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भक्त गोवर्धन की मार्मिक कथा
भक्त गोवर्धन की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त गोवर्धन (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त गोवर्धन]- भक्तमाल


विशालापुरीमें गोवर्धननामक एक नवयुवक पण्डित रहते थे। ब्राह्मण सदाचारी, विद्वान्, तर्कशील और कुछ विद्याभिमानी थे। उनकी पत्नी भी बड़ी साध्वी थी। उसमें भगवान्के प्रति विश्वास और भक्ति थी। पति पत्नीमें पवित्र प्रेम था। घर बहुत सम्पन्न न होनेपर भी दोनों बड़े सुखी थे। इनके यहाँ एक विरक्त महात्मा कभी-कभी आया करते थे। गोवर्धनजीके पिता महात्माजीके बड़े भक्त थे। उन्होंने इनकी बड़ी सेवा की थी। महात्माकी सच्ची सेवा उनके बतलाये हुए पवित्र मार्गका अनुसरण करनेमें ही है, उनके बाहरी वेष भूषाका अनुकरणमें नहीं। गोवर्धनके पिता ऐसे ही श्रेष्ठ सेवक थे। उन्होंके सम्बन्धसे महात्मा कभी-कभी इनके घर कृपा करके पधारा करते थे। इधर बहुत दिनोंसे महात्मा नहीं आये। गोवर्धनका पड़ोसी नन्दाराम बड़ा असदाचारी और कुमार्गगामी था। वह गोवर्धनको देखकरजलता था और उन्हें भी वह अपने समान ही बनाना चाहता था; परंतु बीच-बीचमें महात्माका सङ्ग प्राप्त होते रहनेसे गोवर्धनकी चित्तवृत्तिपर मलिनताकी छाप नहीं पड़ती थी और इसीलिये पड़ोसी नन्दारामकी दाल नहीं गलती थी।

इधर वर्षोंसे महात्माका सङ्ग छूट गया। गोवर्धन सदाचारी विद्वान् तो थे, परंतु भजनपरायण नहीं थे। उनमें तर्क अधिक था, भक्ति नहीं थी; तथापि महात्माके सङ्ग प्रभावसे उनके अंदरके काम-क्रोधादि दोष दबे रहते थे। पर सत्सङ्ग छूट जाने और नन्दारामका कुसङ्ग प्राप्त होनेसे उनके वे दबे दोष प्रबलरूपमें उभड़ आये। गोवर्धन धीरे-धीरे शराबी, जुआरी, व्यभिचारी हो गये। पत्नी बेचारी बड़ी दुःखी थी। उसके मनमें बड़ा सन्ताप था । उसका भगवान्‌में विश्वास था। उसने एक दिन मन-ही | मन आर्तभावसे रोकर भगवान्से प्रार्थना की- 'भगवन्!मेरे पतिदेव कुसङ्गमें पड़ गये हैं, महात्मा इधर आये नहीं। आप दीनबन्धु हैं। मुझ दोना अबलापर दबा कीजिये। महात्माको यहाँ भिजवाइये और मेरे पतिका जीवन सुधारिये। आप सर्वसमर्थ हैं, कृपासागर हैं, जीवमात्रके सुहृद् हैं। आपने स्वयं कहा है, मुझको सब जीवोंका सुहृद् मान लेनेपर उसे तुरंत शान्ति मिल जाती है। प्रभो! मैं आपको सर्वसुहृद् मानती हूँ। आप मुझे शान्ति दीजिये।'

भगवान् सच्ची पुकारको तुरंत सुनते हैं। पुरुष हो, स्त्री हो, ब्राह्मण हो, चाण्डाल हो, पण्डित हो, मूर्ख हो-जो कोई भी जब कभी भी आर्त होकर सच्चे हृदयसे उन्हें पुकारता है, वे तुरंत सुनते हैं और उसका मनोरथ सफल करते हैं। यह तो हमारा अभाग्य है कि हम ऐसे सदा-सर्वत्र अपने साथ रहनेवाले सर्वशक्तिमान् परम सुहृदपर विश्वास न करके नश्वर भोगोंपर और स्वार्थी जगत्पर विश्वास करते एवं सङ्कटके समय उनके सामने गिड़गिड़ाकर निराशा और तिरस्कारके विषधर सर्पको हृदयका हार बनाते हैं!

