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मामा प्रयागदासजी की मार्मिक कथा
मामा प्रयागदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of मामा प्रयागदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [मामा प्रयागदासजी]- भक्तमाल


जनकपुरमें एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी, लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व। उसके एक पुत्र था। उसका नाम था प्रयागदत्त । बालक प्राय: पूछता' माँ! क्या मेरे और कोई नहीं है?' जनकपुरको स्त्रियाँ श्रीजानकीजीको अपनी पुत्री या बहिन मानती हैं। यह ब्रह्मगी कहती- 'बेटा! तुम्हारे एक बहिन है। वह अयोध्या चक्रवर्ती महाराजके राजकुमारको ब्याही है।' बालक कहता मैं बहिनके पास जाऊँगा।' माता कहती- 'कुछ बड़े होनेपर जाना।' बालकके मनपर अपने बहिन-बहनोईका संस्कार पूरी तरह बैठ गया। कुछ बड़े होते ही उसने अयोध्या
जानेकी हठ पकड़ ली। ब्राह्मणी भक्ता थी। उसनेसोचा- 'मिथिलेशराजकुमारी क्या अपने इस अबोध भाईकी उपेक्षा कर सकती हैं?' उस बेचारीके पास घरमें तो कुछ था नहीं। माँगकर थोड़ेसे चावलके कण ले आयी। उन्हें पीसकर उनके मीठे मोदक बना दिये। ऐसे मोदकोंको मिथिलामें 'कासार' कहते हैं। उनको एक कपड़े में बाँधकर पुत्रको दिया और कहा - 'ये अपनी बहिन और जीजाजीको दे देना।' लड़केको मार्गमें खानेके लिये उसने सत्तू दे दिये ।

बालक प्रयागदत्त किसी प्रकार कुछ दिनमें अयोध्या पहुँचे। यहाँ पूछनेपर भी कोई उनके चक्रवर्ती बहनोईका पता नहीं बतलाता था। जिससे पूछते, वही हँस देता।बहुत परेशान हुए। थककर मणिपर्वतके पास सहस्रशीर्षा मन्दिर (यह आजकल मस्जिद है) के पास घने पेड़ोंके मध्यमें एक टीलेपर बैठ गये। बहुत थक गये थे। बहनोईपर बहुत अप्रसन्न हो रहे थे। कह रहे थे- 'पता नहीं कहाँ चला गया? अब उसे कहाँ ढूँढ़ने जाऊँ?'

भला कोई उन चक्रवर्ती राजकुमारको कहाँ ढूँदे परंतु जो सचमुच उन्हें ढूँढ़ता है, ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ वे उसे न मिल जायें प्रयागदत्तने देखा कि खूब बड़ा एक सफेद हाथी उनके सामने टीलेपर कहींसे आ गया है उसपर सोनेकी रत्नजटित अम्बारी पड़ी है। हाथी बैठ गया और उसमेंसे बहनोईके साथ बहिन उत्तर पड़ी। किसीको कोई परिचय देना या पूछना नहीं पड़ा। जैसे ये सदाके परिचित ही हों। श्रीजानकीजीने पूछा- 'भैया! माताजीने मेरे लिये कुछ भेजा है?"

भैया तो हक्के-बक्के देखते ही रह गये। कुछ देरमें
सावधान होकर पोटली देते हुए बोले-'मैंने तो तुमलोगोंको
बहुत पैदा कोई तुमलोगोंका पता ही नहीं बताता था।'

पोटलीमेंसे श्रीकिशोरीजीने दो कासार ले लिये और शेष प्रयागदत्तको खानेके लिये दे दिया। कहा- भैया! तुम्हें बड़ा कष्ट हुआ। हमलोग ऐसे स्थानपर रहते हैं कि सब लोग हमारा पता नहीं जानते। अब तुम घर लौट जाओ। मातासे कहना कि हम सब बड़े आनन्दमें हैं।' वे हाथीपर बैठ गये। हाथी वनमें जाकर अदृश्य हो गया।

