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श्रीवेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य या श्रीवेदान्तदेशिकाचा की मार्मिक कथा
श्रीवेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य या श्रीवेदान्तदेशिकाचा की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीवेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य या श्रीवेदान्तदेशिकाचा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीवेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य या श्रीवेदान्तदेशिकाचा]- भक्तमाल


श्रीरामानुजदयापात्रं ज्ञानवैराग्यभूषणम्।

श्रीमद्वेङ्कटनाथार्य वन्दे वेदान्तदेशिकम् ॥

आचार्य रामानुजने वैष्णवमतका प्रचार करनेके लिये अपने 74 शिष्योंको नियुक्त किया था। उनको सिंहासनाधिपति कहते हैं। उनमें एक शिष्यका नाम अनन्त सोमयाजी था। अनन्त सोमयाजीके एक पौत्र थे अनन्तसूरि अनन्तसूरिने तोतारम्बा नाम्नी एक स्त्रीसे विवाह किया। तोतारम्वा f श्रीरामानुज द्वितीय या वादिहंसाम्बुदाचार्यकी बहिन थी । श्रीवादिहंसाम्बुदाचार्य श्रीरामानुजाचार्यके द्वारा स्थापित 74 पीठोंमेंसे एक प्रधान पीठके पीठाधिपति थे। अनन्तसूरि 1 अपनी पत्नीके साथ काञ्ची नगरीमें रहते थे। काञ्ची उस समय शिक्षाका केन्द्रस्थान था ।

वेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्यका जन्म तोतारम्बाके गर्भसे 1325 वि0 सं0 में काञ्चीके पास धूपिल नामक गाँवमें हुआ था। यज्ञोपवीत होनेके बाद वेङ्कटनाथ अपने मामा रामानुजके पास पढ़नेके लिये भेजे गये। वे बड़े प्रतिभाशाली और तीव्रबुद्धि थे। उन्होंने 20 वर्षसे कम उम्रमें ही सब विद्याओंमें पारदर्शिता प्राप्त कर ली। उसके बाद उन्होंने विवाह किया और अन्त समयतक गृहस्थ ही रहे। अद्वैतवादी आचार्य विद्यारण्य और वेङ्कटनाथ सहपाठी एवं मित्र थे। इनके जीवनमें यही अन्तर है किवेङ्कटनाथ बराबर गृहस्थ रहे और विद्यारण्यने पीछे संन्यास ले लिया। ये दोनों दार्शनिक और कवि थे तथा दोनों सौ वर्ष से अधिक कालतक जीवित रहे। विद्यारण्यके जीवनमें असाधारण राजनीतिक प्रतिभा देखी जाती है; परंतु बेङ्कटनाथका राजनीतिसे कोई सम्बन्ध नहीं था।

वेङ्कटनाथ विद्यारण्य मुनिके सहपाठी और पुराने मित्र थे। इसलिये विद्यारण्य उन्हें आदर और श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते थे। विद्यारण्यने उन्हें एक बार विजयनगर आनेके लिये निमन्त्रित किया, परंतु उन्होंने राजा और मित्रके निमन्त्रणको एकदम अस्वीकार कर दिया। इससे मालूम होता है कि उनके अंदर कितनी निःस्पृहता और वैराग्यका भाव था। एक बार जब विद्यारण्यके साथ मध्यमतावलम्बी अक्षोभ्य मुनिका शास्त्रार्थ हुआ, तब भी मध्यस्थता करनेके लिये वेङ्कटनाथको बुलाया गया। परंतु वे फिर भी नहीं गये। तब दोनों आचार्योंने अपने विचार उनके पास निर्णयके लिये लिख भेजे। इस बातसे सहज ही समझा जा सकता है कि उस समय दक्षिणमें उनकी विद्वत्ताकी कितनी धाक थी।

