⮪ All भक्त चरित्र

भक्त राजा इन्द्रद्युम्न की मार्मिक कथा
भक्त राजा इन्द्रद्युम्न की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त राजा इन्द्रद्युम्न (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त राजा इन्द्रद्युम्न]- भक्तमाल


सत्ययुगकी बात है, मालवप्रदेशकी अवन्तिकापुरीमें इन्द्रद्युम्न नामसे प्रसिद्ध एक राजा राज्य करते थे। उनका जन्म सूर्यवंशमें हुआ था। वे ब्रह्माजीसे पाँच पीढ़ी नीचे थे। राजा इन्द्रद्युम्र महान् सत्यवादी, सदाचारी, शुद्धात्मा तथा सात्त्विक पुरुषोंमें अग्रगण्य थे। वे प्रजाको अपनी सन्तान समझते और सदा न्यायपूर्वक उसका पालन करते थे। वे अध्यात्मवेत्ता, शूरवीर, उद्यमशील, ब्राह्मणभक्त, विद्वान्, रूपवान्, सौभाग्यशाली, शीलवान्, दानी, प्रियवक्ता, यज्ञोंका अनुष्ठान करनेवाले तथा सत्यप्रतिज्ञ थे। भगवान् विष्णुके चरणोंमें उनकी अनन्य भक्ति थी। वे अपने चर्मचक्षुओंसे भगवान् श्रीहरिका साक्षात् दर्शन पा लेनेके लिये सदैव उत्कण्ठित रहते थे।

एक दिन राजाके यहाँ देवर्षि नारद पधारे। राजाने पाद्य, अर्घ्य आदि देकर देवर्षिका पूजन किया और उन्हें सुन्दर सिंहासनपर बैठाकर विनयपूर्वक कहा- 'भगवन्! आज आपके पदार्पणसे मेरा यह घर और कुल पवित्र हो गये। आपके दर्शन पाकर यहसेवक कृतकृत्य हो गया। योग्य सेवाके लिये आदेश देकर मुझे अनुगृहीत कीजिये।'

राजाकी यह विनयभरी बात सुनकर देवर्षि नारद मुसकराते हुए बोले- 'नृपश्रेष्ठ ! मैंने सुना है, तुम भगवान् श्रीहरिका साक्षात् दर्शन करनेकी इच्छासे नीलाचल जानेका विचार कर रहे हो। यदि ऐसी बात है तो तुमने यह बहुत उत्तम निश्चय किया है। यह संसार एक भयङ्कर वन है। इसमें पग-पगपर दुःख और संकटके काँटे बिछे हुए हैं। यहाँ भटकनेवाले मनुष्योंके लिये एकमात्र भगवान् विष्णुकी भक्ति ही सुखद आश्रय है। मनुष्योंके भारी-से-भारी पाप भी विष्णुभक्तिकी आगमें भस्म हो जाते हैं। प्रयाग, गङ्गा आदि तीर्थ, तपस्या, श्रेष्ठ अश्वमेध यज्ञ, बड़े-बड़े दान, व्रत, उपवास और नियम- इन सबका सहस्रों बार अनुष्ठान किया जाय और इन सबके सम्मिलित पुण्योंको कोटि-कोटिगुना करके रखा जाय तो भी वह विष्णुभक्तिके हजारवें अंशके बराबर भी नहीं कहा जा सकता। राजाने पूछा- 'भगवन्! भक्तका क्या स्वरूप है?' नारदजीने कहा- राजन् ! सावधान होकर सुनो। गुणोंके भेदसे भक्तिके तीन भेद हैं- सात्त्विकी, राजसी और तामसी । इनके अतिरिक्त एक चौथी भक्ति भी है, जो निर्गुणा मानी गयी है। राजन्! जो लोग काम और क्रोधके वशीभूत हैं और प्रत्यक्ष (इस जगत्) के सिवा और किसी (परलोक आदि) की ओर दृष्टि नहीं रखते, वे अपनेको लाभ और दूसरोंको हानि पहुँचानेके लिये जो भजन करते हैं, उनकी वह भक्ति तामसी कही गयी है। अधिक यशकी प्राप्तिके लिये अथवा दूसरेकी स्पर्धा (लाग-डाट) - से, प्रसङ्गवश परलोकके लिये भी, जो भक्ति होती है, वह राजसी मानी गयी है। पारलौकिक लाभको स्थायी समझकर और इहलोकके समस्त पदार्थोंको नश्वर देखकर अपने वर्ण तथा आश्रमके धर्मोका परित्याग न करते हुए आत्मज्ञानके लिये जो भक्ति की जाती है, वह सात्त्विकी है। यह जगत् जगन्नाथका ही स्वरूप है, उनसे भिन्न इसका कोई दूसरा कारण नहीं है, मैं भी भगवान् से भिन्न नहीं हूँ और वे भी मुझसे पृथक नहीं हैं-यों समझकर भेद उत्पन्न करनेवाली बाह्य उपाधियोंका त्याग करना और अधिक प्रेमसे भगवत्-स्वरूपका चिन्तन करते रहना - यह अद्वैत (निर्गुणा) नामवाली भक्ति हैं, जो मुक्तिका साक्षात् साधन है। यह अत्यन्त दुर्लभ है।

