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अनाम सिद्ध संतकी अप्रत्याशित कृपा

बात उन दिनोंकी है, जब मैं हाईस्कूलकी परीक्षा दे रहा था। अपने गाँवसे नित्य सुबह ६ बजे साइकिल से अपने विद्यालयके लिये निकलता था। विद्यालय गाँवसे ७ किलोमीटर दूर था। परीक्षाकी पहली पाली ७-१०९ बजेकी होती थी एवं दूसरी पाली १२ से ३ बजेकी होती थी। इसलिये सुबह नित्य क्रियासे निवृत्त होकर पूजा पाठकर नाश्ता साथ लेकर निकलता था।

रास्तेमें चम्बल नदीका बीहड़ एवं ऊँची-नीची पगडण्डी थी, इसीपर साइकिलसे आना-जाना होता था। एक स्थानपर एक पुराना मठ बना हुआ था, जहाँ एक साधु रहते थे, जो कभी-कभी महीनोंके लिये तीर्थयात्रापर चले जाते थे और उनके लौटनेपर यदा-कदा कोई साधु- -संत भी उनके साथ आ जाते थे। कुछ दिन रहकर वे भी कहीं चले जाते थे।

इसी क्रममें एक औघड़ से दीखनेवाले सन्त वहाँ आ गये थे, जो किसीसे बातचीत नहीं करते थे, अपितु कोई उन्हें पुकारता तो वे पत्थर फेंककर उसे अपनेसे दूर कर देते थे। मैं उन्हें आते-जाते समय देखकर मनसे प्रणाम कर लेता था। पत्थर फेंके जानेके डरसे उनसे कुछ कहता नहीं था।

एक दिन मेरे घर स्वादिष्ट हलवा बना, जिसका भोग मैंने देवी माँके मंदिरमें दुर्गाजीको चढ़ाकर अपने टिफिनमें खानेके लिये रख लिया था। जब रास्तेमें उस मठके पाससे निकला तो उन औघड़ संतने मुझे पुकारा, 'बच्चे रोज मन-ही-मन मुझे प्रणाम करता है, आज जब देवी माताजीके प्रसादका हलवा ले जा रहा है तो मुझे नहीं देगा ?'

मैं आश्चर्यचकित हुआ, यह सब इन्हें कैसे मालूम चला? मैंने डरते हुए उन्हें प्रसादका हलवा दिया। उन्होंने थोड़ा-सा हलवा एक पीपलके पत्तेसे उठाकर लेकर खा लिया, चलते समय उन्होंने मुझे अपने पास बुलाकर कहा- 'मुझसे डरो मत, पास आकर प्रणाम कर सकते हो।' तबसे मैं नित्य आते-जाते उन्हें प्रणामकरने लगा। वे मात्र मुसकरा देते थे। एक दिन अचानक गाँवसे तीन किलोमीटर आगे निकलते ही मेरी साइकिल पंक्चर हो गयी। अब मैं परेशान था कि परीक्षामें समयसे नहीं पहुँच पाऊँगा। इसी चिन्तामें मठ एवं साधुजीको अनदेखाकर तेजीसे साइकिल खींचकर आगे बढ़ने लगा, तभी एक ओजस्वी आवाजने मुझे स्तम्भित-सा कर दिया, 'बेटे! आज प्रणाम किये बगैर कैसे जा रहे हो ?' मैंने हिचकते हुए अपनी पंक्चर साइकिल और परीक्षामें समयसे पहुँचनेकी कथाव्यथा उन्हें सुना डाली। वे बोले-'चिन्ता मत कर बेटे, जबतक तू नहीं पहुँचेगा, तबतक परीक्षा प्रारम्भ नहीं होगी, जा आरामसे चलता जा।'

उन्होंने तो कह दिया, लेकिन मुझे भरोसा नहीं हुआ। मैं दौड़ता-भागता साइकिल खींचता जब विद्यालय पहुँचा तो दृश्य देखनेलायक था। सभी छात्र परिसरमें कुएँके पास पेड़ोंकी छायामें खड़े दिखे। जैसे ही मैं पास पहुँचा तो सभी साथी आश्चर्यचकित होकर बोले 'लगता है, आपके भक्तिभावके कारण ही आधा घण्टा परीक्षा टल गयी।' मैंने भी कौतूहलवश पूछा- 'क्या हुआ ?' बताया गया कि प्रश्न-पत्रका सीलबन्द पैकेट जैसे ही खोला गया तो पाया कि गलतीसे दूसरी पालीमें होनेवाली परीक्षाके प्रश्नपत्रका पैकेट खुल गया था।

उस पैकेटको बदलकर सही प्रश्नपत्रका पैकेट लेनेके लिये प्रिंसिपल साहब पुलिस स्टेशन गये हैं, जहाँ प्रश्नपत्रोंका बॉक्स पुलिस सुरक्षामें रखा हुआ था। मैंने जब यह सुना तो उन औघड़ संतको मन-ही-मन साधुवाद दिया। परीक्षा-केन्द्रमें मेरे पहुँचनेके ठीक १५ मिनट बाद परीक्षा प्रारम्भ हुई।

संतसे मिलनेकी कौतूहलपूर्ण इच्छा लिये हुए जब पुनः शाम ४ बजे उस मठपर पहुँचा, तो वे संत जा चुके थे। मैंने जब वहाँ उपस्थित एक साधुसे पूछा कि 'बाबाजी कहाँ गये ?' तो वह साधु बोला-'बच्चा ! हम साधु लोग बहते पानीके समान हैं, आज यहाँ तो कलवहाँ, हम लोगोंका कोई पता-ठिकाना नहीं होता।' मैं रास्तेभर यह सोचकर पछताता रहा कि मैंने पहले कभी उनका नाम-ठिकाना क्यों नहीं पूछा ? यहप्रश्नचिह्न आजतक मुझे विचलित कर रहा है। लेकिन ■ उनकी वह कृपानुभूति आज भी मुझे सिद्ध संतोंके प्रति - नतमस्तक कर देती है।