प्रयागदत्त बहिन-बहनोईके वियोगमें मूर्छित हो गये। कुछ देरमें कुछ चेतना आयी। उसी समय एक संत उधरसे निकले। पास जाकर उन्होंने देखा कि एक सुन्दर बालक भूमिपर पड़ा तड़प रहा है। प्रयागदत्तको किसी प्रकार ये अपनी गुफापर ले आये स्वस्थचित्त होनेपर प्रयागदत्तने सब बातें बतायीं। एक घड़ी रात गये दो स्त्रिय आयीं और उन महात्माजीको दो थाल व्यञ्जनोंसे भरे देकर उन्होंने कहा- 'आज हमारे यहाँ भगवान्‌को पूजा हुई है। आपके लिये यह प्रसाद ले आयी हैं। अभी इसे ले लीजिये, थाल सबेरे चले जायेंगे।' थाल देकर वे शीघ्रतासे चली गर्यो ? दोनों थाल कमलके पत्तोंसे ढकेथे पत्ते हटानेपर महात्माजी तो चकित रह गये। स्वर्णके वे थाल जगमग कर रहे थे। महात्माजीने समझ लिया

कि जगज्जननीने अपने भाईकी पहुनाई की है।

वह दिव्य भोग प्रयागदत्तके कारण महात्माजीको भी प्राप्त हुआ। प्रातः थाल लेने तो कौन आनेवाला था। महात्माजीने प्रयागदत्तको थाल देना चाहा तो वे बोले-'मेरी माँ मुझे घरसे ही निकाल देगी, यदि मैं बहिनकी चीज ले जाऊँ। वह कन्याकी वस्तु कैसे लेगी।' बाबाजी भी सच्चे विरक्त थे। उन्होंने थालोंको गणेशकुण्डमें फेंक दिया। प्रयागदत्त घर पहुँचे। पुत्रका समाचार सुनकर माता चकित रह गयी। उसके नेत्रोंसे अश्रुधारा चलने लगी।

इस घटनाके एक वर्ष बीतनेपर प्रयागदत्तकी माता परधाम चली गयीं। पासके एक ग्रामके सम्पन्न ब्राह्मण इनके साथ अपनी कन्याका विवाह करनेको उत्सुक थे। उनके कोई पुत्र नहीं था, अतः प्रयागदत्तको वे अपने ही घर रखना चाहते थे। लेकिन प्रयागदत्तको किसीके धनका मोह कहाँ था। उनके मनमें तो वे दिव्य बहिन बहनोई बस गये थे। संसारमें कोई वस्तु आँख उठाकर देखनेयोग्य भी उन्हें नहीं जान पड़ती थी। वे घर छोड़कर सीधे अयोध्याको चल पड़े।

अयोध्या पहुँचकर प्रयागदत्तकी अद्भुत दशा हो गयी। शरीरको सुधि ही भूल गयी उन्हें बहिन बहनोईके दर्शनोंके लिये वे व्याकुल हो गये। जिस टीलेपर पहले दर्शन हुए थे, कुछ देर वहीं जाकर प्रतीक्षा करते रहे। उसके बाद कुओं और झाड़ियोंमें ढूँढ़ते हुए भटकने लगे। इसी दशामें पूर्व परिचित संत त्रिलोचन स्वामी इन्हें मिले। महात्माजीने इन्हें पहचाना और अपने आश्रमपर ले आये।

श्रीत्रिलोचन स्वामीजीके सत्सङ्गका अपूर्व प्रभाव पड़ा। दूसरे दिन उन्हींसे दीक्षा ग्रहण करके अब ये प्रयागदास हो गये। गुरुने इन्हें लंगोटी अँचला प्रदान किया। उसके बाद तो प्रयागदासजीकी स्थिति बहुत ही ऊँची हो गयी। वे वन-बीहड़में कहाँ घूम रहे हैं, सो उन्हें कुछ पता नहीं। किसीने खिला दिया तो खा लिया,जल पिला दिया तो पी लिया। केश बिखरे हैं, शरीर धूलिसे भरा है। कहीं खड़े हो गये तो घंटों खड़े हैं। किसी वस्तुकी ओर दृष्टि गयी तो उसीको देख रहे हैं एकटक ।