अब मैं विष्णुके भक्तोंके लक्षण बताता हूँ-जिनका चित्त अत्यन्त शान्त है, जो सबके प्रति कोमलभाव रखते हैं, जिन्होंने स्वेच्छानुसार अपनी इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त कर ली है तथा जो मन, वाणी और क्रियाद्वारा कभी दूसरोंसे द्रोह करनेकी इच्छा नहीं रखते, जिनका चित्त दयासे द्रवीभूत रहता है, जो चोरी और हिंसासे सदा ही मुख मोड़े रहते हैं, सद्गुणोंके संग्रह तथा दूसरोंके कार्यसाधनमें जो प्रसन्नतापूर्वक संलग्न रहते हैं, सदाचारसेजिनका जीवन सदा उज्ज्वल (निष्कलङ्क) बना रहता है, जो दूसरोंके उत्सवको अपना उत्सव मानते हैं, सब प्राणियोंके भीतर भगवान् वासुदेवको विराजमान देखकर कभी किसीसे ईर्ष्या-द्वेष नहीं रखते, दोनोंपर दया करना जिनका स्वभाव बन गया है और जो सदा परहितसाधनकी इच्छा रखते हैं, अविवेकी मनुष्योंका विषयोंमें जैसा प्रेम होता है, उससे सौ कोटि गुनी अधिक प्रीतिका विस्तार जो भगवान् श्रीहरिके प्रति करते हैं। नित्य कर्तव्यबुद्धिसे विष्णुस्वरूप शङ्कर आदि देवताओंका भक्तिपूर्वक पूजन और ध्यान करते हैं, पितरोंमें भगवान् विष्णुकी ही बुद्धि रखते हैं, भगवान् विष्णुसे भिन्न दूसरी किसी वस्तुको नहीं देखते, समष्टि और व्यष्टि सब भगवान्के ही स्वरूप हैं, भगवान् जगत्से भिन्न होकर भी भिन्न नहीं हैं, 'हे भगवान् जगन्नाथ! मैं आपका दास हूँ, आपके स्वरूप में भी मैं हूँ आपसे पृथक कदापि नहीं हूँ, जब आप भगवान् विष्णु अन्तर्यामीरूपसे सबके हृदयमें विराजमान हैं, तब सेव्य अथवा सेवक कोई भी आपसे भिन्न नहीं है' इस भावनासे सदा सावधान रहकर जो ब्रह्माजीके द्वारा बन्दनीय युगलचरणारविन्दवाले श्रीहरिको सदा प्रणाम करते, उनके नामोंका कीर्तन करते, उन्होंके भजनमें तत्पर रहते और संसारके लोगोंके समीप अपनेको तृणके समान तुच्छ मानकर विनयपूर्ण बर्ताव करते हैं, जगतमें सब लोगोंका उपकार करनेके लिये जो कुशलताका परिचय देते हैं, दूसरोंके कुशलक्षेमको अपना ही मानते हैं, दूसरोंका तिरस्कार देखकर उनके प्रति दयासे द्रवीभूत हो जाते हैं तथा सबके प्रति मनमें कल्याणकी भावना करते हैं, वे ही विष्णुभक्तके नामसे प्रसिद्ध हैं जो पत्थर, परधन और मिट्टीके देलेमें परायी स्त्री और कूटशाल्मली नामक नरकमें, मित्र, शत्रु, भाई तथा बन्धुवर्गमें समान बुद्धि रखनेवाले हैं, वे ही | निश्चितरूपसे विष्णुभक्तके नामसे प्रसिद्ध हैं। जो दूसरोंकीगुणराशिसे प्रसन्न होते और पराये मर्मको ढकनेका प्रयत्न करते हैं, परिणाममें सबको सुख देते हैं, भगवान्में सदा मन लगाये रहते तथा प्रिय वचन बोलते हैं, वे ही वैष्णवके नामसे प्रसिद्ध हैं।

