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श्रीरामानुजाचार्य की मार्मिक कथा
श्रीरामानुजाचार्य की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीरामानुजाचार्य (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीरामानुजाचार्य]- भक्तमाल


श्रीरामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान्, सदाचारी, धैर्यवान्, सरल एवं उदार थे। ये आचार्य आळवन्दार (यामुनाचार्य) की परम्परामें थे। इनके पिताका नाम केशवभट्ट था । ये दक्षिणके तिरुकुदूर नामक क्षेत्रमें रहते थे। जब इनकी अवस्था बहुत छोटी थी, तभी इनके पिताका देहान्त हो गया और इन्होंने काञ्चीमें जाकर यादवप्रकाश नामक गुरुसे वेदाध्ययन किया। इनकी बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि ये अपने गुरुकी व्याख्यामें भी दोष निकाल दिया करते थे। इसीलिये गुरुजी इनसे बड़ी ईर्ष्या करने लगे, यहाँतक कि वे इनके प्राण लेनेतकको उतारू हो गये। उन्होंने रामानुजके सहाध्यायी एवं चचेरे भाई गोविन्द भट्टसे मिलकर यह षड्यन्त्र रचा कि गोविन्दभट्ट रामानुजको काशीयात्राके बहाने किसी घने जंगलमें ले जाकर वहीं उनका काम तमाम कर दें। गोविन्दभट्टने ऐसा ही किया, परंतु भगवान्की कृपासे एक व्याध और उसकी स्त्रीने इनके प्राणोंकी रक्षा की।

विद्या, चरित्रबल और भक्तिमें रामानुज अद्वितीय थे। इन्हें कुछ योगसिद्धियाँ भी प्राप्त थीं, जिनके बलसे इन्होंने काञ्चीनगरीकी राजकुमारीको प्रेतबाधासे मुक्त कर दिया। जब महात्मा आळवन्दार मृत्युकी घड़ियाँ गिन रहे थे, उन्होंने अपने शिष्यके द्वारा रामानुजाचार्यको अपने पासबुलवा भेजा। परंतु रामानुजके श्रीरङ्गम् पहुँचने के पहले ही आळवन्दार (यामुनाचार्य) भगवान् नारायणके धाममें पहुँच चुके थे। रामानुजने देखा कि श्रीयामुनाचार्य के हाथकी तीन उँगलियाँ मुड़ी हुई हैं। इसका कारण कोई नहीं समझ सका। रामानुज तुरंत ताड़ गये कि यह संकेत मेरे लिये है। उन्होंने यह जान लिया कि श्रीयामुनाचार्य मेरे द्वारा ब्रह्मसूत्र, विष्णुसहस्रनाम और आळवन्दारोंके 'दिव्यप्रबन्धम्' की टीका करवाना चाहते हैं। उन्होंने आळवन्दारके मृत शरीरको प्रणाम किया और कहा-'भगवन् ! मुझे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, मैं इन तीनों ग्रन्थोंकी टीका अवश्य लिखूँगा अथवा लिखवाऊँगा।' रामानुजके यह कहते ही आळवन्दारकी तीनों उँगलियाँ सीधी हो गयीं। इसके बाद श्रीरामानुजने आळवन्दारके प्रधान शिष्य पेरियनाम्बिसे विधिपूर्वक वैष्णव-दीक्षा ली और वे भक्तिमार्गमें प्रवृत्त हो गये।

रामानुज गृहस्थ थे; परंतु जब उन्होंने देखा कि गृहस्थीमें रहकर अपने उद्देश्यको पूरा करना कठिन है, तब उन्होंने गृहस्थका परित्याग कर दिया और श्रीरङ्गम् जाकर यतिराज नाम संन्यासीसे संन्यासकी दीक्षा ले ली। इधर इनके गुरु यादवप्रकाशको अपनी करनीपर बड़ा | पश्चात्ताप हुआ और वे भी संन्यास लेकर श्रीरामानुजकीसेवा करनेके लिये श्रीरङ्गम् चले आये। उन्होंने अपना संन्यास आश्रमका नाम गोविन्दयोगी रखा।

