परम पावन भूमि चित्रकूटके समीप एक छोटे से गाँवमें आजसे कई सौ वर्ष पूर्व एक वैश्यपरिवारमें ललिताचरणका जन्म हुआ-ठीक भादों बदी अष्टमीके दिन। भादोंकी अष्टमी हिंदूमात्रके लिये अत्यन्त पुनीत है। इसी पुण्य पर्वपर ललिताचरणने माताकी कोखको धन्य किया!
ललिताचरण अपने माता-पिताका एकमात्र लाड़ला लाल था। इस कारण उनका अमित स्नेह और अपार दुलार उसपर अहर्निश बरसता रहता। वह उनकी आँखोंका तारा था। उसका एक क्षणका भी विछोह उनके लिये असह्य था। पिता दूकानपर रहते और माता घरका काम-काज करती। प्रात:काल स्नानादिसे निवृत्त होकर पिता श्रीहनुमानचालीसाका पाठ करते और माता तुलसीके थाल्हेमें जल देती, सूर्यनारायणको अर्घ्य देती और फिर श्रीहनुमानजीको पत्र-पुष्प तथा प्रसाद चढ़ाती। यही उनका नित्य-नियम था । ललिता भी माताके साथ ही लगा रहता और उसके सभी कृत्योंको एक कुतूहलभरीदृष्टिसे देखता। बचपनमें जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे कच्चे घड़ेपर खिंची हुई रेखाके समान कभी मिटते नहीं । ललिताको पाँच-सात वर्षकी उम्रमें ही श्रीहनुमानचालीसा कण्ठस्थ हो गया और वह बड़े प्रेमसे अपनी माताके साथ बैठकर श्रीहनुमान्जीको एक पाठ सुनाता। यों करते-करते उसकी श्रीहनुमान्जीमें और हनुमानचालीसामें प्रीति हो गयी और वह उत्तरोत्तर बढ़ती गयी। प्रात:काल स्नान करके स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनकर वह पूजा घरमें चला जाता और प्रेमगद्रद वाणीसे पाठ करता । कभी- कभी पाठ करते हुए उसे ऐसा बोध होता कि साक्षात् श्रीहनुमान्जी उसके मस्तकपर हाथ रखे हुए हैं और उसे अपनी अमृतमयी स्नेहदृष्टिसे नहला रहे हैं। ऐसे समय स्वभावत: ही ललिताचरणकी आँखोंसे प्रेमाश्रुओंकी अविरल धारा बहने लगती-पाठ बंद हो जाता और एक विचित्र दिव्योन्मादमें घंटों निकल जाते। माता-पिताको अपने बच्चेकी इस भगवत्प्रीतिसे अपार आनन्द मिलता।एक बारकी बात है, ललिताचरणके गाँवके पास ही
एक गाँवमे रासलीला हो रही थी। संयोगसे ललिताचरण भी पहुँच गया था। उस दिन गोपियोंकी विरह लीलाका प्रसङ्ग था। भगवान् श्रीकृष्ण वृन्दावनसे मथुरा जाने लगे। गोपियाँ नाना प्रकार विलाप करती हुई लोक-लाज आदिकी परवा न करती हुई ऊँचे स्वरसे चिल्ला-चिल्लाकर 'हा गोविन्द ! हा दामोदर !! हा माधव !!!' कह कहकर रुदन करने लगीं।
उधर गोपियों रो रही थीं, इधर ललिताचरण रो रहा था। आज एकाएक उसने अपनेको गोपीभावमें तल्लीन पाया। घंटों उसकी विचित्र दशा रही। आँसुओंसे उसका वक्षःस्थल भीग गया। आहों और सिसकियोंका ताँता लग गया। हृदयमें सोया हुआ विरह जाग पड़ा। रासलीला चल रही थी। गोपियोंकी दशा देखकर उद्धवजी मथुरा लौटकर आ गये हैं और बड़े ही करुणस्वरसे राधिकाजीकी दशाका वर्णन कर रहे हैं।
ललिताचरणको मालूम हुआ यह श्रीराधाकी दशा उद्धवजी श्रीकृष्णसे निवेदन नहीं कर रहे हैं, अपितु साक्षात् श्रीहनुमानजी ही अपने प्रिय भक्त ललिताकी विरहव्यथा श्रीकृष्णको सुना रहे हैं रासलीलामेंसे लौट आनेपर भी कई दिनोंतक ललितावरण उसी दिव्य प्रेमोन्मादमें रहा। खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। न किसीसे कुछ कहता, न किसीकी कुछ सुनता। रात-दिन रोता ही रहता। हाँ, बीच-बीच में श्रीहनुमान चालीसाका पाठ चलता रहता; क्योंकि उसके हृदयमें यह दृढ विश्वास था कि यह सब कुछ श्रीहनुमान्जीकी कृपासे