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भक्त उद्धव गोसावी की मार्मिक कथा
भक्त उद्धव गोसावी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त उद्धव गोसावी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त उद्धव गोसावी]- भक्तमाल


महाराष्ट्रके सुप्रसिद्ध भक्त समर्थ रामदास स्वामीके ये पट्टशिष्य थे। ये महान् भगवद्भक्त थे। इनके पिताका नाम सदाशिव पंत और माताका नाम उमा था। सदाशिव पंत धनवान् थे। युवावस्थामें ही उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी धर्मपत्नी उमाने सती होनेका निश्चय किया। उमा अपने पतिके शवको लेकर चितापर आरोहण करनेवाली ही थी कि उसकी दृष्टि एक गुफाकी ओर पड़ी, जहाँ समर्थ रामदास ध्यानस्थ स्थित थे। उनकीतपस्वीविभूति देखकर उमाने उनके दर्शनार्थ समीप जाकर नमस्कार किया। स्वामीजीने 'अष्टपुत्रा सौभाग्यवती भव' ऐसा आशीर्वाद दिया। उमाने फिर प्रणाम किया- इस विचारसे कि स्वामीजी ध्यानस्थ हैं, मेरी अवस्थाको समझ लें। परंतु उन्होंने फिर उसी आशीर्वचनको दुहराया। तीसरी बार उमाने प्रणाम किया तो स्वामीने । 'दशपुत्री भव' - दस पुत्रोंवाली हो- का आशीर्वाद दिया। इसपर उमाने कहा - 'स्वामीजी ! मैं तो अब सती होने जा रही हूँ और मेरे पतिका देहान्त हो गया है, आपका यह आशीर्वाद कैसे सत्य होगा?' पर स्वामीजीके कृपाप्रसाद उसका पति सजीव होकर उठ बैठा उसने कहा कि 'मुझे कुछ लोग ले जा रहे थे, इतनेमें एक वानरने आकर छुड़ाया और मैं जाग्रत् हो गया। मुझे यहाँ क्यों लाये हो?' उमाने सारा वृत्तान्त कहा। इसपर उसके पतिने स्वामीके दर्शनकी इच्छा की। दर्शनके बाद स्वामीजीने कहा कि 'तुमको जो पुत्र होंगे, उनमेंसे प्रथम पुत्र मुझे दे देना।' दम्पतिने इसे स्वीकार किया और आनन्दसे अपने घर लौट आये। इन्होंके प्रथम पुत्र हमारे चरित्रनायक श्रीउद्धव स्वामी हैं।

उद्भव स्वामी जन्मसे ही वैराग्ययुक्त भक्त थे मानो स्वयं स्वामी रामदासने ही शिष्यरूपमें अवतार लिया था। समर्थ रामदास इनके पिताके पास आकर इस बालकको देखकर बड़े प्रसन्न होते थे और उसे बहुत प्यार करते थे। उद्धव स्वामी भी समर्थ रामदासको ही अपना पिता मानते थे। छः वर्षके बाद जब उपनयन करनेका निश्चय हुआ, तब बालकने कहा कि 'मेरा उपनयन रामदास स्वामीकी उपस्थितिमें होगा। अन्यथा नहीं।' पर पिताजीने नहीं माना। उपनयनकी तैयारी कर ली। इतनेमें वहाँ समर्थ प्रकट हो गये और उद्धव स्वामीके मनके अनुसार उपनयन हुआ। पश्चात् इस बालकको लेकर समर्थ माता पिताके घरसे निकले। गाँववालोंने समझाया कि इस छोटे-से बालकको आप माता-पितासे अलग क्यों ले जा रहे हैं? पर उन्होंने किसीकी नहीं सुनी। फिर गाँववालोंके कहनेपर समर्थने उसी गाँवके समीप टाकली ग्राममें हनुमान्जीका मन्दिर बनवाया और उसी स्थानपर इस बालकको रखा गया। तदनन्तर स्वामीजी वहाँसे चले गये। जाते वक्त स्वामीजीने बालकको हनुमान्जोकी पूजाका विधान बतलाया और कहा कि मैं शीघ्र ही लौटकर आऊंगा।'

बालकने स्वामीजीके आदेशानुसार प्रतिदिन प्रातः चार बजे उठकर स्नान, सन्ध्या, हनुमान्जीकी पूजा, जप और ध्यान-धारणा करनेका नियम कर लिया और अपने अनुष्ठानको अखण्डरूपसे चालू रखा वह प्रतिदिन सद्गुरुकी प्रतीक्षा करता रहा। इस तरह बारह वर्षव्यतीत हो गये। बालक बराबर अनुष्ठान करता रहा। एक दिन उसके मनमें आयी कि 'गुरुजी तो शीघ्र लौटनेका वादा करके गये थे, फिर अभीतक क्यों नहीं आये वे मुझपर रूठ तो नहीं गये?' चित्त व्याकुल हो गया। और गुरुजीके दर्शनकी लालसा अत्यन्त बढ़ गयी। उसने पूजाके समय इसके लिये श्रीहनुमानजी से प्रार्थना की। | इसपर भी जब समर्थ नहीं आये, तब एक दिन उसने प्रतिज्ञा की कि अब मुझे जबतक दर्शन नहीं होंगे, मैं अन्न ग्रहण नहीं करूंगा।' इनके भक्तिभाव को देखकर हनुमानजी प्रसन्न हो गये और रात्रिके बारह बजे दर्शन | देकर बोले-'वत्स! चिन्ता न कर, तेरे गुरुजीको मैं लेकर आता हूँ।' इस समय स्वामी रामदासजी सज्जनगढ़में निवास करते थे। उनको हनुमान्जीने जगाया और तुरंत दर्शन देनेके लिये लेकर आये। उद्धव स्वामी गुरुजीके दर्शन पाकर बड़े ही प्रसन्न हुए। यथायोग्य प्रणाम पूजनादिके पश्चात् उपदेश देनेकी प्रार्थना की। स्वामी रामदासजीने उनको उपदेश दिया और कुछ दिनोंतक टाकली ग्राममें अपने शिष्यके साथ रहकर उसे दृढ़ आत्मानुभव कराया । तदनन्तर वे वहाँसे फिर सज्जनगढ़ लौट गये।

