⮪ All भक्त चरित्र

भक्त पुण्डरीक की मार्मिक कथा
भक्त पुण्डरीक की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त पुण्डरीक (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त पुण्डरीक]- भक्तमाल


स्मृतः सन्तोषितो वापि पूजितो वा द्विजोत्तम ।
पुनाति भगवद्भक्तश्चाण्डालोऽपि यदृच्छया ॥

(पद्मपुराण, उत्तर0 30 । 80 )

'स्मरण करनेपर, सन्तुष्ट करनेपर, पूजा करनेपर भगवान् का भक्त अनायास ही चाण्डालतकको भी पवित्र कर देता है।' पुण्डरीकजी ऐसे ही महाभागवत हो गये हैं। पुण्डरीकका जन्म ब्राह्मण कुलमें हुआ था। वे वेद शास्त्रोंके ज्ञाता, तपस्वी, स्वाध्यायप्रेमी, इन्द्रियविजयी एवं क्षमाशील थे। वे त्रिकाल सन्ध्या करते थे । प्रातः सायं विधिपूर्वक अग्निहोत्र करते थे। बहुत दिनोंतक उन्होंने गुरुकी श्रद्धापूर्वक सेवा की थी और नियमित प्राणायाम तथा भगवान् विष्णुका चिन्तन तो वे सर्वदा ही करते थे। वे माता-पिताके भक्त थे। वर्णाश्रम धर्मानुकूल अपने कर्तव्योंका भलीभाँति विधिपूर्वक पालन करते थे। धर्मके मूल हैं भगवान्। धर्मके पालनका यही परमफल है कि संसारके विषयोंमें वैराग्य होकर भगवान्‌के चरणोंमें प्रीति हो जाय। भगवान्‌की प्रसन्नताके लिये ही लौकिक-वैदिक समस्त कर्मोंका पुण्डरीक पालन करते थे। ऐसा करनेसे उनका हृदय शुद्ध हो गया । संसारके किसी भी पदार्थमें उनकी आसक्ति, ममता, स्पृहा या कामना नहीं रह गयी। वे माता-पिता, भाई-बन्धु, मित्र - सखा, सुहृद् सम्बन्धी आदि स्नेहके-मोहके बन्धनोंसे छूट गये। उनके हृदयमें केवल एकमात्र भगवान्‌को प्राप्त करनेकी ही इच्छा रह गयी। वे अपने सम्पन्न घर एवं परिवारको तृणके समान छोड़कर भगवत्प्राप्तिके लिये निकल पड़े।

भक्त पुण्डरीक साग, मूल, फल- जो कुछ मिल जाता, उसीसे शरीरनिर्वाह करते हुए तीर्थाटन करने लगे। शरीरके सुख-दुःखकी उन्हें तनिक भी चिन्ता नहीं थी, वे तो अपने प्रियतम प्रभुको पाना चाहते थे। घूमते-घूमते वे शालग्राम नामक स्थानपर पहुँचे। यह स्थान रमणीक था, पवित्र था।यहाँ अच्छे तत्त्वज्ञानी महात्मा रहते थे। अनेक पवित्र जलाशय थे। पुण्डरीकने उन तीर्थकुण्डों में स्नान किया। उनका मन यहाँ लग गया। यहीं रहकर अब वे भगवान्का निरन्तर ध्यान करने लगे। उनका हृदय भगवान्के ध्यानसे आनन्दमग्न हो गया। वे हृदयमें भगवान्का दर्शन पाने लगे।

