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मार्कण्डेय मुनि की मार्मिक कथा
मार्कण्डेय मुनि की अधबुत कहानी - Full Story of मार्कण्डेय मुनि (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [मार्कण्डेय मुनि]- भक्तमाल


तस्मै नमो भगवते पुरुषाय भूने विश्वाय विश्वगुरवे परदेवतायै।
नारायणाय ऋषये च नरोत्तमाय हंसाय संयतगिरे निगमेश्वराय l

(श्रीमद्भा0] 12 8 47)
उन ऐश्वर्याधीश, परमपुरुष, सर्वव्यापी विश्वरूप, विश्वके परम गुरु एवं परम देवता, हंसस्वरूप, वाणीको दशमें रखनेवाले (मुनिरूपधारी), श्रुतियोंके भी आराध्य भगवान् नारायण तथा ऋषिश्रेष्ठ नरको नमस्कार।'

भगवान्ने तपका आदर्श स्थापित करनेके लिये ही नर-नारायणस्वरूप धारण किया है। वे सर्वेश्वर तपस्वी ऋषियोंके रक्षक एवं आराध्य हैं। मृकण्ड ऋषिके पुत्र मार्कण्डेयजी नैष्ठिक ब्रह्मचर्यव्रत लेकर हिमालयकी गोद में पुष्पभद्रा नदीके किनारे उन्हीं ऋषिरूपधारी भगवान् नर नारायणकी आराधना कर रहे थे। उनका चित्त सब ओरसे हटकर भगवान्में ही लगा रहता था। मार्कण्डेय मुनिको जब इस प्रकार भगवान्‌की आराधना करते बहुत वर्ष व्यतीत हो गये, तब इन्द्रको उनके तपसे भय होने लगा। देवराजने वसन्त, कामदेव तथा पुजिकस्थली अप्सराको मुनिको साधनामें विघ्न करनेके लिये वहाँ भेजा। वसन्तके प्रभावसे सभी वृक्ष पुष्पित हो गये, कोकिला कूजने लगी, शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चलने लगा। अलक्ष्य रहकर वहाँ गन्धर्व गाने लगे और अप्सरा पुत्रिकस्थली मुनिके सम्मुख गेंद खेलती हुई अपने सौंदर्यका प्रदर्शन करने लगी। इसी समय कामदेवने अपने फूलोंके धनुषपर सम्मोहन बाण चढ़ाकर उसे मुनिपर छोड़ा। परंतु कामदेव तथा अप्सराके सब प्रयत्न व्यर्थ हो गये। मार्कण्डेयजीका चित्त भगवान् नर नारायणमें लगा हुआ था, अतः भगवान्‌की कृपासे उनके हृदयमें कोई विकार नहीं उठा। मुनिकी ऐसी दृढ़ अवस्था देखकर काम आदि डरकर भाग गये। मार्कण्डेयजी में कामको जीत लेनेका गर्व भी नहीं आया। वे उसे भगवान्‌की कृपा समझकर और भी भावनिमग्न हो गये। भगवान्के चरणोंमें मार्कण्डेयजीका चित्त तो पहलेसे लगा था। अब भगवान्की अपनेपर इतनी बड़ी कृपाका अनुभव करके वे व्याकुल हो गये। भगवान के दर्शन केलिये उनका हृदय आतुर हो उठा। भक्तवत्सल भगवान् उनकी व्याकुलतासे द्रवित होकर उनके सामने प्रकट हो गये। भगवान् नारायण सुन्दर जलभरे मेघके समान श्याम वर्णके और नर गौर वर्णके थे। दोनोंके ही कमलके समान नेत्र करुणासे पूर्ण थे। इस ऋषिवेशमें भगवान्ने जटाएँ बढ़ा रखी थीं और शरीरपर मृगचर्म धारण कर रखा था। भगवान्‌के मङ्गलमय भव्य स्वरूपको देखकर मार्कण्डेयजी हाथ जोड़कर भूमिपर गिर पड़े। भगवान्ने उन्हें स्नेहपूर्वक उठाया। मार्कण्डेयजीने किसी प्रकार कुछ देरमें अपनेको स्थिर किया। उन्होंने भगवान्‌को भलीभाँति पूजा की। भगवान्ने उनसे वरदान माँगनेको कहा।