[ श्रीइन्दलसिंहजी भदौरिया ]



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anaam siddh santakee apratyaashit kripaa

baat un dinonkee hai, jab main haaeeskoolakee pareeksha de raha thaa. apane gaanvase nity subah 6 baje saaikil se apane vidyaalayake liye nikalata thaa. vidyaalay gaanvase 7 kilomeetar door thaa. pareekshaakee pahalee paalee 7-109 bajekee hotee thee evan doosaree paalee 12 se 3 bajekee hotee thee. isaliye subah nity kriyaase nivritt hokar pooja paathakar naashta saath lekar nikalata thaa.

raastemen chambal nadeeka beehaड़ evan oonchee-neechee pagadandee thee, iseepar saaikilase aanaa-jaana hota thaa. ek sthaanapar ek puraana math bana hua tha, jahaan ek saadhu rahate the, jo kabhee-kabhee maheenonke liye teerthayaatraapar chale jaate the aur unake lautanepar yadaa-kada koee saadhu- -sant bhee unake saath a jaate the. kuchh din rahakar ve bhee kaheen chale jaate the.

isee kramamen ek aughada़ se deekhanevaale sant vahaan a gaye the, jo kiseese baatacheet naheen karate the, apitu koee unhen pukaarata to ve patthar phenkakar use apanese door kar dete the. main unhen aate-jaate samay dekhakar manase pranaam kar leta thaa. patthar phenke jaaneke darase unase kuchh kahata naheen thaa.

ek din mere ghar svaadisht halava bana, jisaka bhog mainne devee maanke mandiramen durgaajeeko chadha़aakar apane tiphinamen khaaneke liye rakh liya thaa. jab raastemen us mathake paasase nikala to un aughada़ santane mujhe pukaara, 'bachche roj mana-hee-man mujhe pranaam karata hai, aaj jab devee maataajeeke prasaadaka halava le ja raha hai to mujhe naheen dega ?'

main aashcharyachakit hua, yah sab inhen kaise maaloom chalaa? mainne darate hue unhen prasaadaka halava diyaa. unhonne thoda़aa-sa halava ek peepalake pattese uthaakar lekar kha liya, chalate samay unhonne mujhe apane paas bulaakar kahaa- 'mujhase daro mat, paas aakar pranaam kar sakate ho.' tabase main nity aate-jaate unhen pranaamakarane lagaa. ve maatr musakara dete the. ek din achaanak gaanvase teen kilomeetar aage nikalate hee meree saaikil pankchar ho gayee. ab main pareshaan tha ki pareekshaamen samayase naheen pahunch paaoongaa. isee chintaamen math evan saadhujeeko anadekhaakar tejeese saaikil kheenchakar aage badha़ne laga, tabhee ek ojasvee aavaajane mujhe stambhita-sa kar diya, 'bete! aaj pranaam kiye bagair kaise ja rahe ho ?' mainne hichakate hue apanee pankchar saaikil aur pareekshaamen samayase pahunchanekee kathaavyatha unhen suna daalee. ve bole-'chinta mat kar bete, jabatak too naheen pahunchega, tabatak pareeksha praarambh naheen hogee, ja aaraamase chalata jaa.'

unhonne to kah diya, lekin mujhe bharosa naheen huaa. main dauda़taa-bhaagata saaikil kheenchata jab vidyaalay pahuncha to drishy dekhanelaayak thaa. sabhee chhaatr parisaramen kuenke paas peda़onkee chhaayaamen khada़e dikhe. jaise hee main paas pahuncha to sabhee saathee aashcharyachakit hokar bole 'lagata hai, aapake bhaktibhaavake kaaran hee aadha ghanta pareeksha tal gayee.' mainne bhee kautoohalavash poochhaa- 'kya hua ?' bataaya gaya ki prashna-patraka seelaband paiket jaise hee khola gaya to paaya ki galateese doosaree paaleemen honevaalee pareekshaake prashnapatraka paiket khul gaya thaa.

us paiketako badalakar sahee prashnapatraka paiket leneke liye prinsipal saahab pulis steshan gaye hain, jahaan prashnapatronka baॉks pulis surakshaamen rakha hua thaa. mainne jab yah suna to un aughada़ santako mana-hee-man saadhuvaad diyaa. pareekshaa-kendramen mere pahunchaneke theek 15 minat baad pareeksha praarambh huee.

santase milanekee kautoohalapoorn ichchha liye hue jab punah shaam 4 baje us mathapar pahuncha, to ve sant ja chuke the. mainne jab vahaan upasthit ek saadhuse poochha ki 'baabaajee kahaan gaye ?' to vah saadhu bolaa-'bachcha ! ham saadhu log bahate paaneeke samaan hain, aaj yahaan to kalavahaan, ham logonka koee pataa-thikaana naheen hotaa.' main raastebhar yah sochakar pachhataata raha ki mainne pahale kabhee unaka naama-thikaana kyon naheen poochha ? yahaprashnachihn aajatak mujhe vichalit kar raha hai. lekin ■ unakee vah kripaanubhooti aaj bhee mujhe siddh santonke prati - natamastak kar detee hai.

[ shreeindalasinhajee bhadauriya ]

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