समर्थ रामदासजीके अकस्मात् सज्जनगढ़से चले | जानेके पश्चात् उनके शिष्य कल्याण, शिवाजी आदिने बड़ी खोज की; परंतु जब कहीं पता न चला, तब वे बड़े दुःखी हुए। समर्थजीके वापस लौट आनेपर उनसे पूछा तो उन्होंने बतलाया कि 'उद्धव स्वामी नामका मेरा एक अत्यन्त प्रिय शिष्य है। उसके प्रार्थनापर मैं अकस्मात् वहाँ चला गया था। अब वहाँसे लौटकर आ रहा हूँ।' यह कहकर उन्होंने उद्भव स्वामीका सारा वृत्तान्त सुनाया। इसपर सभी शिष्योंने उद्भव स्वामीके दर्शनकी इच्छा प्रकट की। समर्थजीने उद्भव स्वामीको सज्जनगढ़ बुलवाया और अपने सब शिष्योंसे उनकी भेंट करवायी। | उस समय सबको बड़ा ही आनन्द हुआ।

एक दिन समर्थजीने उद्धव स्वामीको अपने 'दासबोध' ग्रन्थपर व्याख्यान करनेकी आज्ञा की गुरुजी आज्ञानुसार उद्धव स्वामीने दासबोधका व्याख्यान इतना सुन्दर किया | कि उसे सुनकर गुरुजी बड़े प्रसन्न हुए और अपनेशिष्योंमें उनको अग्रस्थान दिया। सज्जनगढ़से टाकली ग्रामका वापस जानेकी आज्ञा होनेपर वहाँसे जब उद्धव स्वामी चले तो छत्रपति शिवाजीने उनसे प्रार्थना की कि 'मैं पाँच गाँव आपके टाकली मठको देता हूँ। कृपया स्वीकार कर लीजिये।' इसपर उन्होंने अत्यन्त नम्रतासे उन्हें लेना अस्वीकार कर दिया। इससे इनके वैराग्यका पता लगता है।

टाकली लौटनेके पश्चात् उद्धव स्वामी अपने नित्य कार्यक्रमके अनुसार भजन-पूजनमें लग गये। इस दिव्य व्यक्तिके दिव्य जीवनको देखकर जनता उनकी ओर आकृष्ट होने लगी और उपदेश तथा अनुग्रह करनेके लिये प्रार्थना करने लगी। इसपर उन्होंने कहा कि 'मैं गुरुजीकी आज्ञाके बिना ऐसा नहीं कर सकता।' एक दिन समर्थ टाकली आये। उस दिन एकादशी थी। समर्थने आज्ञा की— 'कीर्तन करो।' आज्ञानुसार कीर्तन प्रारम्भ हुआ। कीर्तन इतना सुन्दर और भक्तियुक्त अन्तःकरणसे किया जा रहा था कि स्वयं श्रीहनुमान्जी पीछे खड़े होकर वाद्य बजाकर कीर्तनमें योग दे रहे थे। सब लोग कीर्तनमें इतने मग्र हो गये कि कई घंटोंतक अखण्ड कीर्तन होता रहा और किसीको समयका खयालतक न रहा। इस प्रकार सुन्दर कीर्तन सुनकर समर्थ बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने आज्ञा दी कि 'जनताके उत्थानके लिये उद्धव स्वामी उपदेश दिया करें और स्वयं भक्तिभाव बढ़ानेका प्रयत्न करें।'

गुरुजीके आदेशानुसार उद्धव स्वामी नित्यप्रति जनताको भक्ति भावकी ओर आकृष्ट करनेका उद्योग करते रहे। वे स्वयं भजन-पूजन करते और दूसरोंसे करवाते जनता भी इन अधिकारी पुरुषके आदेशानुसार आचरण करने लगी। इस सिद्धपुरुषके द्वारा महाराष्ट्रभरमें भक्तिका बड़ा प्रसार हुआ। फाल्गुन शु0 1 के दिन भजन-पूजन करते हुए आपने अपने आत्माको परमात्मामें विलीन कर लिया। अबतक इनकी पुण्यतिथि मनायी जाती है।



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gurujeeke aadeshaanusaar uddhav svaamee nityaprati janataako bhakti bhaavakee or aakrisht karaneka udyog karate rahe. ve svayan bhajana-poojan karate aur doosaronse karavaate janata bhee in adhikaaree purushake aadeshaanusaar aacharan karane lagee. is siddhapurushake dvaara mahaaraashtrabharamen bhaktika bada़a prasaar huaa. phaalgun shu0 1 ke din bhajana-poojan karate hue aapane apane aatmaako paramaatmaamen vileen kar liyaa. abatak inakee punyatithi manaayee jaatee hai.

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सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
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दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
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हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
तेरे दर की भीख से है,
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शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
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प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
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अजब तुम्हारा खेल,
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लहर लहर लहराए रे, मेरे आँगन कि तुलसी