मार्कण्डेयजीने स्तुति करते हुए भगवान्से कहा-'प्रभो! आपके श्रीचरणोंका दर्शन हो जाय, इतना ही प्राणीका परम पुरुषार्थ है। आपको पा लेनेपर फिर तो कुछ पाना शेष रह ही नहीं जाता; किंतु आपने वरदान माँगनेकी आज्ञा दी है, अतः मैं आपकी माया देखना चाहता हूँ।' भगवान् तो 'एवमस्तु' कहकर अपने आश्रम वदरीवनको
चले गये और मार्कण्डेयजी भगवान्‌की आराधना, ध्यान, पूजनमें लग गये। सहसा एक दिन ऋषिने देखा कि दिशाओंको काले-काले मेघोंने ढक दिया है। बड़ी भयंकर गर्जना तथा विजलीकी कड़कके साथ मूसलके समान मोटी-मोटी धाराओंसे पानी बरसने लगा। इतनेमें चारों ओरसे उमड़ते हुए समुद्र बढ़ आये और समस्त पृथ्वी प्रलयके जलमें डूब गयी। मुनि उस महासागरमें विक्षिप्तकी भाँति तैरने लगे। भूमि, वृक्ष, पर्वत आदि सब डूब गये थे। सूर्य, चन्द्र तथा तारोंका भी कहीं पता नहीं था। सब और घोर अन्धकार था। भीषण प्रलयसमुद्रकी गर्जना ही सुनायी पड़ती थी। उस समुद्रमें बड़ी-बड़ी भयंकर तरङ्गे कभी मुनिको यहाँसे वहाँ फेंक देती थीं, कभी कोई जलजन्तु उन्हें काटने लगता था और कभी वे जलमें डूबने लगते थे। जटाएँ खुल गयी थीं, बुद्धि विक्षिप्त हो गयी थी, शरीर शिथिल होता जाता था। अन्तमें बहुत व्याकुल होकर उन्होंने भगवान्‌का स्मरण किया।भगवान्का स्मरण करते ही मार्कण्डेयजीने देखा कि सामने ही एक बहुत बड़ा वटका वृक्ष उस प्रलयसमुद्र में खड़ा है। पूरे वृक्षपर कोमल पत्ते भरे हुए हैं। आश्चर्यसे मुनि और समीप आ गये। उन्होंने देखा कि वटवृक्षकी ईशान कोणकी शाखापर पत्तोंके सट जानेसे बड़ा-सा सुन्दर दोना बन गया है। उस दोनेमें एक अद्भुत बालक लेटा हुआ है। वह नव- जलधर सुन्दर श्याम है। उसके कर एवं चरण लाल लाल अत्यन्त सुकुमार हैं। उसके त्रिभुवनसुन्दर मुखपर मन्द मन्द हास्य है। उसके बड़े बड़े नेत्र प्रसन्नतासे खिले हुए हैं। श्वास लेनेसे उसका सुन्दर त्रिवलीभूषित पल्लवके समान उदर तनिक-तनिक ऊपर-नीचे हो रहा है। उस शिशुके शरीरका तेज इस घोर अन्धकारको दूर कर रहा है। शिशु अपने हाथोंकी सुन्दर अँगुलियोंसे दाहिने चरणको पकड़कर उसके अंगूठेको मुखमें लिये चूम रहा है। मुनिको बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने प्रणाम किया करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।

वटस्य पत्रस्य पुढे शयानं बालं मुकुन्दं शिरसा नमामि ॥ उनकी सब थकावट उस बालकको देखते ही दूर हो गयी। वे उसको गोदमें लेनेके लिये लालायित हो उठे और उसके पास जा पहुँचे। पास पहुँचते ही उस शिशुके श्वाससे खिंचे हुए मुनि विवश होकर उसकी नासिकाके छिद्रसे उसीके उदरमें चले गये।