अपने अनुरागी भक्तोंको दयामय भगवान् सदा ही स्मरण रखते हैं। प्रभुने देवर्षि नारदजीको पुण्डरीकके पास भेजा कि वे उसे भोले भक्तके भावको और पुष्ट करें। श्रीनारदजी परमार्थके तत्त्वज्ञ तथा भगवान्‌के हृदय-स्वरूप हैं। वे सदा भक्तोंपर कृपा करने, उन्हें सहायता पहुँचानेको उत्सुक रहते हैं। भगवान्‌की आज्ञासे हर्षित होकर ये शीघ्र ही पुण्डरीकके पास पहुँचे। साक्षात् सूर्यके समान तेजस्वी, वीणा बजाकर हरिगुणगान करते देवर्षिको देखकर पुण्डरीक उठ खड़े हुए। उन्होंने साष्टाङ्ग प्रणाम किया। देवर्षिके तेजको देखकर वे चकित रह गये। संसारमें ऐसा तेज मनुष्यमें सुना भी नहीं जाता। पूछनेपर नारदजीने अपना परिचय दिया। देवर्षिको पहचानकर पुण्डरीकके हर्षका पार नहीं रहा। उन्होंने नारदजीकी पूजा करके बड़ी नम्रतासे प्रार्थना की- 'प्रभो! मेरा आज परम सौभाग्य है जो मुझे आपके दर्शन हुए। आज मेरे सब पूर्वज तर गये। अब आप अपने इस दासपर कृपा करके ऐसा उपदेश करें, जिससे इस संसार सागरमें डूबते इस अधमका उद्धार हो जाय। आप तो भगवान्के मार्गपर चलनेवालोंकी एकमात्र गति हैं, आप इस दीनपर दया करें।'

पुण्डरीककी अभिमानरहित सरल वाणी सुनकर देवर्षिने कहा- " द्विजोत्तम! इस लोकमें अनेक प्रकारके मनुष्य हैं और उनके अनेक मत हैं। नाना तर्कोंसे वे अपने मतोंका समर्थन करते हैं। मैं तुमको परमार्थ-तत्त्व बतलाता हूँ। यह तत्त्व सहज ही समझमें नहीं आता। तत्त्ववेत्तालोग प्रमाणद्वारा ही इसका निरूपण करते हैं। मूर्खलोग ही प्रत्यक्ष तथा वर्तमान प्रमाणोंको मानते हैं। वे अनागत तथा अतीत प्रमाणोंको स्वीकार नहीं करते। मुनियोंने कहा है कि जो पूर्वरूप है, परम्परासे चला आता है, वही आगम है। जो कर्म, कर्मफल- तत्त्व, विज्ञान, दर्शन और विभु है जिसमें न वर्ण है, न जाति जो नित्य आत्मसंवेदन है जो सनातन, अतीन्द्रियचेतन अमृत, अज्ञेय, शाश्वत, अज, अविनाशी, अव्यक्त, व्यक्त, व्यक्तमें विभु और निरञ्जन है-वही द्वितीय आगम है। वही चराचर जगत्में व्यापक होनेसे 'विष्णु' कहलाताहै। उसीके अपन्त नाम है। परमार्थसे विमुख लोग उस योगियों के परमाराध्य तत्त्वको नहीं जान सकते।" "यह हमारा मत है- यह केवल अभिमान हो है। ज्ञान तो शाकत है और सनातन है। वह परम्परा हो चला आ रहा है। भारतीय महापुरुष सदा इतिहासके रूपमें इससे ज्ञानका वर्णन करते रहे हैं कि उसने अपने अभिमानको क्षुद्रता न आ जाय। देवर्षि नारदजीने कहा कि "मैंने एक बार सृष्टिकर्ता अपने पिता ब्रह्माजीले पूछा था। उस समय परमार्थ-तत्व के विषयमें ब्रह्माजीने कहा—'भगवान् नारायण हो समस्त प्राणियोंकि आत्मा हैं। के हो प्रभु जगदाधार हैं। वे ही सनातन परमात्मा पचीस तत्त्वोंके रूपमें प्रकाशित हो रहे हैं। जगत्‌को सृष्टि, रक्षा तथा प्रलय नारायणसे हो होता है। विश्व तैजल, प्राज्ञ ये त्रिविध आत्मा नारायण ही हैं। वे ही सबके अधीश्वर, एकमात्र सनातन देव हैं। योगगण ज्ञान तथा योगके द्वारा उन्हीं जगन्नाथका साक्षात्कार करते हैं। जिनका चित्त नारायणमें लगा है, जिनके प्राण नारायणको अर्पित हैं, जो केवल नारायणके ही परायण हैं, वे नारायणको कृपा और शक्तिसे जगत्में दूर और समीप, भूत, वर्तमान और भविष्य, स्थूल और सूक्ष्म-सक्को देखते हैं। उनसे कुछ अज्ञात नहीं रहता।'

