⮪ All भक्त चरित्र

शान्तोबा और उसकी धर्मपत्नी की मार्मिक कथा
शान्तोबा और उसकी धर्मपत्नी की अधबुत कहानी - Full Story of शान्तोबा और उसकी धर्मपत्नी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [शान्तोबा और उसकी धर्मपत्नी]- भक्तमाल


जब भारतमें दिल्लीके सिंहासनपर मुगलवंशका प्रभुत्व था, उसी समय दक्षिणके 'रञ्जनम्' नामक गाँवमें शान्तोबा नामके एक धनवान् व्यक्ति रहते थे। सम्पत्ति और सम्मान दोनों उन्हें प्राप्त थे। संसारके भोगोंमें वे खूब आसक्त थे। परमार्थकी ओर उनका कोई ध्यान नहीं था। परंतु भगवान्‌की लीला बड़ी विचित्र है। वे कब किसे अपनाना चाहते हैं, यह कोई नहीं जानता। एक बार श्रीतुकारामजी महाराज शान्तोबाके घर पधारे। सच्चे भक्तका क्षणभरका सङ्ग भी अमोघ होता है। तुकारामजीके उपदेशोंने जैसे जादू कर दिया। संसारके सारे सुख भोग तुच्छ जान पड़ने लगे। शान्तोबाके मनमें वैराग्यका उदय हुआ।

शान्तोबा सोचने लगे-'मैंने कामिनी-काञ्चनके जालमें पड़कर मनुष्य जन्म व्यर्थ ही खो दिया। भला, मुझे इन भोगोंसे कितनी तृप्ति मिली? जितना ही विषय भोग प्राप्तहो, उतनी ही तृष्णा बढ़ती जाती है। विषयोंसे अतृप्ति, अशान्ति और दुःख ही मिलता है। अब मेरी क्या गति होगी? श्रीहरिके अभय चरण मुझे कैसे मिलेंगे?'

शान्तोबाने अपनी सम्पत्तिका बहुत-सा भाग दीन | दुःखियोंको बाँट दिया। घर तथा परिवारका मोह छोड़कर वे निकल पड़े। एक लँगोटीके अतिरिक्त उनके पास कुछ भी नहीं था। वे चलते ही गये। उस समय भीमा नदीमें बाढ़ आयी हुई थी। वह सचमुच भीमा बनी थी; किंतु जो संसार-सागरसे पार होने निकला हो, उसे ऐसी नदीसे क्या भय। तैरकर नदी पार की उन्होंने और दूसरे तटके पर्वतपर चढ़ गये। पर्वत एवं वनकी शोभा देखकर उनका मन वहाँ लग गया। अब वे वहीं एक गुफामें रहकर भजन करने लगे।

शान्तोबाके घरवालोंको उनका वन जाना अत्यन्तकष्टदायक हुआ। उन्होंने उनको स्त्रीको उनके पास इसलिये। भेजनेका निश्चय किया कि सुन्दरी पत्नीके मोहमें पड़कर वे घर लौट आयेंगे। सती स्त्रो भी पतिके पास जानेको उत्सुक थी। उसने सोच लिया था- 'मेरे लिये तो पतिदेवके चरणोंको छोड़कर और कोई गति है नहीं। वे लौट आयें तो ठीक; नहीं तो जहाँ वे, वहीं उनकी यह दासी।'

पतिव्रता स्त्री उस घोर वनमें शान्तोबाके पास पहुँची और सिर झुकाकर खड़ी हो गयी। शान्तोबाके मनमें उसके आनेसे तनिक भी उद्विग्रता या मोहका भाव नहीं आया। वे अपने भजनमें लगे रहे। वह साध्वी पतिके चरणोंपर गिर पड़ी और रोकर कहने लगी- 'नाथ! आप हमलोगोंको छोड़कर यहाँ भगवान्‌को आराधना करने चले आये, यह तो ठीक है; परंतु देव! मेरे तो आप ही भगवान् हैं। आपको छोड़कर दूसरे किसी भगवान्को मैं नहीं जानती। मैं आपके चरणोंकी सेवा करने यहाँ आयी हूँ। इस दासीको आप अपने आश्रयसे अलग मत करें।' उसका गला भर गया यह कहते-कहते।

