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नाम-जपका चमत्कार

मेरे एक मित्र इन दिनों काशी में एक उच्च पदपर हैं। कुछ दिनों पूर्व वे मिरजापुरमें वकालत किया करते थे । वे हँसमुख, धर्मनिष्ठ तथा क्रियाशील युवक हैं, यद्यपि उनकी वकालत कुछ ऐसी विशेष न थी। मैं प्रस्तुत लेखमें उनको श्री 'रा' के नामसे लिखूँगा ।

मेरे मकानके ही ठीक सामने एक दूसरे वकील साहब रहते थे। पूरे भौतिकवादी, खूब अच्छी 'प्रैक्टिस और जीवनमें बस रस-रंग ही, परंतु थे वे सज्जन भी बड़े 'शिष्ट' और 'मिलनसार'। प्रस्तुत लेखमें मैं उनको श्री 'क' के नामसे सम्बोधित करूँगा।

श्री 'क' का जीवन बड़ा ही विचित्र था। फ्लस खेलते थे, कभी-कभी रात बीत जाती थी। शराब पीते थे, कभी-कभी बोतलें खाली हो जाती थीं। उनका चाल-चलन ठीक नहीं था। अगम्यागमन-जैसे दुर्व्यसनको वे जीवनमें स्थान दिये थे

उनका यह जीवन बहुत अधिक दिनोंतक न चला। एक दिन यकायक सुना गया कि श्री 'क' बीमार हैं। प्रयाग जा रहे हैं। देखनेमें पूर्ण स्वस्थ थे, पर थे 'बीमार'। क्या बीमारी थी- कोई कह नहीं सकता था।

प्रयागमें ही उनको मिल गये श्री 'रा' भी। प्रसन्नमुख आदमी। पूछा- 'कहिये, कैसे भाई !'

श्री 'क' ने कहा, मुझे यक्ष्माकी शिकायत मालूम होती है। एक्सरे कराना चाहता हूँ। श्री 'रा' थे मस्त आदमी। उन्होंने कहा चलो, मैं भी एक्सरे करा लूँ। श्री 'रा' को कोई रोग न था ।

एक्सरे हुआ। श्री 'क' को यक्ष्मा निकला और श्री 'रा' के फेफड़ेपर उससे भी बड़ा 'पैच' मौजूद मिला। इस एक्सरेके फलकी प्रतीक्षामें दोनों ही वहाँ रुक गये।

श्री 'क' गये भुआली और श्री 'रा' लौट गये अपने गाँव ज्ञानपुरके पास ।

श्री 'रा' के गाँवके निकट ही एक तालाब है और एक शिवमन्दिर है। श्री 'रा' लौटकर गाँवतक तो पहुँचे; परंतु घर न जाकर तालाबपर बैठे रहे। गाँवसे लोग स्नान करने आते और 'रा' को वहाँ बैठे देखकर पूछते 'कैसे ?' वे सभीको उत्तर देते, 'भाई! मुझको यक्ष्मा हो गया है, जाऊँ कहाँ यहीं शिवजीकी शरणमें ही अन्तिम दिन बिताना अच्छा है।'

घरसे लोग आये, डाँट-फटकारकर लिवा ले गये। घर जानेपर भी श्री 'रा' का केवल एक काम रह गया। वह यह कि वकालत तो छोड़ ही दी और दिन रात वहीं शिवमन्दिरपर बैठकर शिवनाम-जप और प्रातः सायं रुद्रीपाठ। इसी प्रकार तीन महीने बीत गये।

संयोग देखिये। फिर प्रयागमें श्री 'रा' और श्री 'क' की मुलाकात हो गयी। वही पुरानी वार्ता और उसी कौतूहलसे श्री 'रा' ने फिर एक्सरे करा ही डाला। उत्तर निकला श्री 'क' का यक्ष्मा बढ़ गया और श्री 'रा' का फेफड़ा बिलकुल साफ। डॉक्टरने पूछा-'रा' तुमने क्या दवा खायी।'

