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'मेरो भैया कृष्ण कन्हैया'

मेरा गाँव बुलन्दशहर जिलेमें है। जब मैं कक्षा चार में पड़ती थी, तब मेरी हिन्दीकी कितावमें भगवान् श्रीकृष्णका एक पाठ था। उसमें एक चित्रमें श्रीकृष्ण सिरपर मोरपंख बाँधे, हाथमें लकुटी लिये ग्वाल बालोंके साथ गाय चरा रहे थे, वह चित्र मुझे बहुत अच्छा लगता था। उनकी सुन्दर छवि मेरे मनको बहुत लुभाती थी। समय बीतता गया, मेरा विवाह मथुरा जिलेके एक गाँवमें हो गया। हमारी जाति जादो ठाकुर हैं और हम अपनेको कृष्णका वंशज मानते हैं। जब कभी कथा होती है, तब यहाँ सभी गाते हैं- 'जादौ पति जादाँ राय सन्तन सदा सहाय याही पद गावे स्वामी परमानन्द। भजो राधे कृष्णा राधे कृष्णा 'राधे गोविन्द' इसलिये हम सब कृष्णको अपना इष्ट मानते हैं। मेरी सासजी एवं पति कृष्णके चरणोंमें विश्वास रखनेवाले तथा उनके परम भक्त हैं। वे क्या पूरा व्रजक्षेत्र ही कृष्णका दीवाना है। कृष्णकी भक्ति ब्रजवासियोंका जीवनाधार है।

अब मैं उस कृपामयी घटनाका उल्लेख करती हूँ, जिसने मुझे कृष्णके इतना नजदीक ला दिया। हम छः बहन-भाई थे। मैं सबसे बड़ी थी, बीचमें चार भाई थे; एक बहन सबसे छोटी थी। दो भाइयोंसे छोटा मेरा एक भाई था, नाम था 'चन्द्रशेखर', परंतु जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने अपना नाम चन्द्रशेखरसे बदलकर 'कृष्णशेखर' कर लिया; क्योंकि उसकी कृष्णमें भक्ति थी और उसे 'कृष्ण' यह नाम प्रिय लगता था। वह गीताको अपना आदर्श तथा भगवान् श्रीकृष्णको अपना इष्ट मानता था। वह गेहुँआ रंगका बहुत सुन्दर नाक-नक्शवाला, मेधावी, उदार, क्षमावान् एवं अच्छे संस्कारवाला हृष्ट-पुष्ट युवक था ! उसका ऐसा स्वभाव था कि कोई भी उससे एक बार मिलकर जीवनभर उसे नहीं भूलता था। वह बहुत ही दानशील था। किसीके लिये कुछ भीत्याग सकता था। गाँवके गरीब बच्चोंकी बहुत सहायता करता था। उसने खुर्जा पॉलीटेकनिकसे जूनियर इंजीनियरका डिप्लोमा किया था। उसमें एक खास आदत थी कि वह गलत बात सहन नहीं कर सकता था। वह मुझे बहुत प्यार करता था। जब-जब मैं गाँव जाती, तब किवाड़की ओटसे मुझे डरानेकी शैतानी करनेसे वह बाज न आता। उसकी एक-एक बात अनोखी थी। वह बहुत अच्छा लिखता था। बहुत अच्छा गाता था। खेत-खलिहानके काम भी बड़ी सरलतासे कर लेता। आत्मविश्वास उसके अन्दर कूट-कूटकर भरा था। वह पढ़ाईमें हमेशा प्रथम आता। अत्यन्त प्रतिभाशाली युवकोंमें उसकी गणना होती थी।

