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श्रीमत् स्वामी अनन्ताचार्यजी महाराज की मार्मिक कथा
श्रीमत् स्वामी अनन्ताचार्यजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीमत् स्वामी अनन्ताचार्यजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीमत् स्वामी अनन्ताचार्यजी महाराज]- भक्तमाल


श्रीरामानुज सम्प्रदायके आचार्य महान् विद्वान् भक्ति स्वरूप त्यागी महात्मा जगद्गुरु श्रीमद् अनन्ताचार्यजी स्वामी महाराजका वैकुण्ठवास अभी कुछ ही वर्षों पहले छपरामें हुआ था। उस समय आपकी अवस्था 63 वर्षकी थी। आपके वैकुण्ठवाससे श्रीवैष्णवसमाजमें जो स्थान रिक्त हुआ, उसकी पूर्ति होना बहुत ही कठिन है। आपका जीवन बड़ा ही आदर्श था।

आपका जन्म सं0 1930 की फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी शनिवारको मद्रास प्रान्तान्तर्गत तिरुपति नामक स्थानमें अपने नानाके यहाँ हुआ था आपके पूर्वज, जिनके कारण आपको 'प्रतिवादिभयंकर' को उपाधि मिली, भगवान् श्रीरामानुजाचार्यके सुपुत्रकी दसवीं पीढ़ीमें थे। शिष्य-परम्पराके हिसाब से तो आठवीं पीढ़ीमें ही आपका आविर्भाव हुआ था। अतः मूलपुरुषद्वारा स्थापित किये हुए जो 74 पीठ हैं, उनमेंसे 36 पीठोंके आप अधीश्वर थे। जब आपकी अवस्था पाँच वर्षकी हुई, तभी आप पाठशाला में प्रविष्ट करा दिये गये थे और आठ वर्षकी अवस्थामें आपका यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हुआ था। यज्ञोपवीत संस्कार हो जानेके बाद आपने वेदाध्ययन शुरू किया और ग्यारह वर्षकी अवस्थातक शठकोप पाठशाला में पढ़ते रहे। तत्पश्चात् उभयवर्धिनी पाठशाला में आपका प्रवेश हुआ। सतरह वर्षकी अवस्थासे लेकर इक्कीस वर्षकी अवस्थातक आपने अपने मामा श्रीरंगाचार्यजीकेयहाँ दर्शन, वेदान्त, व्याकरण आदि शास्त्रोंकी पढ़ाई की तथा और भी अनेक भाषाओंका ज्ञान प्राप्त किया। तदनन्तर प्रतिपादनविषयक योग्यता बढ़ानेके लिये आपने 'गीर्वाणविद्योल्लासिनी' नामक सभाकी स्थापना की। वैष्णवसम्मेलनकी स्थापना भी आपके ही कर-कमलोंद्वारा हुई थी।

आपने सम्पूर्ण भारतमें भ्रमण करके सैकड़ों देवमन्दिरों और रामानुजकूटोंका निर्माण कराया था। रोळ (मारवाड़) के दिव्यदेश और बम्बईकी फानसवाड़ीके श्रीवेंकटेश मन्दिरके लिये तो आपको अत्यधिक त्याग और कष्ट उठाना पड़ा था। इन दोनों मन्दिरोंमें क्रमशः आपको तीन लाख और आठ लाखकी सम्पत्ति संग्रह करके लगानी पड़ी थी। भीलोंकी अशिक्षा देखकर आपका दयार्द्र हृदय द्रवित हो गया था और आपने उनके प्रान्तोंमें अनेक विद्यालय तथा छात्रावास बनवाये थे। धर्मप्रचारमें भी आपने खूब भाग लिया था। सनातनधर्म-सभा और वर्णाश्रमस्वराज्य संघके कई महाधिवेशनोंमें आप सम्मिलित हुए थे। आपका प्रकाण्ड पाण्डित्य देखकर कलकत्तेके विद्वानोंने आपको 'वेदान्तवारिनिधि' की उपाधि दी थी। उसी प्रकार विद्या प्रचारके क्षेत्रमें भी आपके द्वारा पर्याप्त काम हुआ था। सन् 1918 में आपने 'सुदर्शनयन्त्रालय' की नींव डाली थी, जिसके द्वारा संस्कृत भाषाके अनेकानेक सुन्दर ग्रन्थोंका प्रकाशन हुआ है। संस्कृतभाषाकी कई पत्र-पत्रिकाएँ भी आपके तत्त्वावधान में निकली थीं। तात्पर्य यह कि आपने भक्ति-प्रचारके लिये विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य किया था और आप एक प्रचुर साधनसम्पन्न आचार्य थे; परंतु फिर भी आपमें अहंभाव प्रायः नहीं था और न जीवनमें कभी संग्रहकी ओर ही आपका ध्यान गया था। बल्कि आपने जो कुछ किया अथवा आपमें जितनी भी शक्तियाँ थीं, वे कीर्ति और यशकी प्राप्तिके लिये नहीं, वरं भगवत्सेवाके लिये थीं। वैयक्तिक जीवन तो आपका इतना अल्पव्ययी और सीधा-सादा था कि आपका दर्शन करते ही प्राचीनकालके ऋषि-मुनियोंका स्मरण हो आता था और हृदयमें सात्त्विकता आ जाती थी। जरा भी नहीं मालूम होता था कि आप इतने बड़े गद्दीधर हैं। आप सबसे दिल खोलकर मिलते थे। अन्तिम समयमें आपके उपदेशोंका, जिनको सुननेके लिये सर्वत्रकी जनता समुत्सुक रहा करती थी, एकमात्र विषय 'भगवच्छरणागति' रह गया था। संकीर्तन और भगवन्नाम-जपके माहात्म्यपर भी आप खूब बोलते थे। इन सब विषयोंपर भाषण देते समय आपमें जो तन्मयता आ जाती थी, उसे देखते ही बनता था। आज आपके अभावका अनुभव कौन नहीं करता।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shreemat svaamee anantaachaaryajee mahaaraaja]- Bhaktmaal


