बात सन् १९९०ई० के अप्रैलके प्रथम सप्ताहकी है । चैत्रके नवरात्र चल रहे थे। उस समय मेरी उम्र लगभग २२ वर्षकी थी, एक ४ माहके पुत्रकी माँ भी मैं तबतक बन चुकी थी। कैलादेवी मेरे पीहरकी कुलदेवी हैं, उस दिन चैत्र नवरात्रिकी सप्तमीका दिन था। मेरे पड़ोसमें रहनेवाले आगराके एक परिवारमेंसे मेरी हमउम्र एक महिलाने मुझसे कहा कि 'कीर्ति! हम कल कैलादेवी जा रहे हैं, चल तू भी साथ चल ।' उन दिनों मैं जयपुर जिलेके फुलेरा कस्बेमें रहती थी और यहाँ स्थानीय बालिका विद्यालय में अध्यापिकाके पदपर कार्यरत थी। मैंने सहज ही उनसे कहा कि 'भाभी! मैं तो मम्मीके यहाँ जब भी करोली जाती हूँ। उस समय ही कैलादेवी भी जाकर आती हूँ। आप जायँ, मैं तो अभी नहीं चल सकती।'
यह बात सप्तमीकी थी। अगले दिन ही चैत्र माहकी दुर्गाष्टमी थी। वह परिवार माँ कैलादेवीके दर्शनोंके लिये चला गया और मैंने घरपर अपनी सासू माँके साथ अष्टमीका पूजन कर लिया। नवमीकी सुबह से ही मेरे चार माहके पुत्रको अचानक बहुत तेजउल्टी और दस्त होने लगे। मैं और मेरे पति बच्चेको जयपुरमें बच्चोंके उस समयके सबसे बड़े डॉक्टरको जो चाइल्ड स्पेशलिस्ट था, को दिखाकर लाये, परंतु लगातार तीन दिनोंतक नियमित दवा देनेके बाद भी मेरे पुत्रकी हालतमें कोई सुधार नहीं हुआ। चौथे दिन बालकके अत्यन्त गम्भीर अवस्थामें पहुँचनेपर मैं और मेरे पति पुत्रको लेकर दुबारा जयपुर जानेके लिये फुलेरा रेलवे स्टेशनपर पहुँचे। वहाँ पहुँचनेपर पता चला कि जयपुर जानेवाली ट्रेन पाँच घण्टे लेट है। हम दोनों पति पत्नी बच्चेको पल-पल गम्भीर अवस्थामें जाते हुए देख रहे थे। जयपुर जानेके लिये फुलेरा रेलवे स्टेशनपर हम दोनों पति-पत्नी मृतप्राय पुत्रको गोदमें लिये चुपचाप रेलवे स्टेशनसे बाहर आकर खड़े हो गये और सोचने लगे कि अब क्या करें; क्योंकि उस समय बसोंका आवागमन भी जयपुर- फुलेराके मध्य नगण्य ही था ।
अचानक धोती-कुर्ता पहने हुए एक लम्बा-चौड़ा अनजान व्यक्ति, जो वेशभूषासे ग्रामीण प्रतीत हो रहा था; उसने पीछेसे आकर मेरे कन्धेपर हाथ रखा। मैंनेपीछे घूमकर देखा तो वह मुझसे बोला कि 'क्या हुआ। जयपुर जाना था ! गाड़ी तो पाँच घण्टे देरीसे आयेगी। अब क्या करोगी? तुम्हारा पुत्र तो मृतप्राय है।' मैंने बड़ी कातर दृष्टिसे उसकी ओर देखा, जैसे एक बेबस माँ अपनी संतानकी रक्षाके लिये याचना कर रही हो। वह व्यक्ति हम दोनोंसे बोला 'आओ मेरे साथ' मैं और मेरे पति सम्मोहित से उस व्यक्तिके पीछे-पीछे चल दिये। वह हमें गलियों में घुमाता हुआ गलीके एक छोटे-से घरमें ले गया। वहाँ जाकर हमने देखा कि उस घरमें माँका दरबार सजा हुआ है और एक सम्भ्रांत महिला चेहरेपर बड़ी लाल बिन्दी लगाये माँकी पूजा करनेमें तल्लीन थी। ज्यों ही मैंने उस कक्षकी दहलीजके भीतर कदम रखा तो अचानक वह शिकायती लहजेमें गरजी और बोली 'अब यहाँ क्या लेने आयी है? तू तो जब अपनी माँके घर जाती है, तब हमेशा ही कैलादेवीके दर्शन करने जाती है तो अब यहाँ क्या लेने आयी है।' 1 उसके इतना कहते ही मुझे सप्तमीकी वह घटना याद आ गयी, जो भाभीजीको कैलादेवी जानेके लिये मना किया था। उस समय मैंने यही शब्द बोले थे।
