⮪ All भगवान की कृपा Experiences

योगक्षेमका वहन

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥

(गीता ९।२२) गुरुकुल काँगड़ीकी पुण्यभूमिमें कई दशक पहले दो ब्रहाचारी आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। बचपन से ही वे गुरुकुलमें एक साथ प्रविष्ट हुए थे। एक साथ ही रहने सहने, उठने-बैठने, खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखनेसे उनका स्नेह आठ वर्षमें निरन्तर बढ़ता ही गया था। प्रातः कालसे लेकर रात्रितक उनका विद्याभ्याससे अतिरिक्त समय परस्पर स्नेह-संलापमें व्यतीत होता था। वे दोनों ही धर्ममें श्रद्धा, ईश्वरपर विश्वास और सन्ध्या, हवन एवं गायत्री - जपमें अत्यन्त अभिरुचि रखते थे। प्रायः गंगातटपर बैठकर वे दोनों प्रातः गायत्री महामन्त्रका जप किया करते थे। उनको अपने कुलसे ही धर्ममें श्रद्धाके संस्कार मिले थे और गुरुकुलके पवित्र सत्संगने उनको निरन्तर परिपुष्ट किया था। वे व्याख्यान देने, पढ़ाई लिखाई और खेल आदिमें अपनी कक्षामें उत्तम माने जाते थे। गुरुजन उनपर विशेष कृपा रखते थे और अन्य सहाध्यायी ब्रह्मचारी उनका समादर करते थे।

सब दिन एक समान नहीं जाते, 'संयोगा विप्रयोगान्ताः ' की उक्तिके अनुसार उन दोनों ब्रह्मचारियोंको भी एक-दूसरेसे पृथक् होना पड़ा। ब्रह्मचारी रामचन्द्रके दादाजी उसका मासिक शुल्क गुरुकुलमें आठ वर्षसे भेज रहे थे, परंतु एकाएक उनका देहान्त हो गया। पिता ऐसी अवस्थामें नहीं थे कि ब्रह्मचारीका शुल्क भेज सकें। विवश हो रामचन्द्रको गुरुकुल छोड़ना पड़ा और जालन्धरमें अपने घरका आश्रय लेना पड़ा। गुरुकुलसे विदा होते समय जहाँ रामचन्द्रको बहुत दुःख था, वहाँ उसके प्रिय मित्र प्रकाशचन्द्रको भी बहुत कष्ट हो रहा था।

जालन्धर रामचन्द्र एक साधारण गृहमें रहने लगा। उसके पिता प्रातः कालसे सायंकालतक सरकारी दफ्तर में काम करते थे। गुरुकुलमें अपने साथियोंको छोड़नेके बाद ब्रह्मचारीको अपने घरमें किसी प्रकारका आकर्षण नहींप्रतीत हुआ। एक संग-से घरमें न तो गुरुकुलके समान स्वच्छ वायु और खुले आकाशके दर्शन ही होते थे, न निर्दोष आमोद-प्रमोद करनेवाले साथी-संगी ही दीखते थे, न आठ वर्षोंके निरन्तर अभ्यस्त शब्द ही कानोंको सुनने के लिये मिलते थे और न पाठ्य-पुस्तकोंकी ही चर्चा होती थी। घरमें इन सब बातोंके लिये अवकाश ही न था। छोटे-छोटे बच्चोंको लिये ब्रह्मचारीकी विमाता हर समय केवल इसी बातकी चर्चा चलाती रहती थी कि किस प्रकार अतिकष्टसे उनका जीवननिर्वाह हो रहा है। किस प्रकार उसके पिता के थोड़ेसे वेतनसे उनके अन्न-वस्त्र और दूध आदिका निर्वाह भी नहीं चलता है। अकेला पिता कबतक इस प्रकार कुटुम्बको पालेगा। ज्येष्ठ पुत्रको कुछ-न-कुछ कमाकर पिताकी शीघ्र ही सहायता करनी चाहिये, इत्यादि ।