इसके बाद वेङ्कटनाथका यश चारों ओर फैलने लगा। विजयनगरके वैष्णव उनसे वैष्णवमतके ऊपर ग्रन्थ लिखनेकी प्रार्थना करने लगे। लोगोंके अनुरोधपरबेङ्कटनाथने देशी भाषामें कई प्रबन्धोंकी रचना की, जिनमें 'सुभाषितनीति' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अन्त समयमें उन्होंने अपना मत 'रहस्यत्रयसार' नामक ग्रन्थमें संक्षेपसे लिखा।

वेङ्कटनाथका आध्यात्मिक जीवन बड़ा मधुर था। उनको न तो कोई पैत्रिक सम्पत्ति प्राप्त थी और न उन्होंने स्वयं कभी धन संग्रह किया। वे सदा उच्छवृत्तिसे जीविका चलाते थे। उनका जीवन बड़ा पवित्र और सरल था। वे काखी तथा श्रीरङ्गमें विभिन्न मतावलम्बियों क साथ रहते थे और सब लोग एक समान उन्हें भक्ति और श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते थे। वे सांसारिक धन ऐश्वर्यको सदा घृणित समझते थे। उनका सारा जीवन प्रायः धर्मोपदेश करने तथा धार्मिक साहित्यकी रचना करनेमें बीता। वे नम्रताकी तो मूर्ति ही थे। एक दिन उनकी दोनताकी परीक्षा करनेके लिये एक वैष्णवने उन्हें अपने घर आमन्त्रित किया। उस वैष्णवने अपने घरके दरवाजेपर एक जोड़ा खड़ा लटका दिया था जब बेटा घरमें घुसते समय खड़ाऊँ देखी, तब उन्होंने खड़ाऊँ मस्तकसे लगाकर कहा-

कर्मावलम्बकाः केचित् केचिज्ज्ञानावलम्बकाः ।

वयं तु हरिदासानां पादपद्यावलम्बकाः ॥

बेरनाथको 'कवितार्किकसिंह' की उपाधि मिली थी। एक दिन श्रीरंगनाथके मन्दिरमें यह निश्चित हुआ कि जो रातभरमें एक हजार श्लोक बनायेगा, उसे यह उपाधि दी जायगी। परंतु किसीको इसमें सफलता न मिली। एक विद्वान् पण्डितने बड़ी कठिनतासे रातभरमें 500 श्लोक लिखे। परंतु बेङ्कटना केवल तीन घंटे हजार श्लोक लिख डाले और साथ ही उनके श्लोक सर्वोत्तम भी थे। अतएव यह उपाधि उन्होंको मिली। श्रीरमें ही उन्हें 'वेदान्ताचार्य' की भी उपाधि मिली थी। श्रीवैष्णवोंका विश्वास है कि उन्हें भगवान् श्रीरंगनाथने वेदान्ताचार्यकीउपाधि दी थी।

इस प्रकार बेङ्कटनाथको जीवनीको आलोचना करनेसे यह मालूम होता कि वे मूर्तिमान् वैराग्य और भक्तिस्वरूप ही थे। उनके अंदर तेजस्विता और दीनताका अपूर्व सम्मिश्रण देखा जाता था। अहङ्कार तो उन्हें छूतक नहीं गया था। दूसरी ओर दार्शनिकता और कवित्वका भी अपूर्व समन्वय उनके अंदर हुआ था। धर्मोपदेशक आचार्यमें जो गुण होने चाहिये, वे सब उनमें मौजूद थे। वे एक आदर्श शिक्षक भी थे। शिक्षकमें क्या-क्या गुण होने चाहिये, इस विषयमें उन्होंने लिखा है-

सिद्धं सत्सम्प्रदाये स्थिरधियमनघं श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठं

