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भक्त रामहरि भट्टाचार्य की मार्मिक कथा
भक्त रामहरि भट्टाचार्य की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त रामहरि भट्टाचार्य (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त रामहरि भट्टाचार्य]- भक्तमाल


रामहरि भट्टाचार्य बंगालमें कालनाके निकट हाँसपुकुर | ग्राममें रहते थे। यजमानीको जीविका थी। घरमें साध्वी स्त्री थी और एक पुत्रके सिवा और कोई नहीं था। रामहरिका हृदय भगवत्-विश्वाससे भरा था। उनका सबके साथ प्रेमका सम्बन्ध था। संसारमें उनका कोई शत्रु नहीं था। थोड़ी-सी जमीन और यजमानोंकी स्वेच्छापूर्वक दी हुई भेंटकी आमदनीसे उनका परिवार अच्छी तरह पल जाता था। वे प्रतिवर्ष भादोंमें घरसे निकलते और यजमानोंके यहाँ कई गाँवोंमें घूम-फिरकर जो कुछ मिलता, लेकर आश्विन लगते लगते ही घर लौट आते। बड़े सन्तोषी और शान्तवृत्तिके ब्राह्मण थे रामहरि महाराज।

वे सदाकी भाँति इस वर्ष भी भादों लगते ही घरसे निकल पड़े। इस साल बरसात देरसे शुरू हुई थी, इसलिये इन दिनों आकाश लगातार काली घटाओंसे घिरा रहता और रोज ही वृष्टि होती। रामहरि महाराजने इन दुर्दिनोंकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वे भगवान्का नाम लेकर सदाकी भाँति एक गाँवसे दूसरे गाँवमें जाने-आने लगे।

बर्दवानसे कालनातक पक्की सड़क है। एक दिन सन्ध्यासे कुछ ही पूर्व रामहरि महाराज उसी सड़कपरद्रुतगति से बढ़े चले जा रहे थे। गाँव अभी चार कोस था। आँधी-पानीसे भरी भयावनी रातके डर से बचनेके लिये वे दौड़ से रहे थे। रामहरिजी शरीरका पूरा बल लगाकर तेजीसे चलने लगे। चिन्ता और इरसे उनका शरीर काँप रहा था। रात पड़ गयी, परंतु तूफानके शान्त होनेका नाम नहीं। झड़की गति और भी बढ़ गयी। आँधोके झटकेसे बड़े-बड़े वृक्षोंकी डालियाँ टूट-टूटकर गिर रही थीं और उनपर बैठे हुए पक्षी आर्तस्वरसे चिल्ला रहे थे। इससे रात्रि और भी भयङ्कर हो गयी। रामहरि किसी और न देखकर विपत्तिहारी भगवान्‌का नाम स्मरण करते हुए. जोरसे बढ़े चले जा रहे थे। रातभर कहीं आश्रय मिल जाय, उनको इस बातको चिन्ता थी। इसी बीच पास ही बड़े जोरसे कड़ककर बिजली गिरी। रामहरिजो कॉप गये। आकाशको चीरती हुई विद्युत्-शिखा उनकी दोनों आँखोंको मानो वेधकर आकाशमें विलीन हो गयी। रामहरिजी एक पेड़के नीचे खड़े हो गये। उनके मुखसे विपद्विदारी भगवान्‌का नाम अनवरत निकल रहा था।

