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यूनानकी बोधपरक लोककथाएँ  [Spiritual Story]
प्रेरक कथा - प्रेरक कहानी (प्रेरक कथा)

यूनानकी बोधपरक लोककथाएँ

यूनान और भारतके सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीनकालसे रहे हैं। विश्वकी प्राचीन सभ्यताओंमें यूनान और भारतकी सभ्यताओंकी गणना होती है। सुकरात तथा सिकन्दर के समयसे ही अनेक भारतवासी यूनानकी यात्रा करते थे। लोककथाएँ हर देश और हर समाजके लोकजीवनका अंग होती हैं, भारतकी ही भाँति यूनानकी श्री लोककथाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध, लोकप्रिय और शिक्षाप्रद हैं। विशेष बात यह है कि इन कथाओंपर बौद्ध जातकों और पंचतन्त्रका स्पष्ट प्रभाव भी परिलक्षित होता है। यहाँ यूनानकी कतिपय बोधपरक रोचक लोककथाएँ कल्याणके पाठकोंके लिये प्रस्तुत की जा रही हैं-सम्पादक
[1]
दुष्टोंके साथ ज्यादा मेल-जोल अच्छा नहीं
एक बार एक बाघके गले हड्डी अटक गयी। ने उसे निकालने की बड़ी चेष्टा की, पर उसे सफलता नहीं मिली। पीड़ासे परेशान होकर वह इधर-उधर दौड़ भाग करने लगा। किसी भी जानवरको सामने देखते ही वह कहता, 'भाई, यदि तुम मेरे गलेसे हड्डीको बाहर निकाल दो, तो मैं तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा।' परंतु कोई भी जीव भयके कारण उसको सहायता करनेको राजी नहीं हुआ।
आखिरकार पुरस्कारके लोभमें एक बगुला तैयार हो गया। उसने बाघके मुँहमें अपनी लम्बी चाँच डालकर काफी प्रयासके बाद उस हड्डीको बाहर निकाल दिया। बाघको बड़ी राहत मिली। बगुलेद्वारा पुरस्कारकी बात उठानेपर वह आँखें तरेरकर दाँत पोसते हुए बोला, 'अरे मूर्ख, तूने बाघके मुँहमें अपनी चोंच डाल दो थी; उसे तू सुरक्षित रूपसे बाहर निकाल सका है, इसीमें अपना भाग्य न मानकर ऊपरसे पुरस्कार माँग रहा है? यदि तुझे अपनी जान प्यारी है, तो मेरे सामनेसे दूर हो जा; नहीं तो अभी तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा।' यह सुनकर बगुला स्तब्ध रह गया और तत्काल वहाँसे चल दिया।
ठीक ही कहा है- दुष्टोंके साथ ज्यादा मेल-जोलअच्छा नहीं।



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yoonaanakee bodhaparak lokakathaaen

yoonaanakee bodhaparak lokakathaaen

yoonaan aur bhaaratake sambandh atyant praacheenakaalase rahe hain. vishvakee praacheen sabhyataaonmen yoonaan aur bhaaratakee sabhyataaonkee ganana hotee hai. sukaraat tatha sikandar ke samayase hee anek bhaaratavaasee yoonaanakee yaatra karate the. lokakathaaen har desh aur har samaajake lokajeevanaka ang hotee hain, bhaaratakee hee bhaanti yoonaanakee shree lokakathaaen atyant prasiddh, lokapriy aur shikshaaprad hain. vishesh baat yah hai ki in kathaaonpar bauddh jaatakon aur panchatantraka spasht prabhaav bhee parilakshit hota hai. yahaan yoonaanakee katipay bodhaparak rochak lokakathaaen kalyaanake paathakonke liye prastut kee ja rahee hain-sampaadaka
[1]
dushtonke saath jyaada mela-jol achchha naheen
ek baar ek baaghake gale haddee atak gayee. ne use nikaalane kee bada़ee cheshta kee, par use saphalata naheen milee. peeda़aase pareshaan hokar vah idhara-udhar dauda़ bhaag karane lagaa. kisee bhee jaanavarako saamane dekhate hee vah kahata, 'bhaaee, yadi tum mere galese haddeeko baahar nikaal do, to main tumhen ek vishesh puraskaar doonga aur aajeevan tumhaara rinee rahoongaa.' parantu koee bhee jeev bhayake kaaran usako sahaayata karaneko raajee naheen huaa.
aakhirakaar puraskaarake lobhamen ek bagula taiyaar ho gayaa. usane baaghake munhamen apanee lambee chaanch daalakar kaaphee prayaasake baad us haddeeko baahar nikaal diyaa. baaghako bada़ee raahat milee. baguledvaara puraskaarakee baat uthaanepar vah aankhen tarerakar daant posate hue bola, 'are moorkh, toone baaghake munhamen apanee chonch daal do thee; use too surakshit roopase baahar nikaal saka hai, iseemen apana bhaagy n maanakar ooparase puraskaar maang raha hai? yadi tujhe apanee jaan pyaaree hai, to mere saamanese door ho jaa; naheen to abhee teree gardan maroda़ doongaa.' yah sunakar bagula stabdh rah gaya aur tatkaal vahaanse chal diyaa.
theek hee kaha hai- dushtonke saath jyaada mela-jolaachchha naheen.

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