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श्रीजानकीवरशरणजी महाराज की मार्मिक कथा
श्रीजानकीवरशरणजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीजानकीवरशरणजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीजानकीवरशरणजी महाराज]- भक्तमाल


फैजाबाद जिलेके कलाफरपुर नामक ग्राममें मेहरवान मिश्र नामक एक सरयूपारी ब्राह्मणके घर इनका जन्म हुआ था। छोटी उम्र में ही ये संस्कृत और फारसीके उद्भट विद्वान् हो गये। युवावस्थामें माता-पिताने विवाह कर दिया। अनन्य शिवाराधनके फलस्वरूप श्रीयुगलानन्यशरण स्वामीने प्रसन्न होकर इन्हें 'श्रीसीताराम' इस युगल मन्त्रकी दीक्षा दी। दीक्षाके बाद काशीमें रहकर इन्होंने सांख्यादि षड्दर्शनोंका विशेष अध्ययन किया। उसी समय इनका मन गृहादिसे बिलकुल हट गया। घर छोड़कर अनन्यभावसे भजन करते हुए इन्हें शीघ्र ही भगवत्कृपाकी प्राप्ति हो गयी।

थोड़े दिनों बाद गुरु आज्ञासे ये चित्रकूट चले गये और वहाँ गुरुसेवा करने लगे वहाँसे श्रीनीलाबलधाम, कामाक्षा आदि तीर्थस्थानोंमें होते हुए फिर श्रीअयोध्याजी आ गये। फिर काशीमें एक वर्ष रहकर तपस्या की। वहाँसे रीवाँ गये, वहाँके दीवानद्वारा उपस्थित की हुई नाना भोगसामग्रीसे घबराकर भागकर चित्रकूट चले गये। चित्रकूटसे बंगाल के रामपुर, चिड़ा और मुर्शिदाबाद होते हुए फिर अवधमें आ गये। इनका त्याग तो अद्वितीय था ही चिकीरवाड़ीके महन्त और मुर्शिदाबादमें गोपालदास महन्तने इन्हें महन्ती देनी चाही परंतु ये तुरंत |वहाँसे चुपके से खिसक गये।

अवधसे सुलतानपुर जाकर वहाँ कई मास रहे। वहाँसे कहीं जाते समय ये एक भयंकर जंगलमें जा पहुँचे। जंगलमें ही रात्रि हो गयी। ये एक वृक्षके नीचे भूखे ही पड़ रहे। उस समय लीलामयने सुन्दर बालकका रूप धारण करके इन्हें भोजन बनाकर खिलाया और तुरंत अदृश्य हो गये। गुरु आज्ञा पाकर फिर ये काशी, हरिद्वार, गङ्गोत्तरी, बदरिकाश्रम आदिकी यात्रा करते हुए अवध आये। इसके बाद तीन बार जनकपुरी गये और वृन्दावन एवं पंजाब प्रान्तकी यात्रा की। जनकपुरीमें इन्हें अतिशय सुखकी प्राप्ति हुई। अतः एक बार फिर बदरिकाश्रमकी यात्रा करके पुनः मिथिलापुरीमें ही कुटी बनाकर रहने लगे।

श्रीमहाराजजीने अनेक जिज्ञासुओंको साधनमार्गमें अग्रसर किया तथा अनेकोंको भगवद्भजनमें प्रवृत्त किया। करुणा और उदारताके तो वे समुद्र ही थे। भगवान्के प्रायः सभी गुण भक्तमें उतर आये थे इस प्रकार अपनी दिव्यलीलाओंसे धरतीतलको पवित्र करते हुए संवत् 1958 वि0 की माघी अमावस्याको श्रीमहाराजजी सरयूतटपर देह त्यागकर श्रीसाकेतधाम पधार गये।



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phaijaabaad jileke kalaapharapur naamak graamamen meharavaan mishr naamak ek sarayoopaaree braahmanake ghar inaka janm hua thaa. chhotee umr men hee ye sanskrit aur phaaraseeke udbhat vidvaan ho gaye. yuvaavasthaamen maataa-pitaane vivaah kar diyaa. anany shivaaraadhanake phalasvaroop shreeyugalaananyasharan svaameene prasann hokar inhen 'shreeseetaaraama' is yugal mantrakee deeksha dee. deekshaake baad kaasheemen rahakar inhonne saankhyaadi shaddarshanonka vishesh adhyayan kiyaa. usee samay inaka man grihaadise bilakul hat gayaa. ghar chhoda़kar ananyabhaavase bhajan karate hue inhen sheeghr hee bhagavatkripaakee praapti ho gayee.

thoda़e dinon baad guru aajnaase ye chitrakoot chale gaye aur vahaan guruseva karane lage vahaanse shreeneelaabaladhaam, kaamaaksha aadi teerthasthaanonmen hote hue phir shreeayodhyaajee a gaye. phir kaasheemen ek varsh rahakar tapasya kee. vahaanse reevaan gaye, vahaanke deevaanadvaara upasthit kee huee naana bhogasaamagreese ghabaraakar bhaagakar chitrakoot chale gaye. chitrakootase bangaal ke raamapur, chida़a aur murshidaabaad hote hue phir avadhamen a gaye. inaka tyaag to adviteey tha hee chikeeravaada़eeke mahant aur murshidaabaadamen gopaaladaas mahantane inhen mahantee denee chaahee parantu ye turant |vahaanse chupake se khisak gaye.

avadhase sulataanapur jaakar vahaan kaee maas rahe. vahaanse kaheen jaate samay ye ek bhayankar jangalamen ja pahunche. jangalamen hee raatri ho gayee. ye ek vrikshake neeche bhookhe hee pada़ rahe. us samay leelaamayane sundar baalakaka roop dhaaran karake inhen bhojan banaakar khilaaya aur turant adrishy ho gaye. guru aajna paakar phir ye kaashee, haridvaar, gangottaree, badarikaashram aadikee yaatra karate hue avadh aaye. isake baad teen baar janakapuree gaye aur vrindaavan evan panjaab praantakee yaatra kee. janakapureemen inhen atishay sukhakee praapti huee. atah ek baar phir badarikaashramakee yaatra karake punah mithilaapureemen hee kutee banaakar rahane lage.

shreemahaaraajajeene anek jijnaasuonko saadhanamaargamen agrasar kiya tatha anekonko bhagavadbhajanamen pravritt kiyaa. karuna aur udaarataake to ve samudr hee the. bhagavaanke praayah sabhee gun bhaktamen utar aaye the is prakaar apanee divyaleelaaonse dharateetalako pavitr karate hue sanvat 1958 vi0 kee maaghee amaavasyaako shreemahaaraajajee sarayootatapar deh tyaagakar shreesaaketadhaam padhaar gaye.

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जय राधे राधे, राधे राधे
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