६ अप्रैल १९९९ ई० दिन मंगलवार दोपहर दो बजेकी बात है, गाँवकी एक लड़ाईका बीच-बचाव करनेमें उसे गोली लग गयी। झगड़ा शान्त करनेके | उद्देश्यसे वह झगड़े में कूद पड़ा और गोलीका शिकार हो गया। तब उसकी उम्र मात्र २८ सालकी थी। मेरे ऊपर तो शोकका पहाड़ टूट पड़ा। इतना प्रतिभाशाली भाई खोकर मैं विक्षिप्त सी हो गयी, हृदय हाहाकार करके रोता था। मैं पागल सी हो गयी और अन्दरतक टूट गयी, मुझे न दिनका पता चलता न रातका, खानेमें कोई स्वाद न रहा, मानो मिट्टी खा रही हूँ। मेरा मन हर समय उसकी यादोंमें खोया रहता। जीवन निराशासे भर गया। बच्चों एवं पति के सामने रोनेसे वे भी दुखी होते, इसलिये मैं अपना दुःख चुपचाप सहे जा रही थी किसीसे 1 मिलनेका, कहीं जाने-आनेका बिलकुल मन न होता, बस एकान्त और भाईकी याद-ये दो चीजें मुझे अच्छी लगती।

इस घटनाको बीते हुए तीन-चार महीने हो गये। थे, तभी रक्षाबन्धनका त्यौहार आया। उस दिन उसकी याद बहुत तीव्र हो गयी, जैसे कि वह मुझसे आज ही बिछुड़ा हो। रेडियो एवं टी०वी० पर भाई-बहनकेगाने आ रहे थे, जिन्हें सुन-सुनकर मेरी बार-बार ऑंखें भर आर्ती, आँसू टपकने लगते, रोकते रोकते भी हिचकी बँध जाती, पति एवं बच्चे मुझे देखकर बहुत उदास एवं दुखी थे, परंतु कोई कुछ नहीं कर सकता था। जो भाग्यमें लिखा है, वही होता है एवं भोगना पड़ता है।

शाम हुई, मैंने न कुछ खाया न पीया, मन ही न हुआ। सुबह जो बनाया था, बच्चोंने वही खा लिया। मैं छतपर जाकर पड़ गयी, १० बज गये थे। बच्चे भी पासवाली छतपर जाकर सो गये। मन्दिरमें ११ का घण्टा बजा, पर मुझे नींद ही न आ रही थी। सारा गाँव सो गया। शान्त शीतल उजली पूर्णिमाकी चाँदनी छिटकी हुई थी, आसमान साफ था। चाँद अपनी छटा बिखेर रहा था, पर मेरे हृदयमें अंधेरा था। मैं चुप-चुप सिसक रही थी और रोते-रोते चाँदको देखकर कह रही थी, 'चन्दा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे' यही कहते-कहते जाने कब मेरी आँख लग गयी, पता न चला, झपकी आते ही मैं क्या देखती हूँ कि भगवान् कृष्ण मेरी चारपाईके पास खड़े हैं। उनका चेहरा शेखर- जैसा है। सिरपर मोरपंख, कमरमें फेंटा, उसमें मुरली खुसी है, सुन्दर जड़ाऊ पीताम्बर हवामें लहरा रहा है। वैजयन्तीमाला गलेमें शोभा दे रही है, कुण्डल झिलमिल कर रहे हैं। उन्होंने प्यारसे मेरे सिरपर हाथ रखा और अमृत-सी वाणीमें बोले-'लो मैं आ गया, राखी बाँध, मैं बहुत खुश हुई। मैं बोली- 'राखी तो बाँध दूंगी, पर आप तो भगवान् हैं, मेरे शेखरको भी लेते आते, मुझे उसकी बहुत याद आती है।' वे बहुत मधुर हँसी हँसे, फिर बोले-'देख, मैं तेरा कृष्णशेखर ही तो हूँ।' मैंने देखा, सचमुच उनका चेहरा शेखर जैसा था। मैंने कहा-मेरे शेखरके तो पैदाइशी दो अँगूठे थे। मेरा इतना कहना था कि उन्होंने अपनासीधा हाथ उठाया और मैंने देखा, उनके सचमुच शेखर जैसे दो अँगूठे हैं। बिलकुल ऐसे ही जैसे शेखरके थे, मैंने दोनों हाथोंसे उनका हाथ पकड़कर आँखोंसे लगा लिया और बोली- 'तू कहाँ चला गया था, मैं तो रो-रोकर पागल हो गयी। देख, अब मुझे छोड़कर मत जाना, मैं तुझे कितना याद करती थी।' तब वे बड़ी मधुर वाणीमें बोले-'तुझे पता है, मैं ही तेरा कृष्णशेखर हूँ, रोना मत। चल, राखी बाँध दे।' मैंने तकियेके नीचेसे निकालकर राखी बाँध दी, उन्होंने दुबारा मेरे सिरपर हाथ रखा और उसी समय एक झटकेसे मेरी आँख खुल गयी। वहाँ कोई न था। चाँद हँस रहा था, चाँदनी खिल रही थी, मेरे अन्तरमें प्रकाश जगमगा रहा था। अँधेरा गायब था, एक नयी चेतना, नयी ज्योति, आनन्द एवं शान्ति मेरे हृदयमें समा गयी। चित्त शान्त एवं स्थिर हो गया, मानो कुछ हुआ ही नहीं उसी दिनसे मैं कृष्णको ही राखी बाँधती है, भैयादूजपर मिठाई खिलाती हूँ अपनी सारी बातें, सारी परेशानियाँ उन्होंको सुनाती है, उनसे खूब बातें करती हूँ। किसी दुःखसे ज्यादा दुखी नहीं होती, किसी खुशीसे बहुत खुश नहीं होती। मुझे लगता है कि भगवत्कृपाकी सच्ची अनुभूति मुझे हो गयी है। भइयाके रूपमें प्रकट होकर उन्होंने मेरी पीर हर ली है। अब तो कृष्ण ही मेरी आशा एवं विश्वास बन गये हैं। वे ही मेरे जीवनके आधार बन गये हैं। मेरा मन गुनगुनाता है

