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महीकांठाके भक्त मेहाजल की मार्मिक कथा
महीकांठाके भक्त मेहाजल की अधबुत कहानी - Full Story of महीकांठाके भक्त मेहाजल (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महीकांठाके भक्त मेहाजल]- भक्तमाल


गुजरात-प्रान्तकी महीकांठा एजेन्सीके अन्तर्गत घोड़ासर नामक गाँवमें श्यामदास और सुलभी नामके राजपूत दम्पति रहते थे। शेडखीके महात्मा रविसाहेबके बड़े भक्त थे। मेहाजल उसी दम्पतिके पुत्र थे।

एक दिन वे दम्पति अपने पुत्रको लेकर रविसाहेबके दरबारमें गये। पुत्रके मुखको देखकर रविसाहेब हर्षित हो उठे, परंतु दूसरे ही क्षण उनका मुख म्लान हो गया। यह देखकर सुलभी घबरा गयी और उनसे इसका रहस्य पूछने लगी- 'प्रभु! तुम हमसे कोई भेद न छिपाओ; जी बात हो, उसे स्पष्ट कह दो।' सुलभीके इस आग्रहपर भी महात्मा चुपचाप बैठे रहे। अचानक आकाशमें बदली छायी और क्षणभरमें पानी बरसने लगा। गोदमें बालकको लिये हुए सद्गुरु इस मेहाजलमें मानो स्नान कर रहे थे।

वर्षाके दिन न थे, फिर भी अचानक मेहाजल आ । गया। यह देखकर सद्गुरुने सुलभीसे कहा 'इस लड़केको अब मेहाजलके नामसे पुकारना।' बालकके भविष्यके बारेमें रविसाहेबने कहा कि 'तुम्हारा यह लड़का मेहाजल मायाके मृगजलमें नहीं फँसनेवाला है।' हुआ भी ऐसा ही, ग्यारह वर्षकी उम्र होनेके साथ ही एक दिन मेहाजल अपनी माताके चरणोंमें सिर नवाकर बहुत शीघ्रतासे अरवली पहाड़की ओर भाग गया। माता उसके पीछे दौड़ी, पर वह कुछ ही क्षणोंमें वायुवेगसे आँखोंसे ओझल हो गया।

रविसाहेबके कथनानुसार मेहाजल माताका न रहा। पुत्र-वियोगमें माता निरन्तर व्याकुल रहने लगी। कुछ दिनोंके बाद एक पहाड़ी भोमिया आया और उसने खबर दी कि मेहाजल अरवलीकी कन्दरामें रहता है। माता पिता व्याकुल होकर भोमियाके साथ वहाँ जा पहुँचे। माता दौड़ती हुई लड़केके पास गयी और 'मेरा बेटा!' कहकर धड़ामसे गिर पड़ी। कुछ देरके बाद जब माता स्वस्थ हुई, तब मेहाजलने जंगलसे फल-मूल लाकर माता-पिताको भोजन कराया। माताने हठपूर्वक कहा- 'बेटा! अब तुझे छोड़कर हमलोग यहाँसे नहीं जायेंगे।' कुछ दिन माता-पिताके साथ रहनेके बाद मेहाजल एक दिन उनको छोड़कर बाघ-सिंह आदि हिंस्रक पशुओंकी भयानक गर्जनासे परिपूर्ण पर्वतकी ऊँची कन्दरापर चढ़ गये। पुत्रको लापता देखकर माता-पिता कलपते हुए घर लौट आये। बाल्यावस्थामें ही आसन मारकर प्रेमसे श्रीहरिका ध्यान लगाये वह बालयोगी कई वर्षोंतक तपस्या करता रहा। उसके बाद वे अरवलीसे नीचे उतरे और शेडखीका रास्ता लिया। दूरसे ही रविसाहेबने उन्हें आते हुए देखा और दौड़कर 'मेहाजल ! मेहाजल!' कहते हुए हृदयसे लगा लिया। सद्गुरुके नेत्रोंसे प्रेमाश्रु बह निकले। मेहाजल सात दिन गुरुधाममें रहे, दुर्लभ सत्सङ्ग हुआ। आठवें दिन विदा होकर वे पुनः अरवली पहाड़पर चले गये। सद्गुरु व्याकुल होकर उनको खोजनके लिये निकले। अरवलीके पहाड़ी जंगलोंके बीच घूमते हुए वहाँ पहुँचे, जहाँ मेहाजल पद्मासनसे बैठे ध्यान जमाये थे। गुरुने देखा, साधकका ब्रह्मरन्ध्र फूट गया है और ज्योति निकल गयी है।



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gujaraata-praantakee maheekaantha ejenseeke antargat ghoda़aasar naamak gaanvamen shyaamadaas aur sulabhee naamake raajapoot dampati rahate the. shedakheeke mahaatma ravisaahebake bada़e bhakt the. mehaajal usee dampatike putr the.

ek din ve dampati apane putrako lekar ravisaahebake darabaaramen gaye. putrake mukhako dekhakar ravisaaheb harshit ho uthe, parantu doosare hee kshan unaka mukh mlaan ho gayaa. yah dekhakar sulabhee ghabara gayee aur unase isaka rahasy poochhane lagee- 'prabhu! tum hamase koee bhed n chhipaao; jee baat ho, use spasht kah do.' sulabheeke is aagrahapar bhee mahaatma chupachaap baithe rahe. achaanak aakaashamen badalee chhaayee aur kshanabharamen paanee barasane lagaa. godamen baalakako liye hue sadguru is mehaajalamen maano snaan kar rahe the.

varshaake din n the, phir bhee achaanak mehaajal a . gayaa. yah dekhakar sadgurune sulabheese kaha 'is lada़keko ab mehaajalake naamase pukaaranaa.' baalakake bhavishyake baaremen ravisaahebane kaha ki 'tumhaara yah lada़ka mehaajal maayaake mrigajalamen naheen phansanevaala hai.' hua bhee aisa hee, gyaarah varshakee umr honeke saath hee ek din mehaajal apanee maataake charanonmen sir navaakar bahut sheeghrataase aravalee pahaada़kee or bhaag gayaa. maata usake peechhe dauda़ee, par vah kuchh hee kshanonmen vaayuvegase aankhonse ojhal ho gayaa.

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