मार्कण्डेयजीने शिशुके उदरमें पहुँचकर जो कुछ देखा उसका वर्णन नहीं हो सकता। वहाँ उन्होंने अनन्त ब्रह्माण्ड देखे । वहाँकी विचित्र सृष्टि देखी। सूर्य, चन्द्र, तारागण प्रभृति सब उन्हें दिखायी पड़े। उनको वहाँ समुद्र, नदी, सरोवर, वृक्ष, पर्वत आदिसहित] पृथ्वी भी सभी प्राणियोंसे पूर्ण दिखायी पड़ी। पृथ्वीपर घूमते हुए के शिशुके उदरमें ही हिमालय पर्वतपर पहुँचे। यहाँ पुष्पभद्रा नदी और उसके तटपर अपना आश्रम भी उन्होंने देखा। यह सब देखनेमें उन्हें अनेक युग बीत गये। वे विस्मयसे चकित हो गये। उन्होंने नेत्र बंद कर लिये। इसी समय उस शिशुके श्वास लेनेसे श्वासके साथ ये फिर बाहर उसी प्रलयमुदमें गिर पड़े। उन्हें वही गर्जन करता समुद्र, वही वट वृक्ष और उसपर वहीअद्भुत सौन्दर्यधन शिशु दिखलायी पड़ा। अब मुनिने उस बालकसे ही इस सब दृश्यका रहस्य पूछना चाहा। जैसे ही वे कुछ पूछनेको हुए, सहसा सब अदृश्य हो गया। मुनिने देखा कि वे तो अपने आश्रमके पास पुष्पभद्रा नदीके तटपर सन्ध्या करने वैसे ही बैठे हैं। वह | शिशु, वह वटवृक्ष, वह प्रलयसमुद्र आदि कुछ भी वहाँ नहीं है। भगवान्‌की कृपा समझकर मुनिको बड़ा हो आनन्द हुआ।

भगवान्ने कृपा करके अपनी मायाका स्वरूप दिखलाया कि किस प्रकार उन सर्वेश्वरके भीतर ही समस्त ब्रह्माण्ड हैं, उन्होंने सृष्टिका विस्तार होता है और फिर सृष्टि उनमें ही लय हो जाती है। इस कृपाका अनुभव करके मुनि मार्कण्डेय ध्यानस्थ हो गये। उनका चित्त दयामय भगवान् में निश्चल हो गया। इसी समय उधरसे नन्दीपर | बैठे पार्वतीजीके साथ भगवान् शङ्कर निकले। मार्कण्डेयजीको ध्यानमें एकाग्र देख भगवती उमाने शङ्करजीसे कहा-'नाथ ! ये मुनि कितने तपस्वी हैं। ये कैसे ध्यानस्थ हैं। आप इनपर कृपा कीजिये, क्योंकि तपस्वियोंकी तपस्याका फल देनेमें आप समर्थ हैं।'

