त्रिलोकीको देवीकृपानुभूति[ करुणार्द्रहृदया भगवती शाकम्भरीकी कृपा ]
प्राचीन समयकी बात है, दुर्गम नामका एक महान् दैत्य था। उसकी आकृति बड़ी ही भयंकर थी उसका जन्म हिरण्याक्षके वंशमें हुआ था तथा उसके पिताका नाम रुरु था। ब्रह्माजीके वरदानसे दुर्गम महाबली हो गया था। अपनी तपस्यासे ब्रह्माजीको प्रसन्नकर उसने चारों वेदोंको अपने हाथमें कर लिया और भूमण्डलपर अनेक उत्पात शुरू कर दिये। वेदोंके अदृश्य हो जानेपर सारी धार्मिक क्रियाएँ नष्ट हो गयीं, सभी यज्ञ-यागादि बन्द हो गये तथा देवताओंको यज्ञभाग मिलना बन्द हो गया। मन्त्र शक्तिके अभावमें ब्राह्मण भी अपने पथसे च्युत हो गये। नियम, धर्म, जप, तप, सन्ध्या, पूजन तथा देवकार्य एवं पितृकार्य - सभी कुछ लुप्त से हो गये। धर्म- मर्यादाएँ विशृंखलित हो गयीं। न कहीं दान होता था, न यज्ञ होता था। इसका परिणाम यह हुआ कि पृथ्वीपर सौ वर्षोंतकके लिये वर्षा बन्द हो गयी। तीनों लोकोंमें हाहाकार मच गया। सब लोग दुखी हो गये। सबको भूख-प्यासका महान् कष्ट सताने लगा। कुआँ, बावली, सरोवर, सरिताएँ और समुद्र भी जलसे रहित हो गये। समस्त वृक्ष और लताएँ भी सूख गयीं। प्राणी भूख-प्याससे बेचैन होकर मृत्युको प्राप्त होने लगे ।
देवताओं तथा भूमण्डलके प्राणियोंकी ऐसी दशा देखकर दुर्गम बहुत खुश था, परंतु इतनेपर भी उसे चैन न था। उसने अमरावतीपर अपना अधिकार जमा लिया। देवता उसके भयसे भाग खड़े हुए, पर जायँ कहाँ, सब ओर तो दुर्गमका उत्पात मचा हुआ था। तब उन्हें शक्तिभूता सनातनी भगवती महेश्वरीका स्मरण आया 'क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति।' वे सभी हिमालयपर्वतपर स्थित महेश्वरी योगमायाकी शरणमें पहुँचे। ब्राह्मण लोगभीजगत्-कल्याणार्थ देवीकी उपासना तथा प्रार्थना करनेके लिये उनकी शरणमें आ गये।
देवता कहने लगे-'महामाये! अपनी सारी प्रजाकी रक्षा करो, रक्षा करो। माँ! जैसे आपने शुम्भ, निशुम्भ,धूम्राक्ष, चण्ड-मुण्ड, मधु-कैटभ तथा महिषासुरका वधकर संसारकी रक्षा की है-देवताओंका कल्याण किया है, उसी प्रकार जगदम्बिके! इस दुर्गम नामक दुष्ट दैत्यसे हम सबकी रक्षा करो। माँ! घोर अकाल पड़ गया। है, हम आपकी शरणमें हैं। हे देवि ! आप कोई लीला दिखायें, नहीं तो यह सारा ब्रह्माण्ड विनष्ट हो जायगा महेशानि! आप शरणागतोंकी रक्षा करनेवाली हैं, भक्तवत्सला हैं, समस्त जगत्की माता हैं। माँ! आपमें अपार करुणा है, आपके भ्रूसंकेतमात्रसे प्रलय हो जाता है, आपके पुत्र महान् कष्ट पा रहे हैं; फिर हे मातेश्वरि ! आज आप क्यों विलम्ब कर रही हैं, हमें दर्शन दें।' ऐसी ही प्रार्थना ब्राह्मणोंने भी की।अपने पुत्रोंकी यह हालत माँसे देखी न गयी। भला; पुत्र कष्टमें हो तो माँको कैसे सहन हो सकता है, फिर देवी तो जगन्माता हैं, माताओंकी भी माता हैं। उनके कारुण्यकी क्या सीमा ? करुणासे उनका हृदय भर आया। वे तत्क्षण ही वहाँ प्रकट हो गयीं। उस समय त्रिलोकीकी ऐसी व्याकुलताभरी स्थिति देखकर कृपामयी माँकी आँखोंसे आँसू छलछला आये। भला दो आँखों से हृदयका दुःख कैसे प्रकट होता, माँने सैकड़ों नेत्र बना लिये, इसीलिये