महात्मा समाधिस्थ अवस्थामें सुदूर नदीतटपर एकान्तवास कर रहे थे। अकस्मात् उन्हें अपने सेवक के पुत्र गोवर्धनकी याद आयी। उनका हृदय तिलमिला उठा। मैं बहुत दिनोंसे विशालापुरी नहीं गया। पता नहीं, गोवर्धनको क्या स्थिति होगी। कहीं वह कुसङ्गका शिकार तो नहीं हो गया। मेरे मनमें बार-बार क्यों उसके लिये इतना उद्वेग हो रहा है?' महात्माके मनसे जगत्‌को सत्ताका सर्वथा अभाव हो गया था। फिर सत्ताके सङ्कल्प करनेवाले मनका भी अभाव हो गया। पहले दृश्यका अभाव था, अब द्रष्टा भी खो गया। रह गया वही, जो है; वह क्या है, कैसा है-कौन बताये। न कोई जानने योग्य है और न जाननेवाला। बस उसीमें एकात्मता प्राप्त करके महात्मा निर्विकल्प समाधिमें स्थित थे। आज अकस्मात् उनकी समाधि टूटी और उन्हें गोवर्धनकी स्मृति आ गयी। स्मृति भी ऐसी, जो भुलाये नहीं भूलती। मानो किसी आसक्तिवश कुछ हो रहा है। सत्यसंकल्प, सर्वनियन्ता भगवान्की प्रेरणा जो थी क्योंकि गोवर्धनको साध्वी पत्नीने भगवान्से यही प्रार्थना की थी किमहात्माको भेजकर मेरे स्वामीका जीवन सुधारिये।

महात्मा सीधे विशालापुरीकी ओर चले, जैसे निपुण लक्ष्यवेधीका बाण सीधा लक्ष्यकी ओर ही जाता है। वे विशलापुरी पहुँचे, उस समय आधी रात बीत चुकी थी। सिद्ध महात्माकी सर्वगत दृष्टिने देख लिया, इस समय गोवर्धन शहरके उत्तरकी ओर बसे हुए मुहल्लेमें मायावती वेश्याके घरपर है। वे सीधे वहीं पहुँचे। बाहरका दरवाजा खुला था। उन्होंने अंदर जाकर कमरेके किवाड़ खटखटाये और कहा-'गोवर्धन किवाड़ खोलो।' गोवर्धन इस समय मद्यकी मादकतामें चूर अपनेको भूला हुआ था। पराधीन था सर्वधा यहिर्मुख हो रहा था। परंतु महात्माके सिद्ध शब्दोंकी वह अवहेलना नहीं कर सका। वेश्याका भी साहस नहीं हुआ कि उसे रोके। गोवर्धनने किवाड़ खोल दिये। चाँदनी रात थी। खोलते ही अपने सामने एक परम तेजःपुञ्ज जटाधारी महापुरुषको खड़े देखा। उनके शरीर और नेत्रोंसे एक स्निग्ध सुशीतल तेजोऽमृतधारा निकल रही थी। गोवर्धनको पहले तो कुछ डर सा लगा, वहम हुआ, मनमें कुछ उद्वेग आया परंतु दूसरे ही क्षण उसने | महात्माको पहचान लिया। उसका सारा मद उतर गया। वह चीख मारकर चरणोंमें गिर पड़ा।