जगन्माता भगवती लक्ष्मीके भाई होनेसे चन्द्रदेव समस्त संसारके मामा लगते हैं। अयोध्यामें श्रीवैदेहीके भाई ये प्रयागदासजी भी बच्चोंके मामा ही तो हैं। पता नहीं किसने सिखा दिया कि सभी बच्चे इन परमहंसको 'मामा-मामा' कहने लगे। ये परमहंस मामा मत्तगजेन्द्रकी तमते हुए अयोध्याको गलियोंमें भूमते रहते थे।

एक बार प्रयागदासजीको श्रीरामकी वन लीलाका बोध हुआ। कहने लगे-'देखो! अपने तो गया ही, साथमें मेरी कुमारी बहिनको भी बीहड़ वनमें से गया।' अब आपको एक धुन सवार हुई। कोई पैसे देता तो ले लेते। कुछ दिनोंमें पर्याप्त पैसे एकत्र हो जानेपर तीन जोड़ी जूते बनवाये, जितने बढ़िया बनवा सकते थे। तीन म पलंग ऐसे बनवाये छोटे, बड़े कि एकके पेटमें एक रखा जा सके। तीनों पलंगोंके लिये तीन गद्दे बनवाये। अब एक पर एक क्रमशः तीनों पलंग रखकर उनपर तीनों ह गद्दे और तीनों जोड़ी जूते रख लिये और यह सब सामान सिरपर उठाकर चित्रकूट चल पड़े। जहाँ-जहाँ मार्गमें गड्डे, कुकड़ मिलते, वहाँ अपने बहनोईको वे कोसते जाते थे।

चित्रकूट पहुँचकर स्फटिकशिलाके पास प्रयागदासोने • तीनों पलंग बिछाये। उनपर गद्दे डाल दिये। उनके नीचे एक-एक जोड़ी जूते रख दिये और अब बहिन बहनोईको ढूँढ़ने लगे। जब बहुत ढूँढ़ चुके, तब बोले- 'देखो! छिप गया न जान गया कि प्रयागदास आ गया है।' लौटकर देखते हैं तो इनके पलंगपर श्रीराम, लक्ष्मण तथा जानकीजी विराजमान हैं दौड़कर सबके चरणोंमें जूते पहनाये और रामजीसे उलाहना देते हुए बोले- 'तुम इस जंगलमें क्यों चले आये? मेरी सुकुमारी बहिनको क्यों साथ ले आये? इस बीहड़ वनमेंतुमलोग रहते कैसे हो?" श्रीजानकीजीने कहा- 'भैया! मैं तो स्वयं आयो। ये
तो मुझे लाने ही नहीं थे।'

प्रयागदासने कहा- अच्छा, ठीक है। अब हम तुम्हारे साथ-साथ रहेंगे और पलंग ले चला करेंगे।' औरघुनाथजीने कहा-'भाई हमारी बना | नियम है कि हम तीन ही साथ रहते हैं। चौथे म साथ नहीं रखते। पलंगपर कभी हम बैठते नहीं, तो तुम्हारी प्रसन्नताके लिये बैठ गये। अब तुम इनकी अयोध्या ले जाओ। तुम इनको अपने काममें लोगे हमको बड़ा सुख मिलेगा।'

श्रीजानकीजीने भी इन्हें आश्वासन देकर लौट जाने कहा। सिरपर फिर पूर्ववत् पलंग और गद्दे रखकर बेच लौट पड़े। मन ही मन कहते जाते थे' इनको ि कुछ कहा नहीं, ये सब आप ही वनमें आये हैं। सोनेका महल काटता है, वन अच्छा लगता है। बहिन तो भोली भाली है। वह जो कहता है, वही करती है। साथ-साथ चलो आयी। हरे-भरे पेड़, लताएँ, मृग देखती है, खुरा हो जाती है। किसी दिन बाघ देखेगी तो जानेगी! मुझे भी साथ नहीं लिया। समझता है कि प्रयागदास साथ रहेगा तो इसकी बहिन सचेत हो जायगी। अयोध्या 'लौटने को कहेगी।' इस प्रकार खीझते, बकते वे अ लौट आये।

