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भक्त नन्दलाल की मार्मिक कथा
भक्त नन्दलाल की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त नन्दलाल (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त नन्दलाल]- भक्तमाल


भक्त नन्दलालने कोटाके सांगोद ग्राममें जन्म लिया था। उनका परिवार अत्यन्त धर्मभीरु था, उनके पिता बहुत अच्छे भगवद्भक्त थे; अतएव उनकी निष्ठाका प्रभाव संस्कारी नन्दलालपर भी पड़ा था। थोड़े ही दिनोंके बाद उनके पिताकी मृत्यु हो गयी। भक्त नन्दलालने गृहस्थीका कार्य योग्यतापूर्वक निवाहा। गृहस्थीमें दत्तचित्त रहकर भी उनके नियम-संयम और भक्तिभाव तथा भजन कार्यमें किसी भी प्रकारकी बाधा नहीं पड़ी। वे नित्य प्रातःकाल पवित्र नदीमें स्नानकर प्रत्येक मन्दिरमें भगवद्-विग्रहका दर्शन करते थे, कभी-कभी बाढ़के समय वे नदीके दूसरे तटपर स्थित रंगनाथ मन्दिरमें स्वयं तैरकर पहुँच जाते थे।

भगवान् अपने भक्तकी कड़ी से कड़ी अग्रि परीक्षा लेते हैं, विपत्तिकी कसौटीपर कसकर भक्तिका प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं। उनके जीवन खेतमें त्याग और दयाकी फसल हरी-भरी हो उठी। उन्होंने धनके लेन-देन व्यवसायको छोड़ दिया, ऋणियोंको ऋणमुक्त कर दिया; जो ऋण चुका सकते थे, उनके पैसोंका उन्होंने देव कार्य, मन्दिर निर्माण सदावत और साधुसेवा आदिमें सदुपयोग किया। कुछ समयके बाद वे निर्धन हो चले। लक्ष्मीसे वे सदा निःस्पृह रहते थे, अतएव निर्धनताको उन्होंने भगवत्कृपके रूपमें वरण किया। दरिद्रतामें भी उन्होंने पूर्ण सन्तोषकी ही अनुभूति की। उनके पूरे परिवारका जीवन सङ्कटग्रस्त हो चला। नन्दलाल तो भगवान् के समर्पित ही थे, पर परिवारकी दैन्यपूर्ण स्थितिसे वे क्षुब्ध हो उठे। एक रातको कमरेमें पड़े-पड़े कुछ सोच रहे थे कि भगवान् लक्ष्मीपतिने दरवाजा खटखटाकर कहा कि 'तुम निर्धन नहीं हो, तुम्हारा परिवार दुःखी नहीं रह सकता; तुम्हें कल प्रातः काल पुलियापर जीविका निर्वाहका साधन मिल जायगा।' भक्तराजने परिचय पूछा भगवान् कहा- लक्ष्मीपति और वे अदृश्य हो गये। ये तो कल्पतरुके मूलाधार हैं, चिन्तामणिके आधार हैं, भक्तने भगवान्की कृपाका उपयोग किया। वे प्रातः काल पुलियापर पहुँचे औरआपको जीविकाका साधन मिल गया। उनका परिवारिक जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा।

एक दिन भक्त नन्दलालजी नियमानुसार उप कुछ पूर्व हो उठे और नित्यकर्मके लिये खान करने नदीपर गये। नित्यकर्मके अनन्तर वे नदीके दूसरे तटपर स्थित श्रीरंगनाथजीके मन्दिरमें दर्शनार्थ गये। मन्दिरमें पुजारी प्रतिदिन उप: कालसे पूर्व उठकर भगवान्को सुसज्जित करता है। परंतु उस दिन ईश्वरकी लीलासे पुजारीकी निद्रा नहीं टूटी। भक्त नन्दलालजीने दर्शन करनेके लिये अपनी खड़ाऊँ खोलनेके विचारसे दृष्टि नीचेकी ओर की। उस समय आप देखते हैं कि मन्दिरके प्राङ्गणमें भगवान् चतुर्भुजरूपसे विराजमान हैं। उनकी छटा निराली है। चरणामृतका पात्र भरा हुआ धरा है। ललाटपर गोरोचन लेप किये हुए सुशोभित हैं। सामने सजी हुई आरती रखी हैं, परंतु पुजारीजी नहीं हैं। आपने नियमानुसार आरती लेकर चरणामृतका पान किया और तिलक लगाया।

उपर्युक्त घटनाके कुछ दिनों पश्चात् ही एक दूस आर्य घटना हुई। ग्रामके मध्य में श्रीलक्ष्मीनाथजीका राजमन्दिर है। वहाँ आप एक दिन नित्यकर्मसे निवृत्त हो दर्शनार्थ गये। उस दिन पुजारीजी प्रगाढ़ निद्रामें मस्त थे; परंतु आप देखते हैं कि श्रीलक्ष्मीनाथजी स्नान, तिलक और भृङ्गार करके सुसज्जित हैं। शृङ्गार विशेषरूपसे हो रहा है। आरती हो चुकी है। आपने आनन्दसे दर्शन किये और दण्डवत् किया। इसके पश्चात् आपने पुजारीजीका पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि पुजारीजी शयन कर रहे हैं तब आपको अत्यन्त आर्य हुआ। आनन्दकी सीमा न रही। आपने पुजारीजीको साथ लिया और मन्दिरपर पहुँचे पुजारीजीने भी दर्शन करके अपने-आपको कृतकृत्य समझा। दोनों प्रेममें विह्वल होकर कीर्तन करने लगे और उस दिन भगवान् भास्करके उदय होनेतक वहाँ कोर्तनमें तन्मय रहे।

इन घटनाओंसे उनमें अब पूर्ण वैराग्यका उदय हो गया। वे सब कुछ तजकर भजनमें ही लग गये।नन्दलालजीको निष्ठा और भक्ति धन्य थी।



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in ghatanaaonse unamen ab poorn vairaagyaka uday ho gayaa. ve sab kuchh tajakar bhajanamen hee lag gaye.nandalaalajeeko nishtha aur bhakti dhany thee.

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