मायावती भी किवाड़ोंके पास खड़ी थी। महात्माके अमोघ दर्शनका प्रभाव था। उसका भी हृदय द्रवित हुआ जा रहा है। जीवनके सारे पाप मानो इस क्षण मूर्तिमान् होकर उसके सामने खड़े हो गये। वह काँप गयी। हृदयमें पश्चात्तापकी प्रचण्ड आग जल उठी। सारी पापराशि जल गयी। हृदयका भाव-नवनीत पिघला और अश्रुधाराके रूपमें वह नेत्रमार्गसे बह चला। पता नहीं, उसका हृदय शुद्ध हुआ माना जाय या नहीं; पर वह भी आगे बढ़कर महात्माके चरणोंपर गिर पड़ी और नेत्र जलकी धाराओंसे उनके पावन पद-सरोज पखारने लगी। महात्माका वरद हस्त उठा। महात्मा झुके। वरद हस्त दोनोंके मस्तकोंका स्पर्श किया और बोले—'मेरे बच्चो ! उठो, घबराओ नहीं भगवान्‌को कृपा शक्तिके सामने तुम्हारे पापोंकी क्या बिसात है। कितना ही घना, गहरा और बहुत समयका अन्धकार हो, प्रकाशके आते ही वह छिप जाता है। फिर यदि वहाँ साक्षात् सूर्य उदय होजायँ, तब तो अन्धकारको कहीं छिपनेकी भी जगह नहीं मिलती। भगवान्की कृपा कभी न छिपनेवाला प्रचण्ड और सुशीतल प्रकाशमय सूर्य है। पापान्धकारमें कितनी शक्ति है जो क्षणमात्र भी उसके सामने ठहर सके। मैं श्रीभगवान्की अनुपमेय कृपाशक्तिकी प्रेरणासे ही आधी रातके समय यहाँ आया हूँ। तुम दोनों पवित्र हो गये। उठो! भगवान्का भजन करो और जन्म-जीवनको सफल करो।' दोनों उठे और हाथ जोड़कर कठपुतलीकी भाँति सामने खड़े हो गये। दोनोंके नेत्र झरने बने हुए थे।

महात्माने कहा - 'गोवर्धन ! तुम घर जाओ और अपनी साध्वी पत्नीको सान्त्वना दो। आजसे यह मायावती तुम्हारी बहिन है। इसको अपनी सहोदरा बहिन समझो यह अब कावेरीके तटपर जाकर भगवान्‌का भजन करेगी। किसी कुसङ्गमें पड़कर यह इस दशाको पहुँची। तुम्हारे पिता मेरे बड़े आज्ञाकारी थे, संत थे, भगवत्प्राप्त पुरुष थे। उनके शुभ संस्कार तुम्हारे अंदर थे; परंतु तुमने विद्याके अभिमानमें भगवान्‌की भक्ति नहीं की। तर्कके बलपर केवल जगत्के अस्तित्वका खण्डन ही करते रहे। तुमने मायाधीश्वर सच्चिदानन्द भगवान्‌को भी मायाका ही कार्य बताया। इसीलिये तुम बिना केवटकी नावके सदृश इस अघ-समुद्रमें डूब गये। जो अतुलशक्ति भगवान्‌का आश्रय न लेकर अपने चार अक्षरोंके अभिमानपर कूदा फाँदा करते हैं, उन्हें तो उल्टे मुँहको खानी ही पड़ती है। उनका पतन ही होता है। अन्धकारका प्रवेश वहीं होता है, जहाँ प्रकाश नहीं होता। पहलेसे ही भगवदाश्रयकी दिव्य शीतल स्निग्ध ज्योति प्रज्वलित कर ली जाय और दृढ़ विश्वासके निर्मल स्नेहसे सिञ्चन करते हुए सदा ज्यों-की-त्यों प्रज्वलित रखी जाय तो वहाँ कभी पापान्धकारका प्रवेश हो ही नहीं सकता। पापके बिना ताप भी नहीं आते। चोर डाकुओंका प्रवेश अँधेरेमें ही हुआ करता है।

