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श्रीहनुमान्जीने प्राण-रक्षा की

बात है तो कई साल पुरानी, परंतु अपनी मार्मिकता और महत्त्वके कारण नित नवीन और सदा प्रेरणादायी लगती है। जब हमारे पिताजी एक विवाहमें वरयात्री दलके साथ स्वयं भी वरयात्री बनकर रेलमें सफर कर रहे थे। सर्दीके दिन थे, रेलगाड़ी अपनी पूरी रफ्तारसे चल रही थी।

वरयात्रियोंमें एक साठ-पैंसठ वर्षके वृद्ध व्यक्ति भी थे, जो हनुमान्जीके बड़े भक्त थे। उनको लघुशंकाकी इच्छा हुई। नियत स्थानपर नहीं जाकर लघुशंकाके लिये वे दरवाजेपर ही बैठ गये। बूढ़े आदमी थे, उन्होंने विचार किया कि चलती ट्रेनमें शौचालयमें जानेपर सम्भवतः लड़खड़ाकर गिर सकता हूँ। और बैठनेके साथ ही वे ट्रेनसे बाहर गिर गये। उनके गिरते ही डिब्बेके वरयात्रियों में खलबली मच गयी। तुरंत जंजीर खींची गयी, फिर भी गाड़ी रुकते रुकते ४-५ फर्लांग आगे बढ़ ही गयी। गार्ड तथा ड्राइवरसे कहकर गाड़ी थोड़ी दूर बैक (पीछे) करायी गयी। उधर जब वे गिरे थे तो एक आदमीने उन्हें गोदमें उठा लिया था। वहाँ उसने लकड़ी जलाकर उनकी सर्दी दूर की और कन्धेपर उठाकर रेलवे लाइनके पास ले आया। फिर उनसे बोला-'देखो, तुम्हारी गाड़ी वापस आ रही है' और गोदसे उतार दिया। इधर वरयात्री भी उतर रहे थे। जाकर साश्चर्य देखा- वे स्वयं चलकर ही अपने डिब्बेकी तरफ वापस आ रहे हैं। उन वृद्ध सज्जनको कोई विशेष चोट नहीं लगी।यह सब देखकर सभी लोग बड़े ही कौतूहल में पड़ गये। अपना कौतूहल और तीव्र जिज्ञासा शान्त करनेके लिये सभी वृद्धसे 'आप सकुशल तो हैं, आपको अधिक चोट तो नहीं आयी ?' इत्यादि प्रश्न करने लगे। वृद्धने जवाब दिया- 'जब मैं गाड़ीसे गिर गया तो एक आदमीने मुझे गोदमें ले लिया था। नीचे नहीं पड़ने दिया। फिर आग जला करके मुझे ठण्डसे बचाकर पुनः अपने कन्धेपर चढ़ाकर वह यहाँतक लाया तथा मुझे जमीनपर छोड़कर बोला- 'देखो, तुम्हारी गाड़ी आ रही है।' इस अद्भुत चमत्कारकी बात सुनकर वरयात्रियों तथा डिब्बेके अन्य लोगोंको यह समझते अब देर न लगी कि वृद्ध वरयात्रीकी रक्षा करनेवाले उन वृद्ध पुरुषके आराध्यदेव साक्षात् श्रीहनुमान्जी ही थे। लोगोंने आस-पास बहुत खोज की, पर किसीके अस्तित्वका कहीं कोई पता न चला। वे तो अपने भक्तकी प्राणरक्षा करके तथा उसकी असहायावस्था में अपनी भक्तवत्सलता दिखाकर अन्तर्धान हो चुके थे। साथके सब लोग हर्ष और आनन्दसे भर उठे दैवी कृपासे ही बहुत बड़ी अशुभ घटना घटित होनेसे बच गयी थी।

अब तो डिब्बेके सभी सहयात्रियोंका हृदय उन भक्त वृद्ध सज्जनके प्रति अत्यन्त सम्मान तथा उनके आराध्यदेवके प्रति अपार श्रद्धा-विश्वाससे भर उठा।

[ श्रीराजकुमारजी डालमिया ]



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shreehanumaanjeene praana-raksha kee

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ab to dibbeke sabhee sahayaatriyonka hriday un bhakt vriddh sajjanake prati atyant sammaan tatha unake aaraadhyadevake prati apaar shraddhaa-vishvaasase bhar uthaa.

[ shreeraajakumaarajee daalamiya ]

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