(१)
यह विगत द्वितीय महायुद्धकी एक सच्ची घटना है। एक विमानचालक शत्रुदेशकी स्थितिके चित्र लेनेके लिये रवाना हुआ। पर अपने गन्तव्यपर पहुँचनेसे पूर्व ही विमानभेदी तोपकी गोलियाँ उसके विमानमें लगीं। इससे उसके दोनों इंजन बेकार हो गये। उस समय वह विमान भूमध्यसागरके ऊपर उड़ रहा था। इंजन बेकार होनेपर विमान नीचेकी ओर गिरने लगा। इस समयतक चालकको पूरा होश था और अपने विमानकी इस दुर्घटनाका एक एक विवरण भलीभाँति स्मरण था। इसके बादकी घटनाके बारेमें उसे स्मरण नहीं; क्योंकि सम्भवतः उसका विमान समुद्रमें गिरकर तत्काल डूब गया होगा और उसके साथ वह विमानचालक और उसके साथी भी समुद्रके अतल गर्तमें चले गये होंगे।इसके बादकी दूसरी, जिस घटनाका उसे स्मरण था, वह यह है कि वह चालक समुद्रकी लहरोंपर तैर रहा है और अपनेको डूबनेसे बचानेकी जीतोड़ कोशिश में लगा हुआ है। पर उसका एक पैर घुटनेके पाससे कट गया है। उसके पैरसे प्रचुर मात्रामें रक्त बह रहा है और ऐसा लगता है कि मानो वह पानीके बजाय रक्तके सागरमें ही उतरा रहा हो। उसके पैरसे इतनी तेजीसे खून निकल रहा था कि उसकी प्राणशक्ति लगातार घटती जा रही थी। उसे लग रहा था कि वह कुछ ही क्षणोंका मेहमान है। उसने अपनेको ईश्वरके सहारे छोड़ दिया। अचानक उसके शरीरसे लकड़ीका एक तख्ता टकराया। यह विमानमें लगी हुई प्लाईवुडका तख्ता था और आश्चर्यकी बात यह थी कि इस तख्तेके ऊपर 'फर्स्ट एड चिकित्सा' कावह बक्सा भी रखा हुआ था, जो उसके विमानमें रखा रहता था। चालकने जिस किसी तरह बक्सेको खोला और उसमेंसे कपड़ेकी पट्टी निकालकर अपनी जाँघपर कसकर बाँध ली, जिससे खूनका बहना रुक गया। इतनेमें ही ऊपरसे एक विमान उड़ता हुआ गुजरा। विमानमें बैठे हुए व्यक्तिने समुद्रकी लहरोंसे संघर्ष करते हुए इस व्यक्तिको देखा तो अपने विमानसे हवा भरा हुआ रबरका एक पहिया नीचे गिरा दिया। लहरोंसे संघर्ष करनेवाले चालकने उस पहियेको पकड़ लिया और उसके सहारे वह लहरोंपर तैरने लगा। थोड़ी देर बाद पानीका एक जहाज वहाँसे गुजरा और उसने उस चालकको अपने ऊपर चढ़ा लिया। अकल्पनीय घटनाओंकी सृष्टि करने और आसन्न मृत्युके मुखमेंसे भी बचकर निकालनेकी सामर्थ्यवाले सर्वशक्तिमान् जगन्नियन्ताके प्रति कृतज्ञतासे अभिभूत होकर उस विमानचालकका मुख आँसुओंसे भीग गया।
(२)
एक दूसरे विमानचालककी आपबीती सुनिये। यह चालक शत्रुओं पर बमवर्षा करके अपना बमवर्षक विमान लेकर स्वदेश लौटा। पर बमवर्षा करते समय एक छोटा बम उसके विमानके पंखेके पास बिना फटे हुए अटक गया था। वापस लौटकर जब उसका विमान जमीनपर उतरा तो जमीनसे छूनेपर हलका-सा धक्का लगा, जिससे पंखेके पास अटका हुआ वह बम धड़ाकेके साथ फटा। बमका फटना था कि विमानकी टंकीमें भरे हुए पेट्रोलने आग पकड़ ली और पलभरमें बिजलीकी टार्चकी भाँति सारे विमानमें आग लग गयी। चालक खिड़की खोलकर भागनेका प्रयत्न करने लगा, पर वह सीटसे बेल्टोंद्वारा बँधा हुआ था। वह बेल्टें खोलने लगा। चारों ओर आग लगी