भगवान् शङ्करने कहा- 'पार्वती! ये मार्कण्डेयजी भगवान्‌के अनन्य भक्त हैं। ऐसे भगवान्‌के भक्त कामनाहीन होते हैं। उन्हें भगवान्को प्रसन्नताके अतिरिक्त और कोई इच्छा नहीं होती; किंतु ऐसे भगवद्भक्तका दर्शन तथा उनसे वार्तालापका अवसर बड़े भाग्यसे मिलता है, अतः मैं इनसे अवश्य बातचीत करूँगा।' इतना कहकर भगवान् शङ्कर मुनिके समीप गये, किन्तु ध्यानस्थ मुनिको कुछ पता न लगा ये तो भगवान् ध्यानमें शरीर और संसारको भूल गये थे। शङ्करजीने योगबलसे उनके हृदयमें प्रवेश किया। हृदयमें त्रिनयन् कर्पूरगौर शङ्करजीका अकस्मात् दर्शन होनेसे मुनिका ध्यान भंग हो गया। नेत्र खोलनेपर भगवान् शङ्करको आया देख वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने पार्वतीजीके | साथ शिवजीका पूजन किया। भक्तवत्सल भगवान् शङ्करने उनसे वरदान माँगने को कहा। मुनिने प्रार्थना की- दयामय! आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे वही वरदान दें कि भगवान्में मेरी अविचल भक्ति हो। आपमें मेरी स्थिर श्रद्धा रहे। भगवद्भक्तोंके प्रति मेरे मनमें अनुराग रहे।'शङ्करजीने 'एवमस्तु' कहकर मुनिको कल्पान्ततक अमर रहने और पुराणाचार्य होनेका वरदान दिया। मार्कण्डेयपुराणके उपदेशक मार्कण्डेय मुनि ही हैं। मार्कण्डेयजीपर श्रीभगवान् शङ्करकी कृपा पहलेसे ही
थी। पद्मपुराण उत्तरखण्डमें आया है कि इनके पिता मुनि मृकण्डुने अपनी पत्नीके साथ घोर तपस्या करके भगवान् शिवजीको प्रसन्न किया था और उन्हींके वरदानसे मार्कण्डेयको पुत्ररूपमें पाया था। भगवान् शङ्करने उसे सोलह वर्षकी ही आयु उस समय दी थी। अतः मार्कण्डेयकी आयुका सोलहवाँ वर्ष आरम्भ होनेपर मृकण्डु मुनिका हृदय शोकसे भर गया। पिताजीको उदास देखकर जब मार्कण्डेयने उदासीका कारण पूछा, तब मृकण्डुने कहा- 'बेटा! भगवान् शङ्करने तुम्हें सोलह वर्षकी ही आयु दी है; उसकी समाप्तिका समय समीप आ पहुँचा है, इसीसे मुझे शोक हो रहा है।' इसपर मार्कण्डेयने कहा-'पिताजी ! आप शोक न करें। मैं भगवान् शङ्करको प्रसन्न करके ऐसा यत्न करूँगा कि मेरी मृत्यु हो ही नहीं।' तदनन्तर माता पिताकी आज्ञा लेकर मार्कण्डेयजी दक्षिण समुद्रके तटपर चले गये और वहाँ विधिपूर्वक शिवलिङ्गकी स्थापना करके आराधना करने लगे। समयपर 'काल' आ पहुँचा। मार्कण्डेयजीने कालसे कहा- 'मैं शिवजीका मृत्युञ्जय स्तोत्रसे स्तवन कर रहा हूँ, इसे पूरा कर लूँ; तबतक तुम ठहर जाओ।' कालने कहा-'ऐसा नहीं हो सकता।' तब मार्कण्डेयजीने भगवान् शङ्करके बलपर कालको फटकारा। कालने क्रोधमें भरकर ज्यों ही मार्कण्डेयको हठपूर्वक ग्रसना चाहा, त्यों ही स्वयं महादेवजी उसी लिङ्गसे प्रकट हो गये। हुंकार भरकर मेघके समान गर्जना करते हुए उन्होंने कालकी छाती में लात मारी। मृत्यु-देवता उनके चरण-प्रहारसे पीड़ित होकर दूर जा पड़े।
कैलासके शिखरपर जिनका निवासगृह है, जिन्होंने मेरुगिरिका धनुष, नागराज वासुकिकी प्रत्यक्षा और भगवान् विष्णुको अग्निमय वाण बनाकर तत्काल ही दैत्योंके तीनों पुरोको दग्ध कर डाला था, सम्पूर्ण देवता जिनके चरणोंकी वन्दना करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

मन्दार, पारिजात, सन्तान, कल्पवृक्ष और हरिचन्दन- इन पाँच दिव्य वृक्षोंके पुष्पोंसे सुगन्धित युगल चरण-कमल जिनकी शोभा बढ़ाते हैं, जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्रसे प्रकट हुई आगकी ज्वालामें कामदेवके शरीरको भस्म कर डाला था, जिनका श्रीविग्रह सदा भस्मसे विभूषित रहता है, जो भव-सबकी उत्पत्तिके कारण होते हुए भी भव-संसारके नाशक हैं तथा जिनका कभी विनाश नहीं होता, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी में शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

