मानस मर्मज्ञ सन्त श्रीराजेश्वरानन्दजी सरस्वतीने इस सत्य घटनाका उल्लेख अपनी कथामें कई बार किया है। घटना बहुत ही रोचक एवं ग्रहण करनेयोग्य है। उसे उन्हीं के शब्दोंमें प्रस्तुत किया जाता है। घटना चालीस वर्ष पूर्वकी है। वृन्दावनकी गलीमें एक सन्त घूमते थे। उन्हें देखकर सब लोग कहते थे 'जज साहब' आ रहे हैं। एक अन्य सन्तने पूछने पर बताया कि ये पहले जज़ ही थे। दक्षिण भारतके एक शहरमें जजके पदपर सेवारत थे। उसी शहरके पासके किसी गाँव में अत्यन्त सरल स्वभावका एक केवट रहता था। उसकी विशेषता यह थी कि कोई भी उससे कुछ पूछता तो वह उत्तर देता था- 'रघुनाथजी जानें, मैं कुछ नहीं जानता।' लोगोंने उसका नाम 'भोला' रख दिया था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था, किंतु श्रीरघुनाथजीका परम भक्त था। उसके दो बेटे और एक बेटी थी। वह बेटी सयानी हो गयी, उसका विवाह करना था। बेटोंने कहा, 'पिताजी! गाँवके सेठजीसे रुपया उधार ले लें, ताकि विवाह कर सकें।'
भोलाने सेठजीसे २०० रुपये उधार लिये, ब्याज तय हो गया। बेटीका विवाह कर दिया गया। बेटीको ससुराल विदा करनेके बाद भोला गांवके रघुनाथजीके मन्दिरमें आकर वहीं रहने लगा। झाडू लगाना, साफ-सफाई करना तथा पुजारीद्वारा जो भी मन्दिरका काम बताया जाय, उसे प्रभुका काम मानकर तन्मयतापूर्वक करना, वहीं सोना आदि उसकी दिनचर्या थी। सदैव वहाँ रहते हुए उसका यह भाव रहता था
'जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे ।'
- रघुनाथजीके दर्शन करता, आरती लेता और समर्पित भावसे सेवा करता। पुजारी भी उससे बहुत प्रसन्न थे।
बेटोंने कमाई करके धनराशि लाकर पिताजीको दे दी कि सेठजीका ऋण ब्याजसहित चुका दें। भोला सेठजीके पास गया और व्याजसहित सारी ऋणकी राशिचुका दी। सेठजीने ब्याजसहित प्राप्त राशिकी रसीद उसे दे दी।
सेठजीने कहा - इसे देख लो, पढ़ लो, इसमें क्यालिखा है।
भोला बोला- 'मैं क्या जानूँ, रघुनाथजी जानें।' सेठजी समझ गये कि ये पढ़ा-लिखा नहीं है।' सेठजीने उससे रसीद ले ली, उनके मनमें बेईमानी आयी। सेठजी बोले, जरा मेरे लिये पानी ले आ। इसी बीच सेठजीने वह मौलिक रसीद अपने पास रख ली और दूसरे कागजपर किसी अन्य व्यक्तिके नामकी नकली रसीद बनाकर भोलाको दे दी। भोला सहर्ष इसे लेकर चला गया और बेफिक्र हो गया और गुनगुनाने लगा
सिर पर सीताराम फिकर फिर क्या करना।
कटेंगे कष्ट तमाम फिकर फिर क्या करना ।।
कुछ दिनों बाद सेठजीने रुपया वसूल करनेके लिये न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया। न्यायालयसे जजने नोटिस भेजा। भोलाको बुलाया गया और जजने भोलासे पूछा कि तुमने सेठजीका रुपया चुका दिया ? भोला बोला 'हाँ साहब' जज बोले कि रसीद है? भोलाने सेठजीका दिया हुआ वह कागज दिखाया। कागज देखकर जज बोले कि इसमें तो रुपया चुकानेकी बात ही नहीं है, यह तो और किसीका कागज है। भोला जजके समक्ष रोने लगा और बोला कि ब्याजसहित सारी रकम मैंने चुका दी।
जजने पूछा- 'क्या सेठजी और तुम्हारे बीच कोई आदमी था, जिसके सामने रुपये दिये थे ?'
