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'पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप'

मैं अपनी सयानी कन्याकी शादीके लिये बेचैन था । पत्नीकी फटकार और दान-दहेजकी भीषणताके बीच पिसा जा रहा था। कोई उपाय न सूझता था। जहाँ जाता, भारी माँगके कारण विफल होकर लौट आता था।

एक बार तो किंकर्तव्यविमूढ़ बनकर बैठ गया, किंतु पत्नीने पुनः उपालम्भ दिया और कहा कि क्या इस वर्ष भी शादी न होगी ? मेरे मुँहसे सहसा निकल पड़ा कि 'अब संकटमोचन जानें।' वह झुंझलाती चली गयी- 'बड़े संकटमोचनपर विश्वास करनेवाले बने हैं। हाथ-पाँव समेटकर बैठ जानेसे संकटमोचन शादी करा देंगे।' सयानी लड़कीकी शादी में उदासीनता उसे बेहद खल रही थी।

मैंने पूछ-ताछकर कर्तव्यशीलता तो अपनायी, किंतु बड़ी मोटी माँगके आगे बुद्धि चकरा जाती थी और मेरी गतिमति ठप्प पड़ जाती। पुनः पत्नीने ताना मारा - 'कहाँ गये आपके संकटमोचन ?'

उस दिन उदास हो मैंने संकटमोचनकी मूर्तिके सामने एकान्तमें करुणार्द्र होकर कातर प्रार्थना की 'भगवन्! हमारा धर्म कैसे निभेगा, लड़कीकी शादी कैसे होगी ? आप ही शरण हैं।' मेरी आँखें गीली थीं। पत्नीने इसे नखड़ा समझा, किंतु मैंने अपनेको सँभालते हुए कहा—' भगवान् संकटहरण हमारी प्रार्थना अवश्य सुनेंगे।'

एक दिन सोते समय चिन्ताग्रस्त हो पुनः करुण याचना की। 'प्रभु ! हमारी धर्मरक्षा आपके सिवा कौन कर सकता है, आप ही शरण्य हैं।' यही चिन्तन करते-करते मैं सो गया और स्वप्नमें देखा कि एक साधु सामने खड़ा है और कह रहा है—'तुम जहाँ दो दिन पहले गये थे, वहाँ जाओ।'मैं जगा तो देखा कि सबेरा हो गया है। मेरे साथ मेरा सबसे छोटा बच्चा सोया था।

मैंने नित्यक्रियाकर 'संकटमोचन'का पाठ किया और बिना पत्नीसे कहे-सुने पहलेवाले उसी स्थानपर गया, जहाँसे दुत्कार मिली थी। किंतु इस बार वहाँ बड़ी आवभगत हुई और उन लोगोंने स्वयं कह दिया कि शादी अब आपके यहाँ ही होगी-कहीं अन्यत्र नहीं, किसी भी शर्त पर नहीं। शादी तय हो गयी। मैं अपने घर लौट आया और आते ही सबसे पहले अपने 'संकटमोचन' के सामने माथा टेका, धन्यवाद किया। संकटमोचनकी कृपाका ध्यानकर हृदय भर आया। पत्नीको समाचार सुनाया। वह भी प्रसन्न हो गयी।

अब तैयारीमें लगा, पर पैसेकी बहुत कमी थी । सामाजिक-धार्मिक नियमोंको निभाना भी आवश्यक होता है। समाजमें अपनी जो मान-प्रतिष्ठा होती है, उसका भी ध्यान रखना ही पड़ता है।

मैं पैसोंके जुगाड़के लिये जाने ही वाला था कि एक पूर्वपरिचित द्वारपर खड़े मिले। उन्होंने शादीका समाचार जान लिया था, अतः वे सहयोगार्थ आये थे। उन्होंने कहा 'शादी में जिस वस्तुकी आवश्यकता हो, आप निःसंकोच कहेंगे।' उन्होंने अपेक्षित सहायता दी। शादी हो गयी।