थी, जिससे उसकी हाथोंकी अँगुलियाँ प्रतिपल शिथिल होती जा रही थीं। इसके पूर्व कि वह बेल्टोंको खोल पाये, वह संज्ञाहीन हो गया। इसके बाद उसे पता नहीं कि क्या हुआ । अन्तिम बात जो उसे याद थी, वह यह कि उसनेअपना अन्त आया देखकर भगवान्से प्रार्थना की थी 'हे भगवान्! मेरी मदद कर।' दूसरी बात जो उसे याद थी वह यह कि वह अस्पतालमें रोगियोंकी चारपाईपर लेटा हुआ है और डॉक्टर उसके ऊपर झुका हुआ है। किसीको भी यह पता नहीं कि जलते हुए विमानके भीतरसे उसे कब और किस प्रकार जीवित बाहर निकाला गया। उसने कहा कि मुझे यह विश्वास हो गया कि भगवान्ने मेरी आर्त पुकार सुनी और मुझे तत्क्षण बाहर निकाल लिया।
अधिकांश युवक जिस समय विमानचालककी ट्रेनिंग लेनेके लिये भरती होते हैं, उस समय वे नास्तिक होते हैं। उनका विश्वास होता है कि चालकका कार्य मनुष्य में असाधारण साहस और वीरताकी अपेक्षा करता है - ईश्वर नामकी काल्पनिक सत्ताकी अदृश्य शक्तिपर भरोसा करना चालकके पेशेके साथ मेल नहीं खाता। पर ये युवक ट्रेनिंग लेनेके बाद जब विमान लेकर उड़ते हैं, तब ऐसी-ऐसी अदृश्य परिस्थितियाँ सामने आती हैं। और वे ऐसे कल्पनातीत परिणामोंमें बदल जाती हैं कि चालकोंके मन अदृश्य शक्तिके प्रति बलात् आस्थावान् हो जाते हैं। अपने पेशेका व्यावहारिक अनुभव इनमें यह विश्वास पैदा कर देता है कि ऐसी परिस्थितिमें; जहाँ कोई सहायता उपलब्ध नहीं हो सकती, वहाँ भगवान्का सहारा काम आता है और दुर्घटना होनेपर केवल उसकी ही सहायतासे मनुष्यका उद्धार सम्भव है। जैसे-जैसे ये अकल्पित घटनाएँ दोहराती चलती हैं, वैसे-वैसे विमानचालकके मनमें ईश्वरकी सत्ताके प्रति आस्था दृढ़ होती जाती है।
(३)
एक विमानचालकने, जो उस समयतक नास्तिक था, अपने जीवनको मोड़ देनेवाली एक घटना सुनायी। वह भी विगत महायुद्धके समयकी ही घटना है। यह चालक रसद लेकर अपने वायुयानमें बैठा हुआ जा रहा था कि अचानक सामनेसे आते हुए जर्मन बमवर्षकोंका काफिला दिखलायी दिया। शत्रुके विमानोंका बड़ा भारीकाफिला देखकर वह अकेला विमानचालक इतना घबरा गया कि उसका मस्तिष्क आगे कुछ देख ही नहीं पाया। इतनेमें पास ही बैठे हुए उसके सहयोगी गनर ( विमानमें लगी हुई मशीनगन चलानेवाला) ने जोरसे कहा, 'विमानको मोड़ो।' पर उस समयतक शत्रुके बमवर्षक बहुत समीप आ गये थे। यदि वह विमान मोड़ता भी, तो भी उन बमवर्षकोंकी गोलीकी मारके दायरे से बाहर नहीं जा सकता था। अतः कोई चारा न देखकर वह मौन होकर भगवान्से रक्षाके लिये प्रार्थना करने लगा। गनर अपना गला फाड़कर पुन: चिल्लाया- 'अरे सुनता नहीं, विमानको तत्काल मोड़।' पर विमानचालक एकदम मौन रहा। यह देखकर अपनी अन्तिम घड़ी निकट आयी जान वह गनर भी मौन होकर अपने पापोंके लिये भगवान् से क्षमा करनेकी प्रार्थनामें लीन हो गया। पता नहीं क्यों, उन जर्मन बमवर्षकोंके काफिलेके नेताके दिमागमें क्या विचार आया कि सारा का सारा काफिला कुछ ही क्षणोंके भीतर मुड़ा और जिस ओरसे आ रहा था, उसी ओर भागने लगा और समस्त बमवर्षक क्षणों में ही दृष्टिसे दूर होते हुए ओझल हो गये। पर उस विमानचालक और उसके सहयोगी गनरको यह विश्वास हो गया कि उनकी सच्चे मनसे की गयी प्रार्थनाने ही उन्हें मौत मुखमेंसे बाहर निकाल लिया।