इतनेमें ही अकस्मात् जंगलमें उन्हें मनुष्यका कण्ठस्वर सुनायी दिया। रास्तेके बगलमें ही बोहड़ जंगल था। अब तो लालटैनकी रोशनी भी दिखायो दो। रामहरिजीने देखा, दो मनुष्य धीरे-धीरे उन्होंको ओर आ रहे हैं।मनुष्योंको देखकर उन्हें बड़ी सान्त्वना मिली। उन्होंने बड़े जोर से चिल्लाकर उनको पुकारा और अपने पास आनेके लिये प्रार्थना की। उनकी पुकार सुनते हुए वे दोनों जल्दी-जल्दी चलकर उनके पास आ पहुँचे। वे साधारण ग्रामीण से लगते थे, शरीर मजबूत और बलवान् थे। उनके एक हाथमें लालटैन और छाता तथा दूसरेमें लंबी लाठी थी। रामहरिजी उन्हें देखकर मन ही मन कुछ डरे रुपये पास होनेपर डर लगता ही है। चील मांसको देखकर ही पीछे लगती है। इसी प्रकार चोर-डकैत भी रुपयोंके ही पीछे लगा करते हैं। कुछ भी हो, दूसरा कोई उपाय नहीं था। रामहरिजीने कहा 'भाइयो! मैं गोविन्दपुर जाऊँगा; पर दिन बहुत खराब हो गया, इसलिये रात ही रात वहाँ पहुँचना कठिन है। आपलोग दया करके मुझे पासके किसी गाँवमें पहुँचा दें तो बड़ी कृपा हो।' रामहरिजीकी बात सुनकर उनमेंसे एकने विनयके साथ कहा-'पण्डितजी, हमारा घर यहाँसे बहुत नजदीक है। आप यदि रातभर हमारे घर विश्राम करें तो आपको कोई कष्ट नहीं होगा। हम भी अपना अहोभाग्य समझेंगे। प्रातःकाल आपको जहाँ जाना हो, चले जाइयेगा।' उनके विनीत वचनोंसे रामहरिजीका भय दूर हो गया और वे उनके पीछे-पीछे चलकर एक टूटी इमारतके सामने आकर खड़े हो गये। उनमेंसे एकने जोरसे पुकारा – 'अरे धन्ना!' जब द्वार नहीं खुला, तब वे दोनों जोर-जोरसे 'धन्ना ओ धन्ना!' पुकारने लगे। कुछ देरके बाद दरवाजा खुला और एक भीषण आकृतिका नवयुवक बाहर निकल आया।

युवकको देखकर एकने कहा-'धत्रा ! आजकी यात्रा सफल हुई अतिथि सत्कारका अवसर मिल गया।' धराने तीक्ष्ण दृष्टिसे रामहरिजीकी ओर देखकर कहा-' तब भोजनकी व्यवस्था करूँ? 'रामहरिजो उनका रंग-ढंग देखकर समझ गये कि जरूर दालमें काला है। उनका हृदय धड़कने लगा और वे मन-ही-मन आर्तभावसे संकटहारी श्यामसुन्दरका स्मरण करने लगे। परंतु बाहरसे इस भावको छिपाकर उन्होंने इतना ही कहा मैं आज कुछ भी नहीं खाऊँगा और वर्षा थम गयी तो रातको ही चला भी जाऊँगा।' धन्नाने उनकी बात सुनकर कुछनहीं कहा और उन्हें खींचकर अंदर ले गया। वे दोनों मनुष्य भी पीछे-पीछे अंदर चले गये।

रामहरिजीने देखा, चारों ओर जंगल-सा है, बगलमें ही एक घर है। धन्ना रामहरिजीको घरके बीचकी एक कोठरी में ले गया और उन्हें तख्तेपर विश्राम करने के लिये। कहकर वहाँसे चल दिया। रामहरिजी तख्तेपर बैठे थर थर काँप रहे थे। 'हाय! किस अशुभ मुहूर्तमें घरसे निकला और जंगलमें इनसे सहायता ही क्यों चाही? आज इन डकैतोंके हाथसे प्राण नहीं बचेंगे।'

