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शरीरमें अनासक्त भगवद्भक्तको कहीं भय नहीं  [Shikshaprad Kahani]
हिन्दी कथा - हिन्दी कथा (आध्यात्मिक कथा)

महात्मा जडभरत तो अपनेको सर्वथा जड़की ही भाँति रखते थे। कोई भी कुछ काम बतलाता तो कर देते। वह बदले में कुछ भोजन दे देता तो उसे खा लेते। नहीं देता तो भी प्रसन्न बने रहते। भोजनमें कौन क्या देता है, यह जैसे उन्हें पता ही नहीं लगता। कोई अच्छा भोजन दे, सूखी रोटी दे, जला भात दे या और कुछ दे अरे वे तो भूसी, चावलको जली खुरचुन भी अमृतकी भाँति खा लिया करते थे। सर्दी हो या गरमी, वर्षा हो या सूखा- वे सदा नंगे शरीर अलमस्त घूमते रहते। भूमिपर, खेतमें, मेहपर, जहाँ निद्रा आयी सो गये। ऐसे व्यक्तिसे स्वच्छता, सुसंगत व्यवहारकी आशा कोई कैसे करे। मैला-कुचैला जनेऊ कमरमें लपेट रखा था, इसीसे पहचाने जाते थे कि द्विजाति हैं। माता-पिताकी मृत्युके बाद सौतेले भाइयोंसे पालन-पोषण प्राप्त हो, इसकी अपेक्षा नहीं थी और अपना भी कहीं कुछ स्वत्व हो सकता है, यह उस दिव्य मनमें आ ही नहीं सकता था। लोगोंको इतना सस्ता मजदूर भला, कहाँ मिलता। भरतको तो किसीकी भी आज्ञाको अस्वीकार करना आता ही न था ।

भाइयोंने देखा कि जडभरत औरोंका काम करके उनका दिया भोजन करते हैं तो कुख्याति होती है। अतः उन्होंने जडभरतको अपने ही खेतपर रखवालीके लिये बैठा दिया। भरत खेतकी रखवालीको बैठ तो गये; किंतु अपना खेत, पराया खेत वे क्या जानें और रखवाली में खेतपर बैठे रहने के अतिरिक्त भी कुछ करना है, इसका उन्हें क्या पता। हाँ, वे खेतपर बैठे अवश्य रहते थे। अँधेरी रातमें भी वे खेतकी मेड़पर जमे बैठे ही रहते थे।उसी समय कोई शूद्र सरदार देवी भद्रकालीको पुत्र प्राप्तिकी इच्छासे मनुष्य-बलि देना चाहता था। उसने बलिके लिये मनुष्य प्राप्त कर लिया था; किंतु ठीक बलिदानकी रात्रिमें वह मनुष्य किसी प्रकार भाग गया। उस सरदारके सेवक उस मनुष्यको ढूँढ़ने निकले रात्रिमें उन्हें वह मनुष्य तो मिला नहीं, खेतकी रखवाली करते जडभरत मिल गये। चिन्ता-शोकसे सर्वथा रहित होनेके कारण जडभरतका शरीर खूब मोटा-तगड़ा था। शूद्र सरदारके सेवकोंने देखा कि यह बलिके लिये अच्छा पशु है; बस, वे प्रसन्न हो गये। रस्सियोंसे जडभरतको बाँधकर देवीके मन्दिरमें उन्हें ले गये।

'हम तुम्हारी पूजा करेंगे!' शूद्र सरदार भी प्रसन्न हुआ। जडभरत जैसा मोटा व्यक्ति बलिदानके लिये मिलनेसे विशेष सुविधा यह थी कि यह ऐसा व्यक्ति था जो किसी प्रकारका भी विरोध नहीं कर रहा था।

'अच्छा, पूजा करो!' जडभरतको तो सब बातें पहलेसे स्वीकार थीं। "तुम भरपेट भोजन कर लो !' सरदारने नाना प्रकारके व्यञ्जन सामने रखे। "अच्छा, भोजन करेंगे।' भरतने डटकर भोजन किया।