ब्रह्मचारी इन बातोंको रात-दिन सुनता था और हर समय अपनेको इस योग्य बनानेके लिये प्रभुसे प्रार्थना किया करता था कि किसी प्रकार में भी अपने बाहुबलसे धनोपार्जन करके अपने माता-पिताकी सहायता करूँ। गुरुकुलसे आनेके बाद उसे कुछ दिन तो आशा रही कि मैं फिरसे गुरुकुलमें प्रविष्ट हो जाऊंगा और मेरे शुल्कका प्रबन्ध हो जायगा, परंतु भरकी दरिद्रावस्थाको देखकर उसने अपने चित्तसे सदाके लिये यह मोह दूर कर दिया और इसके साथ ही नगरके अन्य स्कूलोंसे भी उसे घृणा हो गयी।

उसके दिन इस प्रकार दिन-दिन उदासीमें बीत रहे थे। उसके साथ कभी सान्त्वनाकी बात करनेके लिये भी उसके घरमें कोई साथी संगी न था, आमोद-प्रमोदके लिये तो कौन होता? दो काल सन्ध्या करते हुए उसको आत्मचिन्तन करनेमें ही घंटों बीत जाते थे और अपनी विमातासे झिड़कियाँ सुननी पड़ती थीं नवयुवा पुत्र घरमें निठल्ला बैठा हो, भला विमाता यह कब सह सकती थी। उसने धीरे-धीरे पतिको भड़काना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे पितापर अपनी पत्नीका प्रभाव पड़ा और उसने भी पुत्रको कभी-कभी लताड़ना आरम्भ किया।एक दिन प्रातः काल ही सन्ध्यामें अधिक काल लगा देनेके कारण, माताने बहुत बुरा-भला कहा। पिताके दफ्तर जानेका समय हो गया था, परंतु उन्होंने भी अपनी पत्नीका साथ देते हुए ब्रह्मचारीको बहुत नौच-ऊँच सुनायी और क्रोधमें अन्धे होकर घरसे उसी समय बाहर निकल जानेकी आज्ञा दे दी। निर्दोष ईश्वरभक्त ब्रह्मचारी सिर झुकाये बैठा अपने अपराधपर विचार कर ही रहा था कि इस गृह निष्कासनकी आज्ञाको सुनकर उसके आँसू निकल पड़े और वह फूट फूटकर रोने लगा। परंतु इस घरमें उसे कोई भी आश्वासन देनेवाला न दिखायी दिया। अन्तको जब उसके पिता दफ्तर चले गये, तब उसने भी अनन्योपाय होकर घरसे बाहरका मार्ग पकड़ा।

घरसे दुत्कारा हुआ निरपराध ब्रह्मचारी नगरसे बाहर उजाड़ खेतोंकी ओर चला जा रहा था कि अकस्मात् उसे ध्यान आया कि उसके पास खाने पीने और ओढ़नेको कुछ भी नहीं है। उसने अपनी जेबको टटोला तो उसमें चार पैसे निकले। यह उसने अपने मित्रको पत्र लिखनेके लिय एक मास पूर्व अपने पिताजीसे लिये थे, परंतु आजतक भी उसने कोई पत्र प्रकाशचन्द्रको नहीं लिखा था; क्योंकि घरकी अवस्थाओंसे वह अपने प्यारे मित्रको सर्वथा भूलनेपर विवश हो गया था। सच है, परिस्थितियाँ चित्तवृत्तियों को श्री बदलती रहती हैं।

आज चार पैसोंको देखकर उसे अपने मित्रका स्मरण हो आया। उसने उसी समय दो-दो पैसेवाले दो पोस्टकार्ड (उस समय पोस्टकार्ड दो पैसेमें ही मिलता था) डाकघरसे खरीदे और खेतोंकी ओरको चल पड़ा।

आज तीन दिन हो गये, उसे खानेको कुछ न मिला था। पानी पी-पीकर उसने तीन दिन और तीन रात बिताये थे। उसने अत्यन्त निर्बलतामें अपने मित्र प्रकाशचन्द्रको एक पत्र लिखा। जिसका भाव यह था कि 'मैं तीन दिनसे निराहार, घरसे बाहर अति दुखी अवस्थामें पड़ा हूँ। यदि कुछ धन भेज सको तो इस पतेवर अवश्य भेज दो। मैं चाधरकेआर्यसमाजके मन्त्रीका पता भी उस पत्रमें लिख दिया था; क्योंकि उसे मन्त्रीजीपर पूर्ण विश्वास था ।