बगलकी कोठरीसे बातचीतकी आवाज सुनायी दी। बीचमें एक पतली सी दीवाल थी, इससे प्रायः सभी बातें उन्हें सुनायी पड़ रही थीं। उन्होंने कण्ठस्वरसे पहचान लिया कि बातचीत करनेवालोंमें दो व्यक्ति वही हैं जो जंगलमें मिले थे और तीसरा धन्ना है। बातचीतके सिलसिले में पता लगा कि उन दोनोंके नाम हाराण और तीनकौड़ी हैं तथा धन्ना हाराणका लड़का है। हाराणने कहा- 'देखो, तीनकौड़ी। मालूम होता है ब्राह्मण हैं, गलेमें जनेऊ है। फिर ब्रह्महत्याका पाप लगेगा।' तीनकौड़ी बोला-'चलो तुम भी बड़े डरपोक हो। अरे गाड़ेमें सूपका क्या भार अबतक ऐसे कितने ब्राह्मणोंका पाप लगा होगा। एक और सही। इसके पास पैसे तो काफी मालूम होते हैं।' धन्ना बीचमें ही बोल उठा 'तुमलोगोंको कुछ भी चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। एक ही चोटमें काम तमाम! बस, जरा उसे नींद तो आ जाय।' हाराणने कहा-'चुप रह! इतना चिल्लाता क्यों है? सुन लेगा तो कहीं सरक निकलेगा।' धन्नाने कहा, 'भागेगा कहाँ। इन हाथोंमें पड़कर भाग निकलना बड़ा आसान है न।' बातचीत सुनकर रामहरिजीके तो प्राण सूख गये। मनमें आया, भाग निकलूँ पर धन्नाके शब्द याद आ गये। सोचा, वह सब ओर देखता होगा। फिर, इस अनजान जंगलमें भागकर भी कहाँ जाऊँगा? वे दुष्ट तुरंत ही ढूँढ़कर मार डालेंगे। बाहर अब भी मूसलधार वृष्टि हो रही थी सड़को
तेजी तो कुछ घटी थी, परंतु अभी और सब बातें वैसी
ही थीं घरके बीचसे अन्धकारमय आकाशका कुछ भाग
दीख पड़ता था। क्षण-क्षणमें बिजली कौंधती थी औरसाथ ही दूरसे वज्रपातकी भीषण ध्वनि सुनायी पड़ती श्रीमानो रामहरिजीके लिये मृत्युका समाचार लेकर आ रही हो। पास ही एक कदम्बका वृक्ष था। उसकी पुष्पित शाखाओंसे स्निग्ध सुगन्ध लेकर बीच-बीचमें ठंडे | पवनका झोंका आ जाता था। रामहरिजीको अपने श्यामसुन्दरके मन्दिरके बगलका कदम्ब-वृक्ष याद आ गया। अहा! उसमें भी हजारों फूल खिले होंगे और | वर्षासिक्त वायु उनकी स्निग्ध गन्धको भी इसी प्रकार सब ओर बिखेर रहा होगा। मेरी धर्मपत्नी बच्चेको हृदयसे लगाकर निद्रामें मेरे लौटनेका स्वप्न देख रही होगी। और मेरे प्राणधन श्यामसुन्दर मेरी बड़ी साधनाके, महती आकाक्षाके स्वामी श्यामसुन्दर हाथ आज यदि मैं इस सुनसान जंगलमें डाकुओंके हाथों मारा गया तो मेरे श्यामसुन्दर फिर तुम्हारी पूजा कौन करेगा? मैं जिन ब्राह्मणोंको पूजाका भार दे आया था, मेरी अनुपस्थिति में पता नहीं, वे सुचारुरूपसे तुम्हारी पूजा कर रहे हैं या नहीं हा श्यामसुन्दर तुम तो पाषाणको मूर्तिमात्र नहीं हो तुम्हारे उस नीलकमल से साँवरे शरीरमें अनन्त करुणमयी दिव्य चिच्छति नित्य विराजमान है और निरन्तर आर्त प्राणियोंका कल्याण कर रही है। बोलो, बोलो, मेरे श्यामसुन्दर! तुम्हारे इस शरणागत दीन ब्राह्मणका यह नश्वर शरीर इस अज्ञात अरण्यमें क्या सियार कुत्तोंके खानेकै काममें आयेगा?' रामहरिजीके नेत्रोंसे आँसुओंकी धारा यह चली। वे उन्मत्तकी भाँति श्यामसुन्दर ! श्यामसुन्दर!' कहकर करुण क्रन्दन करने लगे।