जो मतवाले गजराजके मुख्य धर्मकी चादर ओढ़े परम मनोहर जान पड़ते हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरण कमलोंकी पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धोंकी नदी गङ्गाकी तरङ्गोंसे भीगी हुई शीतल जटा धारण करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी में शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

गेंडली मारे हुए सर्पराज जिनके कानोंमें कुण्डलका काम देते हैं, जो वृषभपर सवारी करते हैं, नारद आदि मुनीश्वर जिनके वैभवकी स्तुति करते हैं, जो समस्त भुवनोंके स्वामी, अन्धकासुरका नाश करनेवाले,आश्रितजनोंके लिये कल्पवृक्षके समान और यमराजको भी शान्त करनेवाले हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी में शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

जो यक्षराज कुबेरके सखा, भग देवताकी आँखें फोड़नेवाले और सर्पोंके आभूषण धारण करनेवाले हैं, जिनके श्रीविग्रहके सुन्दर वामभागको गिरिराजकिशोरी उमाने सुशोभित कर रखा है, कालकूट विष पीनेके कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंगका दिखायी देता है, जो एक हाथमें फरसा और दूसरेमें मृगमुद्रा धारण किये रहते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

जो जन्म-मरणके रोगसे ग्रस्त पुरुषोंके लिये औषधरूप हैं, समस्त आपत्तियोंका निवारण और दक्ष यज्ञका विनाश करनेवाले हैं, सत्त्व आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं, जो तीन नेत्र धारण करते, भोग और मोक्षरूपी फल देते तथा सम्पूर्ण पापराशिका संहार करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

जो भक्तोंपर दया करनेवाले हैं, अपनी पूजा करनेवाले मनुष्योंके लिये अक्षय निधि होते हुए भी जो स्वयं दिगम्बर रहते हैं, जो सब भूतोंके स्वामी, परात्पर, अप्रमेय और उपमारहित हैं; पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और चन्द्रमाके द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

जो ब्रह्मारूपसे सम्पूर्ण विश्वको सृष्टि करते, फिर विष्णुरूपसे सबके पालनमें संलग्न रहते और अन्तमें सारे प्रपञ्चका संहार करते हैं, सम्पूर्ण लोकोंमें जिनका निवास है तथा जो गणेशजीके पार्षदोंसे घिरकर दिन-रात भाँति भौतिके खेल किया करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?

अर्थात् दुःखको दूर करनेके कारण जिन्हें रुद्र कहते हैं, जो जीवरूप पशुओंका पालन करनेसे पशुपति स्थिर होनेसे स्थाणु, गलेमें नीला चिह्न धारण करनेसेनीलकण्ठ और भगवती उमाके स्वामी होनेसे उमापति नाम धारण करते हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जिनके गलेमें काला दाग है, जो कलामूर्ति, कालाग्नि स्वरूप और कालके नाशक हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जिनका कण्ठ नील और नेत्र विकराल होते हुए भी जो अत्यन्त निर्मल और उपद्रवरहित हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जो वामदेव, महादेव, विश्वनाथ और जगद्गुरु नाम धारण करते हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जो देवताओंके भी आराध्यदेव, जगत्के स्वामी औरदेवताओं पर भी शासन करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजापर वृषभका चिह्न बना हुआ है, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जो अनन्त, अविकारी, शान्त, रुद्राक्षमालाधारी और सबके दुःखोंका हरण करनेवाले हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?

जो परमानन्दस्वरूप, नित्य एवं कैवल्यपद-मोक्षकी प्राप्तिके कारण हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी? जो स्वर्ग और मोक्षके दाता तथा सृष्टि, पालन और संहारके कर्ता हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तकझुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी ?

