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सच्ची शिक्षा  [Short Story]
बोध कथा - Spiritual Story (आध्यात्मिक कहानी)

रविशंकर महाराज एक गाँवमें सवा सौ मन गुड़ बाँट रहे थे। एक लड़कीको वे जब गुड़ देने लगे, तब उसने इन्कार करते हुए कहा-'मैं नहीं लूंगी।"

'क्यों?' महाराजने पूछा। 'मुझे शिक्षा मिली है कि यों नहीं लेना चाहिये।'

तो कैसे लेना चाहिये ?"

'ईश्वरने दो हाथ तथा दो पैर दिये हैं और उनके बीचमें पेट दिया है। इसलिये मुफ्त कुछ भी नहीं लेना चाहिये। यह तो आप मुफ्त दे रहे हैं, मजदूरीसे मिले। तो ही लेना चाहिये।'

महाराजको आश्चर्य हुआ । इसको ऐसी शिक्षा देनेवाला कौन है, यह जाननेके लिये उन्होंने पूछा- 'तुझे यह सीख किसने दी ?'

'मेरी माँने।'

महाराज उसकी मौके पास गये और पूछा—'तुमने लड़कीको यह सीख कैसे दी ?"

'क्यों महाराज? मैंने इसमें नयी बात क्या कही ? भगवान्ने हाथ-पग दिये हैं, तब मुफ्त क्यों लेना चाहिये ?'

'तुमने धर्मशास्त्र पढ़े हैं?"

'तुम्हारी आजीविका किस प्रकार चलती है ?'

'भगवान् सिरपर बैठा है मैं लकड़ी काट लाती हूँ और उससे अनाज मिल जाता है। लड़की राँध लेती है।' यों मजदूरीसे हमारा गुजरान सुख-संतोषके साथ निभ रहा है। 'तो इस लड़कीके पिताजी ....।'वह बहिन उदास हो गयी, कुछ देर ठहरकर | बोली-'लड़कीके पिता थोड़ी उम्र लेकर आये थे। जवानीमें ही वे हमें अकेले छोड़कर चले गये। यद्यपि लगभग तीस बीघे जमीन और दो बैल वे छोड़ गये थे. तो भी मैंने विचार किया कि इस सम्पत्तिमें मेरा क्या लेना-देना है, मैं कब इसके लिये पसीना बहाने गय थी?' अथवा यदि मैं पुरानी बुढ़िया होती या अपंग अथवा अशक्त होती तो अपने लिये सम्पत्तिका उपयोग भी करती। परंतु ऐसी तो मैं थी नहीं। मेरे मनमें आया कि इस सम्पत्तिका क्या करूँ और भगवान्ने ही मुझे यह सुझाव दिया कि यदि यह सम्पत्ति गाँवके किसी भलाई के काममें लगा दी जाय तो बहुत अच्छा हो। मैंने सोचा, ऐसा कौन-सा कार्य हो सकता है-मेरी समझमें यह आया कि इस गाँवमें जलकी बहुत तकलीफ है, इसलिये कुँआ बनवा दूँ। मैंने सम्पत्ति बेच दी और उससे मिली हुई रकम एक सेठको सौंपकर उनसे कहा कि 'आप इन पैसोंसे एक कुँआ बनवा दें।' सेठ भले आदमी थे। उन्होंने परिश्रम और कोर-कसर करके कुऍके साथ ही उसी रकममेंसे पशुओंके जल पीनेके लिये खेल भी बनवा दी।'

इस प्रकार उस बहिनने पतिकी सम्पत्तिका हक | छोड़ करके उसका सद्व्यय किया। उसे नहीं तो उसके हृदयको तो इतनी शिक्षा अवश्य मिली होगी कि 'मैं जो पतिको व्याही गयी हूँ सो सम्पत्तिके लिये नहीं, पर ईश्वरकी - सत्यकी प्राप्तिके मार्गमें आगे बढ़नेके लिये ही ब्याही गयी हूँ।' इस प्रकारकी समझ तथा संस्कारसे बढ़कर और कौन-सी शिक्षा हो सकती है।



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sachchee shikshaa

ravishankar mahaaraaj ek gaanvamen sava sau man guda़ baant rahe the. ek lada़keeko ve jab guda़ dene lage, tab usane inkaar karate hue kahaa-'main naheen loongee."

'kyon?' mahaaraajane poochhaa. 'mujhe shiksha milee hai ki yon naheen lena chaahiye.'

to kaise lena chaahiye ?"

'eeshvarane do haath tatha do pair diye hain aur unake beechamen pet diya hai. isaliye mupht kuchh bhee naheen lena chaahiye. yah to aap mupht de rahe hain, majadooreese mile. to hee lena chaahiye.'

mahaaraajako aashchary hua . isako aisee shiksha denevaala kaun hai, yah jaananeke liye unhonne poochhaa- 'tujhe yah seekh kisane dee ?'

'meree maanne.'

mahaaraaj usakee mauke paas gaye aur poochhaa—'tumane lada़keeko yah seekh kaise dee ?"

'kyon mahaaraaja? mainne isamen nayee baat kya kahee ? bhagavaanne haatha-pag diye hain, tab mupht kyon lena chaahiye ?'

'tumane dharmashaastr padha़e hain?"

'tumhaaree aajeevika kis prakaar chalatee hai ?'

'bhagavaan sirapar baitha hai main lakada़ee kaat laatee hoon aur usase anaaj mil jaata hai. lada़kee raandh letee hai.' yon majadooreese hamaara gujaraan sukha-santoshake saath nibh raha hai. 'to is lada़keeke pitaajee .....'vah bahin udaas ho gayee, kuchh der thaharakar | bolee-'lada़keeke pita thoda़ee umr lekar aaye the. javaaneemen hee ve hamen akele chhoda़kar chale gaye. yadyapi lagabhag tees beeghe jameen aur do bail ve chhoda़ gaye the. to bhee mainne vichaar kiya ki is sampattimen mera kya lenaa-dena hai, main kab isake liye paseena bahaane gay thee?' athava yadi main puraanee budha़iya hotee ya apang athava ashakt hotee to apane liye sampattika upayog bhee karatee. parantu aisee to main thee naheen. mere manamen aaya ki is sampattika kya karoon aur bhagavaanne hee mujhe yah sujhaav diya ki yadi yah sampatti gaanvake kisee bhalaaee ke kaamamen laga dee jaay to bahut achchha ho. mainne socha, aisa kauna-sa kaary ho sakata hai-meree samajhamen yah aaya ki is gaanvamen jalakee bahut takaleeph hai, isaliye kuna banava doon. mainne sampatti bech dee aur usase milee huee rakam ek sethako saunpakar unase kaha ki 'aap in paisonse ek kuna banava den.' seth bhale aadamee the. unhonne parishram aur kora-kasar karake kuऍke saath hee usee rakamamense pashuonke jal peeneke liye khel bhee banava dee.'

is prakaar us bahinane patikee sampattika hak | chhoda़ karake usaka sadvyay kiyaa. use naheen to usake hridayako to itanee shiksha avashy milee hogee ki 'main jo patiko vyaahee gayee hoon so sampattike liye naheen, par eeshvarakee - satyakee praaptike maargamen aage badha़neke liye hee byaahee gayee hoon.' is prakaarakee samajh tatha sanskaarase badha़kar aur kauna-see shiksha ho sakatee hai.

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