आचार्य रामानुज दयामें भगवान् बुद्धके समान, प्रेम और सहिष्णुतामें ईसामसीहके प्रतियोगी, शरणागति में आळवारोंके अनुयायी और प्रचारकार्यमें सेन्ट जॉनके समान उत्साही थे। इन्होंने तिरुकोट्टियूरके महात्मा नाम्बिसे अष्टाक्षर मन्त्र (ॐ नमो नारायणाय) की दीक्षा ली थी। नाम्बिने मन्त्र देते समय इनसे कहा था कि 'तुम इस मन्त्रको गुप्त रखना।' परंतु रामानुजने सभी वर्णके लोगों को एकत्रकर मन्दिरके शिखरपर खड़े होकर सब लोगोंको वह मन्त्र सुना दिया। गुरुने जब रामानुजकी इस धृष्टताका हाल सुना, तब वे इनपर बड़े रुष्ट हुए और कहने लगे- 'तुम्हें इस अपराधके बदले नरक भोगना पड़ेगा।' श्रीरामानुजने इसपर बड़े विनयपूर्वक कहा कि 'भगवन्। यदि इस महामन्त्रका उच्चारण करके हजारों आदमी नरककी यन्त्रणासे बच सकते हैं तो मुझे नरक भोगने में आनन्द ही मिलेगा।' रामानुजके इस उत्तरसे गुरुका क्रोध जाता रहा. उन्होंने बड़े प्रेमसे इन्हें गले लगाया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार रामानुजने अपनी समदर्शिता और उदारताका परिचय दिया ।

रामानुजने आळवन्दारकी आज्ञाके अनुसार आळवारोंके 'दिव्यप्रबन्धम्' का कई बार अनुशीलन किया और उसे कण्ठ कर डाला। उनके कई शिष्य हो गये और उन्होंने इन्हें आळवन्दारकी गद्दीपर बिठाया; परंतु इनके कई शत्रु भी हो गये, जिन्होंने कई बार इन्हें मरवा डालनेकी चेष्टा की। एक दिन इनके किसी शत्रुने इन्हें भिक्षामें विष मिला हुआ भोजन दे दिया; परंतु एक स्त्रीने इन्हें सावधान कर दिया और इस प्रकार रामानुजके प्राण बच गये। रामानुजने आळवारोंके भक्तिमार्गका प्रचार करनेके लिये सारे भारतकी यात्रा की और गीता तथा ब्रह्मसूत्रपर भाष्य लिखे। वेदान्तसूत्रोंपर इनका भाष्य 'श्रीभाष्य' के नामसे प्रसिद्ध है और इनका सम्प्रदाय भी 'श्रीसम्प्रदाय' कहलाता है; क्योंकि इस सम्प्रदायकी आद्यप्रवर्तिका श्री श्रीमहालक्ष्मीजी मानी जाती हैं। यह ग्रन्थ पहले-पहल काश्मीरके विद्वानोंको सुनाया गया था। इनके प्रधान शिष्यका नाम तळवार (कुरेश था क्रूरताळकार केपराशर और पिल्लन नामके दो पुत्र थे। रामानुजने पराशरके द्वारा freeient टीका लिखयायी और पिल्लू 'दिव्यप्रबन्धम्' की टीका लिखवायी। इस प्रकार उन्होंने आळवन्दारकी तीनों इच्छाओंको पूर्ण किया।

उन दिनों श्रीरङ्गम्पर चोळदेश के राजा कुळोत्तुङ्गका अधिकार था। ये बड़े कट्टर शैव थे। इन्होंने श्रीरङ्गजीके मन्दिरपर एक ध्वजा टेंगवा दी थी, जिसपर लिखा था-शिवात्परं नास्ति' (शिवसे बढ़कर कोई नहीं है)। जो कोई इसका विरोध करता, उसके प्राणोंपर आ बनती श्रीरामाष्यवारको बहुत पीड़ा दी।

इस समय आचार्य रामानुज मैसूरराज्यके शालग्राम नामक स्थानमें रहने लगे थे वहाँकै राजा भिट्टिदेव वैष्णवधर्मके सबसे बड़े पक्षपाती थे। आचार्य रामानुजने वहाँ वारह वर्षतक रहकर वैष्णवधर्मको बड़ी सेवा की। सन् 1099 में उन्हें नम्मले नामक स्थानमें एक प्राचीन मन्दिर मिला और राजाने उसका जीर्णोद्धार करवाकर पुनः नये ढंगसे निर्माण करवाया। वह मन्दिर आज भी तिरुनारायणपुरके नामसे प्रसिद्ध है। वहाँपर भगवान् श्रीरामका जो प्राचीन विग्रह है, वह पहले दिल्लीके बादशाहके अधिकारमें था। बादशाहकी लड़की उसे प्राणोंसे भी बढ़कर मानती थी। रामानुज अपनी योगशक्तिके द्वारा बादशाहकी स्वीकृति प्राप्तकर उस विग्रहको वहाँसे ले आये और उसकी पुनः तिरुनारायणपुरमें स्थापना की।