भगवान्‌ की कृपाका अनुभव पत्नीने भी किया। पवनपुत्र श्रीहनुमान्जीके विषयमें गोस्वामी तुलसीदासजीने ठीक ही कहा है कि

'पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।'

[ श्रीचतुर्भुज सहायजी ]



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'pavanatanay sankat haran mangal moorati roopa'

main apanee sayaanee kanyaakee shaadeeke liye bechain tha . patneekee phatakaar aur daana-dahejakee bheeshanataake beech pisa ja raha thaa. koee upaay n soojhata thaa. jahaan jaata, bhaaree maangake kaaran viphal hokar laut aata thaa.

ek baar to kinkartavyavimoodha़ banakar baith gaya, kintu patneene punah upaalambh diya aur kaha ki kya is varsh bhee shaadee n hogee ? mere munhase sahasa nikal pada़a ki 'ab sankatamochan jaanen.' vah jhunjhalaatee chalee gayee- 'bada़e sankatamochanapar vishvaas karanevaale bane hain. haatha-paanv sametakar baith jaanese sankatamochan shaadee kara denge.' sayaanee lada़keekee shaadee men udaaseenata use behad khal rahee thee.

mainne poochha-taachhakar kartavyasheelata to apanaayee, kintu bada़ee motee maangake aage buddhi chakara jaatee thee aur meree gatimati thapp pada़ jaatee. punah patneene taana maara - 'kahaan gaye aapake sankatamochan ?'

us din udaas ho mainne sankatamochanakee moortike saamane ekaantamen karunaardr hokar kaatar praarthana kee 'bhagavan! hamaara dharm kaise nibhega, lada़keekee shaadee kaise hogee ? aap hee sharan hain.' meree aankhen geelee theen. patneene ise nakhada़a samajha, kintu mainne apaneko sanbhaalate hue kahaa—' bhagavaan sankataharan hamaaree praarthana avashy sunenge.'

ek din sote samay chintaagrast ho punah karun yaachana kee. 'prabhu ! hamaaree dharmaraksha aapake siva kaun kar sakata hai, aap hee sharany hain.' yahee chintan karate-karate main so gaya aur svapnamen dekha ki ek saadhu saamane khada़a hai aur kah raha hai—'tum jahaan do din pahale gaye the, vahaan jaao.'main jaga to dekha ki sabera ho gaya hai. mere saath mera sabase chhota bachcha soya thaa.

mainne nityakriyaakar 'sankatamochana'ka paath kiya aur bina patneese kahe-sune pahalevaale usee sthaanapar gaya, jahaanse dutkaar milee thee. kintu is baar vahaan bada़ee aavabhagat huee aur un logonne svayan kah diya ki shaadee ab aapake yahaan hee hogee-kaheen anyatr naheen, kisee bhee shart par naheen. shaadee tay ho gayee. main apane ghar laut aaya aur aate hee sabase pahale apane 'sankatamochana' ke saamane maatha teka, dhanyavaad kiyaa. sankatamochanakee kripaaka dhyaanakar hriday bhar aayaa. patneeko samaachaar sunaayaa. vah bhee prasann ho gayee.

ab taiyaareemen laga, par paisekee bahut kamee thee . saamaajika-dhaarmik niyamonko nibhaana bhee aavashyak hota hai. samaajamen apanee jo maana-pratishtha hotee hai, usaka bhee dhyaan rakhana hee pada़ta hai.

main paisonke jugaada़ke liye jaane hee vaala tha ki ek poorvaparichit dvaarapar khada़e mile. unhonne shaadeeka samaachaar jaan liya tha, atah ve sahayogaarth aaye the. unhonne kaha 'shaadee men jis vastukee aavashyakata ho, aap nihsankoch kahenge.' unhonne apekshit sahaayata dee. shaadee ho gayee.

bhagavaan‌ kee kripaaka anubhav patneene bhee kiyaa. pavanaputr shreehanumaanjeeke vishayamen gosvaamee tulaseedaasajeene theek hee kaha hai ki

'pavan tanay sankat haran mangal moorati roopa.'

[ shreechaturbhuj sahaayajee ]

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