गुरुकुलमें जब ब्रह्मचारी प्रकाशचन्द्रको वह पत्र मिला तो वह अत्यन्त व्याकुल हो उठा। गुरुकुलके नियमानुसार कोई ब्रह्मचारी अपने पास पैसा नहीं रख सकते। प्रकाशके पास भी पैसा न था। उसे आशा थी कि उसके मित्रका पत्र कुछ अच्छे समाचार सुनायेगा, परंतु उसको तीन दिनसे निराहार जानकर वह व्याकुल हो उठा। बहुत सोच-विचारके बाद उसने सोचा कि मैं अपनी गरम कुर्ती बेचकर अपने मित्रको पैसे भेज दूँ और इस प्रकार अपने मित्रकी प्राण रक्षा करनेमें सहायता करूँ।

जाड़ेके दिन आरम्भ हो चुके थे। गरम कपड़ोंकी उन दिनों सभीको आवश्यकता होती है। उसने एक नौकरके साथ पाँच रुपयेमें अपनी कुर्तीका सौदा तय किया और तीसरे दिन वेतन मिलनेपर नौकरने पाँच रुपये लानेका बचन दिया। नौकरने कुर्ती भी उसी दिन लेनेको कहा। दो दिन बीचमें थे। प्रकाशका चित्त हर समय उदास रहने लगा।

तीसरे दिन दोपहर के समय पाँच रुपये लेकर नौकर ब्रह्मचारी प्रकाशचन्द्रके पास आया और उसी समय गुरुकुल कार्यालयका एक कर्मचारी आचार्यजीसे स्वीकृत किये हुए एक पत्रको लेकर पहुँचा। पत्रको पढ़ते ही प्रकाशचन्द्रको अत्यन्त प्रसन्नता हुई, वह पत्र इस प्रकार लिखा हुआ था-प्यारे भाई प्रकाश ! नमस्ते ! मेरा पहला पत्र तुमको मिला होगा, जिसमें मैंने अपनी अवस्था लिखकर तुमसे सहायता माँगी थी। उसके बाद मैं दो दिनतक तुम्हारे मनीआर्डर या पत्रकी प्रतीक्षा करता रहा; परंतु मैं जानता था कि इतनी जल्दी तुम्हारा पत्र और धन नहीं आ सकता। आज पूरे पाँच दिन हो चुके थे और निराहार होनेके कारण मैं अत्यन्त क्षीण होकर एक खेतमें पड़ा था। मुझमें उठने-बैठनेकी सामर्थ्य भी नहीं रही थी। मैं अपनी अवस्थापर आप ही लज्जित था। अनन्योपाय होकर उस समय मैं भगवान्से । मन-ही-मन प्रार्थना कर रहा था, तभी मुझे अत्यन्त जोरसे लघुशंकाका वेगहुआ। मैं व्याकुल होकरलघुशंका करनेको उठा और पास ही बह रही नालीकी ओर गया। बैठते ही मैंने देखा कि एक अद्भुत लिफाफा उस नालीमें बहता हुआ मेरी ओरको आ रहा है। मैंने उस लिफाफेको कौतुकवश उठा लिया और देखने लगा। उसे ज्यों ही खोला तो उसमें २०० रुपयेके नये नोट निकले। मुझे इससे बड़ा आश्चर्य हुआ; क्योंकि वहाँ आस-पास कोई मनुष्य न था और न मैंने तीन दिनसे उस नालीमें कोई लिफाफा देखा था। इसलिये मुझे यह निश्चय हो गया कि परमेश्वरकी ओरसे ही मेरी सहायताके लिये ये दो सौ रुपयेके नोट भेजे गये हैं और तब मैंने इन्हें अपने कार्यमें लानेका निश्चय किया। अब आप मेरे लिये कोई कष्ट न करें।अगले समाचार फिर कभी लिखूँगा ।