शान्तोबा में विकारका नाम नहीं था। परंतु स्त्रीके प्रति पतिका कुछ कर्तव्य होता है। नारी केवल काम वासना की तृप्तिका साधन ही नहीं है, वह पुरुषकी अर्धाङ्गिनी है। कर्तव्य समझकर शान्तोवाने कहा- 'मेरी तरह रहना हो तो मैं तुम्हें अपने पास रहनेसे रोकूँगा नहीं। यहाँ रहना हो तो बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण उतारकर सादे कपड़े पहनकर रह सकती हो; नहीं तो जैसी तुम्हारी इच्छा हो, करो मुझे अपने मार्गसे जाने दो, तुम अपने मार्गसे जाओ।"

पतिके मार्गको छोड़कर पतिव्रताके लिये भला, दूसरा अपना मार्ग कैसा। उस देवीने वस्त्र तथा आभूषण उतारकर फेंक दिये। एक सादा कपड़ा पहनकर वह तपस्विनी बन गयी। पतिकी सेवामें वह सब प्रकार उद्यत रहने लगी। अब पति-पत्नी दोनों वनमें भजन करने लगे।

एक दिन शान्तोबाने पत्नीके संयम, धैर्य तथा त्यागकी परीक्षा लेनेका निश्चय किया। उन्होंने खोसे कहा- 'रोटी खाये बहुत दिन हो गये। तुम गाँव जाकर कुछ टुकड़े माँग लाओ देखो, रोटीके टुकड़ोंको छोड़करऔर कुछ भी मत लेना किसीसे।'जो स्त्री धनी पिता-माताके घर स्नेहसे पली, धनी श्वशुरकी पुत्रवधू बनो, अन्तःपुरसे जो कभी बाहर नहीं निकली, वह आज एक मैली-फटी साड़ी पहने भीख माँगने जा रही है। पतिको आज्ञासे भिक्षुकी बनी इस तपस्विनीको शोभा ही धन्य है। गाँवमें पहुँचकर वह भीख माँगने लगी घर-घर उसी गाँवमें उसकी ननदकी ससुराल थी। अपनी भाभीको भिखारिनीके वेशमें देखकर उसके दुःखका पार नहीं रहा। उसने पूछा- भाभी क्या मेरे बाप-दादाकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गयी?' ननदको उस पतिव्रताने पतिके वैराग्यकी बात बताकर कहा- 'तुम्हारे भाईको मैं भूखा छोड़ आयी हूँ। मुझे रोको मत। एक टुकड़ा रोटी दे सको तो दे दो नहीं तो, मैं दूसरे घर जाती हूँ।' ननदने पैर पकड़कर उसे ठहराया। हलुआ-पूरीका थाल भरकर उसे दिया ननद किसी प्रकार मानती नहीं थी, उससे विवादमें समय बीता जा रहा था। अन्तमें विवश होकर वह थाल स्वीकार करना पड़ा। उसे लेकर वह बड़ी शीघ्रतासे चल रही थी। पतिदेव भूखे हैं, इस बातको सोचकर वह कभी दौड़ती, कभी धीरे-धीरे चलती। पर्वतके बीहड़ पथमें उसे अनेक बार ठोकरें लगीं। किसी प्रकार वह पतिके पास पहुँची और उनके सामने थाल रखकर खड़ी हो गयी।

शान्तोबाने थाल देखकर कहा-'मैंने ऐसा भोजन | लानेको तो तुमसे नहीं कहा था। इसे लौटा आओ।' उस देवीने डरते-डरते गाँवकी सारी बातें सुना दीं। बहिनके आग्रहकी बात सुनकर भी शान्तोवाने हलुआ पूरी खाना अस्वीकार कर दिया। पतिव्रता स्त्रीका शरीर पर्वतपर चढ़ने-उतरनेका इतना श्रम करके बिलकुल थक गया था। उसका श्वास बढ़ गया था। पैरकी अँगुलियाँ ठोकर लगनेसे फट गयी थीं। इतनेपर भी पतिकी आज्ञासे हलुआ-पूरीका थाल लौटाकर रोटी माँगने वह बिना दो क्षण सुस्ताये तुरंत गाँवकी ओर चल पड़ी।

