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'अभी हमने जी भरके देखा नहीं है!'

पंक्तियाँ चाहे जिस गीतकी हों, मेरी जीभपर आकर समय- समयपर मेरे हृदयको झकझोरती रहती हैं। बात २ दिसम्बर सन् २००७ ई० की है। रात ११बजेका समय, आकाश घनाच्छादित। धीरे-धीरे वर्षा प्रारम्भ हो गयी। मैं स्कूटरसे अपने पति और दशवर्षीय पुत्रके साथ घर आ रही थी। वर्षासे सड़क गीली होनेके कारण स्कूटर फिसल गया। हम तीनों ही सड़कपर गिर गये। शायद नाम-जपके प्रभावके कारण मुझे और मेरे पुत्रको खरोंचतक नहीं आयी, किंतु मेरे पतिदेवकी जाँघमें हैण्डिल इतनी जोरसे लगा कि ये बेहोश हो गये। मैं और मेरा पुत्र किंकर्तव्यविमूढ़ थे। मैं आर्तभावसे अपने आराध्य प्रभु श्रीरामको पुकारनेके अतिरिक्त और कर भी क्या सकती थी? तेज वर्षा और सर्दीके कारण गाड़ियाँ धीमी होतीं, किंतु सहायता करनेका साहस किसीने नहीं किया। अचानक कोई (जिसे मैंने ठीकसे देखा भी नहीं) स्कूटरसे मेरे पास आकर रुका। मुझसे बिना कुछ पूछे मुझे सान्त्वना दी। उसने कहा-माताजी! आप बिलकुल चिन्ता न करें, इन्हें कुछ नहीं हुआ। ये बिलकुल ठीक हैं, यहाँ भींगनेसे इनकी तबियत खराब हो जायगी। मैं इन्हें सामने कॉलोनीमें पहुँचाये देता हूँ। यह कहकर उन्होंने मेरे पतिको स्पर्श किया। ये तुरंत होशमें आ गये। कहाँ तो तेज पानीकी वर्षा और मेरे हिलानेसे भी इन्हें होश नहीं आ रहा था और कहाँ उन्होंने इन्हें अपने स्कूटरपर बैठाया और घरतक छोड़ गये।कुछ देर बाद मैं भी उस कॉलोनीमें जा पहुँची। मैंने इन्हें उस कॉलोनी में जाकर ढूँढ़ा, किंतु लोगोंने बताया कि ऐसा दुर्घटनाग्रस्त कोई व्यक्ति वहाँ नहीं आया। मुझे उस महान् आत्मापर सन्देह होने लगा कि मैंने अनजान व्यक्तिके साथ अपने अबोध पुत्र और पतिको भेज दिया।

इसके थोड़ी ही देर बाद मुझे विदित हुआ कि उन्होंने दोनों लोगोंको सुरक्षित घर पहुँचा दिया था। मैं बादमें सोचती रही कि मैंने तो प्रभु श्रीरामको ही पुकारा था। सर्दी और वर्षाकी उस रातमें जब कोई भी सड़कपर रुककर सहायता के लिये तैयार नहीं था, खाली स्कूटर लाकर किसने और क्यों आकर मेरे सुहागकी रक्षा की। आज भी मुझे कष्ट इसी बातका है कि उन्होंने 'माताजी' सम्बोधनकर मुझे भ्रममें डाल दिया। यदि उन्होंने मुझे बहनजी कहा होता तो शायद मैं अपने जीवनभरकी साधना सार्थककर उन्हें पहचान लेती, किंतु 'सोइ जानइ जेहि देहु जनाई' के नियमके अनुसार सन्तोष करना पड़ता है।

अनुभव आजतकका यही है कि वे अनेक बार मेरे सामने आये, किंतु जब-जब वे मेरे पास मेरी सहायता करनेके लिये आये, अपनी सांसारिक दृष्टिके कारण मैं उन्हें पहचान न सकी। एक ही वेदना दिलमें दबाकर जी रही हूँ-'अभी हमने जी भरके देखा नहीं है।'

[ श्रीमती सरिताजी शुक्ला ]



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'abhee hamane jee bharake dekha naheen hai!'

panktiyaan chaahe jis geetakee hon, meree jeebhapar aakar samaya- samayapar mere hridayako jhakajhoratee rahatee hain. baat 2 disambar san 2007 ee0 kee hai. raat 11bajeka samay, aakaash ghanaachchhaadita. dheere-dheere varsha praarambh ho gayee. main skootarase apane pati aur dashavarsheey putrake saath ghar a rahee thee. varshaase sada़k geelee honeke kaaran skootar phisal gayaa. ham teenon hee sada़kapar gir gaye. shaayad naama-japake prabhaavake kaaran mujhe aur mere putrako kharonchatak naheen aayee, kintu mere patidevakee jaanghamen haindil itanee jorase laga ki ye behosh ho gaye. main aur mera putr kinkartavyavimooढ़ the. main aartabhaavase apane aaraadhy prabhu shreeraamako pukaaraneke atirikt aur kar bhee kya sakatee thee? tej varsha aur sardeeke kaaran gaada़iyaan dheemee hoteen, kintu sahaayata karaneka saahas kiseene naheen kiyaa. achaanak koee (jise mainne theekase dekha bhee naheen) skootarase mere paas aakar rukaa. mujhase bina kuchh poochhe mujhe saantvana dee. usane kahaa-maataajee! aap bilakul chinta n karen, inhen kuchh naheen huaa. ye bilakul theek hain, yahaan bheenganese inakee tabiyat kharaab ho jaayagee. main inhen saamane kaॉloneemen pahunchaaye deta hoon. yah kahakar unhonne mere patiko sparsh kiyaa. ye turant hoshamen a gaye. kahaan to tej paaneekee varsha aur mere hilaanese bhee inhen hosh naheen a raha tha aur kahaan unhonne inhen apane skootarapar baithaaya aur gharatak chhoda़ gaye.kuchh der baad main bhee us kaॉloneemen ja pahunchee. mainne inhen us kaॉlonee men jaakar dhoondha़a, kintu logonne bataaya ki aisa durghatanaagrast koee vyakti vahaan naheen aayaa. mujhe us mahaan aatmaapar sandeh hone laga ki mainne anajaan vyaktike saath apane abodh putr aur patiko bhej diyaa.

isake thoda़ee hee der baad mujhe vidit hua ki unhonne donon logonko surakshit ghar pahuncha diya thaa. main baadamen sochatee rahee ki mainne to prabhu shreeraamako hee pukaara thaa. sardee aur varshaakee us raatamen jab koee bhee sada़kapar rukakar sahaayata ke liye taiyaar naheen tha, khaalee skootar laakar kisane aur kyon aakar mere suhaagakee raksha kee. aaj bhee mujhe kasht isee baataka hai ki unhonne 'maataajee' sambodhanakar mujhe bhramamen daal diyaa. yadi unhonne mujhe bahanajee kaha hota to shaayad main apane jeevanabharakee saadhana saarthakakar unhen pahachaan letee, kintu 'soi jaanai jehi dehu janaaee' ke niyamake anusaar santosh karana pada़ta hai.

anubhav aajatakaka yahee hai ki ve anek baar mere saamane aaye, kintu jaba-jab ve mere paas meree sahaayata karaneke liye aaye, apanee saansaarik drishtike kaaran main unhen pahachaan n sakee. ek hee vedana dilamen dabaakar jee rahee hoon-'abhee hamane jee bharake dekha naheen hai.'

[ shreematee saritaajee shukla ]

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