बगलकी कोठरी में तीनकौड़ी और हाराण बातचीत में लगे थे। उनकी नजर ब्राह्मणपर लगी थी, पर थकावटके कारण इन्हें बीच-बीचमें जंभाइयों आ रही थीं आखिर उन लोगोंने यही निश्चय किया कि धन्नाके हाथसे यह काम नहीं कराना है। हाराणने कहा, 'तब मैं ही काम निपटाऊँगा। देखें ब्राह्मण सो गया या नहीं कोई आवाज तो नहीं सुनायी देती।' यह कहकर हाराणने जाकर देखा। रामहरिजी उस समय प्राणभयसे व्याकुल हुए चादर ओढ़े दुबके पड़े थे। मन-ही-मन श्यामसुन्दरकी करुण प्रार्थना चल रही थी। हाराणने देखकर धीरेसे कहा-'तीनकौड़ी नींद तो आ गयी है, फिर देर क्यकरें।' तीनकौड़ी बोला-'शायद जागता हो, कुछ और ठहर जाओ।"

रामहरिजी तो सुन-सुनकर सूखे जा रहे थे सोच | रहे थे, अब मृत्युसे बचनेका कोई उपाय नहीं है। प्रभु यह क्या हो गया? अकस्मात् ब्राह्मणमें मानो असीम बल आ गया। कदम्बका वृक्ष घरमें चूल्हेके पास ही था। बरसात के कारण उसमें पत्ते खूब आ गये थे। पेड़ बहुत घना और विशाल था। पत्तोंकी आड़में छिपनेको बहुत जगह थी। रामहरिजी चादर छोड़कर धीरे-धीरे उठे और तुरंत पेड़ पर चढ़कर छिप गये।

इधर ताड़ी (शराब) पीते-पीते नशेमें ही हाराणने कहा, 'धन्ना, आज तुझे खाँडा नहीं चलाना पड़ेगा। यह ब्रह्मयज्ञ मैं ही करूंगा। मालूम होता है अब गहरी नींद में है।' मन ही मन झल्लानेपर भी धन्ना कुछ बोला नहीं। हाराणने धन्नाके हाथसे खाँडा लेकर धार देखी। फिर तीनों मिलकर ताड़ी पर ताड़ी पीने लगे। नशा बढ़ने लगा। धन्ना कुछ ज्यादा पी गया। उसे नींद आने लगी। झूमता हुआ वह बाहर निकला और जिस तख्तेपर रामहरिजी सोये थे, जाकर उन्होंकी चादर ओढ़कर वहीं पड़ गया! नशेमें उसे अपनी करनीका कुछ भी पता नहीं था। वह बेहोश था। तीनकौड़ी और हाराणने हरी मिर्च और सत्तूकी चाट मुँहमें लेकर फिर ताड़ी चढ़नी शुरू की। अब पूरा नशा हो गया!!

झूमता हुआ हाराण धार दिये हुए खाँडेको लेकर बगलकी कोठरीमें पहुँचा। रामहरिजी कदम्बपर चढ़े कोठरीमें रखी हुई लालटैनकी मामूली रोशनीके उजियाले में भयचकित नेत्रोंसे देख रहे थे और मन-ही-मन श्यामसुन्दरको पुकार रहे थे।

हाराण और तीनकौड़ीने समझा- तख्तेपर ब्राह्मण सोया है। नशेमें चूर थे। हाराणने पूरा जोर लगाकर खाँडा चलाया और उसी क्षण धन्नाका सिर धड़से अलग होकर धड़ामसे नीचे गिर पड़ा।