गाँवमें जाकर बड़ी मधुर वाणीसे ननदको समझाकर उसने थाल लौटा दिया। जल्दी-जल्दी कुछ घरोंसे रोटी के टुकड़े मांगे क्योंकि एक ही घरसे रोटियाँ लानेको पतिदेवने मना कर दिया था। अब वह शीघ्रतापूर्वक वनकी और चली सायंकाल हो गया था। कुछ दूर जातेहो आकाश ढक गया। मुसलधार वर्षा होने लगी आज जो रोटियाँ उस पतिव्रता हाथ है, ये उसके प्राणोंसे भी प्रिय है। उनसे उसके देवताकी भूख दूर होगी। अपनी फटी साड़ी वह रोटियोंपर लपेटती चली गयी उन्हें भीगने से बचाने के लिये वर्षामें भीगकर उसका शरीर थर घर काँपने लगा। वर्षकि कारण भीमा नदीमें बाढ़ आ गयी। बढ़ी हुई भीमाकी तरङ्गोंमें भरला, कोई नौका पार हो सकती है? नदीके किनारे पहुँचकर उस देवीके नेत्रोंसे भी वर्षा होने लगी। वह रोती हुई बोली-'सन्ध्या होने को आयी। मेरे स्वामी सबेरेसे भूखे हैं ये रोटीके टुकड़े उनके पास कैसे पहुंचाऊँ? दयामय प्रभु सर्वेश्वर भगवान्। तुम इस दरिद्रापर क्या दया नहीं करोगे?'

ऐसी पतिव्रताकी करुण पुकारपर यदि वे सर्वेश्वर दौड़ न पड़ते तो उन्हें कौन दयासिन्धु कहता ? ये केवटका रूप लेकर उपस्थित हुए और बोले—'बहिन ! इस वर्षामें तुम अकेली यहाँ किसलिये भीग रही हो?"

सती पाण्डु प्रभुको पुकार रही थी। नाविकका परम मधुर स्वर सुनकर उसने नेत्र खोले। वह बोली- भाई। अवश्य करुणासागर विट्ठलने तुम्हें भेजा है। तुम्हारी कृपाके बिना मैं आज भीमाको पार नहीं कर सकती। तुम मेरे बड़े भाई हो मेरे स्वामी भूखे बैठे हैं चाहे जैसे भी हो, तुम मुझे नदी पार कर दो।'

करुणापूर्ण अवसिक्त वाणी सुनकर करुणासागर द्रवित हो गये। वे बोले-बहिन डरो मत। मैं तुम्हें नदी पार करके बनमें ठीक मार्गचर पहुंचा दूंगा।' भवसागरसे प्राणियोंको पार उतारनेवाले उन महामल्लाहने सतीको कंधे पर उठाकर नावपर चढ़ाया और फिर उस पार ले जाकर कंधे पर उठाकर उसके पतिके आश्रमके समीपतक ले जाकर छोड़ आये कृतज्ञताके एक-दो शब्द सुननेको भी वे रुके नहीं वनमें तुरंत अदृश्य हो गये।

पतिकी कुटियाके पास पहुँचकर उस देवीने रोटी रखनेको साड़ीका पल्ला खींचना चाहा तो सहसा उसे अपने शरीरका ध्यान आ गया। वर्षासे रोटीको बचाने के लिये वह उसपर बराबर साड़ी लपेटती हो गयी थी। तब उसे केवल रोटीको बचानेका ध्यान था। अब उसने देखा कि पूरी साड़ी रोटीपर लिपटी है। उसके शरीरपर चल ही नहीं है। उसे बड़ा क्षोभ हुआ— पता नहीं केवटनेक्या सोचा होगा?' बड़ी लज्जा आयी उसे। रोटी परसे | साड़ी उतारकर उसने पहन ली। पतिके पास जाकर उनके चरणोंमें प्रणाम करके रोटीके टुकड़े उसने उनके। सामने धर दिये।

शान्तोबाने रोटीको ओर देखा ही नहीं वे अपनी स्त्रीकी ओर देख रहे थे। उनकी स्त्रीके शरीर आज इतना दिव्य तेज, इतना सौन्दर्य, इतना सात्त्विक आकर्षण कहाँसे आया? कुछ देरमें तनिक सावधान होकर उन्होंने पूछा—'साध्वी तुम इतने विकट समय यहाँतक कैसे आ सकी?' एकटक पत्नीने गाँव जाकर थाल लौटाने, टुकड़े माँगने मार्गमें वर्षा और भीमाकी बाढ़का वर्णन करके बताया कि वह कितनी व्याकुल हो गयी थी। कैसे उसने प्रार्थना की और कैसे केवटने आकर उसे पार कर दिया। वह कहने लगी- 'वह केवट बड़ा दयालु था। उसने मुझे बहिन कहा। मुझे कुटियाके पासतक छोड़ गया। मैं उसे धन्यवादतक न दे सकी थी कि लौट गया वह उसके स्वरमें तो जैसे अमृत ही भरा था।'