मेरो भैया कृष्ण कन्हैया धीर को बंधेया

कृष्ण कन्हैया, राहको दिखैया कृष्ण कन्हैया,

पारको लगैया खिवैया कृष्ण कन्हैया,

नैया को खिवैया कृष्ण कन्हैया,

भव को तरैया कृष्ण कन्हैया

बोलो 'भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रकी जय!'

[ श्रीमती उषा सिंहजी ]



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Real Life Experience प्रभु दर्शन


'mero bhaiya krishn kanhaiyaa'

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6 aprail 1999 ee0 din mangalavaar dopahar do bajekee baat hai, gaanvakee ek lada़aaeeka beecha-bachaav karanemen use golee lag gayee. jhagada़a shaant karaneke | uddeshyase vah jhagada़e men kood pada़a aur goleeka shikaar ho gayaa. tab usakee umr maatr 28 saalakee thee. mere oopar to shokaka pahaada़ toot pada़aa. itana pratibhaashaalee bhaaee khokar main vikshipt see ho gayee, hriday haahaakaar karake rota thaa. main paagal see ho gayee aur andaratak toot gayee, mujhe n dinaka pata chalata n raataka, khaanemen koee svaad n raha, maano mittee kha rahee hoon. mera man har samay usakee yaadonmen khoya rahataa. jeevan niraashaase bhar gayaa. bachchon evan pati ke saamane ronese ve bhee dukhee hote, isaliye main apana duhkh chupachaap sahe ja rahee thee kiseese 1 milaneka, kaheen jaane-aaneka bilakul man n hota, bas ekaant aur bhaaeekee yaada-ye do cheejen mujhe achchhee lagatee.

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mero bhaiya krishn kanhaiya dheer ko bandheyaa

krishn kanhaiya, raahako dikhaiya krishn kanhaiya,

paarako lagaiya khivaiya krishn kanhaiya,

naiya ko khivaiya krishn kanhaiya,

bhav ko taraiya krishn kanhaiyaa

bolo 'bhagavaan shreekrishnachandrakee jaya!'

[ shreematee usha sinhajee ]

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फिर भी श्याम को पाना है ।
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वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
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मने कारो कारो जमुनाजी रो पानी लागे
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
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श्याम ने आना घनश्याम ने आना
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फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
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