⮪ All भगवान की कृपा Experiences

आर्त भक्त गजेन्द्रको हरिकृपानुभूति

पाण्ड्यनरेश इन्द्रद्युम्नको शापवश गज-योनिमें जन्म लेना पड़ा था। यशस्वी राजा इन्द्रद्युम्न भगवद्भक्त थे और भगवानकी उपासना करते हुए प्रजापालन करते थे। राजाके लिये शास्त्रोचित आचरण करना धर्मका मुख्य अंग है। एक बार राजा इन्द्रद्युम्नको मनमाना आचरण (प्रजा पालन, गृहस्थोचित अतिथि सेवा आदि धर्मका परित्याग करके तपस्वियोंकी तरह एकान्तमें बैठकर (उपासना) करनेसे मुनि अगस्त्यका कोपभाजन होना पड़ा। संत-महात्माओंका कोप भी कृपापूर्ण होता है। मुनि अगस्त्यके कोपके कारण राजा इन्द्रद्युम्नको जड़बुद्धि गजकी योनि प्राप्त हुई, परंतु भगवान्‌की आराधना कभी निष्फल नहीं होती, वे कृपासिन्धु जो ठहरे।

गजेन्द्र बड़ा शक्तिशाली था। वह अनेक बलवान् हाथियोंका सरदार था। पर्वतराज त्रिकूटकी तराईका घना जंगल उसका निवासस्थान था। क्षीरसागरमें स्थित उस त्रिकूटपर्वतकी शोभा निराली थी। उसकी पर्वतमालाएँ रत्नोंकी तरह सुशोभित थीं। उसके तीनों शिखर स्वर्ण, रजत एवं लोहेकी तरह दूरसे ही जगमगाते थे। उसकी कन्दराएँ सिद्ध, चारण, गन्धर्व, विद्याधर, नाग, किन्नर एवं अप्सराओं की विहारस्थली थीं, जो संगीतसे गुंजायमान रहती थीं। भगवान् वरुणदेवका ऋतुमान् नामका उद्यान भी त्रिकूटकी तराईमें ही सुशोभित था, जहाँ देवांगनाएँ क्रीड़ा किया करती थीं। वह उद्यान भाँति-भाँति के वृक्षोंसे आच्छादित था । उद्यानमें स्थित सरोवरमें नाना प्रकारके कमल-पुष्प खिला करते थे, जिनकी मधुर गन्ध दूर-दूरतक फैलती थी ।

मतवाला गजेन्द्र त्रिकूटके जंगलमें निर्भय विचरण किया करता था। जंगलके हिंस्र जन्तु बाघ, गैंड़े, शरभ, नाग आदि गजेन्द्रकी गन्धमात्रसे भयभीत होकर भाग जाया करते थे। वह बड़े-बड़े हाथी एवं हथिनियोंसे घिरा हुआ चला करता था। जंगलमें अन्य छोटे-छोटे जानवर खरगोश, हिरण, बन्दर आदि गजेन्द्रके रहनेसे निर्भय होकर विचरण करते थे। गजेन्द्रकी चिग्घाड़सेपूरा पर्वत गुंजायमान हो उठता था।

एक बार गजेन्द्र अपने कुछ साथियोंके साथ दोपहरकी तेज धूपमें उस पर्वतपर विचरण कर रहा था कि उसे एवं उसके साथियोंको प्यास सताने लगी, जिससे वे व्याकुल हो उठे। दूरसे ही कमल-पुष्पों की गन्ध सुँघकर गजेन्द्र अपने यूथके साथ एक सरोवरपर जा पहुँचा। सरोवरके निर्मल नीरने उस पूरे यूथकी व्याकुलताका हरण कर लिया। गजेन्द्रके नायकत्वमें वे सभी हाथी जलक्रीड़ामग्न हो झूम उठे। उन्हें किसीका भी भय न था। गजेन्द्र अपने बलके अहंकारमें डूबा हुआ अपनी सूँड़में जल भर-भरकर अन्य साथियोंपर उछाल रहा था। भगवान्‌की मायासे मोहित हुआ वह उन्मत्त हो रहा था।