शान्तोबाके नेत्रोंसे आँसू चलने लगे। उनका कण्ठ भर आया। पत्नीसे वे बोले-'तुम भाग्यवती हो। भीमाकी बाढ़में तुम्हें पार उतारना किसी साधारण केवटका काम नहीं था। देवि! उन भवसमुद्रसे तारनेवाले केवटके दर्शनके लिये ही सब कुछ छोड़कर मैं यहाँ बैठा हूँ। अब इन रोटियोंको पशु-पक्षियोंको दे दो। प्रभु मेरे द्वारके पासतक आकर लौट गये, मैं ऐसा अभागा हूँ! उनके दर्शन किये बिना मैं अब जल भी ग्रहण नहीं करूँगा।"

इतने परिश्रमसे लाये हुए रोटीके टुकड़े पतिव्रताने पशु-पक्षियोंको दे दिये। जब पतिदेव ही जल नहीं ग्रहण करेंगे, तब वह कैसे अन्न-जल ले सकती है। दम्पतिके अनशन करते कई दिन बीत गये। गाँवमें एक हरिभक्त वैश्य रहते थे। भगवान्ने उन्हें स्वप्रमें शान्तोबाके लिये भोजन ले जानेकी आज्ञा दी अनेक प्रकारके पात्र लेकर वे बनमें पहुँचे और भगवान्‌की आज्ञा सुनायी। शान्तोबाने कहा- भाई तुम कोई भी हो और तुमको किसीने भी भेजा हो; पर मैं तो उस भेजनेवालेको देखे बिना भोजन करता नहीं।' वैश्यने बहुत अनुनय की, पर शान्तोबा अपनी टेकपर अड़े रहे। हारकर वैश्यभोजन वहीं छोड़कर घर लौट गये।

वैश्यके चले जानेपर भोजनके पदार्थोंकी ओर देखकर शान्तोबाने कहा-'प्रभो! इन पदार्थोंका महत्त्व ही क्या है। अभी भोजन किया और सन्ध्यातक इनका मल बन जायगा। मैं आपको छोड़कर इन्हें कैसे ले लूँ? दयामय ! आप मुझपर दया क्यों नहीं करते? मुझे दर्शन दो, नाथ! एक बार अपनी बाँकी झाँकी दिखाओ!' भक्तकी मनोवेदना भगवान् सह नहीं सके। वे प्रकट हो गये। शान्तोबाके नेत्र धन्य हो गये। वे प्रभुके चरणोंमें गिर पड़े। भगवान् देरतक शान्तोबाके सम्मुख खड़े रहे। उन्हें आशीर्वाद देकर प्रभु अन्तर्धान हो गये। अब शान्तोबाका जीवन दूसरा ही हो गया। हृदयमें आनन्दका समुद्र उमड़ पड़ा। अब वे पति पत्नी निरन्तर भगवान्के चिन्तनमें तल्लीन रहने लगे। वे कभी-कभी भिक्षाके लिये गाँवमें भी जाते थे। हजारों नर नारी उनके उपदेशसे कृतार्थ होने लगे।

दक्षिणके भक्त प्रत्येक एकादशीको पण्ढरपुर पहुँचते हैं। आषाढ़की देवशयनी एकादशीको वहाँ लाखों भक्तोंका मेला होता है। एक बार शान्तोबा महाराज भी अपनी पत्नी और ब्राह्मणोंके साथ गाजे-बाजेके साथ नाम संकीर्तन करते पण्ढरीनाथके दर्शन करनेको चले। उस समय नरसिंहपुर तथा पण्ढरपुरके बीचमें पड़नेवाली नदीमें बाढ़ आयी थी। नदीपर कोई नौका नहीं थी।नदीकी भीषण मूर्ति देखकर तैरनेका साहस अच्छे केवट भी नहीं कर सकते थे। उस दिन दशमीकी रात्रि थी। ■ एकादशीको पण्ढरपुर अवश्य पहुँचना था। साथके सब लोग किनारे ठिठक गये। यह देख शान्तोबा बोले- 'तुमलोग इस क्षुद्र नदीको देखकर डर क्यों गये? जिन प्रभुका नाम भव- समुद्रसे पार करनेवाला है, वे श्रीहरि क्या कहीं चले गये हैं? भगवन्नामकी घोषणा करते हुए मेरे पीछे पीछे चले आओ!' शान्तोबा इस प्रकार चलते गये, जैसे सूखी भूमिपर जा रहे हों। उनके पीछे उनकी पत्नी चलती गयीं। उस साध्वीने नदीके जलकी ओर नेत्र उठाकर देखा ही नहीं। वे पतिके चरणोंको देखती बढ़ती गयीं। सहसा नदीके बीचमें सूखा मार्ग हो गया। सब लोग शान्तोबाके पीछे-पीछे उस मार्गसे नदी पार हो गये।