तुरंत मुझे समझमें आ गया कि माँने ही मुझे शिक्षा देनेके लिये मेरे पुत्रको इस हालतमें पहुँचा दिया है। मैंने उस महिलाके चरणोंमें अपने पुत्रको रखकर रोते हुए कहा- 'माँ! अब इसे बचा लो, चार दिनसे यह नन्हा बालक न तो मेरा दूध ही पी रहा है और न दवा पचा पा रहा है, न सो ही रहा है, बस जोर जोरसे दिन-रात रोये जा रहा है। और उल्टी-दस्त लगातार कर रहा है।' तब वह महिला मुझसे बोली 'इसको बचानेके लिये तू क्या कर सकती है ?' मैंने कहा 'जो आप कहेंगी, वही करूँगी, तब उसने मेरे पतिसे कहा बाहर जाकर एक नारियल और अगरबत्ती ले आओ मेरे पति नारियल-अगरबत्ती लेने बाहर गये। इतनी देरमें उस महिलाने बालकको गोदमें उठा लिया। मेरा पुत्र जो पिछले चार दिनसे तनिक भी नहीं सोया था, उसकी गोदमें जाते ही चुप होकर सोगया। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सिर झुकाये बैठी रही।
तबतक मेरे पति नारियल, अगरबत्ती और प्रसाद लेकर आ गये। अगरबत्ती जलाकर वह महिला मुझसे बोली 'ले! इसे अपना दूध पिला दे, जो बालक चार माहकी उम्र में चार दिनसे मेरे दूधकी तरफ देखकर मुँह फेर लेता था, उस महिलाके कहते ही मेरी गोदमें सोते हुए ही दूध पीने लगा। जब बालकने पेटभर दूध पी लिया, और लगभग ४० मिनटके समयमें कोई उल्टी-दस्त भी नहीं हुआ। तब उस महिलाने मुझे दरबारसे उठाकर थोड़ी भभूत दी और बोली 'लो! तुम खाओ और बच्चेकी जीभपर भी रखकर चटा दो। थोड़ा उसके शरीरपर लगा दो और बाकी शामको इसके शरीरपर लगा देना। और अब घर जाकर आराम से सो जाओ। तुम लोग पिछले चार दिनोंसे सोये नहीं हो।' वास्तविकता भी यही थी; हम एक पलको भी लगातार पिछले दिनोंसे नहीं सोये थे। जब हम फुलेरासे पुत्रको सोता हुआ लेकर घर पहुँचे तो मेरी सासू माँ बालकको चुप देखकर घबरा गय; क्योंकि उसकी हालतके कारण उसके बचनेकी उम्मीद हम सब छोड़ चुके थे। घर पहुँचते ही सारी घटना हमने घरपर बतायी, तो मेरी सासू माँको भी हमारी बातका विश्वास नहीं हो पा रहा था, पर सच सामने था, बालक निर्विकार भावसे सो रहा था। हम सब लोग भी अब थोड़ा सो गये।
दोपहरमें मेरे विद्यालयके स्टॉफको पता चला कि मेरा पुत्र रातको बहुत गम्भीर हालतमें था। जब वे लोग मेरे घर मेरे पुत्रका हाल जानने पहुँचे तो हमें सोता हुआ पाया, तब सब बोले 'हमने तो सुना था कि बालक बहुत गम्भीर अवस्थामें है।' मैंने उन्हें सुबह ७ बजेसे लेकर अबतककी सारी बातें बतायीं, तो वे सब बोले कि यहाँ इस कस्बेमें ऐसी कोई महिला नहीं है और ना ही कोई ऐसा स्थान है। वह माँका दरबार मुझे मेरे विद्यालयके निकट मिला था। दो दिन बाद जब मैं विद्यालय गयी तो सब मुझे उसस्थानको दिखानेका आग्रह करने लगे, जब मैं अपने साथ अपने दो साथियोंको लेकर उस स्थानको दिखाने चली तो ना तो मुझे वे गलियाँ मिलीं और न वह घर ही मिला, न वह महिला एवं पुरुष ही; जो हमें वहाँतक लेकर गया था। लोगोंसे पूछा तो वे सब मुझे कहने लगे कि आपने कोई सपना देखा होगा। यहाँ इस कस्बेमें ऐसा कुछ भी नहीं है। परंतु वास्तविकता तो मैं जानती ही थी। वे मातेश्वरी तो माँ हैं, जगत्जननी हैं, यह सारा संसार ही उनकी माया है। वे अपनी माया कभी भी, कहीं भी दिखा सकती हैं। यह माँका ही चमत्कार और उनकी कृपा थी कि मेरेसे क्रुद्ध होकर मुझे सजा भी दे दी और दया आते ही तुरंत मेरे ऊपर अपनी कृपाकी वर्षा भी कर दी।
निरंतर मेरे ऊपर माँकी अपार कृपा बरस रही है। और अक्सर वे मुझे अपनी कृपाकी अनुभूति करवाती ही रहती हैं। [आचार्या श्रीमती कीर्तिजी शर्मा]