ही प्राप्त हुआ है। रातको उसने एक दिन स्वप्रमें सुना' अब वृन्दावन जाकर श्रीरङ्गनाथजीके दर्शन करो- वहाँ तुम्हारी इच्छाएँ पूरी हो जायेंगी। भगवान्ने अपने चरणोंमें तुम्हें स्वीकार कर लिया है।' स्वप्र टूटनेपर ललिताचरणने श्रीहनुमान्जीके संकेतको स्पष्ट समझ लिया और वृन्दावनकी तैयारी कर ली। रातको फिर स्वप्रमें श्रीहनुमानजीने प्रकट होकर द्वादशाक्षरी श्रीवासुदेव-मन्त्र उसके कानमें चुपके से सुनाया और एक तुलसीकी माला छोड़ गये। दूसरे दिन सबेरे ही ललिता वृन्दावनकी ओर चल पड़ा। वृन्दावनमें पहुँचते ही ललिताकी दशा कुछ और हो गयी- जैसेयुगोंकी बिछुड़ी हुई पत्नी अपने पतिके घर आ गयी हो। जीवमात्र उस प्रियतमसे मिलनेके लिये व्याकुल है। वह यहाँ रुकता है, वहाँ रुकता है। परंतु यहाँ वहाँकी किसी भी चीजसे उसे कभी सान्त्वना नहीं मिलती।
ललिता सोधे श्रीनाथजी के मन्दिरमें पहुंचा शरीर धूलसे भरा है। केशों में लटें पड़ गयी हैं। परंतु प्रेमीको शरीरसे क्या नाता ।
दिनभर ललिता श्रीरङ्गनाथजीके मन्दिरकी सीढ़ियोंपर बैठा रहता और रातको नगरसे दूर करीलकी कुओंमें चला जाता। वहाँ उसे भगवान्की लीलाओंके दर्शन होते कभी गोपालकृष्णको माखनचोरी देखता तो कभी गोपियोंके साथ नृत्य करते भगवान्के रासका दर्शन करता तो कभी चीरहरणका एक-एक करके सारी लीलाएँ उसके सामने खुलती जातीं। कभी-कभी यह स्वयं रासमें सम्मिलित होकर भगवान् के साथ नाचता- दाहिना हाथ भी श्रीकृष्णके हाथमें बायाँ हाथ भी श्रीकृष्णके हाथमें कहाँ रहता है, क्या खाता-पीता है-इसे कोई जानता न था। वह स्वयं भी नहीं जानता था कि कहाँसे यह सब हो रहा है। एक वृद्ध महात्मा रोटी और छाछ उसे पहुँचा जाया करते थे- वह चुपचाप उसे लेकर यमुनाजीके किनारे चला जाता और उसे पाकर फिर दो चार चुल्लू यमुनाजल पीकर अलमस्तीमें डोला करता था। हनुमानजीको दी हुई तुलसीको माला गलेमें थी और उनका दिया हुआ वासुदेव मन्त्र हृदयमें अखण्डरूपसे जाग्रत्! आँखोंके सामने आनेवाला समस्त रूप, कानोंको सुन पड़नेवाला प्रत्येक नाम- एकमात्र श्रीकृष्णका ही रूप और श्रीकृष्णका ही नाम हो गया था; सभी रूप उसी अपरूप रूपमें घुलमिल गये थे, सभी नाम उस दिव्य नाममें लय हो चुके थे। कानोंसे जो कुछ सुनता, उसमें श्रीकृष्ण ही सुनायी पड़ते; आँखोंसे जो कुछ | देखता, उसमें श्रीकृष्ण ही दिखायी पड़ते।
पंद्रह-सोलह वर्ष इस प्रेमोन्मत्ततामें एक क्षणकी भाँति बीत गये। एक भाव, एक रसमें सारा समय । ललिता अब ललिताचरण नहीं था, यह अब साक्षात् ललिता सखी बन गया था। आज रासका अपूर्व समारोह है। समस्त वृन्दावनकी कुओंमें दिव्य उन्माद नृत्य कररहा है-ललित त्रिभङ्गी श्यामसुन्दरने वंशी बजायी । अपनी प्रमुख अष्ट सखियोंके साथ श्रीकृष्ण रासमें पधारे। फिर सहस्र - सहस्र गोपियाँ पधारीं ! धन्य हैं वे, जो भगवान्की इस दिव्य वंशीध्वनिके आवाहनको सुनते हैं और सुनकर लोक और कुलकी मर्यादा भङ्ग करके सदाके लिये प्राणधनके प्रणयपथमें चल देते हैं। फिर तो मिलन होता ही है, अवश्यमेव होता है। आज ललिताने भी हृदय खोलकर हरिके वंशीपथका अनुसरण किया।रासमण्डलीमें उसे भगवान्ने सम्मिलित कर लिया और फिर भगवान्ने सखी ललिताजीको संकेत किया। उन्होंने भगवान्का गुप्त संकेत समझकर ललिताको अपने हृदय में छिपा लिया। ललिता ललितामें लीन हो गया-' -भगवान्की प्रणयिनीका पद पा गया!