तुम्हारा भाई रामचन्द्र । ब्रह्मचारी रामचन्द्रने उसी २०० रुपयेसे अपना नवजीवन आरम्भ किया। आजकल वह अच्छा धन कमा रहा है। उसके घरसे कोई ईश्वरभक्त साधु-महात्मा बिना भिक्षा पाये नहीं जा सकता है। दोनों काल सारा कुटुम्ब मिलकर सन्ध्या, हवन, बलिवैश्वदेव तथा अतिथियज्ञ अवश्य करता है उसको माता-पितापर पहलेसे अधिक । श्रद्धा है; क्योंकि उनके उस दिनके दुर्व्यवहारके कारण ही उसे भगवान्‌का प्रत्यक्ष प्रसाद प्राप्त हुआ था और उसके बाद उसमें अपूर्व चेतना, कार्यक्षमता आदि गुण विकसित हो गये थे ।

[ श्रीविद्याधरजी विद्यालंकार ]



You may also like these:

Real Life Experience साधु-दम्पती


yogakshemaka vahana

ananyaashchintayanto maan ye janaah paryupaasate . teshaan nityaabhiyuktaanaan yogaksheman vahaamyaham ..

(geeta 9.22) gurukul kaangada़eekee punyabhoomimen kaee dashak pahale do brahaachaaree aathaveen kaksha men paढ़te the. bachapan se hee ve gurukulamen ek saath pravisht hue the. ek saath hee rahane sahane, uthane-baithane, khelane-koodane aur paढ़ne-likhanese unaka sneh aath varshamen nirantar badha़ta hee gaya thaa. praatah kaalase lekar raatritak unaka vidyaabhyaasase atirikt samay paraspar sneha-sanlaapamen vyateet hota thaa. ve donon hee dharmamen shraddha, eeshvarapar vishvaas aur sandhya, havan evan gaayatree - japamen atyant abhiruchi rakhate the. praayah gangaatatapar baithakar ve donon praatah gaayatree mahaamantraka jap kiya karate the. unako apane kulase hee dharmamen shraddhaake sanskaar mile the aur gurukulake pavitr satsangane unako nirantar paripusht kiya thaa. ve vyaakhyaan dene, padha़aaee likhaaee aur khel aadimen apanee kakshaamen uttam maane jaate the. gurujan unapar vishesh kripa rakhate the aur any sahaadhyaayee brahmachaaree unaka samaadar karate the.

sab din ek samaan naheen jaate, 'sanyoga viprayogaantaah ' kee uktike anusaar un donon brahmachaariyonko bhee eka-doosarese prithak hona pada़aa. brahmachaaree raamachandrake daadaajee usaka maasik shulk gurukulamen aath varshase bhej rahe the, parantu ekaaek unaka dehaant ho gayaa. pita aisee avasthaamen naheen the ki brahmachaareeka shulk bhej saken. vivash ho raamachandrako gurukul chhoda़na pada़a aur jaalandharamen apane gharaka aashray lena pada़aa. gurukulase vida hote samay jahaan raamachandrako bahut duhkh tha, vahaan usake priy mitr prakaashachandrako bhee bahut kasht ho raha thaa.

jaalandhar raamachandr ek saadhaaran grihamen rahane lagaa. usake pita praatah kaalase saayankaalatak sarakaaree daphtar men kaam karate the. gurukulamen apane saathiyonko chhoda़neke baad brahmachaareeko apane gharamen kisee prakaaraka aakarshan naheenprateet huaa. ek sanga-se gharamen n to gurukulake samaan svachchh vaayu aur khule aakaashake darshan hee hote the, n nirdosh aamoda-pramod karanevaale saathee-sangee hee deekhate the, n aath varshonke nirantar abhyast shabd hee kaanonko sunane ke liye milate the aur n paathya-pustakonkee hee charcha hotee thee. gharamen in sab baatonke liye avakaash hee n thaa. chhote-chhote bachchonko liye brahmachaareekee vimaata har samay keval isee baatakee charcha chalaatee rahatee thee ki kis prakaar atikashtase unaka jeevananirvaah ho raha hai. kis prakaar usake pita ke thoda़ese vetanase unake anna-vastr aur doodh aadika nirvaah bhee naheen chalata hai. akela pita kabatak is prakaar kutumbako paalegaa. jyeshth putrako kuchha-na-kuchh kamaakar pitaakee sheeghr hee sahaayata karanee chaahiye, ityaadi .