राजा कुळो तुङ्गका देहान्त हो जानेपर आचार्य रामानुज श्रीरङ्गम् चले आये। वहाँ उन्होंने एक मन्दिर बनवाया, जिसमें नम्माळवार और दूसरे आळवार संतोंकी प्रतिमाएँ स्थापित की गर्मी और उनके नामसे कई उत्सव भी जारी किये। उन्होंने तिरुपतिके मन्दिरमें भगवान् गोविन्दराजपेरुमलकी पुनः स्थापना करवायी और मन्दिरका पुनः निर्माण करवाया। उन्होंने देशभर में भ्रमण करके हजारों नर-नारियोंको भक्तिमार्गमें लगाया आचार्य रामानुजके चौहत्तर शिष्य थे, जो सब के सब संत हुए। इन्होंने कूरत्ताळवारके पुत्र महात्मा पिल्ललोकाचार्यको अपना उत्तराधिकारी बनाकर एक सौ बीस वर्षकी अवस्थामें इस असार संसारको त्याग दिया।रामानुजके सिद्धान्त के अनुसार भगवान् ही पुरुषोत्तम हैं। वे ही प्रत्येक शरीरमें साक्षीरूपमें विद्यमान हैं। वे जाके नियन्ता, शेषी (अवयवी) एवं स्वामी हैं और जीव उनका नियम्य, शेष तथा सेवक है। अपने व्यष्टि अङ्कारको सर्वथा मिटाकर भगवान्‌को सर्वतोभावेन शरण ग्रहण करना ही जीवका परम पुरुषार्थ है। भगवान् नारायण ही सत् हैं, उनकी शक्ति महालक्ष्मी चित् हैं और यह जगत् उनके आनन्दका विलास है, रज्जुमें सर्पको भोत असत् नहीं है। भगवान् लक्ष्मीनारायण जगत्के माता-पिता और जीव उनकी सन्तान हैं। माता-पिताका प्रेम और उनकी कृपा प्राप्त करना ही सन्तानका धर्म है। वाणीसे भगवान् नारायणके नामका ही उच्चारण करना चाहिये और मन, वाणी, शरीरसे उनकी सेवा करनी चाहिये।

श्रीरामानुजाचार्यने 'प्रपत्ति' पर बहुत जोर दिया है। न्यासविद्या ही वह प्रपत्ति है। आनुकूल्यका सङ्कल्प और प्रातिकूल्यका वर्जन प्रपत्ति है। भगवानमें आत्मसमर्पण करना प्रपत्ति है। सब प्रकारसे भगवान्‌के शरण हो जाना। प्रपत्तिका लक्षण है। नारायण विभु हैं, भूमा हैं, उनके चरणोंमें आत्मसमर्पण करनेसे जीवको शान्ति मिलती है। उनके प्रसन्न होनेपर मुक्ति मिल सकती है। उन्हें सर्वस्व निवेदन करना होगा। सब विषयोंको त्यागकर उनकी शरण लेनी होगी।