"ब्रह्माजीने देवताओंसे एक दिन कहा था- 'धर्म नारायणके आश्रित है। सब सनातन लोक, यज्ञ, शात्र, वेद, वेदाङ्ग तथा और भी जो कुछ है, सब नारायणके ही आधारपर हैं। वे अव्यक्त पुरुष नारायण हो पृथ्वी आदि पञ्चभूतरूप है। यह समस्त जगत् विष्णुमय है। पापी मनुष्य इस तत्त्वको नहीं जानता। जिनका चित्त उन विश्वेश्वरमें लगा है, जिनका जीवन उन श्रीहरिको अर्पित है. ऐसे परमार्थ ज्ञाता हो उन परम पुरुषको जानते हैं। नारायण ही सब भूतरूप हैं, वे हो सबमें व्याप्त हैं, वे हो सबका पालन करते हैं। समस्त जगत् उन्होंसे उत्पन्न है, उन्होंमें प्रतिष्ठित है। वे ही सबके स्वामी हैं। सृष्टिके लिये वे ही ब्रह्मा पालनके लिये विष्णु और संहारके लिये रुद्ररूप धारण किये हैं। वे ही लोकपाल हैं। वे परात्पर पुरुष ही सर्वाधार, निष्कल, सकल, अणु और महान् हैं। सबको उन्होंके शरण होना चाहिये। "

देवर्षिने कहा- 'ब्रह्माजीने ऐसा कहा था, अतः द्विजश्रेष्ठ! तुम भी उन्हीं श्रीहरिको शरण लो। उन नारायणको छोड़कर भोंक अको पूरा करनेवालाऔर कोई नहीं है। वे ही पुरुषोत्तम सबके पिता-माता हैं; केही लोकेश देवदेव जगत्पति है। अग्निहोत्र तप अध्ययन आदि सभी सत्कर्मोंसे नित्य-निरन्तर सावधानीके साथ एकमात्र उन्हें ही सन्तुष्ट करना चाहिये। तुम उन पुरुषोत्तमकी ही शरण लो। उनकी शरण होनेपर न तो बहुत -से मन्त्रोंकी आवश्यकता है, न व्रतोंका ही प्रयोजन है। एक नारायण-मन्त्र - ॐ नमो नारायणाय' ही सब मनोरथोंको पूरा करनेवाला है। भगवान्‌को आराधनामें किसी बाहरी वेषकी आवश्यकता नहीं। कपड़े पहने हो या दिगम्बर हो, जटाधारी हो या मूँड़ मुड़ाये हो, त्यागी हो या गृहस्थ हो– सभी भगवान्‌को भक्ति कर सकते हैं। चिह्न (येष) धर्मका कारण नहीं है जो लोग पहले निर्दय, पापी, दुष्टात्मा और कुकर्मरत रहे हैं, वे भी नारायण-परायण होनेपर परम धामको प्राप्त हो जाते हैं। भगवान्के परम भक्त पारके कीचड़ में कभी लिप्त नहीं होते। अहिंसासे चितको जीतकर वे भगवद्भक्त तीनों लोकोंको पवित्र करते हैं। प्राचीनकालमें अनेक लोग प्रेमरो भगवान्‌का भजन करके उन्हें प्राप्त कर चुके हैं। श्रीहरिकी आराधनासे सबको परम गति मिलती है और उसके बिना कोई परमपद नहीं पा सकता। ब्रहाचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी-कोई भी हो, परमपद तो भगवानके भजनसे ही मिलता है। 'मैं हरिभकका दास हूँ' - यह सुबुद्धि सहस्रों जन्मोंके अनन्तर भगवान्‌की कृपासे ही प्राप्त होती है। ऐसा पुरुष भगवान्‌को प्राप्त कर लेता है। तत्त्वज्ञ पुरुष इसीलिये चित्तको सब ओरसे हटाकर नित्य-निरन्तर अनन्यभावसे उन सनातन परम पुरुषका ही ध्यान करते हैं।' देवर्षि यह उपदेश देकर चले गये।