सत्त्वस्यं सत्यवाचं समयनियततया साधुवृत्त्या समेतम् ।

दम्भासूयादिमुक्तं जितविषयगुणं दीनबन्धुं दयालु

स्खालित्ये शासितारं स्वपरहितपरं देशिकं भूष्णुरीप्सेत् ॥

बेङ्कटनाथ वेदान्ताचार्य विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय के अनुयायी थे। उनको श्रीरामानुजाचार्यमें बड़ी भक्ति थी और वे उनके ग्रन्थोंको बड़े आदरकी दृष्टिसे देखा करते थे। उन्होंने अपने जीवनमें लगभग 108 ग्रन्थोंकी रचना की, जिनमें भगवद्भक्ति कूट-कूटकर भरी है। ये सब ग्रन्थ प्रायः तमिळ लिपिमें हैं और अधिकांश तमिळ भाषामें हैं। उनमें कुछके नाम इस प्रकार हैं- गरुडपञ्चशती, अच्युतशतक, रघुवीरगद्य, दायशतक, अभीतिस्तव, पादुकासहल, सुभाषितनीति, रहस्यत्रयसार, संकल्पसूर्योदय, हंससन्देश, यादवाभ्युदय, तत्त्वमुक्ताकलाप, अधिकरणसारावली, न्यायपरिशुद्धि, न्यायसिद्धाञ्जन, शतदूषणी, तत्त्वटीका, गीताको टीका, गद्यत्रयकी टीका, सेश्वरमीमांसा, ईशावास्योपनिषद्भाष्य, गीतार्थसंग्रहरक्षा और वादित्रयखण्डन।

इस तरह सारा जीवन भगवद्भक्ति तथा लोकोपकारार्थ
ग्रन्थरचनाएँ बिताकर आचार्य वेङ्कटनाथ
श्रीवेदान्तदेशिकवि0 सं0 1426 में 102 वर्षकी अवस्थामें परलोकवासी हुए।



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shreeraamaanujadayaapaatran jnaanavairaagyabhooshanam.

shreemadvenkatanaathaary vande vedaantadeshikam ..

aachaary raamaanujane vaishnavamataka prachaar karaneke liye apane 74 shishyonko niyukt kiya thaa. unako sinhaasanaadhipati kahate hain. unamen ek shishyaka naam anant somayaajee thaa. anant somayaajeeke ek pautr the anantasoori anantasoorine totaaramba naamnee ek streese vivaah kiyaa. totaaramva f shreeraamaanuj dviteey ya vaadihansaambudaachaaryakee bahin thee . shreevaadihansaambudaachaary shreeraamaanujaachaaryake dvaara sthaapit 74 peethonmense ek pradhaan peethake peethaadhipati the. anantasoori 1 apanee patneeke saath kaanchee nagareemen rahate the. kaanchee us samay shikshaaka kendrasthaan tha .

venkatanaath vedaantaachaaryaka janm totaarambaake garbhase 1325 vi0 san0 men kaancheeke paas dhoopil naamak gaanvamen hua thaa. yajnopaveet honeke baad venkatanaath apane maama raamaanujake paas padha़neke liye bheje gaye. ve bada़e pratibhaashaalee aur teevrabuddhi the. unhonne 20 varshase kam umramen hee sab vidyaaonmen paaradarshita praapt kar lee. usake baad unhonne vivaah kiya aur ant samayatak grihasth hee rahe. advaitavaadee aachaary vidyaarany aur venkatanaath sahapaathee evan mitr the. inake jeevanamen yahee antar hai kivenkatanaath baraabar grihasth rahe aur vidyaaranyane peechhe sannyaas le liyaa. ye donon daarshanik aur kavi the tatha donon sau varsh se adhik kaalatak jeevit rahe. vidyaaranyake jeevanamen asaadhaaran raajaneetik pratibha dekhee jaatee hai; parantu benkatanaathaka raajaneetise koee sambandh naheen thaa.

venkatanaath vidyaarany munike sahapaathee aur puraane mitr the. isaliye vidyaarany unhen aadar aur shraddhaakee drishtise dekhate the. vidyaaranyane unhen ek baar vijayanagar aaneke liye nimantrit kiya, parantu unhonne raaja aur mitrake nimantranako ekadam asveekaar kar diyaa. isase maaloom hota hai ki unake andar kitanee nihsprihata aur vairaagyaka bhaav thaa. ek baar jab vidyaaranyake saath madhyamataavalambee akshobhy munika shaastraarth hua, tab bhee madhyasthata karaneke liye venkatanaathako bulaaya gayaa. parantu ve phir bhee naheen gaye. tab donon aachaaryonne apane vichaar unake paas nirnayake liye likh bheje. is baatase sahaj hee samajha ja sakata hai ki us samay dakshinamen unakee vidvattaakee kitanee dhaak thee.