सत्यकाम सत्यसंकल्प परब्रह्मभूत पुरुषोत्तम महाविभूते श्रीमन्नारायण वैकुण्ठनाथअपारकारुण्यसौशील्यवात्सल्यौ दायैश्वर्यसौन्दर्यमहोदधे,अनालोचितविशेषाविशेषलोकशरण्य प्रणतार्तिहर आश्रितवात्सल्यजलधे,
अनवरतविदितनिखिल भूतजातयाथात्म्य अशेषचराचरभूतनिखिलनियमाशेषचिदचिद्वस्तु
शेषिभूत निखिलजगदाधाराखिलजगत्स्वामिन्,
अस्मत्स्वामिन्, सत्यकाम सत्यसंकल्प सकलेतरविलक्षण
अर्थिकल्पक आपत्सख, श्रीमन्नारायण अशरणशरण्य,
अनन्यशरणं त्वत्पदारविन्दयुगलं शरणमहं प्रपद्ये ।
'हे पूर्णकाम, सत्यसङ्कल्प, परब्रह्मस्वरूप पुरुषोत्तम ! हे महान् ऐश्वर्यसे युक्त श्रीमन्नारायण! हे वैकुण्ठनाथ ! आप अपार करुणा, सुशीलता, वत्सलता, उदारता, ऐश्वर्य और सौन्दर्य आदि गुणोंके महासागर हैं; छोटे-बड़ेका विचार न करके सामान्यतः सभी लोगोंको आप शरणदेते हैं, प्रणतजनों की पीड़ा हर लेते हैं। शरणागतों के लिये। तो आप वत्सलताके समुद्र हो हैं। आप सदा ही समस्त भूतोंकी यथार्थताका ज्ञान रखते हैं। सम्पूर्ण चराचर भूतों, सारे नियमों और समस्त जड़-चेतन वस्तुओंके आप अवयवी हैं (ये सभी आपके अवयव हैं)। आप समस्त संसारके आधार हैं, अखिल जगत् तथा हम सभी लोगोंके स्वामी हैं। आपको कामनाएँ पूर्ण और आपका सङ्कल्प सच्चा है। आप समस्त प्रपञ्चसे इतर और विलक्षण हैं। याचकोंके लिये तो आप कल्पवृक्ष हैं, विपत्तिमें पड़े हुए लोगोंके सहायक है। ऐसी महिमावाले तथा आश्रमहीनोंको आश्रय देनेवाले हे श्रीमनारायण में | आपके चरणारविन्दयुगलकी शरण में आता हूँ क्योंकि उनके सिवा मेरे लिये कहीं भी शरण नहीं है।'

पितरं मातरं दारान् पुत्रान् बन्धून् सखीन् गुरून्।
रत्नानि धनधान्यानि क्षेत्राणि च गृहाणि च ॥
सर्वधर्माश्च सन्त्यज्य सर्वकामांश्च साक्षरान्। लोकविक्रान्तचरणौ शरणं तेऽव्रजं विभो ।

"हे प्रभो! मैं पिता, माता, स्त्री, पुत्र, बन्धु, मित्र, गुरु, सब रत्न, धन-धान्य, खेत, घर, सारे धर्म और अक्षरसहित सम्पूर्ण कामनाओंका त्यागकर समस्त ब्रह्माण्डको आक्रान्त करनेवाले आपके दोनों चरणोंकी शरणमें आया हूँ।'

मनोवाक्ययैरनादिकालप्रवृत्तानन्ताकृत्यकरणकृत्याकरण भगवदपचारभागवतापचारासह्यापचाररूपनानाविधानन्ताप चारानारब्धकार्यांननारब्धकायांन् कृतान् क्रियमाणान् करिष्यमाणांश्च सर्वान् अशेषतः क्षमस्व ।

अनादिकालप्रवृत्तविपरीतज्ञानमात्मविषयं कृत्स्नजगद्विषयं च विपरीतवृत्तं चाशेषविषयमद्यापि वर्तमानं वर्तिष्यमाणं च सर्व क्षमस्व ।

मदधानादिकर्मप्रवाहप्रवृत्त भगवनवपतिरोधानकरी विपरीतज्ञानजननीं स्वविषयावाश्च भोग्यबुद्धेर्जननीं देहेन्द्रियत्वेन भोग्यत्वेन सूक्ष्मरूपेण चावस्थितां देवीं गुणमयीं मायां दासभूतः शरणागतोऽस्मि तवास्मि दास इति वक्तारं मां तारय।

'हे भगवन्! मन, वाणी और शरीरके द्वारा अनादि कालसे अनेकों न करने योग्य कर्मोंका करना, करने योग्य कर्मोंको न करना, भगवान्‌का अपराध, भगवद्भक्तोंकाअपराध तथा और भी जो अक्षम्य अनाचाररूप नाना प्रकारके अनन्त अपराध मुझसे हुए हैं, उनमें जो प्रारब्ध बन चुके हैं अथवा जो प्रारब्ध नहीं बने हैं, उन सभी पापोंको तथा जिन्हें में कर चुका हूँ, जिन्हें कर रहा हूँ और जिन्हें अभी करनेवाला हूँ, उन सबको आप क्षमा कर दीजिये।'

"आत्मा और सारे संसार के विषयमें जो मुझे अनादिकाल विपरीत ज्ञान होता चला आ रहा है तथा सभी विषयोंमें जो मेरा विपरीत आचरण आज भी है और आगे भीरहनेवाला है, वह सब का सब आप क्षमा कर दें।'