'रा' ने उत्तर दिया, 'शिव-नाम-जप।'

अन्तमें वही हुआ, जिसकी आभा इस अन्तिम एक्सरेने दे दी थी। वह यह कि मेरे मित्र श्री 'क'; जिनकी स्मृति अबतक हमलोगोंको आकर अक्सर परेशान किया करती है और जिनका हँसमुख चेहरा अक्सर याद आ जाता है, इस संसारसे चल बसे और श्री 'रा' ज्यों-के-त्यों हट्टे-तगड़े।

श्री 'रा' के ही जीवनमें एक अद्भुत दूसरी घटना घटी। बादमें उन्हें दमेका रोग हो गया। वह घूम फिरकर उसी मकानमें आ गये, जिसमें श्री 'क' रहा करते थे। 'क' का वह मकान अबतक यक्ष्माके लिये बड़ा प्रसिद्ध हो चुका था ।

श्री 'रा' की तबीयत दमेसे कुछ खराब हुई और बेचारे चारपाईपर पड़ गये ।

घरपर कोई नहीं, अकेले खुद और एक नौकर । एक रातको उनकी तबीयत काफी खराब हो गयी। उसीमें उन्हें शौच जानेकी इच्छा हुई। उन्हें उसी समय यकायक ध्यानमें आ गया कि अन्तिम समयमें भी शौच मालूम होता है और सोचा कि अब तो मेरा स्वर्गवास ही हो रहा है। चारपाईपर पड़े-पड़े उनको यकायक ध्यान आया 'शिव-नाम जप' का। आपने जप प्रारम्भ कर दिया। शक्ति तो थी नहीं कि बोलते, मन-ही-मन जप करने लगे। दूसरे दिन देखनेको मिला- श्री 'रा' बाहर बरामदे में आरामकुर्सीपर बैठे हैं। मुहल्लेवाले जो उधरसे गुजर रहे हैं, सबको वे अभिवादन कर रहे हैं।

रातमें, जहाँ खराब हालतका समाचार मुहल्लेभरमें फैला था, वहाँ सभी उनको देखकर आश्चर्य करने लगे। सभीने पूछा - 'क्या दवा कर रहे हो ?'

उत्तर मिला, 'शिव-नाम-जप। ' [ श्रीज्ञानचन्द्रजी ]



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naama-japaka chamatkaara

mere ek mitr in dinon kaashee men ek uchch padapar hain. kuchh dinon poorv ve mirajaapuramen vakaalat kiya karate the . ve hansamukh, dharmanishth tatha kriyaasheel yuvak hain, yadyapi unakee vakaalat kuchh aisee vishesh n thee. main prastut lekhamen unako shree 'raa' ke naamase likhoonga .

mere makaanake hee theek saamane ek doosare vakeel saahab rahate the. poore bhautikavaadee, khoob achchhee 'praiktis aur jeevanamen bas rasa-rang hee, parantu the ve sajjan bhee bada़e 'shishta' aur 'milanasaara'. prastut lekhamen main unako shree 'ka' ke naamase sambodhit karoongaa.

shree 'ka' ka jeevan bada़a hee vichitr thaa. phlas khelate the, kabhee-kabhee raat beet jaatee thee. sharaab peete the, kabhee-kabhee botalen khaalee ho jaatee theen. unaka chaala-chalan theek naheen thaa. agamyaagamana-jaise durvyasanako ve jeevanamen sthaan diye the

unaka yah jeevan bahut adhik dinontak n chalaa. ek din yakaayak suna gaya ki shree 'ka' beemaar hain. prayaag ja rahe hain. dekhanemen poorn svasth the, par the 'beemaara'. kya beemaaree thee- koee kah naheen sakata thaa.

prayaagamen hee unako mil gaye shree 'raa' bhee. prasannamukh aadamee. poochhaa- 'kahiye, kaise bhaaee !'