आप शताक्षी (शत+अक्षी) कहलायीं। नीली नीली कमल-जैसी दिव्य आँखोंमें माँकी ममता आँसू बनकर उमड़ आयी। इसी रूपमें माताने सबको अपने दर्शन कराये। उनका मुखारविन्द अत्यन्त ही मनोरम था, वे अपने चारों हाथोंमें कमल पुष्प तथा नाना प्रकारके फल-मूल लिये हुई थीं। करुणार्द्रहृदया भगवती भुवनेश्वरी प्रजाका कष्ट देखकर लगातार नौ दिन और नौ रात रोती रहीं। उन्होंने अपने सैकड़ों नेत्रोंसे अश्रुजलकी सहस्रों धाराएँ प्रवाहित कीं।देवी शताक्षीके सैकड़ों नेत्रोंसे जो अश्रुजलकीसहस्रों धाराएँ प्रवाहित हुई, उनसे नौ दिनोंतक त्रिलोकीमेंमहान् वृष्टि होती रही। इस अथाह जलसे पृथ्वीकी सारीजलन मिट गयी। सभी प्राणी तृप्त हो गये। सरिताओं और समुद्रोंमें अगाध जल भर गया। सम्पूर्ण औषधियाँ भी तृप्त हो गयीं। उस समय भगवतीने अनेक प्रकारके शाक तथा स्वादिष्ट फल देवताओं तथा अन्य सभीको अपने हाथसे बाँटे तथा खानेके लिये दिये और भाँतिभाँतिके अन्न सामने उपस्थित कर दिये। उन्होंने गौओंके लिये सुन्दर हरी-हरी घास और दूसरे प्राणियोंके लिये उनके योग्य भोजन दिया।अपने शरीरसे उत्पन्न हुए शाकों (भोज्य-सामग्रियों) द्वारा उस समय देवीने समस्त लोकोंका भरण-पोषण किया, इसलिये देवीका 'शाकम्भरी' यह नाम विख्यात हुआ।देवी शाकम्भरीकी कृपासे देवता, ब्राह्मण और मनुष्योंसहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सन्तुष्ट हो गया। सबकी भूख-प्यास मिट गयी, उन सभीको अपनी माताके दर्शन हो गये। जीवलोक हर्षमें भर गया।उस समय देवीने पूछा—'देवताओ ! अब तुम्हारा कौन-सा कार्य मैं सिद्ध करूँ ?' सभी देवता समवेत स्वरमें बोले—'देवि! आपने सब लोगोंको सन्तुष्ट करदिया है। अब कृपा करके दुर्गमासुरके द्वारा अपहृत वेदलाकर हमें दे दीजिये।'देवीने 'तथास्तु' कहकर कहा-'देवताओ! आपलोग अपने-अपने स्थानको जायँ, मैं शीघ्र ही उस दुर्गम दैत्यका वधकर वेदोंको ले आऊँगी।"यह सुनकर देवता बड़े प्रसन्न हुए और वे देवीको प्रणामकर अपने-अपने स्थानोंको चले गये। सब ओरसे जय-जयकारकी ध्वनि होने लगी। तीनों लोकोंमें महान् कोलाहल मच गया। इधर अपने दूतोंसे दुर्गम दैत्यने सारी स्थितिको समझ लिया। उसके विपक्षी देवता फिर सुखी हो गये हैं, यह देखकर उस दैत्यने सेना लेकर न केवल स्वर्गलोकको बल्कि पृथ्वीलोक तथा अन्तरिक्षलोकको भी घेर लिया। एक बार पुनः देवता संकटमें पड़ गये। उन्होंने पुनः मातासे रक्षाकी गुहार लगायी। माँ तो सब देख ही रही थीं, वे इसी अवसरकी प्रतीक्षामें थीं।
शीघ्र ही भगवतीने अपने दिव्य तेजोमण्डलसे तीनों लोकोंको व्याप्तकर एक घेरा बना डाला और देवता, मनुष्य आदि उस घेरेमें सुरक्षित हो गये। स्वयं देवी घेरेसे बाहर आकर दुर्गमके सामने खड़ी हो गयीं। दुर्गम भी अपनी सेनाके साथ युद्धके लिये संनद्ध था। क्षणभरमें ही | लड़ाई उन गयी। दोनों ओरसे दिव्य बाणोंकी वर्षा होने लगी। इसी बीच देवीके श्रीविग्रहसे काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूम्रा, त्रिपुरसुन्दरी तथा मातंगी नामवाली दस महाविद्याएँ उत्पन्न हुईं, जो अस्त्र-शस्त्र लिये हुए थीं। तत्पश्चात् | दिव्य