brahmachaaree in baatonko raata-din sunata tha aur har samay apaneko is yogy banaaneke liye prabhuse praarthana kiya karata tha ki kisee prakaar men bhee apane baahubalase dhanopaarjan karake apane maataa-pitaakee sahaayata karoon. gurukulase aaneke baad use kuchh din to aasha rahee ki main phirase gurukulamen pravisht ho jaaoonga aur mere shulkaka prabandh ho jaayaga, parantu bharakee daridraavasthaako dekhakar usane apane chittase sadaake liye yah moh door kar diya aur isake saath hee nagarake any skoolonse bhee use ghrina ho gayee.

usake din is prakaar dina-din udaaseemen beet rahe the. usake saath kabhee saantvanaakee baat karaneke liye bhee usake gharamen koee saathee sangee n tha, aamoda-pramodake liye to kaun hotaa? do kaal sandhya karate hue usako aatmachintan karanemen hee ghanton beet jaate the aur apanee vimaataase jhida़kiyaan sunanee pada़tee theen navayuva putr gharamen nithalla baitha ho, bhala vimaata yah kab sah sakatee thee. usane dheere-dheere patiko bhada़kaana praarambh kiyaa. dheere-dheere pitaapar apanee patneeka prabhaav pada़a aur usane bhee putrako kabhee-kabhee lataada़na aarambh kiyaa.ek din praatah kaal hee sandhyaamen adhik kaal laga deneke kaaran, maataane bahut buraa-bhala kahaa. pitaake daphtar jaaneka samay ho gaya tha, parantu unhonne bhee apanee patneeka saath dete hue brahmachaareeko bahut naucha-oonch sunaayee aur krodhamen andhe hokar gharase usee samay baahar nikal jaanekee aajna de dee. nirdosh eeshvarabhakt brahmachaaree sir jhukaaye baitha apane aparaadhapar vichaar kar hee raha tha ki is grih nishkaasanakee aajnaako sunakar usake aansoo nikal pada़e aur vah phoot phootakar rone lagaa. parantu is gharamen use koee bhee aashvaasan denevaala n dikhaayee diyaa. antako jab usake pita daphtar chale gaye, tab usane bhee ananyopaay hokar gharase baaharaka maarg pakada़aa.

gharase dutkaara hua niraparaadh brahmachaaree nagarase baahar ujaada़ khetonkee or chala ja raha tha ki akasmaat use dhyaan aaya ki usake paas khaane peene aur odha़neko kuchh bhee naheen hai. usane apanee jebako tatola to usamen chaar paise nikale. yah usane apane mitrako patr likhaneke liy ek maas poorv apane pitaajeese liye the, parantu aajatak bhee usane koee patr prakaashachandrako naheen likha thaa; kyonki gharakee avasthaaonse vah apane pyaare mitrako sarvatha bhoolanepar vivash ho gaya thaa. sach hai, paristhitiyaan chittavrittiyon ko shree badalatee rahatee hain.

aaj chaar paisonko dekhakar use apane mitraka smaran ho aayaa. usane usee samay do-do paisevaale do postakaard (us samay postakaard do paisemen hee milata thaa) daakagharase khareede aur khetonkee orako chal pada़aa.

aaj teen din ho gaye, use khaaneko kuchh n mila thaa. paanee pee-peekar usane teen din aur teen raat bitaaye the. usane atyant nirbalataamen apane mitr prakaashachandrako ek patr likhaa. jisaka bhaav yah tha ki 'main teen dinase niraahaar, gharase baahar ati dukhee avasthaamen pada़a hoon. yadi kuchh dhan bhej sako to is patevar avashy bhej do. main chaadharakeaaryasamaajake mantreeka pata bhee us patramen likh diya thaa; kyonki use mantreejeepar poorn vishvaas tha .

gurukulamen jab brahmachaaree prakaashachandrako vah patr mila to vah atyant vyaakul ho uthaa. gurukulake niyamaanusaar koee brahmachaaree apane paas paisa naheen rakh sakate. prakaashake paas bhee paisa n thaa. use aasha thee ki usake mitraka patr kuchh achchhe samaachaar sunaayega, parantu usako teen dinase niraahaar jaanakar vah vyaakul ho uthaa. bahut socha-vichaarake baad usane socha ki main apanee garam kurtee bechakar apane mitrako paise bhej doon aur is prakaar apane mitrakee praan raksha karanemen sahaayata karoon.

