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भक्त कान्हड़दासजी की मार्मिक कथा
भक्त कान्हड़दासजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त कान्हड़दासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त कान्हड़दासजी]- भक्तमाल


भक्त कान्हड़दासजीका जन्म जयपुर राज्यमें हुआ था। संतों और महात्माओंके जीवनमें अलौकिक और चमत्कारपूर्ण घटनाओंका समावेश होते रहना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। भक्त कान्हड़दासजी जयपुर तथा बीकानेर आदि राज्योंमें अपनी सिद्धियों और चमत्कारोंके लिये बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी वाणी सर्वथा सिद्ध और सत्य होती थी। वे दादूपन्थी महात्मा थे।

एक समय वे बीकानेर गये। तत्कालीन महाराजने उनसे अपने निःसन्तान होनेकी मनोव्यथा कही । कान्हड़दासजीका नवनीतके समान हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने महाराजको पुत्र होनेका आशीर्वाद दिया। उनकीकृपामयी वाणीके प्रसादरूपमें पुत्र उत्पन्न होनेपर श्रीमहाराजने महात्मा कान्हड़दासको भगवान्की भक्तिके प्रचारके लिये एक लाख रुपयेकी भेंट दी, संतने उस द्रव्यका उपयोग गूडापूँखमें गुरुद्वारा निर्माण करनेमें किया और स्वयं वहीं रहकर तपस्या करने लगे।

जसरापुरके श्रीरघुनाथ मन्दिरमें एक बहुत बड़े वचनसिद्ध महात्मा तपसी बाबा रहते थे। उन्होंने एक शिष्य भेजकर तूंबेमें कान्हड़दासजीके आश्रमसे दूध लानेके लिये कहा। कान्हड़दासने विनम्रतापूर्वक कहा कि अभी तो गायें बैठी हैं। थोड़ी देरमें तपसी बाबाके शिष्यने निवेदन किया कि गायें खड़ी हैं। महात्माकान्हड़दासने तूंबेमें दूध दुहनेका आदेश दिया। अधिक समयतक दूध दुहते रहनेपर भी तूंबा नहीं भर सका, तब कान्हड़दासने एक दोहनीमेंसे अलग दूध लाकर तूंबेमें उँडेलना आरम्भ किया। न तो तूंवा भरता था और न दोहनीके दूधकी धारा बंद होती थी। तपसी बाबाके आदेशसे उनका शिष्यलौट गया। संतोंकी जीवन लीला विचित्र होती है, उनकी कृपासे पहाड़ राई और राईका पहाड़ हो जाता है।

महात्मा कान्हड़दासने सौ सालकी एक भविष्यवाणी (साठी) भी लिखी थी। यह पुस्तक जसरापुरके अस्तल नामक आश्रममें अब भी प्राप्य है।



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