मूर्तिवाली असंख्य मातृकाएँ उत्पन्न हुईं। उन सबने | अपने मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट धारण कर रखा था तथा वे दिव्य आयुधोंसे सुसज्जित थीं। उन मातृगणों के साथ दैत्योंका भयंकर युद्ध हुआ। मातृकाओंने दुर्गम दैत्यकी सेनाको तहस-नहस कर दिया। दस दिन यह | युद्ध चलता रहा। दैत्य-सेनाका विनाश देखकर ग्यारहवें दिन स्वयं दुर्गम सामने आ डटा। वह लाल रंगकी माला और लाल वस्त्र धारण किये हुए था। एक विशाल रथमेंबैठकर वह महाबली दैत्य क्रोधके वशीभूत हो देवीपर बाणोंकी बौछार करने लगा। इधर देवी भी रथपर आरूढ़ हो गयीं। उन्होंने भी बाणोंका कौशल दिखाना प्रारम्भ किया। युद्ध तो भयंकर हुआ, किंतु भगवती कालरात्रिके सामने दुर्गम कबतक टिका रहता ? देवीने एक ही साथ पंद्रह बाण छोड़े। चार बाणोंसे रथके चारों घोड़े गिर पड़े। एक बाणने सारथीका प्राण ले लिया। दो बाणोंने दुर्गमके दोनों नेत्रोंको तथा दो बाणोंने उसकी भुजाओंको बींध डाला।एक बाणने रथकी ध्वजाको काट डाला। शेष पाँचतीक्ष्ण बाण दुर्गमकी छातीमें जाकर घुस गये। रुधिर वमन करता हुआ वह दैत्य परमेश्वरीके सामने ही अपने प्राणोंसे हाथ धो बैठा। उसके शरीरसे एक दिव्य तेज निकला, जो भगवतीके शरीरमें प्रविष्ट हो गया। देवीके हाथसे उसका उद्धार हो गया। देवी भुवनेश्वरीने दुर्गम दैत्यका वध किया था, इसीलिये वे 'दुर्गा' इस नामसे प्रसिद्ध हो गयीं।
उन्होंने वेदोंको पुनः देवताओं तथा ब्राह्मणोंको समर्पित कर दिया। उस दैत्यके मर जानेपर त्रिलोकीका संकट दूर हो गया। सब ओर प्रसन्नता छा गयी।
trilokeeko deveekripaanubhooti[ karunaardrahridaya bhagavatee shaakambhareekee kripa ]
praacheen samayakee baat hai, durgam naamaka ek mahaan daity thaa. usakee aakriti bada़ee hee bhayankar thee usaka janm hiranyaakshake vanshamen hua tha tatha usake pitaaka naam ruru thaa. brahmaajeeke varadaanase durgam mahaabalee ho gaya thaa. apanee tapasyaase brahmaajeeko prasannakar usane chaaron vedonko apane haathamen kar liya aur bhoomandalapar anek utpaat shuroo kar diye. vedonke adrishy ho jaanepar saaree dhaarmik kriyaaen nasht ho gayeen, sabhee yajna-yaagaadi band ho gaye tatha devataaonko yajnabhaag milana band ho gayaa. mantr shaktike abhaavamen braahman bhee apane pathase chyut ho gaye. niyam, dharm, jap, tap, sandhya, poojan tatha devakaary evan pitrikaary - sabhee kuchh lupt se ho gaye. dharma- maryaadaaen vishrinkhalit ho gayeen. n kaheen daan hota tha, n yajn hota thaa. isaka parinaam yah hua ki prithveepar sau varshontakake liye varsha band ho gayee. teenon lokonmen haahaakaar mach gayaa. sab log dukhee ho gaye. sabako bhookha-pyaasaka mahaan kasht sataane lagaa. kuaan, baavalee, sarovar, saritaaen aur samudr bhee jalase rahit ho gaye. samast vriksh aur lataaen bhee sookh gayeen. praanee bhookha-pyaasase bechain hokar mrityuko praapt hone lage .