"हम तुम्हारा बलिदान करेंगे।' भली प्रकार पूजन करके सरदारने भरतको देवीके सम्मुख खड़ा किया और हाथमें अभिमन्त्रित तलवार ली। 'अच्छा, बलिदान करो।' भरतके लिये तो मानो यह भी भोजन या पूजन जैसी ही कोई क्रिया थी । शूद्र सरदारने तलवार उठायी; किंतु भगवद्भक्तआत्मज्ञानीका बलिदान ले सकें, इतनी शक्ति देवी भद्रकालीमें भी नहीं है। उनकी मूर्तिके सम्मुख, उनके निमित्त ऐसे शरीरातीत परम भागवतका मस्तक कटे कदाचित् इससे पहले उनका स्वयंका अस्तित्व संदिग्ध हो जायगा। यह कल्पना नहीं है, स्वयं देवी भद्रकालीको यही प्रतीत हुआ। उनका शरीर भस्म हुआ जा रहा था। क्रोधके मारे अट्टहास करती वे आधे पलमें प्रकट हो गयीं और शूद्र सरदारके हाथकी तलवार छीनकरसरदार और उसके सेवकोंका मस्तक उन्होंने एक झटके में उड़ा दिया। अपने गणोंके साथ आवेशमें वे उनका रक्त पीने लगीं, उनके मस्तकोंको उछालने और नृत्य करने लगीं।

जडभरत—वे परम तत्त्वज्ञ असङ्ग महापुरुष, उनके लिये जैसे अपनी मृत्युका कुछ अर्थ ही न था, वैसे ही भद्रकालीकी क्रीड़ा भी एक कौतुकमात्र थी। वे चुपचाप वहाँसे चले गये।

- सु0 सिं0 (श्रीमद्भागवत 5। 9)



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shareeramen anaasakt bhagavadbhaktako kaheen bhay naheen

mahaatma jadabharat to apaneko sarvatha jada़kee hee bhaanti rakhate the. koee bhee kuchh kaam batalaata to kar dete. vah badale men kuchh bhojan de deta to use kha lete. naheen deta to bhee prasann bane rahate. bhojanamen kaun kya deta hai, yah jaise unhen pata hee naheen lagataa. koee achchha bhojan de, sookhee rotee de, jala bhaat de ya aur kuchh de are ve to bhoosee, chaavalako jalee khurachun bhee amritakee bhaanti kha liya karate the. sardee ho ya garamee, varsha ho ya sookhaa- ve sada nange shareer alamast ghoomate rahate. bhoomipar, khetamen, mehapar, jahaan nidra aayee so gaye. aise vyaktise svachchhata, susangat vyavahaarakee aasha koee kaise kare. mailaa-kuchaila janeoo kamaramen lapet rakha tha, iseese pahachaane jaate the ki dvijaati hain. maataa-pitaakee mrityuke baad sautele bhaaiyonse paalana-poshan praapt ho, isakee apeksha naheen thee aur apana bhee kaheen kuchh svatv ho sakata hai, yah us divy manamen a hee naheen sakata thaa. logonko itana sasta majadoor bhala, kahaan milataa. bharatako to kiseekee bhee aajnaako asveekaar karana aata hee n tha .

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'ham tumhaaree pooja karenge!' shoodr saradaar bhee prasann huaa. jadabharat jaisa mota vyakti balidaanake liye milanese vishesh suvidha yah thee ki yah aisa vyakti tha jo kisee prakaaraka bhee virodh naheen kar raha thaa.

'achchha, pooja karo!' jadabharatako to sab baaten pahalese sveekaar theen. "tum bharapet bhojan kar lo !' saradaarane naana prakaarake vyanjan saamane rakhe. "achchha, bhojan karenge.' bharatane datakar bhojan kiyaa.

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jadabharata—ve param tattvajn asang mahaapurush, unake liye jaise apanee mrityuka kuchh arth hee n tha, vaise hee bhadrakaaleekee kreeda़a bhee ek kautukamaatr thee. ve chupachaap vahaanse chale gaye.

- su0 sin0 (shreemadbhaagavat 5. 9)

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