'तुमने तो आज भी भगवान्‌को नहीं पुकारा, उनकी शरण नहीं गये। पर तुम्हारी पत्नी बड़ी भक्तिमती है। उसका भगवान्पर अटल विश्वास है। उसीकी विश्वासभरी आर्त पुकारने भगवान्का आसन हिलाया और भगवान्‌की प्रेरणाने ही समाधिसे उठाकर मुझको यहाँ भेजा। मैंभगवान्को सत्य प्रेरणासे ही यहाँ आया इसीसे तुम दोनोंके हृदयोंमें जो चिरपोषित अनाचार दुराचारकी राशि थी, वह सूर्यके प्रखर प्रकाशसे अन्धकारकी भाँति इतनी जल्दी मिट गयी। भगवान्के मिलनेपर पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमें तो कहना ही क्या है भगवान्‌के मिलनेकी इच्छा ही पापोंको जला डालती है। आज मेरे साथ आयी हुई भगवान्‌की प्रेरणाका अनिच्छित दर्शन करके ही तुम कृतार्थ हो गये हो। यह भगवान्‌की अनन्त कृपाका दिग्दर्शन है। इस कृपा प्राप्तिमें कारण है तुम्हारी साध्वी पत्नी। तुमने भगवान्‌को नहीं पुकारा। पर तुम्हारी पत्नीने | विश्वासभरी पुकार की। उसकी प्रार्थना थी— 'दीनबन्धु भगवान् दया करके मेरेद्वारा तुम्हारा सुधार करें।' वही हुआ। मैं तो समाधिस्थ था। यहाँ क्यों आता। साध्वी ब्राह्मणीके द्वारा वशीकृत भगवत्कृपाशक्तिने मुझको जगाकर यहाँ भेजा। सच्चे आत्मीय, स्वजन, बन्धु और प्रिय वे ही हैं, जो अपने आत्मीय, स्वजन, बन्धु और जिसको कुमार्गस हटाकर विषय-विष वारुणीके जहरीले नशे छुड़ाकर भगवान्‌के मार्गपर लगाते हैं और भगवान्से कातर प्रार्थना करके उन्हें भगवत्प्रेमसुधा-धाराका पान कराते हैं। तुम्हारी पत्नी धन्य है और तुम भी धन्य हो, जो ऐसी पत्नीके पति होनेका सौभाग्य तुमने प्राप्त किया है। सावित्रीने एक यमराजके फंदेसे अपने स्वामी सत्यवान्को छुड़ाया था पर तुम्हारी साध्वी पत्नीने तुमको अनेकों जन्म-जन्मान्तरोंमें जानेसे छुड़ाकर अनेकों अनन्तों मृत्युओंसे बचा लिया। साध्वी पत्नी क्या नहीं कर सकती।

"यह मायावती पूर्वजन्मकी बड़ी भक्ता थी। यहाँ भी पवित्र ब्राह्मणकुलमें इसका जन्म हुआ था; परंतु माता पिता तथा स्वामीके परलोकवासी हो जानेपर दुराचारी मनुष्योंने इसे अपने फंदेमें फँसा लिया। यह भोली थी, सरलहृदया थी, इससे सहज ही कुसङ्गमें पड़ गयी। जिस कुसङ्गने तुम्हारा पतन किया, उसीने इसका भी किया। कुसङ्गसे ऐसी कौन-सी बुराई है, जो नहीं हो सकती और ऐसा कौन-सा पतन है, जो नहीं होता। मूर्ख मनुष्य धनादिके लोभसे कुसङ्गमें पड़कर अपने ही हाथों अपने पैरोंपर कुल्हाड़ी मारकर स्वयं ही अपनेको पतनके गहरेगड्डे में ढकेल देते हैं। मायावती भी कुसङ्गमें पड़कर गिर गयी; पर इसके हृदयमें पश्चात्तापकी आग जल रही थी। पापी दो प्रकारके होते हैं। एक वे जो परिस्थितिवश कुसङ्गमें पड़कर पापपमें भैंस जाते हैं; पर वह पाप उनके हृदयमें सदा शूलकी तरह चुभता रहता है। वे पश्चात्तापकी आगमें तपते और मन-ही-मन कराहते हुए पतितपावन भगवान्‌को पुकारा करते हैं। दूसरे वे जो पाप करनेमें ही दक्षता, चतुराई और जीवनकी सफलता मानकर मन-ही-मन गौरवका अनुभव करते हैं। ऐसे लोग बार-बार भयानक नरकयन्त्रणाओं और नारकी योनियोंमें विविध दुःखों एवं कष्टोंके ही शिकार होते हैं। पर जो पहले पश्चात्ताप करके दीनबन्धु भगवान्पर अनन्य विश्वास करके उन्हें पुकारनेवाले होते हैं, उनकी पुकार भगवान् सुनते हैं और अपनी कृपासुधा धारामें नहलाकर उन्हें तुरंत परम साधु बना लेते हैं।'