devataaon tatha bhoomandalake praaniyonkee aisee dasha dekhakar durgam bahut khush tha, parantu itanepar bhee use chain n thaa. usane amaraavateepar apana adhikaar jama liyaa. devata usake bhayase bhaag khada़e hue, par jaayan kahaan, sab or to durgamaka utpaat macha hua thaa. tab unhen shaktibhoota sanaatanee bhagavatee maheshvareeka smaran aaya 'kshudhaatrishaarta jananeen smaranti.' ve sabhee himaalayaparvatapar sthit maheshvaree yogamaayaakee sharanamen pahunche. braahman logabheejagat-kalyaanaarth deveekee upaasana tatha praarthana karaneke liye unakee sharanamen a gaye.
devata kahane lage-'mahaamaaye! apanee saaree prajaakee raksha karo, raksha karo. maan! jaise aapane shumbh, nishumbh,dhoomraaksh, chanda-mund, madhu-kaitabh tatha mahishaasuraka vadhakar sansaarakee raksha kee hai-devataaonka kalyaan kiya hai, usee prakaar jagadambike! is durgam naamak dusht daityase ham sabakee raksha karo. maan! ghor akaal pada़ gayaa. hai, ham aapakee sharanamen hain. he devi ! aap koee leela dikhaayen, naheen to yah saara brahmaand vinasht ho jaayaga maheshaani! aap sharanaagatonkee raksha karanevaalee hain, bhaktavatsala hain, samast jagatkee maata hain. maan! aapamen apaar karuna hai, aapake bhroosanketamaatrase pralay ho jaata hai, aapake putr mahaan kasht pa rahe hain; phir he maateshvari ! aaj aap kyon vilamb kar rahee hain, hamen darshan den.' aisee hee praarthana braahmanonne bhee kee.apane putronkee yah haalat maanse dekhee n gayee. bhalaa; putr kashtamen ho to maanko kaise sahan ho sakata hai, phir devee to jaganmaata hain, maataaonkee bhee maata hain. unake kaarunyakee kya seema ? karunaase unaka hriday bhar aayaa. ve tatkshan hee vahaan prakat ho gayeen. us samay trilokeekee aisee vyaakulataabharee sthiti dekhakar kripaamayee maankee aankhonse aansoo chhalachhala aaye. bhala do aankhon se hridayaka duhkh kaise prakat hota, maanne saikada़on netr bana liye, iseeliye aap shataakshee (shata+akshee) kahalaayeen. neelee neelee kamala-jaisee divy aankhonmen maankee mamata aansoo banakar umada़ aayee. isee roopamen maataane sabako apane darshan karaaye. unaka mukhaaravind atyant hee manoram tha, ve apane chaaron haathonmen kamal pushp tatha naana prakaarake phala-mool liye huee theen. karunaardrahridaya bhagavatee bhuvaneshvaree prajaaka kasht dekhakar lagaataar nau din aur nau raat rotee raheen. unhonne apane saikada़on netronse ashrujalakee sahasron dhaaraaen pravaahit keen.devee shataaksheeke saikada़on netronse jo ashrujalakeesahasron dhaaraaen pravaahit huee, unase nau dinontak trilokeemenmahaan vrishti hotee rahee. is athaah jalase prithveekee saareejalan mit gayee. sabhee praanee tript ho gaye. saritaaon aur samudronmen agaadh jal bhar gayaa. sampoorn aushadhiyaan bhee tript ho gayeen. us samay bhagavateene anek prakaarake shaak tatha svaadisht phal devataaon tatha any sabheeko apane haathase baante tatha khaaneke liye diye aur bhaantibhaantike ann saamane upasthit kar diye. unhonne gauonke liye sundar haree-haree ghaas aur doosare praaniyonke liye unake yogy bhojan diyaa.apane shareerase utpann hue shaakon (bhojya-saamagriyon) dvaara us samay deveene samast lokonka bharana-poshan kiya, isaliye deveeka 'shaakambharee' yah naam vikhyaat huaa.devee shaakambhareekee kripaase devata, braahman aur manushyonsahit sampoorn brahmaand santusht ho