पुण्डरीककी भगवद्भक्ति देवर्षिके उपदेशसे और भी दृढ़ हो गयी। वे नारायणमन्त्रका अखण्ड जप करते और सदा भगवान्के ध्यानमें निमग्न रहते। उनकी स्थिति ऐसी हो गयी कि उनके हृदयकमलपर भगवान् गोविन्द सदा प्रत्यक्ष विराजमान रहने लगे। सत्त्वगुणका पूरा साम्राज्य हो जानेसे निद्रा, जो पुरुषार्थकी विरोधिनी और तमोरूपा है, सर्वथा नष्ट हो गयी।

बहुत-से महापुरुषों में यह देखा और सुना जाता है। कि उनके मन और बुद्धिमें भगवान्का आविर्भाव हुआ और वे दिव्य भगवद्रूपमें परिणत हो गये; किंतु किसीका स्थूल शरीर दिव्य हो गया हो, यह नहीं सुना जाता। ऐसा तो कदाचित् ही होता है। पुण्डरीकमें यही लोकोत्तरअवस्था प्रकट हुई। उनका निष्याप देह श्यामवर्णका हो गया, चार भुजाएँ हो गयीं उन हाथोंमें शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म आ गये। उनका वस्त्र पीताम्बर हो गया। एक तेजोमण्डलने उनके शरीरको घेर लिया। पुण्डरीकसे वे 'पुण्डरीकाक्ष' हो गये। उनके सिंह, व्याघ्र आदि क्रूर पशु भी उनके पास अपना परस्परका सहज वैर भाव भूलकर एकत्र हो गये और प्रसन्नता प्रकट करने लगे। नदी सरोवर, वन-पर्वत, वृक्ष-लताएँ-सब पुण्डरीकके अनुकूल हो गये। सब उनकी सेवाके लिये फल, पुष्प, निर्मल जल आदि प्रस्तुत रखने लगे। पुण्डरीक भक्तवत्सल भगवान‌को कृपासे उनके अत्यन्त प्रियपात्र हो गये थे। प्रत्येक जीव, प्रत्येक जड़-चेतन उस परम वन्दनीय भक्तकी सेवासे अपनेको कृतार्थ करना चाहता था !

पुण्डरीकके मन-बुद्धि ही नहीं, शरीर भी दिव्य भगवद्रूप हो गया था; तथापि दयामय करुणासागर प्रभु भक्तको परम पावन करने, उसे नेत्रोंका चरम लाभ देने उसके सामने प्रकट हो गये। भगवान्‌का स्वरूप, उनकी शोभा, उनकी अङ्ग कान्ति जिस मनमें एक झलक दे जाती है, वह मन, वह जीवन धन्य हो जाता है। उसका वर्णन कर सके, इतनी शक्ति कहाँ किसमें है। पुण्डरीक भगवान् के अचिन्त्य सुन्दर दिव्य रूपको देखकर प्रेम विह्वल हो गये। भगवान के श्रीचरणोंमें प्रणिपात करके भरे कण्ठसे उन्होंने स्तुति की। स्तुति करते-करते प्रेमके वेगसे पुण्डरीककी वाणी रुद्ध हो गयी।