मायावतीने अभी कल ही रो-रोकर भगवान्‌को पुकारा था। भगवान्ने उसकी भी पुकार सुन ली। गोवर्धन और मायावती दोनोंके नेत्रोंमें उसी प्रकार अश्रुधारा बह रही थी। उनके सारे पाप उसीमें वह गये थे। दोनोंने बहिन भाईकी भाँति परस्पर मिलकर महात्माके आगे हाथ जोड़े। महात्माने मायावतीको अपनी तुलसीकी माला देकर आशीर्वाद दिया तथा कावेरीके तटपर जाकर भजन करनेका आदेश दिया। गोवर्धनको उसके घर जानेका आदेश दिया और प्रातः काल ही स्वयं भी उसके घर पधारनेकी बात कही। गोवर्धन और मायावतीके सामनेसे मायाका पर्दा हट गया। वे निहाल हो गये। संत और भगवंतकी कृपाशक्ति कल्याण करनेमें अमोघ होती है।

गोवर्धनकी पत्नीकी आँखोंमें नींद नहीं थी। वह रो रोकर करुणामय भगवान्को पुकार रही थी। इतनेमें ही गोवर्धनने आकर किवाड़ खटखटाये तथा आवाज दो। दीर्घकाल से गोवर्धन बहुत ही कम घर आते और जब कभी आते तो शराबके नशेमें चूर, बड़बड़ाते, खीझते, झल्लाते, चीखते और गिरते पड़ते। बेचारी ब्राह्मणी सम्हालती, नहलाती, खिलाती, सेवा करती, समझाती;परंतु बदलेमें उसे मिलते तिरस्कार, अपमान, वाग्बाण और कभी-कभी मार भी ब्राह्मणी सब सहती, पतिको असहाय अवस्थाका विचार करके रो पड़ती और आतं होकर भगवान्‌को पुकारती। आज तो वे पूर्ण स्वस्थ हैं। उनकी आवाजसे ही उनकी स्वाभाविक स्थितिका पता लगता है। पर आज इस स्वाभाविकताके साथ कुछ अन्यजातीय अस्वाभाविकता भी है-वह है पवित्र हृदयको प्रभु भक्तिका निर्मल सुधाप्रवाह! ब्राह्मणी आवाज सुनते ही मानो निहाल हो गयी। उसने दौड़कर दरवाजा खोला। गोवर्धन पत्नीके साथ घरके अंदर आये। वह चरणोंपर गिरकर रोने लगी। इधर कृतज्ञ हृदय गोवर्धनके नेत्रोंमें आँसुओंकी झड़ी लगी थी। गोवर्धनने उसको उठाया और स्नेहसे अपने पास बैठाकर गद्गद कण्ठसे सारी कथा सुनायी। ब्राह्मणी भगवत्कृपाका चमत्कार देखकर कृतार्थ हो गयी और उसका बचा बचाया जीवन सदाके लिये प्रभुके समर्पण हो गया। समस्त रात्रि संत चर्चा और भगवच्चर्चा में बीत गयो। प्रातः स्नानादिले निवृत्त होकर गोवर्धन भगवत्-पूजाकी बात सोच रहे थे कि महात्मा पधार गये।

पति-पत्नी उनके चरणोंपर गिर पड़े। दोनोंका हृदय कृतज्ञता, उल्लास और सर्वसमर्पणके निश्चयसे भरा था। महात्माने दोनोंको भगवद्भक्तिका उपदेश और
षोडश नामके हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। -इस कलिसन्तरणोपनिषद् के मन्त्रका उपदेश किया और कहा, 'अब तुम्हारा कभी पतन नहीं होगा। तुम दोनों भगवान्के दिव्य धामको और स्वरूपको प्राप्त करोगे।' तदनन्तर भिक्षा आदि करनेके बाद महात्मा अपने स्थानको पधार गये।

इधर ये दोनों भगवद्भक्तिमें तल्लीन हो गये। ब्राह्मणीका जीवन भक्तिमय था हो। ब्राह्मण भी परम भक्त हुए और अन्तमें भगवान्‌ के प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त करके | दोनों दिव्य धामको पधारे। वहाँ उन्होंने नित्य पार्षदगति प्राप्त की।



