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया

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शिव शिव शिव शिव जपा कर,
हर हर हर हर रटा कर,
मोरी मैया महान मोरी मैया महान,
मैहर की शारदा भवानी,
मेरे नाथ केदारा तेरे नाम का सहारा,
तेरे नाम की है झोली तेरे नाम का गुजारा,
भोले बाबा की नगरिया चलो धीरे धीरे,
धीरे धीरे हो रामा धीरे धीरे,
कान्हा ने करो है कमाल हो कमाल,
मेरे रंग लगा दिया सब तन पर॥