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संत श्रीब्रह्मचैतन्यजी महाराज की मार्मिक कथा
संत श्रीब्रह्मचैतन्यजी महाराज की अधबुत कहानी - Full Story of संत श्रीब्रह्मचैतन्यजी महाराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [संत श्रीब्रह्मचैतन्यजी महाराज]- भक्तमाल


संत श्रीब्रह्मचैतन्यजी महाराज दक्षिण प्रान्तके सातारा जनपदमें पण्डरपुरके मार्गपर माणगङ्गाके किनारे छोटे-से ग्राम गोंदवलेमें एक भक्त वैष्णवकुलमें उत्पन्न हुए थे। पूर्वजन्मके संस्कारके अनुसार बचपन से ही भगवत्कथामें तन्मय होकर बैठना, ध्यान करना तथा एकान्त सेवन आदि विलक्षण कार्य देखकर उनके माता-पिताको उनके उज्ज्वल भविष्यका पता लग गया। यज्ञोपवीत-संस्कारके बाद वे सहसा एक दिन ज्ञानको खोजमें निकल पड़े। बड़े-बड़े साधु-संतोंका सत्सङ्ग लाभकर उन्होंने उनके सामने आत्मसम्बन्धी बड़े-बड़े प्रश्न रखे कुछ लोग उनके

बालचापल्यपर हँसते थे परंतु कुछ संत और विवेकी जनोंने उनको अनुभवी संतोंकी शरणमें जानेका उपदेश दिया। उन्होंने दक्षिणके प्रसिद्ध संत तुकारामजी महाराजसे भेंट की। तुकारामजी उनको बहुत मानते थे। पहले तो उन्होंने उनकी कड़ी से कड़ी परीक्षा ली, बादमें दीक्षा देकर उनको 'ब्रह्मचैतन्य' संज्ञासे समलङ्कृत किया। तुकारामजीकेचरणकमलोंमें उनकी बड़ी निष्ठा और अविचल भक्ति थी। दीक्षित होनेके बाद वे अपने निवासस्थान गोंदवले ग्राम आये और गुरुके आदेशसे वहीं रहकर भगवद्भक्तिका प्रचार करने लगे। वे नाममार्गी भक्त थे। भगवान् श्रीरामको ही अपना उपास्य मानते थे। उन्होंने बतलाया कि जगत्के सारे कार्य राम-नामसे ही सम्पादित होते हैं। जीवको भगवान् रामकी ही अमोघ शरणमें जाना चाहिये। उन्होंने देश-भ्रमण करके पवित्र स्थानों और तीर्थक्षेत्रोंमें राम मन्दिरोंकी स्थापना की। इन्दौर, उज्जैन और मण्डलेश्वर आदिमें उनके हाथसे स्थापित मन्दिर आज भी विद्यमान हैं।

दक्षिण भारत तथा अन्य तीर्थक्षेत्रोंमें उनके बहुत-से अनुयायी परम्परागत शिष्य आज भी भगवन्नामका प्रचार कार्य करके असंख्य जीवोंका कल्याण कर रहे हैं। गोंदवलेमें प्रतिवर्ष पौष मासमें उनका तिथि महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीब्रह्मचैतन्यजी महान् भक्तिनिष्ठ, विलक्षण त्यागी और आदर्श भगवदीय थे।



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sant shreebrahmachaitanyajee mahaaraaj dakshin praantake saataara janapadamen pandarapurake maargapar maanagangaake kinaare chhote-se graam gondavalemen ek bhakt vaishnavakulamen utpann hue the. poorvajanmake sanskaarake anusaar bachapan se hee bhagavatkathaamen tanmay hokar baithana, dhyaan karana tatha ekaant sevan aadi vilakshan kaary dekhakar unake maataa-pitaako unake ujjval bhavishyaka pata lag gayaa. yajnopaveeta-sanskaarake baad ve sahasa ek din jnaanako khojamen nikal pada़e. bada़e-bada़e saadhu-santonka satsang laabhakar unhonne unake saamane aatmasambandhee bada़e-bada़e prashn rakhe kuchh log unake

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dakshin bhaarat tatha any teerthakshetronmen unake bahuta-se anuyaayee paramparaagat shishy aaj bhee bhagavannaamaka prachaar kaary karake asankhy jeevonka kalyaan kar rahe hain. gondavalemen prativarsh paush maasamen unaka tithi mahotsav dhoomadhaam se manaaya jaata hai. shreebrahmachaitanyajee mahaan bhaktinishth, vilakshan tyaagee aur aadarsh bhagavadeey the.

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