भगवान्ने पुण्डरीकको वरदान माँगनेके लिये कहा। पुण्डरीकने विनयपूर्वक उत्तर दिया- 'भगवन्। कहाँ तो मैं दुर्बुद्धि प्राणी और कहाँ आप सर्वेश्वर, सर्वज्ञ। मेरे परम सुहृद् स्वामी! आपके दर्शनके पश्चात् और क्या शेष रह जाता है, जिसे माँगा जाय-यह मेरी समझमें नहीं आता मेरे नाथ! आप मुझे माँगनेका आदेश कर रहे हैं तो मैं यही माँगता हूँ कि मैं अबोध हूँ; अतः जिसमें मेरा कल्याण हो, वही आप करें।'

भगवान् ने अपने चरणोंमें पड़े पुण्डरीकको उठाकर हृदयसे लगा लिया। वे बोले-'वत्स ! तुम मेरे साथ चलो। तुम्हें छोड़कर अब मैं नहीं रह सकता। अब तुम मेरे धाममें | मेरे समीप मेरी लीलामें सहयोग देते हुए निवास करो।' भगवान् ने पुण्डरीकको अपने साथ गरुड़पर बैठा लिया और अपने नित्यधाम ले गये।



You may also like these:



bhakt pundareeka ki marmik katha
bhakt pundareeka ki adhbut kahani - Full Story of bhakt pundareeka (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt pundareeka]- Bhaktmaal


smritah santoshito vaapi poojito va dvijottam .
punaati bhagavadbhaktashchaandaalo'pi yadrichchhaya ..

(padmapuraan, uttara0 30 . 80 )

'smaran karanepar, santusht karanepar, pooja karanepar bhagavaan ka bhakt anaayaas hee chaandaalatakako bhee pavitr kar deta hai.' pundareekajee aise hee mahaabhaagavat ho gaye hain. pundareekaka janm braahman kulamen hua thaa. ve ved shaastronke jnaata, tapasvee, svaadhyaayapremee, indriyavijayee evan kshamaasheel the. ve trikaal sandhya karate the . praatah saayan vidhipoorvak agnihotr karate the. bahut dinontak unhonne gurukee shraddhaapoorvak seva kee thee aur niyamit praanaayaam tatha bhagavaan vishnuka chintan to ve sarvada hee karate the. ve maataa-pitaake bhakt the. varnaashram dharmaanukool apane kartavyonka bhaleebhaanti vidhipoorvak paalan karate the. dharmake mool hain bhagavaan. dharmake paalanaka yahee paramaphal hai ki sansaarake vishayonmen vairaagy hokar bhagavaan‌ke charanonmen preeti ho jaaya. bhagavaan‌kee prasannataake liye hee laukika-vaidik samast karmonka pundareek paalan karate the. aisa karanese unaka hriday shuddh ho gaya . sansaarake kisee bhee padaarthamen unakee aasakti, mamata, spriha ya kaamana naheen rah gayee. ve maataa-pita, bhaaee-bandhu, mitr - sakha, suhrid sambandhee aadi snehake-mohake bandhanonse chhoot gaye. unake hridayamen keval ekamaatr bhagavaan‌ko praapt karanekee hee ichchha rah gayee. ve apane sampann ghar evan parivaarako trinake samaan chhoda़kar bhagavatpraaptike liye nikal pada़e.

bhakt pundareek saag, mool, phala- jo kuchh mil jaata, useese shareeranirvaah karate hue teerthaatan karane lage. shareerake sukha-duhkhakee unhen tanik bhee chinta naheen thee, ve to apane priyatam prabhuko paana chaahate the. ghoomate-ghoomate ve shaalagraam naamak sthaanapar pahunche. yah sthaan ramaneek tha, pavitr thaa.yahaan achchhe tattvajnaanee mahaatma rahate the. anek pavitr jalaashay the. pundareekane un teerthakundon men snaan kiyaa. unaka man yahaan lag gayaa. yaheen rahakar ab ve bhagavaanka nirantar dhyaan karane lage. unaka hriday bhagavaanke dhyaanase aanandamagn ho gayaa. ve hridayamen bhagavaanka darshan paane lage.

