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भगवान् कृष्णकी कृपा

यह घटना मेरे बचपनकी है, उस समय शायद मेरी आयु १२-१४ वर्ष रही होगी। मेरे गाँवमें कोई विशेष उत्सव नहीं होता था। सिर्फ भादौं माहकी जन्माष्टमीके दिन गाँव के किनारे एक अहातेमें एक झाँकी सजायी जाती थी तथा जन्मके समय सभी लोग पहुँचकर सामूहिक रूपसे झाँकीमें पूजन-आरती करते थे।

उस समय लकड़ीकी एक चौकीपर हरे बाँसकी पतली शाखाओंसे झाँकीका फ्रेम बनाया जाता था एवं पड़ोसकी औरतें अपने घरसे नयी-नयी तथा अच्छी अच्छी साड़ियाँ झाँकी सजानेहेतु देती थीं।

मैं आज एक इलेक्ट्रीशियन एवं मोटरवाइण्डरका कार्य करके परिवारका भरण-पोषण करता हूँ। बचपनसे ही मुझे टेक्निकल कामोंमें रुचि थी। इसीलिये मोहल्लेवालोंने मुझे ही झाँकी बनानेका काम सौंपा। मैंने जन्माष्टमीकेएक दिन पहले ही झाँकी बनानेका काम प्रारम्भ किया, अकेले काम करते हुए मैंने दोपहरतक हरे बाँसके द्वारा चौकीपर फ्रेम बना लिया था। एक छोटा-सा कृष्ण भगवान्का फ्रेम किया हुआ चित्र भी उस झाँकीके फ्रेमके बीचमें रख दिया।

अपनी बनायी हुई कलाकारी कितनी भी खराब क्यों न हो, अच्छी लगती है। मैं मात्र अण्डरगारमेन्ट पहने हुए | था, दोपहरतक काम करते-करते थक गया था। अतः दोनों पैर झाँकीकी ओर करके तथा दोनों हाथ पीछेकी ओर टिकाकर विश्राम करता हुआ झाँकीमें रखे कृष्ण भगवान्‌की सुन्दरताको अपलक निहार रहा था। तभी मुझे अपनी जाँघोंपर कुछ ठण्डापन महसूस हुआ, ध्यान हटा तो देखा कि एक मोटा काला नाग, जिसके फनपर सफेद चिह्न बना रहता है, पैरोंपर चल रहा है।ईश्वरकी प्रेरणासे ही मेरी दोनों आँखें बन्द हो गयीं तथा मैं भयवश हिला-डुला भी नहीं । कुछ प्रतीक्षा करनेके बाद भी मेरे पैरोंपर ही था वह नाग, मैंने डरते हुए आँखें खोलीं तो वह मेरे सिरकी ऊँचाईतक खड़ा होकर फन फैलाये झाँकीकी ओर देख रहा था

मेरी आँखें स्वतः बन्द हो गयीं एवं पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया, फिर एहसास हुआ किशायद नाग अब आगे बढ़ रहा है। मैंने पुनः आँखें खोल तथा उसकी पूँछके अपनी जाँघोंसे हटते ही पूरी ताकतसे 'साँप साँप' कहता हुआ भागा।

आज भी सोचता हूँ कि कुछ तो विशेष रहा होगा। जो भी हो; मुझे श्रीकृष्णकी प्रत्यक्ष कृपा तो अवश्य प्राप्त हुई थी, जिसको याद करनेपर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ।

[ श्रीवीरेन्द्रकुमारजी द्विवेदी ]



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bhagavaan krishnakee kripaa

yah ghatana mere bachapanakee hai, us samay shaayad meree aayu 12-14 varsh rahee hogee. mere gaanvamen koee vishesh utsav naheen hota thaa. sirph bhaadaun maahakee janmaashtameeke din gaanv ke kinaare ek ahaatemen ek jhaankee sajaayee jaatee thee tatha janmake samay sabhee log pahunchakar saamoohik roopase jhaankeemen poojana-aaratee karate the.

us samay lakada़eekee ek chaukeepar hare baansakee patalee shaakhaaonse jhaankeeka phrem banaaya jaata tha evan pada़osakee auraten apane gharase nayee-nayee tatha achchhee achchhee saada़iyaan jhaankee sajaanehetu detee theen.

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apanee banaayee huee kalaakaaree kitanee bhee kharaab kyon n ho, achchhee lagatee hai. main maatr andaragaarament pahane hue | tha, dopaharatak kaam karate-karate thak gaya thaa. atah donon pair jhaankeekee or karake tatha donon haath peechhekee or tikaakar vishraam karata hua jhaankeemen rakhe krishn bhagavaan‌kee sundarataako apalak nihaar raha thaa. tabhee mujhe apanee jaanghonpar kuchh thandaapan mahasoos hua, dhyaan hata to dekha ki ek mota kaala naag, jisake phanapar saphed chihn bana rahata hai, paironpar chal raha hai.eeshvarakee preranaase hee meree donon aankhen band ho gayeen tatha main bhayavash hilaa-dula bhee naheen . kuchh prateeksha karaneke baad bhee mere paironpar hee tha vah naag, mainne darate hue aankhen kholeen to vah mere sirakee oonchaaeetak khada़a hokar phan phailaaye jhaankeekee or dekh raha thaa

meree aankhen svatah band ho gayeen evan poora shareer paseene se tara-batar ho gaya, phir ehasaas hua kishaayad naag ab aage badha़ raha hai. mainne punah aankhen khol tatha usakee poonchhake apanee jaanghonse hatate hee pooree taakatase 'saanp saanpa' kahata hua bhaagaa.

aaj bhee sochata hoon ki kuchh to vishesh raha hogaa. jo bhee ho; mujhe shreekrishnakee pratyaksh kripa to avashy praapt huee thee, jisako yaad karanepar main aaj bhee romaanchit ho jaata hoon.

[ shreeveerendrakumaarajee dvivedee ]

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