एक चालक शत्रुके प्रदेशपरसे गुजर रहा था कि उसका विमान शत्रुकी विमानभेदी तोपोंकी मारके भीतर आ गया। तत्काल उसने अपने विमानको आकाशकी ओर मोड़नेकी चेष्टा की, पर विमानकी संचालन व्यवस्थाने काम करना बन्द कर दिया। उधर भूमिपरसे विमानभेदी तोपोंसे गोलियाँ छूटने लगीं। अन्त समय निकट आया देखकर विमानचालकने आर्त वाणीमें भगवान्से निवेदन किया-'हे भगवन्। सिर्फ इसी बार मुझे बचा ले, चाहे फिर न बचाना।' पलभरमें न मालूम क्या हुआ कि विमानकी संचालन व्यवस्थाने काम करना प्रारम्भ कर दिया और चालक विमानको मोड़कर तत्काल दूर आकाशमें उड़ गया।(४)
एक चालकको अपना पेशा प्रारम्भ करनेके कुछ समय बाद अपनी पत्नी और बाल-बच्चोंकी चिन्ता रहने लगी। वह यह सोचता रहता कि यदि मैं किसी दुर्घटनामें समाप्त हो गया तो मेरी पत्नी और बच्चोंकी व्यवस्था कैसे होगी। वह इसी सोच-विचारमें रहा करता था कि एक दिन उसे लड़ाईके मोरचेपर जानेका आदेश आ गया। अब तो उसकी जान बचना लगभग असम्भव ही हो गया। उसे अपने मृत पिताका कहा हुआ यह वचन याद आया कि 'जब विश्वमें सब सहारे समाप्त हो जाते हैं, तब भगवान्का सहारा ही काम देता है।' चालकको यद्यपि भगवान्में आस्था नहीं थी, पर मनको ढाँइस देनेके लिये भी कोई वस्तु न थी। अपनेको नितान्त निःसहाय पाकर उसके मनमें अपने पिताका उक्त वचन बार-बार याद आने लगा। अन्तमें जब वह मोरचेपर चलने लगा तब उसने दीन होकर भगवान्से प्रार्थना की 'हे भगवान्। यदि तु वास्तवमें कहाँ हो तो मेरी पत्नी और बच्चोंकी मदद करना। मैं तेरे ही सहारे उन्हें छोड़े जाता हूँ।' यह प्रार्थना कई बार करनेके पश्चात् वह लड़ाईपर चला गया। लड़ाई समाप्त होनेपर वह सुरक्षितरूपसे वापस लौट आया। तबसे ईश्वरके प्रति उसका विश्वास निरन्तर बढ़ता गया।
एक अमरीकी विमानचालकने अपने कमरेमें इस प्रकारके वाक्य लिखकर टाँग रखे थे- 'जब तुम कष्टमें होओ, तब भगवान सहायता के लिये प्रार्थना करो। वह इसमें सीमासे अधिक उदार है। जब तुम कष्टमें न होओ, तब भी उसे स्मरण करना न भूलो। उससे प्रतिदिन किया गया आत्मनिवेदन व्यर्थ नहीं जाता। भगवान् ही एकमात्र ऐसा अति सहृदय व्यक्ति है, जो किसी भी समय और किसी भी परिस्थिति में सहायताके लिये तैयार रहता है-अन्य किसीमें इतनी अधिक उदारता नहीं।
और यही भावनाएँ अधिकांश विमानचालकोंकी बन जाती हैं।
[ श्रीविश्वनाथजी कुलश्रेष्ठ ]
(1)
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(2)
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(3)
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aur yahee bhaavanaaen adhikaansh vimaanachaalakonkee ban jaatee hain.
[ shreevishvanaathajee kulashreshth ]