baat san 1990ee0 ke aprailake pratham saptaahakee hai . chaitrake navaraatr chal rahe the. us samay meree umr lagabhag 22 varshakee thee, ek 4 maahake putrakee maan bhee main tabatak ban chukee thee. kailaadevee mere peeharakee kuladevee hain, us din chaitr navaraatrikee saptameeka din thaa. mere pada़osamen rahanevaale aagaraake ek parivaaramense meree hamaumr ek mahilaane mujhase kaha ki 'keerti! ham kal kailaadevee ja rahe hain, chal too bhee saath chal .' un dinon main jayapur jileke phulera kasbemen rahatee thee aur yahaan sthaaneey baalika vidyaalay men adhyaapikaake padapar kaaryarat thee. mainne sahaj hee unase kaha ki 'bhaabhee! main to mammeeke yahaan jab bhee karolee jaatee hoon. us samay hee kailaadevee bhee jaakar aatee hoon. aap jaayan, main to abhee naheen chal sakatee.'
yah baat saptameekee thee. agale din hee chaitr maahakee durgaashtamee thee. vah parivaar maan kailaadeveeke darshanonke liye chala gaya aur mainne gharapar apanee saasoo maanke saath ashtameeka poojan kar liyaa. navameekee subah se hee mere chaar maahake putrako achaanak bahut tejaultee aur dast hone lage. main aur mere pati bachcheko jayapuramen bachchonke us samayake sabase bada़e daॉktarako jo chaaild speshalist tha, ko dikhaakar laaye, parantu lagaataar teen dinontak niyamit dava deneke baad bhee mere putrakee haalatamen koee sudhaar naheen huaa. chauthe din baalakake atyant gambheer avasthaamen pahunchanepar main aur mere pati putrako lekar dubaara jayapur jaaneke liye phulera relave steshanapar pahunche. vahaan pahunchanepar pata chala ki jayapur jaanevaalee tren paanch ghante let hai. ham donon pati patnee bachcheko pala-pal gambheer avasthaamen jaate hue dekh rahe the. jayapur jaaneke liye phulera relave steshanapar ham donon pati-patnee mritapraay putrako godamen liye chupachaap relave steshanase baahar aakar khada़e ho gaye aur sochane lage ki ab kya karen; kyonki us samay basonka aavaagaman bhee jayapura- phuleraake madhy nagany hee tha .
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turant mujhe samajhamen a gaya ki maanne hee mujhe shiksha deneke liye mere putrako is haalatamen pahuncha diya hai. mainne us mahilaake charanonmen apane putrako rakhakar rote hue kahaa- 'maan! ab ise bacha lo, chaar dinase yah nanha baalak n to mera doodh hee pee raha hai aur n dava pacha pa raha hai, n so hee raha hai, bas jor jorase dina-raat roye ja raha hai. aur ultee-dast lagaataar kar raha hai.' tab vah mahila mujhase bolee 'isako bachaaneke liye too kya kar sakatee hai ?' mainne kaha 'jo aap kahengee, vahee karoongee, tab usane mere patise kaha baahar jaakar ek naariyal aur agarabattee le aao mere pati naariyala-agarabattee lene baahar gaye. itanee deramen us mahilaane baalakako godamen utha liyaa. mera putr jo pichhale chaar dinase tanik bhee naheen soya tha, usakee godamen jaate hee chup hokar sogayaa. main kinkartavyavimoodha़ sir jhukaaye baithee rahee.
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nirantar mere oopar maankee apaar kripa baras rahee hai. aur aksar ve mujhe apanee kripaakee anubhooti karavaatee hee rahatee hain. [aachaarya shreematee keertijee sharmaa]