नारदजीका यह उपदेश सुनकर राजा इन्द्रद्युम्न बहुत प्रसन्न हुए और इस प्रकार बोले-'भगवन्! आपके सङ्ग और सदुपदेशसे मेरे अज्ञानमय अन्धकारका नाश हो गया। इस समय मेरा मन भगवान् नीलमाधवके दर्शनके लिये उत्सुक एवं विकल है। अतः आप और हम दोनों रथपर बैठकर नीलाचल चलें और भगवान के दर्शन करें।'

नारदजीके 'तथास्तु' कहनेपर महाराज इन्द्रद्युम्नने यात्राकी आवश्यक तैयारी कर ली और राजकीय मन्दिरमें भगवान् विष्णुके दर्शन करके वे नारदजीके साथ रथपर सवार हुए। मार्गमें महानदी तथा भुवनेश्वर क्षेत्र आदि पुण्यस्थानों एवं देवताओंका दर्शन करते हुए वे यथासमय दलबलसहित पुरुषोत्तम क्षेत्रमें जा पहुँचे। वहाँ राजा इन्द्रद्युम्नने नारदजीके साथ भगवान् नृसिंहजी, कल्पवट तथा श्रीनीलमाधवके स्थानके दर्शन किये।

नारदजीने जब वहाँ भगवान् नृसिंहकी प्रतिमाको स्थापना की, उस समय राजाने भगवान्‌का स्तवन करते हुए कहा कि 'भगवन्! आप मुझे अपने चरणारविन्दोंकी श्रेष्ठ भक्ति दीजिये। आप मुझ अनाथपर कृपा कीजिये, जिससे मेँ अपने इस चर्मचक्षुसे आपके दिव्य स्वरूपका दर्शन कर सकूँ।'

तत्पश्चात् उन्होंने एक हजार अश्वमेध यहाँका अनुष्ठान आरम्भ किया। जब वे अश्वमेध यज्ञ नौ सौ निन्यानवेकी संख्यातक पहुँच गये, तब सोमरस निकालनेके सात दिनके बाद जो रात्रि आयो, उसके चौथे प्रहरमें राजा इन्द्रद्युम्नने अविनाशी भगवान् विष्णुका ध्यान किया। उस ध्यानमें उन्हें एक रत्नसिंहासनप शङ्ख-चक्र-गदाधारीभगवान् विष्णुका दर्शन हुआ। उनके श्री अङ्गोंकी कान्ति नीलमेघ के समान श्याम थी। वे वनमालासे विभूषित थे। उनके दाहिने भागमें शेषजी विराजमान थे, जो फणरूपी मुकुटका विस्तार करके सुन्दर छत्रके आकारमें परिणत हो गये थे। भगवान्के वामभाग भगवती लक्ष्मी विराजमान थी। भगवान्के आगे हाथ जोड़े खड़े थे। सनकादि मुनीश्वर उनकी स्तुति कर रहे थे। ध्यानमें भगवान्‌का इस प्रकार दर्शन पाकर राजा इन्द्रद्युम्नको बड़ा हर्ष हुआ। इन्द्रद्युम्नने भगवान्‌की स्तुति करके उन्हें प्रणाम किया। फिर ध्यानके अन्तमें राजाको अपने आपका भान हुआ, तब उन्होंने नारदजीसे सब बातें कहीं। तब नारदजीने आश्वासन देते हुए कहा- 'राजन् ! इस यज्ञके अन्तमें तुम्हें भगवान् यहाँ प्रत्यक्ष दर्शन देंगे। ये सब बातें दूसरे किसीके आगे प्रकाशित न करना।' राजा इन्द्रद्युम्नके अश्वमेध यज्ञके समाप्त होनेपर
आकाशवाणी हुई। तदनुसार वहाँ भगवान् स्वयं चार विग्रहोंमें प्रकट हुए। बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शनचक्रके साथ भगवान् जगन्नाथजी दिव्य आसनपर विराजमान हुए। भगवान्के चार दिव्य रूप सम्पन्न हो जानेपर पुनः आकाशवाणी हुई कि 'इन चारों प्रतिमाओंकी नीलाचलपर कल्पवृक्षके वायव्यकोणमें सौ हाथकी दूरीपर और भगवान् नृसिंहके उत्तर भागमें जो मैदान है, उसमें मन्दिर बनवाकर स्थापना करो।' राजाने उसका प्रसन्नतापूर्वक पालन किया। राजा इन्द्र भगवान् जगाजीको स्थापना करके उनकी स्तुति की और फिर उन चारों काष्ठमयी प्रतिमाओंका विधिवत् पूजन किया। यह वही पुरुषोत्तमक्षेत्र है, जो चारों धामोंमेंसे एक है और जगन्नाथपुरीके नामसे प्रसिद्ध है। राजर्षि इन्द्रद्युम्न भगवान् पुरुषोत्तमको प्रसन्न करके नारदजीके साथ ब्रह्मलोक में चले गये।