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maayaavatee bhee kivaaड़onke paas khada़ee thee. mahaatmaake amogh darshanaka prabhaav thaa. usaka bhee hriday dravit hua ja raha hai. jeevanake saare paap maano is kshan moortimaan hokar usake saamane khada़e ho gaye. vah kaanp gayee. hridayamen pashchaattaapakee prachand aag jal uthee. saaree paaparaashi jal gayee. hridayaka bhaava-navaneet pighala aur ashrudhaaraake roopamen vah netramaargase bah chalaa. pata naheen, usaka hriday shuddh hua maana jaay ya naheen; par vah bhee aage baढ़kar mahaatmaake charanonpar gir pada़ee aur netr jalakee dhaaraaonse unake paavan pada-saroj pakhaarane lagee. mahaatmaaka varad hast uthaa. mahaatma jhuke. varad hast dononke mastakonka sparsh kiya aur bole—'mere bachcho ! utho, ghabaraao naheen bhagavaan‌ko kripa shaktike saamane tumhaare paaponkee kya bisaat hai. kitana hee ghana, gahara aur bahut samayaka andhakaar ho, prakaashake aate hee vah chhip jaata hai. phir yadi vahaan saakshaat soory uday hojaayan, tab to andhakaarako kaheen chhipanekee bhee jagah naheen milatee. bhagavaankee kripa kabhee n chhipanevaala prachand aur susheetal prakaashamay soory hai. paapaandhakaaramen kitanee shakti hai jo kshanamaatr bhee usake saamane thahar sake. main shreebhagavaankee anupamey kripaashaktikee preranaase hee aadhee raatake samay yahaan aaya hoon. tum donon pavitr ho gaye. utho! bhagavaanka bhajan karo aur janma-jeevanako saphal karo.' donon uthe aur haath joda़kar kathaputaleekee bhaanti saamane khada़e ho gaye. dononke netr jharane bane hue the.

mahaatmaane kaha - 'govardhan ! tum ghar jaao aur apanee saadhvee patneeko saantvana do. aajase yah maayaavatee tumhaaree bahin hai. isako apanee sahodara bahin samajho yah ab kaavereeke tatapar jaakar bhagavaan‌ka bhajan karegee. kisee kusangamen pada़kar yah is dashaako pahunchee. tumhaare pita mere bada़e aajnaakaaree the, sant the, bhagavatpraapt purush the. unake shubh sanskaar tumhaare andar the; parantu tumane vidyaake abhimaanamen bhagavaan‌kee bhakti naheen kee. tarkake balapar keval jagatke astitvaka khandan hee karate rahe. tumane maayaadheeshvar sachchidaanand bhagavaan‌ko bhee maayaaka hee kaary bataayaa. iseeliye tum bina kevatakee naavake sadrish is agha-samudramen doob gaye. jo atulashakti bhagavaan‌ka aashray n lekar apane chaar aksharonke abhimaanapar kooda phaanda karate hain, unhen to ulte munhako khaanee hee pada़tee hai. unaka patan hee hota hai. andhakaaraka pravesh vaheen hota hai, jahaan prakaash naheen hotaa. pahalese hee bhagavadaashrayakee divy sheetal snigdh jyoti prajvalit kar lee jaay aur dridha़ vishvaasake nirmal snehase sinchan karate hue sada jyon-kee-tyon prajvalit rakhee jaay to vahaan kabhee paapaandhakaaraka pravesh ho hee naheen sakataa. paapake bina taap bhee naheen aate. chor daakuonka pravesh andheremen hee hua karata hai.