shreeraamaanuj sampradaayake aachaary mahaan vidvaan bhakti svaroop tyaagee mahaatma jagadguru shreemad anantaachaaryajee svaamee mahaaraajaka vaikunthavaas abhee kuchh hee varshon pahale chhaparaamen hua thaa. us samay aapakee avastha 63 varshakee thee. aapake vaikunthavaasase shreevaishnavasamaajamen jo sthaan rikt hua, usakee poorti hona bahut hee kathin hai. aapaka jeevan bada़a hee aadarsh thaa.

aapaka janm san0 1930 kee phaalgun krishna chaturthee shanivaarako madraas praantaantargat tirupati naamak sthaanamen apane naanaake yahaan hua tha aapake poorvaj, jinake kaaran aapako 'prativaadibhayankara' ko upaadhi milee, bhagavaan shreeraamaanujaachaaryake suputrakee dasaveen peedha़eemen the. shishya-paramparaake hisaab se to aathaveen peedha़eemen hee aapaka aavirbhaav hua thaa. atah moolapurushadvaara sthaapit kiye hue jo 74 peeth hain, unamense 36 peethonke aap adheeshvar the. jab aapakee avastha paanch varshakee huee, tabhee aap paathashaala men pravisht kara diye gaye the aur aath varshakee avasthaamen aapaka yajnopaveet sanskaar sampann hua thaa. yajnopaveet sanskaar ho jaaneke baad aapane vedaadhyayan shuroo kiya aur gyaarah varshakee avasthaatak shathakop paathashaala men padha़te rahe. tatpashchaat ubhayavardhinee paathashaala men aapaka pravesh huaa. satarah varshakee avasthaase lekar ikkees varshakee avasthaatak aapane apane maama shreerangaachaaryajeekeyahaan darshan, vedaant, vyaakaran aadi shaastronkee padha़aaee kee tatha aur bhee anek bhaashaaonka jnaan praapt kiyaa. tadanantar pratipaadanavishayak yogyata badha़aaneke liye aapane 'geervaanavidyollaasinee' naamak sabhaakee sthaapana kee. vaishnavasammelanakee sthaapana bhee aapake hee kara-kamalondvaara huee thee.

aapane sampoorn bhaaratamen bhraman karake saikada़on devamandiron aur raamaanujakootonka nirmaan karaaya thaa. rol (maaravaada़) ke divyadesh aur bambaeekee phaanasavaada़eeke shreevenkatesh mandirake liye to aapako atyadhik tyaag aur kasht uthaana pada़a thaa. in donon mandironmen kramashah aapako teen laakh aur aath laakhakee sampatti sangrah karake lagaanee pada़ee thee. bheelonkee ashiksha dekhakar aapaka dayaardr hriday dravit ho gaya tha aur aapane unake praantonmen anek vidyaalay tatha chhaatraavaas banavaaye the. dharmaprachaaramen bhee aapane khoob bhaag liya thaa. sanaatanadharma-sabha aur varnaashramasvaraajy sanghake kaee mahaadhiveshanonmen aap sammilit hue the. aapaka prakaand paandity dekhakar kalakatteke vidvaanonne aapako 'vedaantavaarinidhi' kee upaadhi dee thee. usee prakaar vidya prachaarake kshetramen bhee aapake dvaara paryaapt kaam hua thaa. san 1918 men aapane 'sudarshanayantraalaya' kee neenv daalee thee, jisake dvaara sanskrit bhaashaake anekaanek sundar granthonka prakaashan hua hai. sanskritabhaashaakee kaee patra-patrikaaen bhee aapake tattvaavadhaan men nikalee theen. taatpary yah ki aapane bhakti-prachaarake liye vibhinn kshetron men saphalataapoorvak kaary kiya tha aur aap ek prachur saadhanasampann aachaary the; parantu phir bhee aapamen ahanbhaav praayah naheen tha aur n jeevanamen kabhee sangrahakee or hee aapaka dhyaan gaya thaa. balki aapane jo kuchh kiya athava aapamen jitanee bhee shaktiyaan theen, ve keerti aur yashakee praaptike liye naheen, varan bhagavatsevaake liye theen. vaiyaktik jeevan to aapaka itana alpavyayee aur seedhaa-saada tha ki aapaka darshan karate hee praacheenakaalake rishi-muniyonka smaran ho aata tha aur hridayamen saattvikata a jaatee thee. jara bhee naheen maaloom hota tha ki aap itane bada़e gaddeedhar hain. aap sabase dil kholakar milate the. antim samayamen aapake upadeshonka, jinako sunaneke liye sarvatrakee janata samutsuk raha karatee thee, ekamaatr vishay 'bhagavachchharanaagati' rah gaya thaa. sankeertan aur bhagavannaama-japake maahaatmyapar bhee aap khoob bolate the. in sab vishayonpar bhaashan dete samay aapamen jo tanmayata a jaatee thee, use dekhate hee banata thaa. aaj aapake abhaavaka anubhav kaun naheen karataa.

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