apane anuraagee bhaktonko dayaamay bhagavaan sada hee smaran rakhate hain. prabhune devarshi naaradajeeko pundareekake paas bheja ki ve use bhole bhaktake bhaavako aur pusht karen. shreenaaradajee paramaarthake tattvajn tatha bhagavaan‌ke hridaya-svaroop hain. ve sada bhaktonpar kripa karane, unhen sahaayata pahunchaaneko utsuk rahate hain. bhagavaan‌kee aajnaase harshit hokar ye sheeghr hee pundareekake paas pahunche. saakshaat sooryake samaan tejasvee, veena bajaakar harigunagaan karate devarshiko dekhakar pundareek uth khada़e hue. unhonne saashtaang pranaam kiyaa. devarshike tejako dekhakar ve chakit rah gaye. sansaaramen aisa tej manushyamen suna bhee naheen jaataa. poochhanepar naaradajeene apana parichay diyaa. devarshiko pahachaanakar pundareekake harshaka paar naheen rahaa. unhonne naaradajeekee pooja karake bada़ee namrataase praarthana kee- 'prabho! mera aaj param saubhaagy hai jo mujhe aapake darshan hue. aaj mere sab poorvaj tar gaye. ab aap apane is daasapar kripa karake aisa upadesh karen, jisase is sansaar saagaramen doobate is adhamaka uddhaar ho jaaya. aap to bhagavaanke maargapar chalanevaalonkee ekamaatr gati hain, aap is deenapar daya karen.'

pundareekakee abhimaanarahit saral vaanee sunakar devarshine kahaa- " dvijottama! is lokamen anek prakaarake manushy hain aur unake anek mat hain. naana tarkonse ve apane matonka samarthan karate hain. main tumako paramaartha-tattv batalaata hoon. yah tattv sahaj hee samajhamen naheen aataa. tattvavettaalog pramaanadvaara hee isaka niroopan karate hain. moorkhalog hee pratyaksh tatha vartamaan pramaanonko maanate hain. ve anaagat tatha ateet pramaanonko sveekaar naheen karate. muniyonne kaha hai ki jo poorvaroop hai, paramparaase chala aata hai, vahee aagam hai. jo karm, karmaphala- tattv, vijnaan, darshan aur vibhu hai jisamen n varn hai, n jaati jo nity aatmasanvedan hai jo sanaatan, ateendriyachetan amrit, ajney, shaashvat, aj, avinaashee, avyakt, vyakt, vyaktamen vibhu aur niranjan hai-vahee dviteey aagam hai. vahee charaachar jagatmen vyaapak honese 'vishnu' kahalaataahai. useeke apant naam hai. paramaarthase vimukh log us yogiyon ke paramaaraadhy tattvako naheen jaan sakate." "yah hamaara mat hai- yah keval abhimaan ho hai. jnaan to shaakat hai aur sanaatan hai. vah parampara ho chala a raha hai. bhaarateey mahaapurush sada itihaasake roopamen isase jnaanaka varnan karate rahe hain ki usane apane abhimaanako kshudrata n a jaaya. devarshi naaradajeene kaha ki "mainne ek baar srishtikarta apane pita brahmaajeele poochha thaa. us samay paramaartha-tatv ke vishayamen brahmaajeene kahaa—'bhagavaan naaraayan ho samast praaniyonki aatma hain. ke ho prabhu jagadaadhaar hain. ve hee sanaatan paramaatma pachees tattvonke roopamen prakaashit ho rahe hain. jagat‌ko srishti, raksha tatha pralay naaraayanase ho hota hai. vishv taijal, praajn ye trividh aatma naaraayan hee hain. ve hee sabake adheeshvar, ekamaatr sanaatan dev hain. yogagan jnaan tatha yogake dvaara unheen jagannaathaka saakshaatkaar karate hain. jinaka chitt naaraayanamen laga hai, jinake praan naaraayanako arpit hain, jo keval naaraayanake hee paraayan hain, ve naaraayanako kripa aur shaktise jagatmen door aur sameep, bhoot, vartamaan aur bhavishy, sthool aur sookshma-sakko dekhate hain. unase kuchh ajnaat naheen rahataa.'