उसके बाद वृन्दावनमें श्रीरङ्गनाथजीकी सीढ़ियोंपर वह पागल फिर नहीं दिखायी दिया। दीखता कहाँसे, वह तो अपने 'स्वरूप' में प्रवेश कर गया था !
param paavan bhoomi chitrakootake sameep ek chhote se gaanvamen aajase kaee sau varsh poorv ek vaishyaparivaaramen lalitaacharanaka janm huaa-theek bhaadon badee ashtameeke dina. bhaadonkee ashtamee hindoomaatrake liye atyant puneet hai. isee puny parvapar lalitaacharanane maataakee kokhako dhany kiyaa!
lalitaacharan apane maataa-pitaaka ekamaatr laada़la laal thaa. is kaaran unaka amit sneh aur apaar dulaar usapar aharnish barasata rahataa. vah unakee aankhonka taara thaa. usaka ek kshanaka bhee vichhoh unake liye asahy thaa. pita dookaanapar rahate aur maata gharaka kaama-kaaj karatee. praata:kaal snaanaadise nivritt hokar pita shreehanumaanachaaleesaaka paath karate aur maata tulaseeke thaalhemen jal detee, sooryanaaraayanako arghy detee aur phir shreehanumaanajeeko patra-pushp tatha prasaad chadha़aatee. yahee unaka nitya-niyam tha . lalita bhee maataake saath hee laga rahata aur usake sabhee krityonko ek kutoohalabhareedrishtise dekhataa. bachapanamen jo sanskaar pada़ jaate hain, ve kachche ghada़epar khinchee huee rekhaake samaan kabhee mitate naheen . lalitaako paancha-saat varshakee umramen hee shreehanumaanachaaleesa kanthasth ho gaya aur vah bada़e premase apanee maataake saath baithakar shreehanumaanjeeko ek paath sunaataa. yon karate-karate usakee shreehanumaanjeemen aur hanumaanachaaleesaamen preeti ho gayee aur vah uttarottar badha़tee gayee. praata:kaal snaan karake svachchh dhule hue vastr pahanakar vah pooja gharamen chala jaata aur premagadrad vaaneese paath karata . kabhee- kabhee paath karate hue use aisa bodh hota ki saakshaat shreehanumaanjee usake mastakapar haath rakhe hue hain aur use apanee amritamayee snehadrishtise nahala rahe hain. aise samay svabhaavata: hee lalitaacharanakee aankhonse premaashruonkee aviral dhaara bahane lagatee-paath band ho jaata aur ek vichitr divyonmaadamen ghanton nikal jaate. maataa-pitaako apane bachchekee is bhagavatpreetise apaar aanand milataa.ek baarakee baat hai, lalitaacharanake gaanvake paas hee
ek gaanvame raasaleela ho rahee thee. sanyogase lalitaacharan bhee pahunch gaya thaa. us din gopiyonkee virah leelaaka prasang thaa. bhagavaan shreekrishn vrindaavanase mathura jaane lage. gopiyaan naana prakaar vilaap karatee huee loka-laaj aadikee parava n karatee huee oonche svarase chillaa-chillaakar 'ha govind ! ha daamodar !! ha maadhav !!!' kah kahakar rudan karane lageen.
udhar gopiyon ro rahee theen, idhar lalitaacharan ro raha thaa. aaj ekaaek usane apaneko gopeebhaavamen talleen paayaa. ghanton usakee vichitr dasha rahee. aansuonse usaka vakshahsthal bheeg gayaa. aahon aur sisakiyonka taanta lag gayaa. hridayamen soya hua virah jaag pada़aa. raasaleela chal rahee thee. gopiyonkee dasha dekhakar uddhavajee mathura lautakar a gaye hain aur bada़e hee karunasvarase raadhikaajeekee dashaaka varnan kar rahe hain.