अचानक एक क्रोधी एवं बलवान् ग्राहने उसका पैर पकड़ लिया। गजेन्द्रने अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपना पैर छुड़ानेका प्रयत्न किया, परंतु वह छुड़ा न सका। उसका बल कुछ काम न आया। गजेन्द्रके अन्य साथी हाथी हथिनियाँ अपने स्वामीको विपत्तिमें फैसा देखकर घबरा उठे से व्याकुलतासे विधाड़ने लगे। उन सभीने सूँड़ोंद्वारा अपनी शक्ति लगाकर गजेन्द्रको छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु सब निष्फल रहा।

गजेन्द्र और ग्राह अपनी पूरी शक्ति लगाकर भिड़ रहे थे। कभी गजेन्द्र ग्राहको जलके बाहर ले आता तो कभी ग्राह गजेन्द्रको पुनः जलके भीतर खींच ले जाता था। इस तरह यह युद्ध वर्षोंतक चलता रहा। ग्राह जलजन्तु था, अतः जलके संयोगसे उसकी शक्ति क्षीण होनेकी अपेक्षा बढ़ती ही थी, परंतु इधर थलचर गजेन्द्रकी शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही थी। गजेन्द्रके सम्मुख निराशाके बादल छाने लगे। उसके बलशाली साथी भी निराश एवं हतोत्साह हो चुके थे। गजेन्द्रको अब किसीसे भी सहायताकी आशा नहीं रही; वह पूर्णरूपसे निराश्रित हो चुका था। पूर्वजन्मकी साधनाके प्रभावसे गजेन्द्रके हृदयमेंभगवत्कृपाका प्रकाश हुआ और उसे दयानिधि भगवान्का स्मरण हो आया। उसे लगा, अब मृत्यु एकदम निकट है। वह प्रायः पूर्णरूपसे जलमग्न हो गया था, केवल सुँडका अग्रभाग जलसे बाहर था। अपने अन्त समयमें उसने भगवत्कृपाका आश्रय ग्रहण किया और भगवान्की शरण होकर उन्हें आर्तस्वरसे पुकारने लगा। अपने पूर्वजन्ममें सीखी हुई स्तुति उसे याद हो आयी। वह अत्यन्त भयभीत होकर प्रार्थना करने लगा

ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।

पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय

मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय । स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत

प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥

(श्रीमद्भा० ८।३।२, १७)

'जिनके प्रवेश करनेपर (जिनकी चेतनताको पाकर) ये जड़ शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं (चेतनकी भाँति व्यवहार करने लगते हैं), 'ॐ' शब्दद्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीरोंमें प्रकृति एवं पुरुषरूपसे प्रविष्ट हुए उन सर्वसमर्थ परमेश्वरको मैं मन-ही-मन नमन करता हूँ। जो मुझ जैसे शरणागत पशुतुल्य (अविद्याग्रस्त ) जीवकी अविद्यारूप फाँसीको सदाके लिये पूर्णरूपसे काट देनेवाले, अत्यधिक दयालु एवं दया करनेमें कभी आलस्य न करनेवाले हैं, उन नित्यमुक्त प्रभुको नमस्कार है। जो अपने अंशसे सम्पूर्ण जीवोंके मनमें अन्तर्यामीरूपसे प्रकट रहनेवाले हैं, उन सर्वनियन्ता अनन्त परमात्माको नमस्कार है। '

सच्ची पुकार सुनते ही करुणानिधि चक्रधारी भगवान् श्रीहरि गरुड़पर सवार होकर चल पड़े। गरुड़की गति मनसे भी अधिक तीव्र है, किंतु अपने भक्तकी रक्षाके लिये भगवान्को यह गति भी मन्द प्रतीत हुई। वे व्याकुल गजेन्द्रकी वेदना सहन न कर सके ! भयहारी करुणासिन्धु कूद पड़े गरुड़की पीठसे और तुरंत गजेन्द्रकेसम्मुख प्रकट हो गये। एक क्षणकी देर भी उन्हें सहन कैसे होती ? उन्होंने तुरंत गजेन्द्रको ग्राहसहित जलके बाहर खींच लिया । कृपालु भगवान्ने गजेन्द्र एवं ग्राह दोनोंपर कृपा की। अपने सुदर्शन चक्रसे ग्राहका मुखचीरकर उसे मुक्ति प्रदान की और गजेन्द्रको अपना पार्षदबनाया