भोला बोला- हाँ, रघुनाथजी थे।
जज समझे कि गाँवका ही कोई व्यक्ति होगा। उन्होंने भोलासे कहा, अभी तो तुम घर जाओ, जब हम बुलायें तब आना। जजने सेठजी तथा भोलाको नोटिस भेज दी। रघुनाथजीके नामकी भी नोटिस भेज दी। चपरासीको गाँवमें रघुनाथजी नामके किसी भी आदमीकापता नहीं चला। लोगोंसे पूछता रहा। किसीने बताया कि यहाँ रघुनाथजीका मन्दिर है। चपरासी मन्दिरमें गया। वहाँ तो पुजारी थे। उनको नोटिस दे दी। पुजारीने पढ़ा तो आश्चर्यचकित रह गये। वे मन-ही-मन कहने लगे-प्रभु! अभीतक आपके लिये वस्त्र, आभूषण, प्रसाद आदि आते रहे, आज नोटिस आ गयी, इसे भी स्वीकार करें और अपने केवट भक्तकी गवाही दें, जिसे एकमात्र आपका ही भरोसा है। पुजारीने भोलासे पूछा, तुमने रघुनाथजीका नाम क्यों लिखा दिया? भोला क्या उत्तर देता। अब 'रघुनाथजी जानें ऐसा ही सोचता। कोई भी काम करे तो रघुनाथजीकी ओर देखे। पक्का भरोसा था उसे वह गुनगुनाता था
हरि बिनु संकट कौन निवारे।
साधनहीन हूँ मैं जाऊँ किसके दुआरे ॥
जायेगी लाज तुम्हारी, नाथ मेरो कहा बिगरेगो ।
तेरो ही आसरो। मेरी हँसी नहीं तेरी हँसी है।
जायेगी लाज तुम्हारी० ॥
पुजारीने एक दिन पहले भोलाको घर भेज दिया कि कल पेशी है, तैयारी करो और समयपर पहुँच जाना। फिर पुजारीने दूसरे दिन जल्दी उठकर भगवान् रघुनाथजीको स्नान कराया, नये वस्त्र पहनाये, भोग लगाया और कहा आज आपको कोर्टमें जाना है। भोलाको आपका ही भरोसा है। जाना जरूर भगवन् ! उसका आपके सिवा कोई नहीं है। दूसरे दिन कोर्टमें भोला पहुँचा। जजने पूछा- 'तुम्हारे गवाह रघुनाथजी कहाँ हैं ?' भोला बोला-'वे तो सब जगह रहते हैं। आते ही होंगे।' जजके कहनेपर 'रघुनाथजी हाजिर हों' इस प्रकार तीन बार चपरासीने कोर्टमें आवाज लगायी। तीसरी आवाजपर दूरसे एक वृद्ध आदमी भालपर चन्दनका टीका, गलेमें तुलसीकी माला, हाथमें छड़ी लिये बोला, 'हुजूर! मैं आ रहा हूँ।' चपरासी उसका हाथ पकड़कर जजके पास ले गया। जजनेपूछा- 'क्या आपके सामने सेठजीको रुपये चुकाये गये ?' सर्वान्तर्यामी रघुनाथजी बोले, 'हाँ सेठजीने असली रसीद आलमारीमें रखे रजिस्टरमें छिपा दी है।
उसे घरसे मँगवाइये और सेठजीको यहीं रखिये।'
चपरासीको सेठजीके घर भेजा गया। रजिस्टर लाया गया, उसमें असली रसीद मिली। जजने देखी। सेठजीको गिरफ्तार कर लिया और केवट (भोला) को बरी कर दिया। गवाही देनेवाले चले गये। अपने चेम्बर में जनने भोलाको बुलाकर पूछा ये रघुनाथजी कहाँ रहते हैं ?"