इस प्रकार शङ्करजीकी कृपासे मार्कण्डेयजीने मृत्युपर
विजय लाभ किया था।



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tasmai namo bhagavate purushaay bhoone vishvaay vishvagurave paradevataayai.
naaraayanaay rishaye ch narottamaay hansaay sanyatagire nigameshvaraay l

(shreemadbhaa0] 12 8 47)
un aishvaryaadheesh, paramapurush, sarvavyaapee vishvaroop, vishvake param guru evan param devata, hansasvaroop, vaaneeko dashamen rakhanevaale (muniroopadhaaree), shrutiyonke bhee aaraadhy bhagavaan naaraayan tatha rishishreshth narako namaskaara.'

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maarkandeyajeene shishuke udaramen pahunchakar jo kuchh dekha usaka varnan naheen ho sakataa. vahaan unhonne anant brahmaand dekhe . vahaankee vichitr srishti dekhee. soory, chandr, taaraagan prabhriti sab unhen dikhaayee pada़e. unako vahaan samudr, nadee, sarovar, vriksh, parvat aadisahita] prithvee bhee sabhee praaniyonse poorn dikhaayee pada़ee. prithveepar ghoomate hue ke shishuke udaramen hee himaalay parvatapar pahunche. yahaan pushpabhadra nadee aur usake tatapar apana aashram bhee unhonne dekhaa. yah sab dekhanemen unhen anek yug beet gaye. ve vismayase chakit ho gaye. unhonne netr band kar liye. isee samay us shishuke shvaas lenese shvaasake saath ye phir baahar usee pralayamudamen gir pada़e. unhen vahee garjan karata samudr, vahee vat vriksh aur usapar vaheeadbhut saundaryadhan shishu dikhalaayee pada़aa. ab munine us baalakase hee is sab drishyaka rahasy poochhana chaahaa. jaise hee ve kuchh poochhaneko hue, sahasa sab adrishy ho gayaa. munine dekha ki ve to apane aashramake paas pushpabhadra nadeeke tatapar sandhya karane vaise hee baithe hain. vah | shishu, vah vatavriksh, vah pralayasamudr aadi kuchh bhee vahaan naheen hai. bhagavaan‌kee kripa samajhakar muniko bada़a ho aanand huaa.

bhagavaanne kripa karake apanee maayaaka svaroop dikhalaaya ki kis prakaar un sarveshvarake bheetar hee samast brahmaand hain, unhonne srishtika vistaar hota hai aur phir srishti unamen hee lay ho jaatee hai. is kripaaka anubhav karake muni maarkandey dhyaanasth ho gaye. unaka chitt dayaamay bhagavaan men nishchal ho gayaa. isee samay udharase nandeepar | baithe paarvateejeeke saath bhagavaan shankar nikale. maarkandeyajeeko dhyaanamen ekaagr dekh bhagavatee umaane shankarajeese kahaa-'naath ! ye muni kitane tapasvee hain. ye kaise dhyaanasth hain. aap inapar kripa keejiye, kyonki tapasviyonkee tapasyaaka phal denemen aap samarth hain.'