lalitaacharanako maaloom hua yah shreeraadhaakee dasha uddhavajee shreekrishnase nivedan naheen kar rahe hain, apitu saakshaat shreehanumaanajee hee apane priy bhakt lalitaakee virahavyatha shreekrishnako suna rahe hain raasaleelaamense laut aanepar bhee kaee dinontak lalitaavaran usee divy premonmaadamen rahaa. khaanaa-peena kuchh bhee achchha naheen lagata thaa. n kiseese kuchh kahata, n kiseekee kuchh sunataa. raata-din rota hee rahataa. haan, beecha-beech men shreehanumaan chaaleesaaka paath chalata rahataa; kyonki usake hridayamen yah dridh vishvaas tha ki yah sab kuchh shreehanumaanjeekee kripaase hee praapt hua hai. raatako usane ek din svapramen sunaa' ab vrindaavan jaakar shreeranganaathajeeke darshan karo- vahaan tumhaaree ichchhaaen pooree ho jaayengee. bhagavaanne apane charanonmen tumhen sveekaar kar liya hai.' svapr tootanepar lalitaacharanane shreehanumaanjeeke sanketako spasht samajh liya aur vrindaavanakee taiyaaree kar lee. raatako phir svapramen shreehanumaanajeene prakat hokar dvaadashaaksharee shreevaasudeva-mantr usake kaanamen chupake se sunaaya aur ek tulaseekee maala chhoda़ gaye. doosare din sabere hee lalita vrindaavanakee or chal pada़aa. vrindaavanamen pahunchate hee lalitaakee dasha kuchh aur ho gayee- jaiseyugonkee bichhuda़ee huee patnee apane patike ghar a gayee ho. jeevamaatr us priyatamase milaneke liye vyaakul hai. vah yahaan rukata hai, vahaan rukata hai. parantu yahaan vahaankee kisee bhee cheejase use kabhee saantvana naheen milatee.
lalita sodhe shreenaathajee ke mandiramen pahuncha shareer dhoolase bhara hai. keshon men laten pada़ gayee hain. parantu premeeko shareerase kya naata .
dinabhar lalita shreeranganaathajeeke mandirakee seedha़iyonpar baitha rahata aur raatako nagarase door kareelakee kuonmen chala jaataa. vahaan use bhagavaankee leelaaonke darshan hote kabhee gopaalakrishnako maakhanachoree dekhata to kabhee gopiyonke saath nrity karate bhagavaanke raasaka darshan karata to kabhee cheeraharanaka eka-ek karake saaree leelaaen usake saamane khulatee jaateen. kabhee-kabhee yah svayan raasamen sammilit hokar bhagavaan ke saath naachataa- daahina haath bhee shreekrishnake haathamen baayaan haath bhee shreekrishnake haathamen kahaan rahata hai, kya khaataa-peeta hai-ise koee jaanata n thaa. vah svayan bhee naheen jaanata tha ki kahaanse yah sab ho raha hai. ek vriddh mahaatma rotee aur chhaachh use pahuncha jaaya karate the- vah chupachaap use lekar yamunaajeeke kinaare chala jaata aur use paakar phir do chaar chulloo yamunaajal peekar alamasteemen dola karata thaa. hanumaanajeeko dee huee tulaseeko maala galemen thee aur unaka diya hua vaasudev mantr hridayamen akhandaroopase jaagrat! aankhonke saamane aanevaala samast roop, kaanonko sun pada़nevaala pratyek naama- ekamaatr shreekrishnaka hee roop aur shreekrishnaka hee naam ho gaya thaa; sabhee roop usee aparoop roopamen ghulamil gaye the, sabhee naam us divy naamamen lay ho chuke the. kaanonse jo kuchh sunata, usamen shreekrishn hee sunaayee pada़te; aankhonse jo kuchh | dekhata, usamen shreekrishn hee dikhaayee pada़te.
pandraha-solah varsh is premonmattataamen ek kshanakee bhaanti beet gaye. ek bhaav, ek rasamen saara samay . lalita ab lalitaacharan naheen tha, yah ab saakshaat lalita sakhee ban gaya thaa. aaj raasaka apoorv samaaroh hai. samast vrindaavanakee kuonmen divy unmaad nrity kararaha hai-lalit tribhangee shyaamasundarane vanshee bajaayee . apanee pramukh asht sakhiyonke saath shreekrishn raasamen padhaare. phir sahasr - sahasr gopiyaan padhaareen ! dhany hain ve, jo bhagavaankee is divy vansheedhvanike aavaahanako sunate hain aur sunakar lok aur kulakee maryaada bhang karake sadaake liye praanadhanake pranayapathamen chal dete hain. phir to milan hota hee hai, avashyamev hota hai. aaj lalitaane bhee hriday kholakar harike vansheepathaka anusaran kiyaa.raasamandaleemen use bhagavaanne sammilit kar liya aur phir bhagavaanne sakhee lalitaajeeko sanket kiyaa. unhonne bhagavaanka gupt sanket samajhakar lalitaako apane hriday men chhipa liyaa. lalita lalitaamen leen ho gayaa-' -bhagavaankee pranayineeka pad pa gayaa!
usake baad vrindaavanamen shreeranganaathajeekee seedha़iyonpar vah paagal phir naheen dikhaayee diyaa. deekhata kahaanse, vah to apane 'svaroopa' men pravesh kar gaya tha !