पण्ढरपुर जाकर सबने पुण्डलीक भक्तका पूजन करनेके अनन्तर श्रीपाण्डुरङ्गकी पूजा । शान्तोबा तो श्रीविट्ठलके दर्शन करके तन-मनकी सुधि ही भूल गये । अपने हृदयमें उन्होंने भगवान्‌का दर्शन किया और सुना कि प्रभु कह रहे हैं- 'शान्तोबा ! अब तुम मेरे पास ही रहो। अपने प्यारे भक्तोंके पास रहकर ही मैं सुखी होता हूँ।' भगवान्‌की आज्ञासे शान्तोबा पत्नीके साथ फिर जीवनभर पण्ढरपुर ही रहे। उनका जीवन भगवत्प्रेमके दिव्योन्मादमें ही बीता।



You may also like these:

Bhakt Charitra डाकू भगत


shaantoba aur usakee dharmapatnee ki marmik katha
shaantoba aur usakee dharmapatnee ki adhbut kahani - Full Story of shaantoba aur usakee dharmapatnee (hindi)

[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shaantoba aur usakee dharmapatnee]- Bhaktmaal


jab bhaaratamen dilleeke sinhaasanapar mugalavanshaka prabhutv tha, usee samay dakshinake 'ranjanam' naamak gaanvamen shaantoba naamake ek dhanavaan vyakti rahate the. sampatti aur sammaan donon unhen praapt the. sansaarake bhogonmen ve khoob aasakt the. paramaarthakee or unaka koee dhyaan naheen thaa. parantu bhagavaan‌kee leela bada़ee vichitr hai. ve kab kise apanaana chaahate hain, yah koee naheen jaanataa. ek baar shreetukaaraamajee mahaaraaj shaantobaake ghar padhaare. sachche bhaktaka kshanabharaka sang bhee amogh hota hai. tukaaraamajeeke upadeshonne jaise jaadoo kar diyaa. sansaarake saare sukh bhog tuchchh jaan pada़ne lage. shaantobaake manamen vairaagyaka uday huaa.

shaantoba sochane lage-'mainne kaaminee-kaanchanake jaalamen pada़kar manushy janm vyarth hee kho diyaa. bhala, mujhe in bhogonse kitanee tripti milee? jitana hee vishay bhog praaptaho, utanee hee trishna badha़tee jaatee hai. vishayonse atripti, ashaanti aur duhkh hee milata hai. ab meree kya gati hogee? shreeharike abhay charan mujhe kaise milenge?'

shaantobaane apanee sampattika bahuta-sa bhaag deen | duhkhiyonko baant diyaa. ghar tatha parivaaraka moh chhoda़kar ve nikal pada़e. ek langoteeke atirikt unake paas kuchh bhee naheen thaa. ve chalate hee gaye. us samay bheema nadeemen baadha़ aayee huee thee. vah sachamuch bheema banee thee; kintu jo sansaara-saagarase paar hone nikala ho, use aisee nadeese kya bhaya. tairakar nadee paar kee unhonne aur doosare tatake parvatapar chadha़ gaye. parvat evan vanakee shobha dekhakar unaka man vahaan lag gayaa. ab ve vaheen ek guphaamen rahakar bhajan karane lage.

shaantobaake gharavaalonko unaka van jaana atyantakashtadaayak huaa. unhonne unako streeko unake paas isaliye. bhejaneka nishchay kiya ki sundaree patneeke mohamen pada़kar ve ghar laut aayenge. satee stro bhee patike paas jaaneko utsuk thee. usane soch liya thaa- 'mere liye to patidevake charanonko chhoda़kar aur koee gati hai naheen. ve laut aayen to theeka; naheen to jahaan ve, vaheen unakee yah daasee.'

pativrata stree us ghor vanamen shaantobaake paas pahunchee aur sir jhukaakar khada़ee ho gayee. shaantobaake manamen usake aanese tanik bhee udvigrata ya mohaka bhaav naheen aayaa. ve apane bhajanamen lage rahe. vah saadhvee patike charanonpar gir pada़ee aur rokar kahane lagee- 'naatha! aap hamalogonko chhoda़kar yahaan bhagavaan‌ko aaraadhana karane chale aaye, yah to theek hai; parantu deva! mere to aap hee bhagavaan hain. aapako chhoda़kar doosare kisee bhagavaanko main naheen jaanatee. main aapake charanonkee seva karane yahaan aayee hoon. is daaseeko aap apane aashrayase alag mat karen.' usaka gala bhar gaya yah kahate-kahate.