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य

सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।

ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं

सम्पश्यतां

हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम् ।।

(श्रीमद्भा० ८।३।३३)

तत्पश्चात् प्रभु पार्षदरूप गजेन्द्रको अपने साथ गरुड़पर बैठाकर अपने अलौकिक धामको चले गये। भगवान्की दिव्य वाणी है—

ये मां स्तुवन्त्यनेनाङ्ग प्रतिबुध्य निशात्यये । तेषां प्राणात्यये चाहं ददामि विमलां मतिम् ॥

(श्रीमद्भा० ८।४।२५)

'प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्राह्ममुहूर्तमें जगकर तुम्हारे द्वारा की हुई इस स्तुतिसे मेरा स्तवन करेंगे, मृत्युके समय उन्हें मैं निर्मल बुद्धि प्रदान करूँगा।'



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Real Life Experience प्रभुकृपा


aart bhakt gajendrako harikripaanubhooti

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gajendr bada़a shaktishaalee thaa. vah anek balavaan haathiyonka saradaar thaa. parvataraaj trikootakee taraaeeka ghana jangal usaka nivaasasthaan thaa. ksheerasaagaramen sthit us trikootaparvatakee shobha niraalee thee. usakee parvatamaalaaen ratnonkee tarah sushobhit theen. usake teenon shikhar svarn, rajat evan lohekee tarah doorase hee jagamagaate the. usakee kandaraaen siddh, chaaran, gandharv, vidyaadhar, naag, kinnar evan apsaraaon kee vihaarasthalee theen, jo sangeetase gunjaayamaan rahatee theen. bhagavaan varunadevaka ritumaan naamaka udyaan bhee trikootakee taraaeemen hee sushobhit tha, jahaan devaanganaaen kreeda़a kiya karatee theen. vah udyaan bhaanti-bhaanti ke vrikshonse aachchhaadit tha . udyaanamen sthit sarovaramen naana prakaarake kamala-pushp khila karate the, jinakee madhur gandh doora-dooratak phailatee thee .

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oM namo bhagavate tasmai yat etachchidaatmakam.

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muktaay bhoorikarunaay namo'layaay . svaanshen sarvatanubhrinmanasi prateeta

pratyagdrishe bhagavate brihate namaste ..

(shreemadbhaa0 8.3.2, 17)

'jinake pravesh karanepar (jinakee chetanataako paakara) ye jada़ shareer aur man aadi bhee chetan ban jaate hain (chetanakee bhaanti vyavahaar karane lagate hain), 'oM' shabdadvaara lakshit tatha sampoorn shareeronmen prakriti evan purusharoopase pravisht hue un sarvasamarth parameshvarako main mana-hee-man naman karata hoon. jo mujh jaise sharanaagat pashutuly (avidyaagrast ) jeevakee avidyaaroop phaanseeko sadaake liye poornaroopase kaat denevaale, atyadhik dayaalu evan daya karanemen kabhee aalasy n karanevaale hain, un nityamukt prabhuko namaskaar hai. jo apane anshase sampoorn jeevonke manamen antaryaameeroopase prakat rahanevaale hain, un sarvaniyanta anant paramaatmaako namaskaar hai. '

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tan veekshy peeditamajah sahasaavateerya

sagraahamaashu sarasah kripayojjahaar .

graahaad vipaatitamukhaadarina gajendran

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(shreemadbhaa0 8.3.33)

tatpashchaat prabhu paarshadaroop gajendrako apane saath garuda़par baithaakar apane alaukik dhaamako chale gaye. bhagavaankee divy vaanee hai—

ye maan stuvantyanenaang pratibudhy nishaatyaye . teshaan praanaatyaye chaahan dadaami vimalaan matim ..

(shreemadbhaa0 8.4.25)

'pyaare gajendr ! jo log braahmamuhoortamen jagakar tumhaare dvaara kee huee is stutise mera stavan karenge, mrityuke samay unhen main nirmal buddhi pradaan karoongaa.'

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