bhagavaan shankarane kahaa- 'paarvatee! ye maarkandeyajee bhagavaan‌ke anany bhakt hain. aise bhagavaan‌ke bhakt kaamanaaheen hote hain. unhen bhagavaanko prasannataake atirikt aur koee ichchha naheen hotee; kintu aise bhagavadbhaktaka darshan tatha unase vaartaalaapaka avasar bada़e bhaagyase milata hai, atah main inase avashy baatacheet karoongaa.' itana kahakar bhagavaan shankar munike sameep gaye, kintu dhyaanasth muniko kuchh pata n laga ye to bhagavaan dhyaanamen shareer aur sansaarako bhool gaye the. shankarajeene yogabalase unake hridayamen pravesh kiyaa. hridayamen trinayan karpooragaur shankarajeeka akasmaat darshan honese munika dhyaan bhang ho gayaa. netr kholanepar bhagavaan shankarako aaya dekh ve bada़e prasann hue. unhonne paarvateejeeke | saath shivajeeka poojan kiyaa. bhaktavatsal bhagavaan shankarane unase varadaan maangane ko kahaa. munine praarthana kee- dayaamaya! aap mujhapar prasann hain to mujhe vahee varadaan den ki bhagavaanmen meree avichal bhakti ho. aapamen meree sthir shraddha rahe. bhagavadbhaktonke prati mere manamen anuraag rahe.'shankarajeene 'evamastu' kahakar muniko kalpaantatak amar rahane aur puraanaachaary honeka varadaan diyaa. maarkandeyapuraanake upadeshak maarkandey muni hee hain. maarkandeyajeepar shreebhagavaan shankarakee kripa pahalese hee
thee. padmapuraan uttarakhandamen aaya hai ki inake pita muni mrikandune apanee patneeke saath ghor tapasya karake bhagavaan shivajeeko prasann kiya tha aur unheenke varadaanase maarkandeyako putraroopamen paaya thaa. bhagavaan shankarane use solah varshakee hee aayu us samay dee thee. atah maarkandeyakee aayuka solahavaan varsh aarambh honepar mrikandu munika hriday shokase bhar gayaa. pitaajeeko udaas dekhakar jab maarkandeyane udaaseeka kaaran poochha, tab mrikandune kahaa- 'betaa! bhagavaan shankarane tumhen solah varshakee hee aayu dee hai; usakee samaaptika samay sameep a pahuncha hai, iseese mujhe shok ho raha hai.' isapar maarkandeyane kahaa-'pitaajee ! aap shok n karen. main bhagavaan shankarako prasann karake aisa yatn karoonga ki meree mrityu ho hee naheen.' tadanantar maata pitaakee aajna lekar maarkandeyajee dakshin samudrake tatapar chale gaye aur vahaan vidhipoorvak shivalingakee sthaapana karake aaraadhana karane lage. samayapar 'kaala' a pahunchaa. maarkandeyajeene kaalase kahaa- 'main shivajeeka mrityunjay stotrase stavan kar raha hoon, ise poora kar loon; tabatak tum thahar jaao.' kaalane kahaa-'aisa naheen ho sakataa.' tab maarkandeyajeene bhagavaan shankarake balapar kaalako phatakaaraa. kaalane krodhamen bharakar jyon hee maarkandeyako hathapoorvak grasana chaaha, tyon hee svayan mahaadevajee usee lingase prakat ho gaye. hunkaar bharakar meghake samaan garjana karate hue unhonne kaalakee chhaatee men laat maaree. mrityu-devata unake charana-prahaarase peeda़it hokar door ja pada़e.
kailaasake shikharapar jinaka nivaasagrih hai, jinhonne merugirika dhanush, naagaraaj vaasukikee pratyaksha aur bhagavaan vishnuko agnimay vaan banaakar tatkaal hee daityonke teenon puroko dagdh kar daala tha, sampoorn devata jinake charanonkee vandana karate hain, un bhagavaan chandrashekharakee main sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

mandaar, paarijaat, santaan, kalpavriksh aur harichandana- in paanch divy vrikshonke pushponse sugandhit yugal charana-kamal jinakee shobha baढ़aate hain, jinhonne apane lalaatavartee netrase prakat huee aagakee jvaalaamen kaamadevake shareerako bhasm kar daala tha, jinaka shreevigrah sada bhasmase vibhooshit rahata hai, jo bhava-sabakee utpattike kaaran hote hue bhee bhava-sansaarake naashak hain tatha jinaka kabhee vinaash naheen hota, un bhagavaan chandrashekharakee men sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

jo matavaale gajaraajake mukhy dharmakee chaadar odha़e param manohar jaan pada़te hain, brahma aur vishnu bhee jinake charan kamalonkee pooja karate hain tatha jo devataaon aur siddhonkee nadee gangaakee tarangonse bheegee huee sheetal jata dhaaran karate hain, un bhagavaan chandrashekharakee men sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