jaada़eke din aarambh ho chuke the. garam kapada़onkee un dinon sabheeko aavashyakata hotee hai. usane ek naukarake saath paanch rupayemen apanee kurteeka sauda tay kiya aur teesare din vetan milanepar naukarane paanch rupaye laaneka bachan diyaa. naukarane kurtee bhee usee din leneko kahaa. do din beechamen the. prakaashaka chitt har samay udaas rahane lagaa.

teesare din dopahar ke samay paanch rupaye lekar naukar brahmachaaree prakaashachandrake paas aaya aur usee samay gurukul kaaryaalayaka ek karmachaaree aachaaryajeese sveekrit kiye hue ek patrako lekar pahunchaa. patrako padha़te hee prakaashachandrako atyant prasannata huee, vah patr is prakaar likha hua thaa-pyaare bhaaee prakaash ! namaste ! mera pahala patr tumako mila hoga, jisamen mainne apanee avastha likhakar tumase sahaayata maangee thee. usake baad main do dinatak tumhaare maneeaardar ya patrakee prateeksha karata rahaa; parantu main jaanata tha ki itanee jaldee tumhaara patr aur dhan naheen a sakataa. aaj poore paanch din ho chuke the aur niraahaar honeke kaaran main atyant ksheen hokar ek khetamen pada़a thaa. mujhamen uthane-baithanekee saamarthy bhee naheen rahee thee. main apanee avasthaapar aap hee lajjit thaa. ananyopaay hokar us samay main bhagavaanse . mana-hee-man praarthana kar raha tha, tabhee mujhe atyant jorase laghushankaaka vegahuaa. main vyaakul hokaralaghushanka karaneko utha aur paas hee bah rahee naaleekee or gayaa. baithate hee mainne dekha ki ek adbhut liphaapha us naaleemen bahata hua meree orako a raha hai. mainne us liphaapheko kautukavash utha liya aur dekhane lagaa. use jyon hee khola to usamen 200 rupayeke naye not nikale. mujhe isase bada़a aashchary huaa; kyonki vahaan aasa-paas koee manushy n tha aur n mainne teen dinase us naaleemen koee liphaapha dekha thaa. isaliye mujhe yah nishchay ho gaya ki parameshvarakee orase hee meree sahaayataake liye ye do sau rupayeke not bheje gaye hain aur tab mainne inhen apane kaaryamen laaneka nishchay kiyaa. ab aap mere liye koee kasht n karen.agale samaachaar phir kabhee likhoonga .

tumhaara bhaaee raamachandr . brahmachaaree raamachandrane usee 200 rupayese apana navajeevan aarambh kiyaa. aajakal vah achchha dhan kama raha hai. usake gharase koee eeshvarabhakt saadhu-mahaatma bina bhiksha paaye naheen ja sakata hai. donon kaal saara kutumb milakar sandhya, havan, balivaishvadev tatha atithiyajn avashy karata hai usako maataa-pitaapar pahalese adhik . shraddha hai; kyonki unake us dinake durvyavahaarake kaaran hee use bhagavaan‌ka pratyaksh prasaad praapt hua tha aur usake baad usamen apoorv chetana, kaaryakshamata aadi gun vikasit ho gaye the .

[ shreevidyaadharajee vidyaalankaar ]

153 Views





Bhajan Lyrics View All

मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
हर पल तेरे साथ मैं रहता हूँ,
डरने की क्या बात? जब मैं बैठा हूँ
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया

New Bhajan Lyrics View All

चल मईया के द्वार पता नहीं क्या दे दे,
कर मईया से प्यार पता नहीं क्या दे दे,
लेले हरि को नाम जगत में, अंत आये तेरे
लेले हरि...
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे,
खाओ तुम मेरी कसम भूल तो ना जाओगे...
मैया ऊंचे भवन विराजो,
जयकारा गूंजे गली गली...
जैकारा मंदिरावली दा,
बोल सांचे दरबार की जय..