⮪ All भक्त चरित्र

गीता-दण्डवती भक्त जोग परमानन्दद की मार्मिक कथा
गीता-दण्डवती भक्त जोग परमानन्दद की अधबुत कहानी - Full Story of गीता-दण्डवती भक्त जोग परमानन्दद (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [गीता-दण्डवती भक्त जोग परमानन्दद]- भक्तमाल


दक्षिण भारतके वारसी नामक ग्राममें जोग परमानन्दजीका जन्म हुआ था। जब ये छोटे बालक थे, इनके गाँवमें भगवान की कथा तथा कीर्तन हुआ करता था। इनकी कथा सुननेमें रुचि थी। कोर्तन इन्हें अत्यन्त प्रिय था। कभी रातको देरतक कथा या कीर्तन होता रहता तो ये -से भूख-प्यास भूलकर मन्त्रमुग्ध से सुना करते। एक दिन कथा सुनते समय जोग परमानन्दजी अपने-आपको भूल गये। व्यासगदीपर बैठे वक्ता भगवान्के त्रिभुवन कमनीय स्वरूपका वर्णन कर रहे थे। जोग परमानन्दका वित्त उसी श्यामसुन्दरकी रूपमाधुरीके सागरमें डूब गया। नेत्र खोला तो देखते हैं कि वही वनमाली, पीताम्बरधारी प्रभु सामने खड़े हैं। परमानन्दकी अश्रुधाराने प्रभुके लाल-लाल श्रीचरणोंको पखार दिया और कमललोचन श्रीहरिके नेत्रोंसे कृपाके अमृतबिन्दुओंने गिरकर परमानन्दके मस्तकको धन्य बना दिया।

लोग कहने लगे कि जोग परमानन्द पागल हो गये। संसारकी दृष्टिमें जो विषयकी आसक्ति छोड़कर, इस बिषके प्यालेको पटककर ब्रजेन्द्र-सुन्दरमें अनुरक्त होता है, जो उस अमृतके प्यालेको होठोंसे लगाता है, उसे यहाँको मृग मरीचिकामें दौड़ते, तड़पते, जलते प्राणी पागल ही कहते हैं। पर जो उस दिव्य सुधा रसका स्वाद पा चुका, वह इस गड्ढे-जैसे संसारके सड़े कीचड़की और कैसे देख सकता है। परमानन्दको तो अब परमानन्द मिल गया। जगत्के भोग और मान बड़ाईसे उन्हें क्या लेना-देना। अब तो वे बराबर 'राम कृष्ण हरि' जपते हैं और कभी नाचते हैं, कभी रोते हैं, कभी हँसते हैं, कभी भूमिपर लोटते हैं 'विठ्ठल, विठ्ठल' कहते हुए। उनका चित्त अब और कुछ सोचता ही नहीं।

जोग परमानन्दजी अब पण्ढरपुर आ गये थे। वे पण्डरीनाथका पोडशोपचारसे नित्य पूजन करते और उसके पश्चात् मन्दिरके बाहर भगवान्के सामने गीताका एक श्लोक पढ़कर साष्टाङ्ग दण्डवत् करते। इस प्रकार सात सौ श्लोक पढ़कर सात सौ दण्डवत् नित्य करनेका उन्होंने नियम बना लिया था। सम्पूर्ण गोताका पाठ करकेसात सौ दण्डवत् पूरी हो जानेपर हो वे भिक्षा करने जाते और भिक्षामें प्रात अन्नसे भगवान्‌को नैवेद्य अर्पण करके प्रसाद पाते।

गरमी हो या सर्दी, पानी पड़े या पत्थर, जोग परमानन्दजीको तो सात सौ दण्डवत् नित्य करनी ही हैं। नेत्रोंके सम्मुख पाण्डुरङ्गका श्रीविग्रह, मुखमें गोताके श्लोक और हृदयमें भगवान्‌का ध्यान, सारा शरीर दण्डवत् करनेमें लगा है। ज्येष्ठमें पृथ्वी तवे-सी जलती हो तो भी परमानन्दजीको दण्डवत् चलेगी और पौष-माघमें बरफ सी शीतल हो जाय तो भी दण्डवत् चलेगी। वर्षा हो रही है. भूमि कीचड़से ढक गयी है; पर परमानन्दजी भोगते हुए कीचड़से लथपथ दण्डवत् करते जा रहे हैं।