shaantoba men vikaaraka naam naheen thaa. parantu streeke prati patika kuchh kartavy hota hai. naaree keval kaam vaasana kee triptika saadhan hee naheen hai, vah purushakee ardhaanginee hai. kartavy samajhakar shaantovaane kahaa- 'meree tarah rahana ho to main tumhen apane paas rahanese rokoonga naheen. yahaan rahana ho to bahumooly vastr aur aabhooshan utaarakar saade kapada़e pahanakar rah sakatee ho; naheen to jaisee tumhaaree ichchha ho, karo mujhe apane maargase jaane do, tum apane maargase jaao."

patike maargako chhoda़kar pativrataake liye bhala, doosara apana maarg kaisaa. us deveene vastr tatha aabhooshan utaarakar phenk diye. ek saada kapada़a pahanakar vah tapasvinee ban gayee. patikee sevaamen vah sab prakaar udyat rahane lagee. ab pati-patnee donon vanamen bhajan karane lage.

ek din shaantobaane patneeke sanyam, dhairy tatha tyaagakee pareeksha leneka nishchay kiyaa. unhonne khose kahaa- 'rotee khaaye bahut din ho gaye. tum gaanv jaakar kuchh tukada़e maang laao dekho, roteeke tukaड़onko chhoda़karaaur kuchh bhee mat lena kiseese.'jo stree dhanee pitaa-maataake ghar snehase palee, dhanee shvashurakee putravadhoo bano, antahpurase jo kabhee baahar naheen nikalee, vah aaj ek mailee-phatee saada़ee pahane bheekh maangane ja rahee hai. patiko aajnaase bhikshukee banee is tapasvineeko shobha hee dhany hai. gaanvamen pahunchakar vah bheekh maangane lagee ghara-ghar usee gaanvamen usakee nanadakee sasuraal thee. apanee bhaabheeko bhikhaarineeke veshamen dekhakar usake duhkhaka paar naheen rahaa. usane poochhaa- bhaabhee kya mere baapa-daadaakee saaree sampatti nasht ho gayee?' nanadako us pativrataane patike vairaagyakee baat bataakar kahaa- 'tumhaare bhaaeeko main bhookha chhoda़ aayee hoon. mujhe roko mata. ek tukada़a rotee de sako to de do naheen to, main doosare ghar jaatee hoon.' nanadane pair pakada़kar use thaharaayaa. haluaa-pooreeka thaal bharakar use diya nanad kisee prakaar maanatee naheen thee, usase vivaadamen samay beeta ja raha thaa. antamen vivash hokar vah thaal sveekaar karana pada़aa. use lekar vah bada़ee sheeghrataase chal rahee thee. patidev bhookhe hain, is baatako sochakar vah kabhee dauda़tee, kabhee dheere-dheere chalatee. parvatake beehada़ pathamen use anek baar thokaren lageen. kisee prakaar vah patike paas pahunchee aur unake saamane thaal rakhakar khada़ee ho gayee.

shaantobaane thaal dekhakar kahaa-'mainne aisa bhojan | laaneko to tumase naheen kaha thaa. ise lauta aao.' us deveene darate-darate gaanvakee saaree baaten suna deen. bahinake aagrahakee baat sunakar bhee shaantovaane halua pooree khaana asveekaar kar diyaa. pativrata streeka shareer parvatapar chadha़ne-utaraneka itana shram karake bilakul thak gaya thaa. usaka shvaas badha़ gaya thaa. pairakee anguliyaan thokar laganese phat gayee theen. itanepar bhee patikee aajnaase haluaa-pooreeka thaal lautaakar rotee maangane vah bina do kshan sustaaye turant gaanvakee or chal pada़ee.

gaanvamen jaakar bada़ee madhur vaaneese nanadako samajhaakar usane thaal lauta diyaa. jaldee-jaldee kuchh gharonse rotee ke tukada़e maange kyonki ek hee gharase rotiyaan laaneko patidevane mana kar diya thaa. ab vah sheeghrataapoorvak vanakee aur chalee saayankaal ho gaya thaa. kuchh door jaateho aakaash dhak gayaa. musaladhaar varsha hone lagee aaj jo rotiyaan us pativrata haath hai, ye usake praanonse bhee priy hai. unase usake devataakee bhookh door hogee. apanee phatee saada़ee vah rotiyonpar lapetatee chalee gayee unhen bheegane se bachaane ke liye varshaamen bheegakar usaka shareer thar ghar kaanpane lagaa. varshaki kaaran bheema nadeemen baadha़ a gayee. badha़ee huee bheemaakee tarangonmen bharala, koee nauka paar ho sakatee hai? nadeeke kinaare pahunchakar us deveeke netronse bhee varsha hone lagee. vah rotee huee bolee-'sandhya hone ko aayee. mere svaamee saberese bhookhe hain ye roteeke tukada़e unake paas kaise pahunchaaoon? dayaamay prabhu sarveshvar bhagavaan. tum is daridraapar kya daya naheen karoge?'