You may also like these:



bhakt raaja indradyumna ki marmik katha
bhakt raaja indradyumna ki adhbut kahani - Full Story of bhakt raaja indradyumna (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt raaja indradyumna]- Bhaktmaal


satyayugakee baat hai, maalavapradeshakee avantikaapureemen indradyumn naamase prasiddh ek raaja raajy karate the. unaka janm sooryavanshamen hua thaa. ve brahmaajeese paanch peedha़ee neeche the. raaja indradyumr mahaan satyavaadee, sadaachaaree, shuddhaatma tatha saattvik purushonmen agragany the. ve prajaako apanee santaan samajhate aur sada nyaayapoorvak usaka paalan karate the. ve adhyaatmavetta, shooraveer, udyamasheel, braahmanabhakt, vidvaan, roopavaan, saubhaagyashaalee, sheelavaan, daanee, priyavakta, yajnonka anushthaan karanevaale tatha satyapratijn the. bhagavaan vishnuke charanonmen unakee anany bhakti thee. ve apane charmachakshuonse bhagavaan shreeharika saakshaat darshan pa leneke liye sadaiv utkanthit rahate the.

ek din raajaake yahaan devarshi naarad padhaare. raajaane paady, arghy aadi dekar devarshika poojan kiya aur unhen sundar sinhaasanapar baithaakar vinayapoorvak kahaa- 'bhagavan! aaj aapake padaarpanase mera yah ghar aur kul pavitr ho gaye. aapake darshan paakar yahasevak kritakrity ho gayaa. yogy sevaake liye aadesh dekar mujhe anugriheet keejiye.'

raajaakee yah vinayabharee baat sunakar devarshi naarad musakaraate hue bole- 'nripashreshth ! mainne suna hai, tum bhagavaan shreeharika saakshaat darshan karanekee ichchhaase neelaachal jaaneka vichaar kar rahe ho. yadi aisee baat hai to tumane yah bahut uttam nishchay kiya hai. yah sansaar ek bhayankar van hai. isamen paga-pagapar duhkh aur sankatake kaante bichhe hue hain. yahaan bhatakanevaale manushyonke liye ekamaatr bhagavaan vishnukee bhakti hee sukhad aashray hai. manushyonke bhaaree-se-bhaaree paap bhee vishnubhaktikee aagamen bhasm ho jaate hain. prayaag, ganga aadi teerth, tapasya, shreshth ashvamedh yajn, bada़e-bada़e daan, vrat, upavaas aur niyama- in sabaka sahasron baar anushthaan kiya jaay aur in sabake sammilit punyonko koti-kotiguna karake rakha jaay to bhee vah vishnubhaktike hajaaraven anshake baraabar bhee naheen kaha ja sakataa. raajaane poochhaa- 'bhagavan! bhaktaka kya svaroop hai?' naaradajeene kahaa- raajan ! saavadhaan hokar suno. gunonke bhedase bhaktike teen bhed hain- saattvikee, raajasee aur taamasee . inake atirikt ek chauthee bhakti bhee hai, jo nirguna maanee gayee hai. raajan! jo log kaam aur krodhake vasheebhoot hain aur pratyaksh (is jagat) ke siva aur kisee (paralok aadi) kee or drishti naheen rakhate, ve apaneko laabh aur doosaronko haani pahunchaaneke liye jo bhajan karate hain, unakee vah bhakti taamasee kahee gayee hai. adhik yashakee praaptike liye athava doosarekee spardha (laaga-daata) - se, prasangavash paralokake liye bhee, jo bhakti hotee hai, vah raajasee maanee gayee hai. paaralaukik laabhako sthaayee samajhakar aur ihalokake samast padaarthonko nashvar dekhakar apane varn tatha aashramake dharmoka parityaag n karate hue aatmajnaanake liye jo bhakti kee jaatee hai, vah saattvikee hai. yah jagat jagannaathaka hee svaroop hai, unase bhinn isaka koee doosara kaaran naheen hai, main bhee bhagavaan se bhinn naheen hoon aur ve bhee mujhase prithak naheen hain-yon samajhakar bhed utpann karanevaalee baahy upaadhiyonka tyaag karana aur adhik premase bhagavat-svaroopaka chintan karate rahana - yah advait (nirgunaa) naamavaalee bhakti hain, jo muktika saakshaat saadhan hai. yah atyant durlabh hai.