अब जो दृश्य उपस्थित हुआ, उसे याद करते ही हृदय काँपता है। हाराण और तीनकौड़ीने भयभरी आँखोंसे देखा-'अरे, यह तो धन्नाका सिर है।' बस, उसी क्षण सारा नशा उतर गया और खाँडेको दूर फेंककर हाराणोंअपने प्यारे पुत्र धन्नाके सिरको छातीसे लगाकर पागलकी भाँति रोने लगा। तीनकौड़ीने इधर-उधर ब्राह्मणको बहुत खोजा, पर कहीं पता नहीं लगा। रामहरिजी तो प्राणभयसे अत्यन्त व्याकुल होकर श्यामसुन्दरका स्मरण करने लगे। उस समय उनका स्मरण किन-किन भावोंसे होता होगा, इसका अनुमान वैसी स्थितिमें स्वयं पड़े बिना नहीं लगाया जा सकता। धन्नाके शवको लेकर जब वे लोग टूटे घरसे निकलकर जंगलमें चले गये, तब ब्राह्मणके प्राणोंमें प्राण आये। तबतक झड़-वृष्टि बहुत कम हो गयी थी और रात भी थोड़ी ही शेष थी।ब्राह्मणदेवता धीरेसे पेड़से उतरे और इधर-उधर सतर्क दृष्टिसे देखते हुए घरसे निकलकर चल दिये। भगवान्‌की कृपासे उन्हें रास्ता मिल गया। हाराण और तीनकौड़ी दूसरी ओर गये थे। इसलिये इनपर कोई विपत्ति नहीं आयी।

कुछ दूर धीरे-धीरे चलकर फिर रामहरिजी दौड़े और पक्की सड़कपर पहुँच गये। उस समय कई लोगोंका और भी साथ हो गया। रामहरिजी भगवान् श्यामसुन्दरका मन-ही-मन गुण गाते हुए सीधे घर पहुँचे। बस, तबसे उनका जीवन भगवान्के भजनमें ही बीता।



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haaraan aur teenakauड़eene samajhaa- takhtepar braahman soya hai. nashemen choor the. haaraanane poora jor lagaakar khaanda chalaaya aur usee kshan dhannaaka sir dhada़se alag hokar dhada़aamase neeche gir pada़aa.

ab jo drishy upasthit hua, use yaad karate hee hriday kaanpata hai. haaraan aur teenakauड़eene bhayabharee aankhonse dekhaa-'are, yah to dhannaaka sir hai.' bas, usee kshan saara nasha utar gaya aur khaandeko door phenkakar haaraanonapane pyaare putr dhannaake sirako chhaateese lagaakar paagalakee bhaanti rone lagaa. teenakauड़eene idhara-udhar braahmanako bahut khoja, par kaheen pata naheen lagaa. raamaharijee to praanabhayase atyant vyaakul hokar shyaamasundaraka smaran karane lage. us samay unaka smaran kina-kin bhaavonse hota hoga, isaka anumaan vaisee sthitimen svayan pada़e bina naheen lagaaya ja sakataa. dhannaake shavako lekar jab ve log toote gharase nikalakar jangalamen chale gaye, tab braahmanake praanonmen praan aaye. tabatak jhada़-vrishti bahut kam ho gayee thee aur raat bhee thoda़ee hee shesh thee.braahmanadevata dheerese peda़se utare aur idhara-udhar satark drishtise dekhate hue gharase nikalakar chal diye. bhagavaan‌kee kripaase unhen raasta mil gayaa. haaraan aur teenakauda़ee doosaree or gaye the. isaliye inapar koee vipatti naheen aayee.

kuchh door dheere-dheere chalakar phir raamaharijee dauda़e aur pakkee sada़kapar pahunch gaye. us samay kaee logonka aur bhee saath ho gayaa. raamaharijee bhagavaan shyaamasundaraka mana-hee-man gun gaate hue seedhe ghar pahunche. bas, tabase unaka jeevan bhagavaanke bhajanamen hee beetaa.

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दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना

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रिध्धी सिध्धी लेके आओ गणराजा,
नींद से अब जाग बन्दे,
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ॐ जय श्री विश्वकर्मा,
प्रभु जय श्री विश्वकर्मा,
राधे मान जा,
खिला दे दही माखन,
देने वाली मैया भिखारी सारी दुनिया,
भिखारी सारी दुनिया, भिखारी सारी