एक बार एक साहूकार बाजार करने पण्डरपुर आया। योग परमानन्दको तितिक्षा देखकर उसके मनमें श्रद्धा हुई। रेशमी कपड़ेका एक थान लेकर वह उनके पास पहुँचा और स्वीकार करनेकी प्रार्थना करने लगा। परमानन्दजीने कहा- 'भैया! मैं इस वस्त्रको लेकर क्या करूंगा। मेरे लिये तो फटे चिथड़े ही पर्याप्त हैं। इस सुन्दर वस्त्रको तुम श्रीपाण्डुरङ्गको भेंट करो।' परंतु व्यापारी समझानेसे मान नहीं रहा था। वह आग्रह करता ही जाता था। वस्त्र न लेनेसे उसके हृदयको दुःख होगा, यह देखकर परमानन्दजीने वह रेशमी वस्त्र स्वीकार कर लिया।

जोग परमानन्दजीने रेशमी वस्त्र स्वीकार तो किया था व्यापारीको कष्ट न हो इसलिये। पर जब वस्त्र ले लिया, तब इच्छा जगी कि उसे पहनना भी चाहिये। दूसरे दिन वे रेशमी वस्त्र पहनकर भगवान्‌की पूजा करने आये। आज भी वर्षा हो रही थी। पृथ्वी कीचड़से भरी थी। परमानन्दका मन वस्त्रपर लुभा गया। पूजा करके दण्डवत् करते समय उन्होंने वस्त्र समेट लिये। आज उनकी दृष्टि पाण्डुरङ्ग प्रभुपर नहीं थी-वे बार-बार वस्त्र देखते थे, वस्त्र सँभालते थे। दण्डवत् ठीक नहीं होती थी क्योंकि मूल्यवान् नवीन रेशमी वस्त्रके कीचड़से खराब हो जानेका भय था भक्ति मार्गमें दयामय भगवान अपने भक्तको सदा उसी प्रकार रक्षा करते रहतेहैं, जैसे स्नेहमयी माता अपने अबोध शिशुकी करती है। बालक खिलौना समझकर जब सर्प या अग्रिके अङ्गारे लेने दौड़ता है तब जननी उसे उठाकर गोदमें ले लेती है। जहाँ मायाके प्रलोभन दूसरे साधकोंको भुलावेमें डालकर पथभ्रष्ट कर देते हैं, वहाँ भक्तका उनसे कुछ भी नहीं बिगड़ता। जो अपनेको श्रीहरिके चरणोंमें छोड़ चुका, वह जब कहीं भूल करता है, तब झट उसे वे कृपासिन्धु सुधार देते हैं। वह जब कहीं मोहमें पड़ता है। तब वे हाथ पकड़कर उसे वहाँसे निकाल लाते हैं। आज जोग परमानन्द रेशमी वस्त्रोंके मोहमें पड़ गये थे। अचानक हृदयमें किसीने पूछा- 'परमानन्द ! तू वस्त्रोंको देखने लगा ! मुझे नहीं देखता आज तू?' परमानन्दने दृष्टि उठायी तो जैसे सम्मुख श्रीपाण्डुरङ्ग कुछ मुसकराते, उलाहना देते खड़े हों। झट उस रेशमी वस्त्रको टुकड़े टुकड़े फाड़कर उन्होंने फेंक दिया।

'मुझसे बड़ा पाप हुआ। मैं बड़ा अधम हूँ।' जोग परमानन्दको बड़ा ही दुःख हुआ। वे अपने इस अपराधका प्रायश्चित्त करनेका विचार करके नगरसे बाहर चले गये। दो बैलोंको जुएमें बाँधा और अपनेको रस्सीके सहारे जुएसे बाँध दिया। चिल्लाकर बैलोंको भगा दिया।शरीर पृथ्वी में घसिटता जाता था, कंकड़ोंसे छिल रहा था, काँटे चुभते और टूटते जाते थे, रक्तकी धारा चल रही थी; किंतु परमानन्द उच्चस्वरसे प्रसन्न मनसे 'राम! कृष्ण ! गोविन्द !' की टेर लगा रहे थे। जैसे-जैसे शरीर छिलता, घसिटता, वैसे-वैसे उनकी प्रसन्नता बढ़ती जाती थी। वैसे-वैसे उनका स्वर ऊँचा होता जाता था और वैसे-वैसे बैल भड़ककर जोरसे भागते जाते थे।

भक्तवत्सल प्रभुसे अपने प्यारे भक्तका यह कष्ट देखा नहीं गया। वे एक ग्वालेके रूपमें प्रकट हो गये। बैलोंको रोककर जोग परमानन्दको उन्होंने रस्सीसे खोल दिया और बोले—'तुमने अपने शरीरको इतना कष्ट क्यों दिया। भला, तुम्हारा ऐसा कौन-सा अपराध था। तुम्हारा शरीर तो मेरा हो चुका है। तुम जो कुछ खाते हो, वह मेरे ही मुखमें जाता है। तुम चलते हो तो मेरी उससे प्रदक्षिणा होती है। तुम जो भी बातें करते हो, वह मेरी स्तुति है। जब तुम सुखसे लेट जाते हो तब वह मेरे चरणोंमें तुम्हारा साष्टाङ्ग प्रणाम हो जाता है। तुमने यह कष्ट उठाकर मुझे रुला दिया है।' प्रभुने उठाकर उन्हें हृदयसे लगा लिया। जोग परमानन्द श्यामसुन्दरसे मिलकर उनमें एकाकार हो गये।