अयोध्या लौटकर उन्होंने एक नीमके नीचे बिछायी, उसपर गद्दे डाले और उसपर स्वयं आ होकर अपनी मस्तीमें गाने लगे-

नीमके नीचे खाट बिछी है, खाटक नीचे करवा

प्रागदास अलमस्ता सोवै रामललाका सरवा ॥

प्रयागदासजीकी अलमस्तीका क्या पूछना। वे निखिल ब्रह्माण्डनायकके साले जो ठहरे। उत्पत्ति-स्थिति-संहारकारिणे सकल क्लेशहारिणी महाशक्ति उनकी बहिन हैं। उनकी मस्ती अनन्त, अखण्ड, नित्य नूतन है। उनकी वाणियोंमें उस मस्तीकी एक झलक पायी जाती है।



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janakapuramen ek vidhava braahmanee rahatee thee, lagabhag paune do sau varsh poorva. usake ek putr thaa. usaka naam tha prayaagadatt . baalak praaya: poochhataa' maan! kya mere aur koee naheen hai?' janakapurako striyaan shreejaanakeejeeko apanee putree ya bahin maanatee hain. yah brahmagee kahatee- 'betaa! tumhaare ek bahin hai. vah ayodhya chakravartee mahaaraajake raajakumaarako byaahee hai.' baalak kahata main bahinake paas jaaoongaa.' maata kahatee- 'kuchh bada़e honepar jaanaa.' baalakake manapar apane bahina-bahanoeeka sanskaar pooree tarah baith gayaa. kuchh bada़e hote hee usane ayodhyaa
jaanekee hath pakada़ lee. braahmanee bhakta thee. usanesochaa- 'mithilesharaajakumaaree kya apane is abodh bhaaeekee upeksha kar sakatee hain?' us bechaareeke paas gharamen to kuchh tha naheen. maangakar thoda़ese chaavalake kan le aayee. unhen peesakar unake meethe modak bana diye. aise modakonko mithilaamen 'kaasaara' kahate hain. unako ek kapada़e men baandhakar putrako diya aur kaha - 'ye apanee bahin aur jeejaajeeko de denaa.' lada़keko maargamen khaaneke liye usane sattoo de diye .

baalak prayaagadatt kisee prakaar kuchh dinamen ayodhya pahunche. yahaan poochhanepar bhee koee unake chakravartee bahanoeeka pata naheen batalaata thaa. jisase poochhate, vahee hans detaa.bahut pareshaan hue. thakakar maniparvatake paas sahasrasheersha mandir (yah aajakal masjid hai) ke paas ghane peda़onke madhyamen ek teelepar baith gaye. bahut thak gaye the. bahanoeepar bahut aprasann ho rahe the. kah rahe the- 'pata naheen kahaan chala gayaa? ab use kahaan dhoondha़ne jaaoon?'

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bhaiya to hakke-bakke dekhate hee rah gaye. kuchh deramen
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bahut paida koee tumalogonka pata hee naheen bataata thaa.'

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ayodhya lautakar unhonne ek neemake neeche bichhaayee, usapar gadde daale aur usapar svayan a hokar apanee masteemen gaane lage-

neemake neeche khaat bichhee hai, khaatak neeche karavaa

praagadaas alamasta sovai raamalalaaka sarava ..

prayaagadaasajeekee alamasteeka kya poochhanaa. ve nikhil brahmaandanaayakake saale jo thahare. utpatti-sthiti-sanhaarakaarine sakal kleshahaarinee mahaashakti unakee bahin hain. unakee mastee anant, akhand, nity nootan hai. unakee vaaniyonmen us masteekee ek jhalak paayee jaatee hai.

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राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
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बांके बिहारी की देख छटा,
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कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
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कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
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यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
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मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
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और दिल के खज़ाने से जरा सा प्यार मिल
शिव शम्भू भोलेनाथ का डमरू है बाजता,
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जय जय श्री श्याम,
जय जय श्री श्याम,