भोला कहने लगा, 'वहीं रहते हैं, जहाँ में रहता हूँ।' जज बोले, 'तुम कहाँ रहते हो ?' भोलाने कहा 'जहाँ वे रहते हैं।' जज बोले कि देखनेसे तो ऐसा लगता है कि इनकी ऐसी हैसियत नहीं है कि मन्दिर बनवा लें। भोला फिर बोला कि ये वही हैं, जो मन्दिरमे बैठे हैं। ये ही गवाही देने आये थे जजने चपरापरीको बुलाया और पूछा तो बोला कि नोटिसकी प्राप्तिके हस्ताक्षर करनेवाले ये नहीं थे। जज सब समझ गये। उन्होंने तत्काल नौकरीसे त्यागपत्र दे दिया। तदनन्तर जज रोते-रोते बँगलेपर जा रहे हैं। लोगोंने पूछा कि रो क्यों रहे हो? जय पश्चात्ताप के स्वरमें कह रहे हैं
सुक सारद नारद सेस गनेसह के नहिं ध्यान में आते रहे।
सोइ आज विनीत अदालत में केवटा के गवाह कहातेरहे।
सुख धोखेहु दर्श दिये को भयो, दुख नाहिन जो तजिजाते रहे।
कुरसी पे बना जज बैठा रहा, जगदीस खड़े समझाते रहे।
जज साधुवेश धारणकर वृन्दावन चले गये। वे कभी मन्दिरके अन्दर नहीं जाते थे बाहर ही विचरण करते रहते और व्रजकी धूल सिरपर चढ़ाते रहते। गुनगुनाते हुए भगवान् से कहते-
आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ।
तेरे दर पे आने के काबिल नहीं हूँ ।।
खताचार हूँ मैं गुनहगार हूँ मैं
तुझे दिखाने के काबिल नहीं हूँ
[प्रो० श्रीबालकृष्णजी कुमावत]
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hari binu sankat kaun nivaare.
saadhanaheen hoon main jaaoon kisake duaare ..
jaayegee laaj tumhaaree, naath mero kaha bigarego .
tero hee aasaro. meree hansee naheen teree hansee hai.
jaayegee laaj tumhaaree0 ..
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bhola kahane laga, 'vaheen rahate hain, jahaan men rahata hoon.' jaj bole, 'tum kahaan rahate ho ?' bholaane kaha 'jahaan ve rahate hain.' jaj bole ki dekhanese to aisa lagata hai ki inakee aisee haisiyat naheen hai ki mandir banava len. bhola phir bola ki ye vahee hain, jo mandirame baithe hain. ye hee gavaahee dene aaye the jajane chaparaapareeko bulaaya aur poochha to bola ki notisakee praaptike hastaakshar karanevaale ye naheen the. jaj sab samajh gaye. unhonne tatkaal naukareese tyaagapatr de diyaa. tadanantar jaj rote-rote bangalepar ja rahe hain. logonne poochha ki ro kyon rahe ho? jay pashchaattaap ke svaramen kah rahe hain
suk saarad naarad ses ganesah ke nahin dhyaan men aate rahe.
soi aaj vineet adaalat men kevata ke gavaah kahaaterahe.
sukh dhokhehu darsh diye ko bhayo, dukh naahin jo tajijaate rahe.
kurasee pe bana jaj baitha raha, jagadees khada़e samajhaate rahe.
jaj saadhuvesh dhaaranakar vrindaavan chale gaye. ve kabhee mandirake andar naheen jaate the baahar hee vicharan karate rahate aur vrajakee dhool sirapar chadha़aate rahate. gunagunaate hue bhagavaan se kahate-
a to gaya hoon magar jaanata hoon.
tere dar pe aane ke kaabil naheen hoon ..
khataachaar hoon main gunahagaar hoon main
tujhe dikhaane ke kaabil naheen hoon
[pro0 shreebaalakrishnajee kumaavata]