"brahmaajeene devataaonse ek din kaha thaa- 'dharm naaraayanake aashrit hai. sab sanaatan lok, yajn, shaatr, ved, vedaang tatha aur bhee jo kuchh hai, sab naaraayanake hee aadhaarapar hain. ve avyakt purush naaraayan ho prithvee aadi panchabhootaroop hai. yah samast jagat vishnumay hai. paapee manushy is tattvako naheen jaanataa. jinaka chitt un vishveshvaramen laga hai, jinaka jeevan un shreehariko arpit hai. aise paramaarth jnaata ho un param purushako jaanate hain. naaraayan hee sab bhootaroop hain, ve ho sabamen vyaapt hain, ve ho sabaka paalan karate hain. samast jagat unhonse utpann hai, unhonmen pratishthit hai. ve hee sabake svaamee hain. srishtike liye ve hee brahma paalanake liye vishnu aur sanhaarake liye rudraroop dhaaran kiye hain. ve hee lokapaal hain. ve paraatpar purush hee sarvaadhaar, nishkal, sakal, anu aur mahaan hain. sabako unhonke sharan hona chaahiye. "

devarshine kahaa- 'brahmaajeene aisa kaha tha, atah dvijashreshtha! tum bhee unheen shreehariko sharan lo. un naaraayanako chhoda़kar bhonk ako poora karanevaalaaaur koee naheen hai. ve hee purushottam sabake pitaa-maata hain; kehee lokesh devadev jagatpati hai. agnihotr tap adhyayan aadi sabhee satkarmonse nitya-nirantar saavadhaaneeke saath ekamaatr unhen hee santusht karana chaahiye. tum un purushottamakee hee sharan lo. unakee sharan honepar n to bahut -se mantronkee aavashyakata hai, n vratonka hee prayojan hai. ek naaraayana-mantr - oM namo naaraayanaaya' hee sab manorathonko poora karanevaala hai. bhagavaan‌ko aaraadhanaamen kisee baaharee veshakee aavashyakata naheen. kapada़e pahane ho ya digambar ho, jataadhaaree ho ya moonda़ muda़aaye ho, tyaagee ho ya grihasth ho– sabhee bhagavaan‌ko bhakti kar sakate hain. chihn (yesha) dharmaka kaaran naheen hai jo log pahale nirday, paapee, dushtaatma aur kukarmarat rahe hain, ve bhee naaraayana-paraayan honepar param dhaamako praapt ho jaate hain. bhagavaanke param bhakt paarake keechada़ men kabhee lipt naheen hote. ahinsaase chitako jeetakar ve bhagavadbhakt teenon lokonko pavitr karate hain. praacheenakaalamen anek log premaro bhagavaan‌ka bhajan karake unhen praapt kar chuke hain. shreeharikee aaraadhanaase sabako param gati milatee hai aur usake bina koee paramapad naheen pa sakataa. brahaachaaree, grihasth, vaanaprasth, sannyaasee-koee bhee ho, paramapad to bhagavaanake bhajanase hee milata hai. 'main haribhakaka daas hoon' - yah subuddhi sahasron janmonke anantar bhagavaan‌kee kripaase hee praapt hotee hai. aisa purush bhagavaan‌ko praapt kar leta hai. tattvajn purush iseeliye chittako sab orase hataakar nitya-nirantar ananyabhaavase un sanaatan param purushaka hee dhyaan karate hain.' devarshi yah upadesh dekar chale gaye.

pundareekakee bhagavadbhakti devarshike upadeshase aur bhee dridha़ ho gayee. ve naaraayanamantraka akhand jap karate aur sada bhagavaanke dhyaanamen nimagn rahate. unakee sthiti aisee ho gayee ki unake hridayakamalapar bhagavaan govind sada pratyaksh viraajamaan rahane lage. sattvagunaka poora saamraajy ho jaanese nidra, jo purushaarthakee virodhinee aur tamoroopa hai, sarvatha nasht ho gayee.