'tumane to aaj bhee bhagavaan‌ko naheen pukaara, unakee sharan naheen gaye. par tumhaaree patnee bada़ee bhaktimatee hai. usaka bhagavaanpar atal vishvaas hai. useekee vishvaasabharee aart pukaarane bhagavaanka aasan hilaaya aur bhagavaan‌kee preranaane hee samaadhise uthaakar mujhako yahaan bhejaa. mainbhagavaanko saty preranaase hee yahaan aaya iseese tum dononke hridayonmen jo chiraposhit anaachaar duraachaarakee raashi thee, vah sooryake prakhar prakaashase andhakaarakee bhaanti itanee jaldee mit gayee. bhagavaanke milanepar paap nasht ho jaate hain, isamen to kahana hee kya hai bhagavaan‌ke milanekee ichchha hee paaponko jala daalatee hai. aaj mere saath aayee huee bhagavaan‌kee preranaaka anichchhit darshan karake hee tum kritaarth ho gaye ho. yah bhagavaan‌kee anant kripaaka digdarshan hai. is kripa praaptimen kaaran hai tumhaaree saadhvee patnee. tumane bhagavaan‌ko naheen pukaaraa. par tumhaaree patneene | vishvaasabharee pukaar kee. usakee praarthana thee— 'deenabandhu bhagavaan daya karake meredvaara tumhaara sudhaar karen.' vahee huaa. main to samaadhisth thaa. yahaan kyon aataa. saadhvee braahmaneeke dvaara vasheekrit bhagavatkripaashaktine mujhako jagaakar yahaan bhejaa. sachche aatmeey, svajan, bandhu aur priy ve hee hain, jo apane aatmeey, svajan, bandhu aur jisako kumaargas hataakar vishaya-vish vaaruneeke jahareele nashe chhuda़aakar bhagavaan‌ke maargapar lagaate hain aur bhagavaanse kaatar praarthana karake unhen bhagavatpremasudhaa-dhaaraaka paan karaate hain. tumhaaree patnee dhany hai aur tum bhee dhany ho, jo aisee patneeke pati honeka saubhaagy tumane praapt kiya hai. saavitreene ek yamaraajake phandese apane svaamee satyavaanko chhuda़aaya tha par tumhaaree saadhvee patneene tumako anekon janma-janmaantaronmen jaanese chhuda़aakar anekon ananton mrityuonse bacha liyaa. saadhvee patnee kya naheen kar sakatee.

"yah maayaavatee poorvajanmakee bada़ee bhakta thee. yahaan bhee pavitr braahmanakulamen isaka janm hua thaa; parantu maata pita tatha svaameeke paralokavaasee ho jaanepar duraachaaree manushyonne ise apane phandemen phansa liyaa. yah bholee thee, saralahridaya thee, isase sahaj hee kusangamen pada़ gayee. jis kusangane tumhaara patan kiya, useene isaka bhee kiyaa. kusangase aisee kauna-see buraaee hai, jo naheen ho sakatee aur aisa kauna-sa patan hai, jo naheen hotaa. moorkh manushy dhanaadike lobhase kusangamen pada़kar apane hee haathon apane paironpar kulhaada़ee maarakar svayan hee apaneko patanake gaharegadde men dhakel dete hain. maayaavatee bhee kusangamen paड़kar gir gayee; par isake hridayamen pashchaattaapakee aag jal rahee thee. paapee do prakaarake hote hain. ek ve jo paristhitivash kusangamen pada़kar paapapamen bhains jaate hain; par vah paap unake hridayamen sada shoolakee tarah chubhata rahata hai. ve pashchaattaapakee aagamen tapate aur mana-hee-man karaahate hue patitapaavan bhagavaan‌ko pukaara karate hain. doosare ve jo paap karanemen hee dakshata, chaturaaee aur jeevanakee saphalata maanakar mana-hee-man gauravaka anubhav karate hain. aise log baara-baar bhayaanak narakayantranaaon aur naarakee yoniyonmen vividh duhkhon evan kashtonke hee shikaar hote hain. par jo pahale pashchaattaap karake deenabandhu bhagavaanpar anany vishvaas karake unhen pukaaranevaale hote hain, unakee pukaar bhagavaan sunate hain aur apanee kripaasudha dhaaraamen nahalaakar unhen turant param saadhu bana lete hain.'