You may also like these:



geetaa-dandavatee bhakt jog paramaanandada ki marmik katha
geetaa-dandavatee bhakt jog paramaanandada ki adhbut kahani - Full Story of geetaa-dandavatee bhakt jog paramaanandada (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [geetaa-dandavatee bhakt jog paramaanandada]- Bhaktmaal


dakshin bhaaratake vaarasee naamak graamamen jog paramaanandajeeka janm hua thaa. jab ye chhote baalak the, inake gaanvamen bhagavaan kee katha tatha keertan hua karata thaa. inakee katha sunanemen ruchi thee. kortan inhen atyant priy thaa. kabhee raatako deratak katha ya keertan hota rahata to ye -se bhookha-pyaas bhoolakar mantramugdh se suna karate. ek din katha sunate samay jog paramaanandajee apane-aapako bhool gaye. vyaasagadeepar baithe vakta bhagavaanke tribhuvan kamaneey svaroopaka varnan kar rahe the. jog paramaanandaka vitt usee shyaamasundarakee roopamaadhureeke saagaramen doob gayaa. netr khola to dekhate hain ki vahee vanamaalee, peetaambaradhaaree prabhu saamane khada़e hain. paramaanandakee ashrudhaaraane prabhuke laala-laal shreecharanonko pakhaar diya aur kamalalochan shreeharike netronse kripaake amritabinduonne girakar paramaanandake mastakako dhany bana diyaa.

log kahane lage ki jog paramaanand paagal ho gaye. sansaarakee drishtimen jo vishayakee aasakti chhoda़kar, is bishake pyaaleko patakakar brajendra-sundaramen anurakt hota hai, jo us amritake pyaaleko hothonse lagaata hai, use yahaanko mrig mareechikaamen dauda़te, tada़pate, jalate praanee paagal hee kahate hain. par jo us divy sudha rasaka svaad pa chuka, vah is gaddhe-jaise sansaarake sada़e keechada़kee aur kaise dekh sakata hai. paramaanandako to ab paramaanand mil gayaa. jagatke bhog aur maan bada़aaeese unhen kya lenaa-denaa. ab to ve baraabar 'raam krishn hari' japate hain aur kabhee naachate hain, kabhee rote hain, kabhee hansate hain, kabhee bhoomipar lotate hain 'viththal, viththala' kahate hue. unaka chitt ab aur kuchh sochata hee naheen.

jog paramaanandajee ab pandharapur a gaye the. ve pandareenaathaka podashopachaarase nity poojan karate aur usake pashchaat mandirake baahar bhagavaanke saamane geetaaka ek shlok padha़kar saashtaang dandavat karate. is prakaar saat sau shlok padha़kar saat sau dandavat nity karaneka unhonne niyam bana liya thaa. sampoorn gotaaka paath karakesaat sau dandavat pooree ho jaanepar ho ve bhiksha karane jaate aur bhikshaamen praat annase bhagavaan‌ko naivedy arpan karake prasaad paate.

garamee ho ya sardee, paanee pada़e ya patthar, jog paramaanandajeeko to saat sau dandavat nity karanee hee hain. netronke sammukh paandurangaka shreevigrah, mukhamen gotaake shlok aur hridayamen bhagavaan‌ka dhyaan, saara shareer dandavat karanemen laga hai. jyeshthamen prithvee tave-see jalatee ho to bhee paramaanandajeeko dandavat chalegee aur pausha-maaghamen baraph see sheetal ho jaay to bhee dandavat chalegee. varsha ho rahee hai. bhoomi keechada़se dhak gayee hai; par paramaanandajee bhogate hue keechada़se lathapath dandavat karate ja rahe hain.

ek baar ek saahookaar baajaar karane pandarapur aayaa. yog paramaanandako titiksha dekhakar usake manamen shraddha huee. reshamee kapada़eka ek thaan lekar vah unake paas pahuncha aur sveekaar karanekee praarthana karane lagaa. paramaanandajeene kahaa- 'bhaiyaa! main is vastrako lekar kya karoongaa. mere liye to phate chithada़e hee paryaapt hain. is sundar vastrako tum shreepaandurangako bhent karo.' parantu vyaapaaree samajhaanese maan naheen raha thaa. vah aagrah karata hee jaata thaa. vastr n lenese usake hridayako duhkh hoga, yah dekhakar paramaanandajeene vah reshamee vastr sveekaar kar liyaa.