isake baad venkatanaathaka yash chaaron or phailane lagaa. vijayanagarake vaishnav unase vaishnavamatake oopar granth likhanekee praarthana karane lage. logonke anurodhaparabenkatanaathane deshee bhaashaamen kaee prabandhonkee rachana kee, jinamen 'subhaashitaneeti' sabase adhik prasiddh hai. ant samayamen unhonne apana mat 'rahasyatrayasaara' naamak granthamen sankshepase likhaa.

venkatanaathaka aadhyaatmik jeevan bada़a madhur thaa. unako n to koee paitrik sampatti praapt thee aur n unhonne svayan kabhee dhan sangrah kiyaa. ve sada uchchhavrittise jeevika chalaate the. unaka jeevan bada़a pavitr aur saral thaa. ve kaakhee tatha shreerangamen vibhinn mataavalambiyon k saath rahate the aur sab log ek samaan unhen bhakti aur shraddhaakee drishtise dekhate the. ve saansaarik dhan aishvaryako sada ghrinit samajhate the. unaka saara jeevan praayah dharmopadesh karane tatha dhaarmik saahityakee rachana karanemen beetaa. ve namrataakee to moorti hee the. ek din unakee donataakee pareeksha karaneke liye ek vaishnavane unhen apane ghar aamantrit kiyaa. us vaishnavane apane gharake daravaajepar ek joड़a khaड़a lataka diya tha jab beta gharamen ghusate samay khada़aaoon dekhee, tab unhonne khada़aaoon mastakase lagaakar kahaa-

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is prakaar benkatanaathako jeevaneeko aalochana karanese yah maaloom hota ki ve moortimaan vairaagy aur bhaktisvaroop hee the. unake andar tejasvita aur deenataaka apoorv sammishran dekha jaata thaa. ahankaar to unhen chhootak naheen gaya thaa. doosaree or daarshanikata aur kavitvaka bhee apoorv samanvay unake andar hua thaa. dharmopadeshak aachaaryamen jo gun hone chaahiye, ve sab unamen maujood the. ve ek aadarsh shikshak bhee the. shikshakamen kyaa-kya gun hone chaahiye, is vishayamen unhonne likha hai-

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sattvasyan satyavaachan samayaniyatataya saadhuvrittya sametam .

dambhaasooyaadimuktan jitavishayagunan deenabandhun dayaalu

skhaalitye shaasitaaran svaparahitaparan deshikan bhooshnureepset ..

benkatanaath vedaantaachaary vishishtaadvait sampradaay ke anuyaayee the. unako shreeraamaanujaachaaryamen bada़ee bhakti thee aur ve unake granthonko bada़e aadarakee drishtise dekha karate the. unhonne apane jeevanamen lagabhag 108 granthonkee rachana kee, jinamen bhagavadbhakti koota-kootakar bharee hai. ye sab granth praayah tamil lipimen hain aur adhikaansh tamil bhaashaamen hain. unamen kuchhake naam is prakaar hain- garudapanchashatee, achyutashatak, raghuveeragady, daayashatak, abheetistav, paadukaasahal, subhaashitaneeti, rahasyatrayasaar, sankalpasooryoday, hansasandesh, yaadavaabhyuday, tattvamuktaakalaap, adhikaranasaaraavalee, nyaayaparishuddhi, nyaayasiddhaanjan, shatadooshanee, tattvateeka, geetaako teeka, gadyatrayakee teeka, seshvarameemaansa, eeshaavaasyopanishadbhaashy, geetaarthasangraharaksha aur vaaditrayakhandana.

is tarah saara jeevan bhagavadbhakti tatha lokopakaaraartha
grantharachanaaen bitaakar aachaary venkatanaatha
shreevedaantadeshikavi0 san0 1426 men 102 varshakee avasthaamen paralokavaasee hue.

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