ab main vishnuke bhaktonke lakshan bataata hoon-jinaka chitt atyant shaant hai, jo sabake prati komalabhaav rakhate hain, jinhonne svechchhaanusaar apanee indriyonpar vijay praapt kar lee hai tatha jo man, vaanee aur kriyaadvaara kabhee doosaronse droh karanekee ichchha naheen rakhate, jinaka chitt dayaase draveebhoot rahata hai, jo choree aur hinsaase sada hee mukh moda़e rahate hain, sadgunonke sangrah tatha doosaronke kaaryasaadhanamen jo prasannataapoorvak sanlagn rahate hain, sadaachaarasejinaka jeevan sada ujjval (nishkalanka) bana rahata hai, jo doosaronke utsavako apana utsav maanate hain, sab praaniyonke bheetar bhagavaan vaasudevako viraajamaan dekhakar kabhee kiseese eershyaa-dvesh naheen rakhate, dononpar daya karana jinaka svabhaav ban gaya hai aur jo sada parahitasaadhanakee ichchha rakhate hain, avivekee manushyonka vishayonmen jaisa prem hota hai, usase sau koti gunee adhik preetika vistaar jo bhagavaan shreeharike prati karate hain. nity kartavyabuddhise vishnusvaroop shankar aadi devataaonka bhaktipoorvak poojan aur dhyaan karate hain, pitaronmen bhagavaan vishnukee hee buddhi rakhate hain, bhagavaan vishnuse bhinn doosaree kisee vastuko naheen dekhate, samashti aur vyashti sab bhagavaanke hee svaroop hain, bhagavaan jagatse bhinn hokar bhee bhinn naheen hain, 'he bhagavaan jagannaatha! main aapaka daas hoon, aapake svaroop men bhee main hoon aapase prithak kadaapi naheen hoon, jab aap bhagavaan vishnu antaryaameeroopase sabake hridayamen viraajamaan hain, tab sevy athava sevak koee bhee aapase bhinn naheen hai' is bhaavanaase sada saavadhaan rahakar jo brahmaajeeke dvaara bandaneey yugalacharanaaravindavaale shreehariko sada pranaam karate, unake naamonka keertan karate, unhonke bhajanamen tatpar rahate aur sansaarake logonke sameep apaneko trinake samaan tuchchh maanakar vinayapoorn bartaav karate hain, jagatamen sab logonka upakaar karaneke liye jo kushalataaka parichay dete hain, doosaronke kushalakshemako apana hee maanate hain, doosaronka tiraskaar dekhakar unake prati dayaase draveebhoot ho jaate hain tatha sabake prati manamen kalyaanakee bhaavana karate hain, ve hee vishnubhaktake naamase prasiddh hain jo patthar, paradhan aur mitteeke delemen paraayee stree aur kootashaalmalee naamak narakamen, mitr, shatru, bhaaee tatha bandhuvargamen samaan buddhi rakhanevaale hain, ve hee | nishchitaroopase vishnubhaktake naamase prasiddh hain. jo doosaronkeegunaraashise prasann hote aur paraaye marmako dhakaneka prayatn karate hain, parinaamamen sabako sukh dete hain, bhagavaanmen sada man lagaaye rahate tatha priy vachan bolate hain, ve hee vaishnavake naamase prasiddh hain.

naaradajeeka yah upadesh sunakar raaja indradyumn bahut prasann hue aur is prakaar bole-'bhagavan! aapake sang aur sadupadeshase mere ajnaanamay andhakaaraka naash ho gayaa. is samay mera man bhagavaan neelamaadhavake darshanake liye utsuk evan vikal hai. atah aap aur ham donon rathapar baithakar neelaachal chalen aur bhagavaan ke darshan karen.'