'मेरे अनादि कर्मके प्रवाहमें जो चली आ रही है, जो मुझसे भगवान्के स्वरूपको छिपा लेती है, जो विपरीत ज्ञानकी जननी, अपने विषयमें भोग्यबुद्धिको उत्पन्न करनेवाली और देह, इन्द्रिय, भोग्य तथा सूक्ष्मरूपसे स्थित रहनेवाली है, उस दैवी त्रिगुणमयी मायासे 'मैं आपका दास हूँ, किङ्कर हूँ, आपकी शरणमें आया हूँ' इस प्रकार रट | लगानेवाले मुझ दीनका आप उद्धार कर दीजिये।' यह श्रीरामानुजाचार्यकी 'प्रपत्ति' स्वरूप भगवत्प्रार्थना है।



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sheshibhoot nikhilajagadaadhaaraakhilajagatsvaamin,
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ananyasharanan tvatpadaaravindayugalan sharanamahan prapadye .
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ratnaani dhanadhaanyaani kshetraani ch grihaani ch ..
sarvadharmaashch santyajy sarvakaamaanshch saaksharaan. lokavikraantacharanau sharanan te'vrajan vibho .

"he prabho! main pita, maata, stree, putr, bandhu, mitr, guru, sab ratn, dhana-dhaany, khet, ghar, saare dharm aur aksharasahit sampoorn kaamanaaonka tyaagakar samast brahmaandako aakraant karanevaale aapake donon charanonkee sharanamen aaya hoon.'

manovaakyayairanaadikaalapravrittaanantaakrityakaranakrityaakaran bhagavadapachaarabhaagavataapachaaraasahyaapachaararoopanaanaavidhaanantaap chaaraanaarabdhakaaryaannanaarabdhakaayaann kritaan kriyamaanaan karishyamaanaanshch sarvaan asheshatah kshamasv .

anaadikaalapravrittavipareetajnaanamaatmavishayan kritsnajagadvishayan ch vipareetavrittan chaasheshavishayamadyaapi vartamaanan vartishyamaanan ch sarv kshamasv .

madadhaanaadikarmapravaahapravritt bhagavanavapatirodhaanakaree vipareetajnaanajananeen svavishayaavaashch bhogyabuddherjananeen dehendriyatven bhogyatven sookshmaroopen chaavasthitaan deveen gunamayeen maayaan daasabhootah sharanaagato'smi tavaasmi daas iti vaktaaran maan taaraya.

'he bhagavan! man, vaanee aur shareerake dvaara anaadi kaalase anekon n karane yogy karmonka karana, karane yogy karmonko n karana, bhagavaan‌ka aparaadh, bhagavadbhaktonkaaaparaadh tatha aur bhee jo akshamy anaachaararoop naana prakaarake anant aparaadh mujhase hue hain, unamen jo praarabdh ban chuke hain athava jo praarabdh naheen bane hain, un sabhee paaponko tatha jinhen men kar chuka hoon, jinhen kar raha hoon aur jinhen abhee karanevaala hoon, un sabako aap kshama kar deejiye.'

"aatma aur saare sansaar ke vishayamen jo mujhe anaadikaal vipareet jnaan hota chala a raha hai tatha sabhee vishayonmen jo mera vipareet aacharan aaj bhee hai aur aage bheerahanevaala hai, vah sab ka sab aap kshama kar den.'

'mere anaadi karmake pravaahamen jo chalee a rahee hai, jo mujhase bhagavaanke svaroopako chhipa letee hai, jo vipareet jnaanakee jananee, apane vishayamen bhogyabuddhiko utpann karanevaalee aur deh, indriy, bhogy tatha sookshmaroopase sthit rahanevaalee hai, us daivee trigunamayee maayaase 'main aapaka daas hoon, kinkar hoon, aapakee sharanamen aaya hoon' is prakaar rat | lagaanevaale mujh deenaka aap uddhaar kar deejiye.' yah shreeraamaanujaachaaryakee 'prapatti' svaroop bhagavatpraarthana hai.

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रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।

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किस्मत को मेरी खोलो,
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ये प्रीत तुमसे लागी,
प्रीत तुमसे लागी,
कावड़ में गंगा जल भर के हर कावड़िया
बम बम शिव भोले...
ऐहसान तेरा कैसे उतारे,
जीते है बाबा हम तो तेरे सहारे,
मेरे घर कबहू ना आवे सांवरिया रोजरोज
रोजरोज तरसावे कान्हा रोजरोज तरसावे,