jog paramaanandajeene reshamee vastr sveekaar to kiya tha vyaapaareeko kasht n ho isaliye. par jab vastr le liya, tab ichchha jagee ki use pahanana bhee chaahiye. doosare din ve reshamee vastr pahanakar bhagavaan‌kee pooja karane aaye. aaj bhee varsha ho rahee thee. prithvee keechada़se bharee thee. paramaanandaka man vastrapar lubha gayaa. pooja karake dandavat karate samay unhonne vastr samet liye. aaj unakee drishti paandurang prabhupar naheen thee-ve baara-baar vastr dekhate the, vastr sanbhaalate the. dandavat theek naheen hotee thee kyonki moolyavaan naveen reshamee vastrake keechada़se kharaab ho jaaneka bhay tha bhakti maargamen dayaamay bhagavaan apane bhaktako sada usee prakaar raksha karate rahatehain, jaise snehamayee maata apane abodh shishukee karatee hai. baalak khilauna samajhakar jab sarp ya agrike angaare lene dauda़ta hai tab jananee use uthaakar godamen le letee hai. jahaan maayaake pralobhan doosare saadhakonko bhulaavemen daalakar pathabhrasht kar dete hain, vahaan bhaktaka unase kuchh bhee naheen bigada़taa. jo apaneko shreeharike charanonmen chhoda़ chuka, vah jab kaheen bhool karata hai, tab jhat use ve kripaasindhu sudhaar dete hain. vah jab kaheen mohamen pada़ta hai. tab ve haath pakada़kar use vahaanse nikaal laate hain. aaj jog paramaanand reshamee vastronke mohamen pada़ gaye the. achaanak hridayamen kiseene poochhaa- 'paramaanand ! too vastronko dekhane laga ! mujhe naheen dekhata aaj too?' paramaanandane drishti uthaayee to jaise sammukh shreepaandurang kuchh musakaraate, ulaahana dete khada़e hon. jhat us reshamee vastrako tukada़e tukaड़e phaaड़kar unhonne phenk diyaa.

'mujhase bada़a paap huaa. main bada़a adham hoon.' jog paramaanandako bada़a hee duhkh huaa. ve apane is aparaadhaka praayashchitt karaneka vichaar karake nagarase baahar chale gaye. do bailonko juemen baandha aur apaneko rasseeke sahaare juese baandh diyaa. chillaakar bailonko bhaga diyaa.shareer prithvee men ghasitata jaata tha, kankada़onse chhil raha tha, kaante chubhate aur tootate jaate the, raktakee dhaara chal rahee thee; kintu paramaanand uchchasvarase prasann manase 'raama! krishn ! govind !' kee ter laga rahe the. jaise-jaise shareer chhilata, ghasitata, vaise-vaise unakee prasannata badha़tee jaatee thee. vaise-vaise unaka svar ooncha hota jaata tha aur vaise-vaise bail bhada़kakar jorase bhaagate jaate the.

bhaktavatsal prabhuse apane pyaare bhaktaka yah kasht dekha naheen gayaa. ve ek gvaaleke roopamen prakat ho gaye. bailonko rokakar jog paramaanandako unhonne rasseese khol diya aur bole—'tumane apane shareerako itana kasht kyon diyaa. bhala, tumhaara aisa kauna-sa aparaadh thaa. tumhaara shareer to mera ho chuka hai. tum jo kuchh khaate ho, vah mere hee mukhamen jaata hai. tum chalate ho to meree usase pradakshina hotee hai. tum jo bhee baaten karate ho, vah meree stuti hai. jab tum sukhase let jaate ho tab vah mere charanonmen tumhaara saashtaang pranaam ho jaata hai. tumane yah kasht uthaakar mujhe rula diya hai.' prabhune uthaakar unhen hridayase laga liyaa. jog paramaanand shyaamasundarase milakar unamen ekaakaar ho gaye.

154 Views





Bhajan Lyrics View All

राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
ये तो बतादो बरसानेवाली,मैं कैसे
तेरी कृपा से है यह जीवन है मेरा,कैसे
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥

New Bhajan Lyrics View All

बिन मांगे सब दिया है मेरे भोलेनाथ ने,
मेरे भोलेनाथ ने मेरे शंभू नाथ ने,
तू श्याम का सुमिरन कर, सब दुख कट जायेगा,
यही श्याम नाम तुझको, भव पार लगायेगा...
खाटू की ये गालियां होंगी मशहूर,
खाटू की गलियों में जाना है जरुर,
भादो का मेला सुहाना लगता है,
भक्तो का तो दिल दीवाना लगता है,
मुझे भी अपने चरणों में,
जगह दो साँवरे प्रियतम,