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रोग और मन्त्र

मैं बालकपनसे ही जप करनेका अभ्यासी हूँ। जब मैं छोटा था, अपने पिताजीको गायत्रीका जप करते देखता था। इससे मुझे भी जप करनेकी ओर आकर्षण हो गया। जीवनमें अनेक बार जप, तप, योग, साधन आदि किये, पर इस बारके रोगमें जो मन्त्रका प्रभाव देखा, वह आश्चर्यजनक है।

घटना इस प्रकार है— मैं राजस्थानके आयुर्वेदिक विभाग का अध्यक्ष नियुक्त हुआ, और पहली बार ही मुझे बीकानेर और जोधपुरमें ग्रीष्मकालीन दौरा करना पड़ा। यहाँकी भयानक गर्मी और लूने अपना काम किया और मैं २५ अप्रैलको उदयपुर पहुँचते ही अंशुघातसे पीड़ित हो गया। प्रारम्भमें दो-तीन दिनोंतक व्याधिका प्रभाव अधिक नहीं रहा, पर २७ अप्रैलको उसने उग्ररूप धारण किया और अत्यन्त तीव्र सर्वांग-दाह, उग्रज्वर और मूर्च्छाने एक ही साथ शरीरपर प्रबल आक्रमण किया। सन्निपातज्वरके लक्षण प्रकट होने लगे। चिकित्सक घबरा गये और विविध प्रकारकी व्यवस्था करने लगे। मुझे सम्भवतः एक बार होश आया और मैंने सब चिकित्साएँ रोक दीं एवं आदेश दिया कि मुझे बिना चिकित्साके ही मरने दो।

इतनेमें ही मैं फिर मूच्छित हो गया। जब मुझे होश आया, रात्रिका अधिकांश बीत चुका था और तभी मुझे एक स्वप्न आया । मैंने देखा, एक काले रंगकी भयंकर मूर्ति हाथमें नंगी तलवार लिये मुझपर वार करनेके लिये दौड़ी आ रही है। मेरे समीप आनेपर 'तुम मुझको मार नहीं सकते, मैं महामृत्युंजय भगवान्के मन्त्रका जप करता हूँ' यह कहते हुए मैंने नीचे लिखे मन्त्रका जप करना प्रारम्भ किया। यह तो स्मरण नहीं कि मन्त्रोंका जप कितना किया, किंतु इतना याद है कि मन्त्रोंका जप कुछ करते ही वह मूर्ति पीछे हट गयी और मुझे एकलिंग महादेवके दर्शन हुए । मेरा ज्वर उसी दिन कम हो गया और मैं अपने आपको स्वस्थ अनुभव करने लगा।

वह मन्त्र इस प्रकार है —

"ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः । सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽअस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।'

शास्त्रोंमें इस मन्त्रको भयावह विपत्तियोंसे परित्राण पाने हेतु एक उत्कृष्ट उपायके रूपमें बताया गया है, जिसका प्रत्यक्ष परिणाम मेरे जीवनमें घटा और उस अपमृत्युसे मेरी रक्षा हो सकी।
[ कविराज श्रीप्रतापसिंहजी ]



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rog aur mantra

main baalakapanase hee jap karaneka abhyaasee hoon. jab main chhota tha, apane pitaajeeko gaayatreeka jap karate dekhata thaa. isase mujhe bhee jap karanekee or aakarshan ho gayaa. jeevanamen anek baar jap, tap, yog, saadhan aadi kiye, par is baarake rogamen jo mantraka prabhaav dekha, vah aashcharyajanak hai.

ghatana is prakaar hai— main raajasthaanake aayurvedik vibhaag ka adhyaksh niyukt hua, aur pahalee baar hee mujhe beekaaner aur jodhapuramen greeshmakaaleen daura karana pada़aa. yahaankee bhayaanak garmee aur loone apana kaam kiya aur main 25 aprailako udayapur pahunchate hee anshughaatase peeda़it ho gayaa. praarambhamen do-teen dinontak vyaadhika prabhaav adhik naheen raha, par 27 aprailako usane ugraroop dhaaran kiya aur atyant teevr sarvaanga-daah, ugrajvar aur moorchchhaane ek hee saath shareerapar prabal aakraman kiyaa. sannipaatajvarake lakshan prakat hone lage. chikitsak ghabara gaye aur vividh prakaarakee vyavastha karane lage. mujhe sambhavatah ek baar hosh aaya aur mainne sab chikitsaaen rok deen evan aadesh diya ki mujhe bina chikitsaake hee marane do.

itanemen hee main phir moochchhit ho gayaa. jab mujhe hosh aaya, raatrika adhikaansh beet chuka tha aur tabhee mujhe ek svapn aaya . mainne dekha, ek kaale rangakee bhayankar moorti haathamen nangee talavaar liye mujhapar vaar karaneke liye dauda़ee a rahee hai. mere sameep aanepar 'tum mujhako maar naheen sakate, main mahaamrityunjay bhagavaanke mantraka jap karata hoon' yah kahate hue mainne neeche likhe mantraka jap karana praarambh kiyaa. yah to smaran naheen ki mantronka jap kitana kiya, kintu itana yaad hai ki mantronka jap kuchh karate hee vah moorti peechhe hat gayee aur mujhe ekaling mahaadevake darshan hue . mera jvar usee din kam ho gaya aur main apane aapako svasth anubhav karane lagaa.

vah mantr is prakaar hai —

"oM aghorebhyo'th ghorebhyo ghoraghoratarebhyah . sarvebhyah sarvasharvebhyo namaste'astu rudraroopebhyah oM tatpurushaay vidmahe mahaadevaay dheemahi . tanno rudrah prachodayaat.'

shaastronmen is mantrako bhayaavah vipattiyonse paritraan paane hetu ek utkrisht upaayake roopamen bataaya gaya hai, jisaka pratyaksh parinaam mere jeevanamen ghata aur us apamrityuse meree raksha ho sakee.
[ kaviraaj shreeprataapasinhajee ]

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