aisee pativrataakee karun pukaarapar yadi ve sarveshvar dauda़ n pada़te to unhen kaun dayaasindhu kahata ? ye kevataka roop lekar upasthit hue aur bole—'bahin ! is varshaamen tum akelee yahaan kisaliye bheeg rahee ho?"

satee paandu prabhuko pukaar rahee thee. naavikaka param madhur svar sunakar usane netr khole. vah bolee- bhaaee. avashy karunaasaagar vitthalane tumhen bheja hai. tumhaaree kripaake bina main aaj bheemaako paar naheen kar sakatee. tum mere bada़e bhaaee ho mere svaamee bhookhe baithe hain chaahe jaise bhee ho, tum mujhe nadee paar kar do.'

karunaapoorn avasikt vaanee sunakar karunaasaagar dravit ho gaye. ve bole-bahin daro mata. main tumhen nadee paar karake banamen theek maargachar pahuncha doongaa.' bhavasaagarase praaniyonko paar utaaranevaale un mahaamallaahane sateeko kandhe par uthaakar naavapar chadha़aaya aur phir us paar le jaakar kandhe par uthaakar usake patike aashramake sameepatak le jaakar chhoda़ aaye kritajnataake eka-do shabd sunaneko bhee ve ruke naheen vanamen turant adrishy ho gaye.

patikee kutiyaake paas pahunchakar us deveene rotee rakhaneko saada़eeka palla kheenchana chaaha to sahasa use apane shareeraka dhyaan a gayaa. varshaase roteeko bachaane ke liye vah usapar baraabar saada़ee lapetatee ho gayee thee. tab use keval roteeko bachaaneka dhyaan thaa. ab usane dekha ki pooree saada़ee roteepar lipatee hai. usake shareerapar chal hee naheen hai. use bada़a kshobh huaa— pata naheen kevatanekya socha hogaa?' bada़ee lajja aayee use. rotee parase | saada़ee utaarakar usane pahan lee. patike paas jaakar unake charanonmen pranaam karake roteeke tukada़e usane unake. saamane dhar diye.

shaantobaane roteeko or dekha hee naheen ve apanee streekee or dekh rahe the. unakee streeke shareer aaj itana divy tej, itana saundary, itana saattvik aakarshan kahaanse aayaa? kuchh deramen tanik saavadhaan hokar unhonne poochhaa—'saadhvee tum itane vikat samay yahaantak kaise a sakee?' ekatak patneene gaanv jaakar thaal lautaane, tukada़e maangane maargamen varsha aur bheemaakee baadha़ka varnan karake bataaya ki vah kitanee vyaakul ho gayee thee. kaise usane praarthana kee aur kaise kevatane aakar use paar kar diyaa. vah kahane lagee- 'vah kevat bada़a dayaalu thaa. usane mujhe bahin kahaa. mujhe kutiyaake paasatak chhoda़ gayaa. main use dhanyavaadatak n de sakee thee ki laut gaya vah usake svaramen to jaise amrit hee bhara thaa.'

shaantobaake netronse aansoo chalane lage. unaka kanth bhar aayaa. patneese ve bole-'tum bhaagyavatee ho. bheemaakee baadha़men tumhen paar utaarana kisee saadhaaran kevataka kaam naheen thaa. devi! un bhavasamudrase taaranevaale kevatake darshanake liye hee sab kuchh chhoda़kar main yahaan baitha hoon. ab in rotiyonko pashu-pakshiyonko de do. prabhu mere dvaarake paasatak aakar laut gaye, main aisa abhaaga hoon! unake darshan kiye bina main ab jal bhee grahan naheen karoongaa."

itane parishramase laaye hue roteeke tukada़e pativrataane pashu-pakshiyonko de diye. jab patidev hee jal naheen grahan karenge, tab vah kaise anna-jal le sakatee hai. dampatike anashan karate kaee din beet gaye. gaanvamen ek haribhakt vaishy rahate the. bhagavaanne unhen svapramen shaantobaake liye bhojan le jaanekee aajna dee anek prakaarake paatr lekar ve banamen pahunche aur bhagavaan‌kee aajna sunaayee. shaantobaane kahaa- bhaaee tum koee bhee ho aur tumako kiseene bhee bheja ho; par main to us bhejanevaaleko dekhe bina bhojan karata naheen.' vaishyane bahut anunay kee, par shaantoba apanee tekapar ada़e rahe. haarakar vaishyabhojan vaheen chhoda़kar ghar laut gaye.

