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वरणीय दुःख है, सुख नहीं  [बोध कथा]
Hindi Story - Spiritual Story (Short Story)

सुख के माथे सिल परौ जो नाम हृदय से जाय।

बलिहारी वा दुःख की जो पल-पल नाम रटाय ॥

महाभारतका युद्ध समाप्त हो चुका था। विजयी धर्मराज सिंहासनासीन हो चुके थे। अश्वत्थामाने पाण्डवोंका वंश ही नष्ट करनेके लिये ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया; किंतु जनार्दनने पाण्डवोंकी और उत्तराके गर्भस्थ शिशुकी भी उससे रक्षा कर दी। अब वे श्रीकृष्णचन्द्र द्वारका जाना चाहते थे। इसी समय देवी कुन्ती उनके पास आयीं। वे प्रार्थना करने लगीं। बड़ी अद्भुत प्रार्थना की उन्होंने अपनी प्रार्थनामें उन्होंने ऐसी चीज माँगी, जो कदाचित् ही कोई माँगनेका साहस करे। उन्होंने माँगा-

विपदः सन्तु नः शश्वत् तत्र तत्र जगद्गुरो ।

भवतो दर्शनं यत् स्यादपुनर्भवदर्शनम्॥

(श्रीमद्भा0 1। 8 । 25)

'हे जगद्गुरो ! जीवनमें बार-बार हमपर विपत्तियाँ ही आती रहें। क्योंकि जिनका दर्शन होनेसे जीव फिर संसारमें नहीं आता, उन आपका दर्शन तो उन (विपत्तियों) में ही होता है। '

यह देवी कुन्तीका अपना अनुभव है। उनका जीवन विपत्तियोंमें ही बीता और विपत्तियाँ भगवान्का वरदान हैं, उनमें वे मङ्गलमय निरन्तर चित्तमें निवास करते हैं, यह उन्होंने भली प्रकार अनुभव किया। अबउनके पुत्रोंका राज्य निष्कण्टक हो गया। उन्हें लगा कि विपत्तिरूपी निधि अब हाथसे चली गयी। इसीसे श्यामसुन्दरसे विपत्तियोंका वरदान माँगा उन्होंने ।प्रमादी सुखी जीवन धिक्कारके योग्य है। धन्य है वह विपद्ग्रस्त जीवनका दुःखपूरित क्षण, जिसमें वे अखिलेश्वर स्मरण आते हैं। - सु0 सिं0 (श्रीमद्भागवत 1।8)



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varaneey duhkh hai, sukh naheen

sukh ke maathe sil parau jo naam hriday se jaaya.

balihaaree va duhkh kee jo pala-pal naam rataay ..

mahaabhaarataka yuddh samaapt ho chuka thaa. vijayee dharmaraaj sinhaasanaaseen ho chuke the. ashvatthaamaane paandavonka vansh hee nasht karaneke liye brahmaastraka prayog kiyaa; kintu janaardanane paandavonkee aur uttaraake garbhasth shishukee bhee usase raksha kar dee. ab ve shreekrishnachandr dvaaraka jaana chaahate the. isee samay devee kuntee unake paas aayeen. ve praarthana karane lageen. bada़ee adbhut praarthana kee unhonne apanee praarthanaamen unhonne aisee cheej maangee, jo kadaachit hee koee maanganeka saahas kare. unhonne maangaa-

vipadah santu nah shashvat tatr tatr jagadguro .

bhavato darshanan yat syaadapunarbhavadarshanam..

(shreemadbhaa0 1. 8 . 25)

'he jagadguro ! jeevanamen baara-baar hamapar vipattiyaan hee aatee rahen. kyonki jinaka darshan honese jeev phir sansaaramen naheen aata, un aapaka darshan to un (vipattiyon) men hee hota hai. '

yah devee kunteeka apana anubhav hai. unaka jeevan vipattiyonmen hee beeta aur vipattiyaan bhagavaanka varadaan hain, unamen ve mangalamay nirantar chittamen nivaas karate hain, yah unhonne bhalee prakaar anubhav kiyaa. abaunake putronka raajy nishkantak ho gayaa. unhen laga ki vipattiroopee nidhi ab haathase chalee gayee. iseese shyaamasundarase vipattiyonka varadaan maanga unhonne .pramaadee sukhee jeevan dhikkaarake yogy hai. dhany hai vah vipadgrast jeevanaka duhkhapoorit kshan, jisamen ve akhileshvar smaran aate hain. - su0 sin0 (shreemadbhaagavat 1.8)

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