shree 'ka' ne kaha, mujhe yakshmaakee shikaayat maaloom hotee hai. eksare karaana chaahata hoon. shree 'raa' the mast aadamee. unhonne kaha chalo, main bhee eksare kara loon. shree 'raa' ko koee rog n tha .

eksare huaa. shree 'ka' ko yakshma nikala aur shree 'raa' ke phephada़epar usase bhee bada़a 'paicha' maujood milaa. is eksareke phalakee prateekshaamen donon hee vahaan ruk gaye.

shree 'ka' gaye bhuaalee aur shree 'raa' laut gaye apane gaanv jnaanapurake paas .

shree 'raa' ke gaanvake nikat hee ek taalaab hai aur ek shivamandir hai. shree 'raa' lautakar gaanvatak to pahunche; parantu ghar n jaakar taalaabapar baithe rahe. gaanvase log snaan karane aate aur 'raa' ko vahaan baithe dekhakar poochhate 'kaise ?' ve sabheeko uttar dete, 'bhaaee! mujhako yakshma ho gaya hai, jaaoon kahaan yaheen shivajeekee sharanamen hee antim din bitaana achchha hai.'

gharase log aaye, daanta-phatakaarakar liva le gaye. ghar jaanepar bhee shree 'raa' ka keval ek kaam rah gayaa. vah yah ki vakaalat to chhoda़ hee dee aur din raat vaheen shivamandirapar baithakar shivanaama-jap aur praatah saayan rudreepaatha. isee prakaar teen maheene beet gaye.

sanyog dekhiye. phir prayaagamen shree 'raa' aur shree 'ka' kee mulaakaat ho gayee. vahee puraanee vaarta aur usee kautoohalase shree 'raa' ne phir eksare kara hee daalaa. uttar nikala shree 'ka' ka yakshma badha़ gaya aur shree 'raa' ka phephada़a bilakul saapha. daॉktarane poochhaa-'raa' tumane kya dava khaayee.'

'raa' ne uttar diya, 'shiva-naama-japa.'

antamen vahee hua, jisakee aabha is antim eksarene de dee thee. vah yah ki mere mitr shree 'ka'; jinakee smriti abatak hamalogonko aakar aksar pareshaan kiya karatee hai aur jinaka hansamukh chehara aksar yaad a jaata hai, is sansaarase chal base aur shree 'raa' jyon-ke-tyon hatte-tagaड़e.

shree 'raa' ke hee jeevanamen ek adbhut doosaree ghatana ghatee. baadamen unhen dameka rog ho gayaa. vah ghoom phirakar usee makaanamen a gaye, jisamen shree 'ka' raha karate the. 'ka' ka vah makaan abatak yakshmaake liye bada़a prasiddh ho chuka tha .

shree 'raa' kee tabeeyat damese kuchh kharaab huee aur bechaare chaarapaaeepar pada़ gaye .

gharapar koee naheen, akele khud aur ek naukar . ek raatako unakee tabeeyat kaaphee kharaab ho gayee. useemen unhen shauch jaanekee ichchha huee. unhen usee samay yakaayak dhyaanamen a gaya ki antim samayamen bhee shauch maaloom hota hai aur socha ki ab to mera svargavaas hee ho raha hai. chaarapaaeepar pada़e-pada़e unako yakaayak dhyaan aaya 'shiva-naam japa' kaa. aapane jap praarambh kar diyaa. shakti to thee naheen ki bolate, mana-hee-man jap karane lage. doosare din dekhaneko milaa- shree 'raa' baahar baraamade men aaraamakurseepar baithe hain. muhallevaale jo udharase gujar rahe hain, sabako ve abhivaadan kar rahe hain.

raatamen, jahaan kharaab haalataka samaachaar muhallebharamen phaila tha, vahaan sabhee unako dekhakar aashchary karane lage. sabheene poochha - 'kya dava kar rahe ho ?'

uttar mila, 'shiva-naama-japa. ' [ shreejnaanachandrajee ]

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