bahuta-se mahaapurushon men yah dekha aur suna jaata hai. ki unake man aur buddhimen bhagavaanka aavirbhaav hua aur ve divy bhagavadroopamen parinat ho gaye; kintu kiseeka sthool shareer divy ho gaya ho, yah naheen suna jaataa. aisa to kadaachit hee hota hai. pundareekamen yahee lokottaraavastha prakat huee. unaka nishyaap deh shyaamavarnaka ho gaya, chaar bhujaaen ho gayeen un haathonmen shankh, chakr, gada, padm a gaye. unaka vastr peetaambar ho gayaa. ek tejomandalane unake shareerako gher liyaa. pundareekase ve 'pundareekaaksha' ho gaye. unake sinh, vyaaghr aadi kroor pashu bhee unake paas apana parasparaka sahaj vair bhaav bhoolakar ekatr ho gaye aur prasannata prakat karane lage. nadee sarovar, vana-parvat, vriksha-lataaen-sab pundareekake anukool ho gaye. sab unakee sevaake liye phal, pushp, nirmal jal aadi prastut rakhane lage. pundareek bhaktavatsal bhagavaana‌ko kripaase unake atyant priyapaatr ho gaye the. pratyek jeev, pratyek jada़-chetan us param vandaneey bhaktakee sevaase apaneko kritaarth karana chaahata tha !

pundareekake mana-buddhi hee naheen, shareer bhee divy bhagavadroop ho gaya thaa; tathaapi dayaamay karunaasaagar prabhu bhaktako param paavan karane, use netronka charam laabh dene usake saamane prakat ho gaye. bhagavaan‌ka svaroop, unakee shobha, unakee ang kaanti jis manamen ek jhalak de jaatee hai, vah man, vah jeevan dhany ho jaata hai. usaka varnan kar sake, itanee shakti kahaan kisamen hai. pundareek bhagavaan ke achinty sundar divy roopako dekhakar prem vihval ho gaye. bhagavaan ke shreecharanonmen pranipaat karake bhare kanthase unhonne stuti kee. stuti karate-karate premake vegase pundareekakee vaanee ruddh ho gayee.

bhagavaanne pundareekako varadaan maanganeke liye kahaa. pundareekane vinayapoorvak uttar diyaa- 'bhagavan. kahaan to main durbuddhi praanee aur kahaan aap sarveshvar, sarvajna. mere param suhrid svaamee! aapake darshanake pashchaat aur kya shesh rah jaata hai, jise maanga jaaya-yah meree samajhamen naheen aata mere naatha! aap mujhe maanganeka aadesh kar rahe hain to main yahee maangata hoon ki main abodh hoon; atah jisamen mera kalyaan ho, vahee aap karen.'

bhagavaan ne apane charanonmen pada़e pundareekako uthaakar hridayase laga liyaa. ve bole-'vats ! tum mere saath chalo. tumhen chhoda़kar ab main naheen rah sakataa. ab tum mere dhaamamen | mere sameep meree leelaamen sahayog dete hue nivaas karo.' bhagavaan ne pundareekako apane saath garuda़par baitha liya aur apane nityadhaam le gaye.

2382 Views





Bhajan Lyrics View All

नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
हम प्रेम दीवानी हैं, वो प्रेम दीवाना।
ऐ उधो हमे ज्ञान की पोथी ना सुनाना॥
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है

New Bhajan Lyrics View All

मैं बेरंगी फिरदी सा रंग मेरे श्याम ने
रंग मेरे श्याम ने लाया, रंग मेरे श्याम
कमल फूल अवतार लियो है भारी,
गढ़ गोठा केरो नाम सुणो नर नारी
मत प्रेम करो इस काया से एक दिन तो दगा दे
एक दिन तो दगा दे जाएगी, एक दिन तो दगा दे
रखते हिसाब नही देते तौल के,
बाँटते खजानें शिव दिल को खोल के,
मेरा बिल्कुल बगल में मकान, बालाजी मेरे
रामभगत हनुमान, बालाजी मेरे घर आना॥