naaradajeeke 'tathaastu' kahanepar mahaaraaj indradyumnane yaatraakee aavashyak taiyaaree kar lee aur raajakeey mandiramen bhagavaan vishnuke darshan karake ve naaradajeeke saath rathapar savaar hue. maargamen mahaanadee tatha bhuvaneshvar kshetr aadi punyasthaanon evan devataaonka darshan karate hue ve yathaasamay dalabalasahit purushottam kshetramen ja pahunche. vahaan raaja indradyumnane naaradajeeke saath bhagavaan nrisinhajee, kalpavat tatha shreeneelamaadhavake sthaanake darshan kiye.

naaradajeene jab vahaan bhagavaan nrisinhakee pratimaako sthaapana kee, us samay raajaane bhagavaan‌ka stavan karate hue kaha ki 'bhagavan! aap mujhe apane charanaaravindonkee shreshth bhakti deejiye. aap mujh anaathapar kripa keejiye, jisase men apane is charmachakshuse aapake divy svaroopaka darshan kar sakoon.'

tatpashchaat unhonne ek hajaar ashvamedh yahaanka anushthaan aarambh kiyaa. jab ve ashvamedh yajn nau sau ninyaanavekee sankhyaatak pahunch gaye, tab somaras nikaalaneke saat dinake baad jo raatri aayo, usake chauthe praharamen raaja indradyumnane avinaashee bhagavaan vishnuka dhyaan kiyaa. us dhyaanamen unhen ek ratnasinhaasanap shankha-chakra-gadaadhaareebhagavaan vishnuka darshan huaa. unake shree angonkee kaanti neelamegh ke samaan shyaam thee. ve vanamaalaase vibhooshit the. unake daahine bhaagamen sheshajee viraajamaan the, jo phanaroopee mukutaka vistaar karake sundar chhatrake aakaaramen parinat ho gaye the. bhagavaanke vaamabhaag bhagavatee lakshmee viraajamaan thee. bhagavaanke aage haath joda़e khada़e the. sanakaadi muneeshvar unakee stuti kar rahe the. dhyaanamen bhagavaan‌ka is prakaar darshan paakar raaja indradyumnako bada़a harsh huaa. indradyumnane bhagavaan‌kee stuti karake unhen pranaam kiyaa. phir dhyaanake antamen raajaako apane aapaka bhaan hua, tab unhonne naaradajeese sab baaten kaheen. tab naaradajeene aashvaasan dete hue kahaa- 'raajan ! is yajnake antamen tumhen bhagavaan yahaan pratyaksh darshan denge. ye sab baaten doosare kiseeke aage prakaashit n karanaa.' raaja indradyumnake ashvamedh yajnake samaapt honepara
aakaashavaanee huee. tadanusaar vahaan bhagavaan svayan chaar vigrahonmen prakat hue. balabhadr, subhadra aur sudarshanachakrake saath bhagavaan jagannaathajee divy aasanapar viraajamaan hue. bhagavaanke chaar divy roop sampann ho jaanepar punah aakaashavaanee huee ki 'in chaaron pratimaaonkee neelaachalapar kalpavrikshake vaayavyakonamen sau haathakee dooreepar aur bhagavaan nrisinhake uttar bhaagamen jo maidaan hai, usamen mandir banavaakar sthaapana karo.' raajaane usaka prasannataapoorvak paalan kiyaa. raaja indr bhagavaan jagaajeeko sthaapana karake unakee stuti kee aur phir un chaaron kaashthamayee pratimaaonka vidhivat poojan kiyaa. yah vahee purushottamakshetr hai, jo chaaron dhaamonmense ek hai aur jagannaathapureeke naamase prasiddh hai. raajarshi indradyumn bhagavaan purushottamako prasann karake naaradajeeke saath brahmalok men chale gaye.

244 Views





Bhajan Lyrics View All

साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
लोग करें मीरा को यूँ ही बदनाम
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है

New Bhajan Lyrics View All

खाटू में जाएंगे बाबा को रिझाएंगे,
जो बात नहीं बनती वो बात बताएँगे॥
बरसाने की मैं छोरी ओ कान्हा मोसे खेलो
खेलो ना होली कान्हा खेलो ना होली,
सीताराम सीताराम सीताराम,
मेरे मन बस गये सीताराम,
मैं तो फस गयी मकड़ी के जाल मे कैसे आऊं
संकट में झुँझन वाली की,
सकलाई देखी है,