vaishyake chale jaanepar bhojanake padaarthonkee or dekhakar shaantobaane kahaa-'prabho! in padaarthonka mahattv hee kya hai. abhee bhojan kiya aur sandhyaatak inaka mal ban jaayagaa. main aapako chhoda़kar inhen kaise le loon? dayaamay ! aap mujhapar daya kyon naheen karate? mujhe darshan do, naatha! ek baar apanee baankee jhaankee dikhaao!' bhaktakee manovedana bhagavaan sah naheen sake. ve prakat ho gaye. shaantobaake netr dhany ho gaye. ve prabhuke charanonmen gir pada़e. bhagavaan deratak shaantobaake sammukh khada़e rahe. unhen aasheervaad dekar prabhu antardhaan ho gaye. ab shaantobaaka jeevan doosara hee ho gayaa. hridayamen aanandaka samudr umada़ pada़aa. ab ve pati patnee nirantar bhagavaanke chintanamen talleen rahane lage. ve kabhee-kabhee bhikshaake liye gaanvamen bhee jaate the. hajaaron nar naaree unake upadeshase kritaarth hone lage.

dakshinake bhakt pratyek ekaadasheeko pandharapur pahunchate hain. aashaadha़kee devashayanee ekaadasheeko vahaan laakhon bhaktonka mela hota hai. ek baar shaantoba mahaaraaj bhee apanee patnee aur braahmanonke saath gaaje-baajeke saath naam sankeertan karate pandhareenaathake darshan karaneko chale. us samay narasinhapur tatha pandharapurake beechamen pada़nevaalee nadeemen baadha़ aayee thee. nadeepar koee nauka naheen thee.nadeekee bheeshan moorti dekhakar tairaneka saahas achchhe kevat bhee naheen kar sakate the. us din dashameekee raatri thee. ■ ekaadasheeko pandharapur avashy pahunchana thaa. saathake sab log kinaare thithak gaye. yah dekh shaantoba bole- 'tumalog is kshudr nadeeko dekhakar dar kyon gaye? jin prabhuka naam bhava- samudrase paar karanevaala hai, ve shreehari kya kaheen chale gaye hain? bhagavannaamakee ghoshana karate hue mere peechhe peechhe chale aao!' shaantoba is prakaar chalate gaye, jaise sookhee bhoomipar ja rahe hon. unake peechhe unakee patnee chalatee gayeen. us saadhveene nadeeke jalakee or netr uthaakar dekha hee naheen. ve patike charanonko dekhatee badha़tee gayeen. sahasa nadeeke beechamen sookha maarg ho gayaa. sab log shaantobaake peechhe-peechhe us maargase nadee paar ho gaye.

pandharapur jaakar sabane pundaleek bhaktaka poojan karaneke anantar shreepaandurangakee pooja . shaantoba to shreevitthalake darshan karake tana-manakee sudhi hee bhool gaye . apane hridayamen unhonne bhagavaan‌ka darshan kiya aur suna ki prabhu kah rahe hain- 'shaantoba ! ab tum mere paas hee raho. apane pyaare bhaktonke paas rahakar hee main sukhee hota hoon.' bhagavaan‌kee aajnaase shaantoba patneeke saath phir jeevanabhar pandharapur hee rahe. unaka jeevan bhagavatpremake divyonmaadamen hee beetaa.

320 Views





Bhajan Lyrics View All

दिल की हर धड़कन से तेरा नाम निकलता है
तेरे दर्शन को मोहन तेरा दास तरसता है
ज़िंदगी मे हज़ारो का मेला जुड़ा
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,

New Bhajan Lyrics View All

विश्वप्रिया कमलेश्वरी, लक्ष्मी दया
तिमिर हरो अज्ञान का, ज्ञान का दो वरदान
चलती है सारी श्रष्टी उज्जैन शहर से,
मेरे महाकाल के दर से, मेरे महाकाल के दर
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी
इस निर्धन दास को भी माता, तुम बुलवा
श्याम सरकार सांवरिया,
भगत के घर भी आ जाओ,
नमः शिवाय शिव नमः शिवाय,
नमः शिवाय शिव नमः शिवाय...