gendalee maare hue sarparaaj jinake kaanonmen kundalaka kaam dete hain, jo vrishabhapar savaaree karate hain, naarad aadi muneeshvar jinake vaibhavakee stuti karate hain, jo samast bhuvanonke svaamee, andhakaasuraka naash karanevaale,aashritajanonke liye kalpavrikshake samaan aur yamaraajako bhee shaant karanevaale hain, un bhagavaan chandrashekharakee men sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

jo yaksharaaj kuberake sakha, bhag devataakee aankhen phoda़nevaale aur sarponke aabhooshan dhaaran karanevaale hain, jinake shreevigrahake sundar vaamabhaagako giriraajakishoree umaane sushobhit kar rakha hai, kaalakoot vish peeneke kaaran jinaka kanthabhaag neele rangaka dikhaayee deta hai, jo ek haathamen pharasa aur doosaremen mrigamudra dhaaran kiye rahate hain, un bhagavaan chandrashekharakee main sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

jo janma-maranake rogase grast purushonke liye aushadharoop hain, samast aapattiyonka nivaaran aur daksh yajnaka vinaash karanevaale hain, sattv aadi teenon gun jinake svaroop hain, jo teen netr dhaaran karate, bhog aur moksharoopee phal dete tatha sampoorn paaparaashika sanhaar karate hain, un bhagavaan chandrashekharakee main sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

jo bhaktonpar daya karanevaale hain, apanee pooja karanevaale manushyonke liye akshay nidhi hote hue bhee jo svayan digambar rahate hain, jo sab bhootonke svaamee, paraatpar, apramey aur upamaarahit hain; prithvee, jal, aakaash, agni aur chandramaake dvaara jinaka shreevigrah surakshit hai, un bhagavaan chandrashekharakee main sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

jo brahmaaroopase sampoorn vishvako srishti karate, phir vishnuroopase sabake paalanamen sanlagn rahate aur antamen saare prapanchaka sanhaar karate hain, sampoorn lokonmen jinaka nivaas hai tatha jo ganeshajeeke paarshadonse ghirakar dina-raat bhaanti bhautike khel kiya karate hain, un bhagavaan chandrashekharakee main sharan leta hoon. yamaraaj mera kya karegaa?

arthaat duhkhako door karaneke kaaran jinhen rudr kahate hain, jo jeevaroop pashuonka paalan karanese pashupati sthir honese sthaanu, galemen neela chihn dhaaran karaneseneelakanth aur bhagavatee umaake svaamee honese umaapati naam dhaaran karate hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jinake galemen kaala daag hai, jo kalaamoorti, kaalaagni svaroop aur kaalake naashak hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jinaka kanth neel aur netr vikaraal hote hue bhee jo atyant nirmal aur upadravarahit hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jo vaamadev, mahaadev, vishvanaath aur jagadguru naam dhaaran karate hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jo devataaonke bhee aaraadhyadev, jagatke svaamee auradevataaon par bhee shaasan karanevaale hain, jinakee dhvajaapar vrishabhaka chihn bana hua hai, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jo anant, avikaaree, shaant, rudraakshamaalaadhaaree aur sabake duhkhonka haran karanevaale hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee?

jo paramaanandasvaroop, nity evan kaivalyapada-mokshakee praaptike kaaran hain, un bhagavaan shivako main mastak jhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee? jo svarg aur mokshake daata tatha srishti, paalan aur sanhaarake karta hain, un bhagavaan shivako main mastakajhukaakar pranaam karata hoon. mrityu mera kya kar legee ?

is prakaar shankarajeekee kripaase maarkandeyajeene mrityupara
vijay laabh kiya thaa.

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मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
हर पल तेरे साथ मैं रहता हूँ,
डरने की क्या बात? जब मैं बैठा हूँ
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
लोग करें मीरा को यूँ ही बदनाम
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
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चाकरी में ही मन ये मगन हो माया के जाल
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फरियाद करे तो करे,
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