maayaavateene abhee kal hee ro-rokar bhagavaan‌ko pukaara thaa. bhagavaanne usakee bhee pukaar sun lee. govardhan aur maayaavatee dononke netronmen usee prakaar ashrudhaara bah rahee thee. unake saare paap useemen vah gaye the. dononne bahin bhaaeekee bhaanti paraspar milakar mahaatmaake aage haath joda़e. mahaatmaane maayaavateeko apanee tulaseekee maala dekar aasheervaad diya tatha kaavereeke tatapar jaakar bhajan karaneka aadesh diyaa. govardhanako usake ghar jaaneka aadesh diya aur praatah kaal hee svayan bhee usake ghar padhaaranekee baat kahee. govardhan aur maayaavateeke saamanese maayaaka parda hat gayaa. ve nihaal ho gaye. sant aur bhagavantakee kripaashakti kalyaan karanemen amogh hotee hai.

govardhanakee patneekee aankhonmen neend naheen thee. vah ro rokar karunaamay bhagavaanko pukaar rahee thee. itanemen hee govardhanane aakar kivaada़ khatakhataaye tatha aavaaj do. deerghakaal se govardhan bahut hee kam ghar aate aur jab kabhee aate to sharaabake nashemen choor, bada़bada़aate, kheejhate, jhallaate, cheekhate aur girate pada़te. bechaaree braahmanee samhaalatee, nahalaatee, khilaatee, seva karatee, samajhaatee;parantu badalemen use milate tiraskaar, apamaan, vaagbaan aur kabhee-kabhee maar bhee braahmanee sab sahatee, patiko asahaay avasthaaka vichaar karake ro pada़tee aur aatan hokar bhagavaan‌ko pukaaratee. aaj to ve poorn svasth hain. unakee aavaajase hee unakee svaabhaavik sthitika pata lagata hai. par aaj is svaabhaavikataake saath kuchh anyajaateey asvaabhaavikata bhee hai-vah hai pavitr hridayako prabhu bhaktika nirmal sudhaapravaaha! braahmanee aavaaj sunate hee maano nihaal ho gayee. usane dauda़kar daravaaja kholaa. govardhan patneeke saath gharake andar aaye. vah charanonpar girakar rone lagee. idhar kritajn hriday govardhanake netronmen aansuonkee jhada़ee lagee thee. govardhanane usako uthaaya aur snehase apane paas baithaakar gadgad kanthase saaree katha sunaayee. braahmanee bhagavatkripaaka chamatkaar dekhakar kritaarth ho gayee aur usaka bacha bachaaya jeevan sadaake liye prabhuke samarpan ho gayaa. samast raatri sant charcha aur bhagavachcharcha men beet gayo. praatah snaanaadile nivritt hokar govardhan bhagavat-poojaakee baat soch rahe the ki mahaatma padhaar gaye.

pati-patnee unake charanonpar gir pada़e. dononka hriday kritajnata, ullaas aur sarvasamarpanake nishchayase bhara thaa. mahaatmaane dononko bhagavadbhaktika upadesh aura
shodash naamake hare raam hare raam raam raam hare hare.

hare krishn hare krishn krishn krishn hare hare .. -is kalisantaranopanishad ke mantraka upadesh kiya aur kaha, 'ab tumhaara kabhee patan naheen hogaa. tum donon bhagavaanke divy dhaamako aur svaroopako praapt karoge.' tadanantar bhiksha aadi karaneke baad mahaatma apane sthaanako padhaar gaye.

idhar ye donon bhagavadbhaktimen talleen ho gaye. braahmaneeka jeevan bhaktimay tha ho. braahman bhee param bhakt hue aur antamen bhagavaan‌ ke pratyaksh darshan praapt karake | donon divy dhaamako padhaare. vahaan unhonne nity paarshadagati praapt kee.

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बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
तेरा पल पल बिता जाए रे
मुख से जप ले नमः शवाए
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥

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छोटो सो हनुमान सखी री मोहे प्यारो लगे,
अंजनी माँ को लाल सखी री मोहे प्यारो
उंचा पर्वत थी आवो ने भैरूजी,
दुखड़ा म्हारा थे दादा निवारजो,
लाल लँगोटो बाला हाथ मे घोटो,
ओ थानै सुमिराँ पवन कुमार बजरंग बालाजी,
आई हूँ खाटू, मैं पहली बार,
चर्चे सुने हैं, इनके हज़ार,
सुन पुकार दातिये दे दुलार दातिये,
तेरे लाडले जाएंगे लेके प्यार दातिये,