gayaa. sabakee bhookha-pyaas mit gayee, un sabheeko apanee maataake darshan ho gaye. jeevalok harshamen bhar gayaa.us samay deveene poochhaa—'devataao ! ab tumhaara kauna-sa kaary main siddh karoon ?' sabhee devata samavet svaramen bole—'devi! aapane sab logonko santusht karadiya hai. ab kripa karake durgamaasurake dvaara apahrit vedalaakar hamen de deejiye.'deveene 'tathaastu' kahakar kahaa-'devataao! aapalog apane-apane sthaanako jaayan, main sheeghr hee us durgam daityaka vadhakar vedonko le aaoongee."yah sunakar devata bada़e prasann hue aur ve deveeko pranaamakar apane-apane sthaanonko chale gaye. sab orase jaya-jayakaarakee dhvani hone lagee. teenon lokonmen mahaan kolaahal mach gayaa. idhar apane dootonse durgam daityane saaree sthitiko samajh liyaa. usake vipakshee devata phir sukhee ho gaye hain, yah dekhakar us daityane sena lekar n keval svargalokako balki prithveelok tatha antarikshalokako bhee gher liyaa. ek baar punah devata sankatamen pada़ gaye. unhonne punah maataase rakshaakee guhaar lagaayee. maan to sab dekh hee rahee theen, ve isee avasarakee prateekshaamen theen.
sheeghr hee bhagavateene apane divy tejomandalase teenon lokonko vyaaptakar ek ghera bana daala aur devata, manushy aadi us gheremen surakshit ho gaye. svayan devee gherese baahar aakar durgamake saamane khada़ee ho gayeen. durgam bhee apanee senaake saath yuddhake liye sannaddh thaa. kshanabharamen hee | lada़aaee un gayee. donon orase divy baanonkee varsha hone lagee. isee beech deveeke shreevigrahase kaalee, taara, chhinnamasta, shreevidya, bhuvaneshvaree, bhairavee, bagala, dhoomra, tripurasundaree tatha maatangee naamavaalee das mahaavidyaaen utpann hueen, jo astra-shastr liye hue theen. tatpashchaat | divy moortivaalee asankhy maatrikaaen utpann hueen. un sabane | apane mastakapar chandramaaka mukut dhaaran kar rakha tha tatha ve divy aayudhonse susajjit theen. un maatriganon ke saath daityonka bhayankar yuddh huaa. maatrikaaonne durgam daityakee senaako tahasa-nahas kar diyaa. das din yah | yuddh chalata rahaa. daitya-senaaka vinaash dekhakar gyaarahaven din svayan durgam saamane a dataa. vah laal rangakee maala aur laal vastr dhaaran kiye hue thaa. ek vishaal rathamenbaithakar vah mahaabalee daity krodhake vasheebhoot ho deveepar baanonkee bauchhaar karane lagaa. idhar devee bhee rathapar aaroodha़ ho gayeen. unhonne bhee baanonka kaushal dikhaana praarambh kiyaa. yuddh to bhayankar hua, kintu bhagavatee kaalaraatrike saamane durgam kabatak tika rahata ? deveene ek hee saath pandrah baan chhoda़e. chaar baanonse rathake chaaron ghoda़e gir pada़e. ek baanane saaratheeka praan le liyaa. do baanonne durgamake donon netronko tatha do baanonne usakee bhujaaonko beendh daalaa.ek baanane rathakee dhvajaako kaat daalaa. shesh paanchateekshn baan durgamakee chhaateemen jaakar ghus gaye. rudhir vaman karata hua vah daity parameshvareeke saamane hee apane praanonse haath dho baithaa. usake shareerase ek divy tej nikala, jo bhagavateeke shareeramen pravisht ho gayaa. deveeke haathase usaka uddhaar ho gayaa. devee bhuvaneshvareene durgam daityaka vadh kiya tha, iseeliye ve 'durgaa' is naamase prasiddh ho gayeen.
unhonne vedonko punah devataaon tatha braahmanonko samarpit kar diyaa. us daityake mar jaanepar trilokeeka sankat door ho gayaa. sab or prasannata chha gayee.