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कठिन देवाराधनसे मृत्यु टल गयी

ईश्वरीय कृपाकी अनुभूति प्रायः जीवनमें सभीको होती ही है, परंतु कुछ लोग इसे महज संयोगका नाम देकर ईश्वरके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते, जब कि यह होती है भगवत्कृपा ही।

सन् १९९७ में जब मैं कर्णाटकके शृंगेरीसे पुरी (उड़ीसा) स्थानान्तरित होकर आया, तो यहाँके निवर्तमान प्राचार्य डॉ० श्रीहरिहर झाजीके सम्बन्धमें कई परिचित अपरिचित लोगोंसे बहुत-कुछ जाननेको मिला। उन लोगोंके कहने में एक बात तो बिलकुल समान थी कि झाजीने अपनी पत्नीको मृत्युके मुखसे बचाया है। कालान्तरमें उनसे मिलने पर पूरी बात समझमें आ गयी।

माताजी (झाजीकी पत्नी) कैंसरसे पीड़ित थीं, कटकके डॉक्टरोंने उन्हें चण्डीगढ़ रेफर कर दिया। वहाँ भी डॉक्टरोंने छः माहका मेहमान बताकर इलाज तो किया, पर पूजा- पाठके प्रति प्रेरित भी किया। झाजी अपने किसी सम्बन्धीके परामर्शपर पत्नीको मुम्बईके टाटा मेमोरियल ले आये। आतुर क्या नहीं।करता ? यहाँ कई जान-पहचान के लोगोंके सत्प्रयाससे उनको भर्ती करवाया गया, भलीभाँति इलाज भी चला। एक माहके बाद डॉक्टरोंने कहा कि 'अब घरमें ही रखकर इनकी शुश्रूषा कीजिये, जैसा रहना चाहें, रखिये।' सब माजरा समझमें आ गया। पुरी आकर झाजी कठोर साधनामें लग गये। भागवतका पाठ, मृत्युंजय महामन्त्रका जप, दुर्गासप्तशतीका अनुष्ठान आदि क्या-क्या नहीं करते थे। लगभग छः माहतक | केवल दूध पीकर, कभी-कभार फल लेकर अहर्निश देवाराधन । नीचे चटाईपर ही रातको दो-एक घण्टा सो लेना, सुबह स्नान-सन्ध्या, इष्टमन्त्रका जप, फिर अपने काममें लग जाना, यही उनकी दिनचर्या बन गयी। आवश्यकता होनेपर कुशासनपर बैठे-बैठे ये सब कार्यालयीय काम निपटाकर फिर अपनी साधनामें लग जाते। इस अवधिमें उन्हें किसीने किसीसे न तो बात करते देखा और न कहीं गमनागमन करते। पत्नीको देखनेके लिये, बच्चे और नौकर तो थे ही।माताजीकी स्थिति जस की तस कोई सुधार नहीं। पर इनकी आराधनामें उत्तरोत्तर वृद्धि और वृद्धि ही। फिर छः माहकी अवधि पूरा होनेपर झाजी अपनी पत्नीको लेकर मुम्बई आ गये। डॉक्टरको बिना प्रिस्क्रिप्शन इतना थोड़े याद रहता है, उसने प्रिस्क्रिप्शन देखा और मरीजको देखकर कहा कि शायद आप भूलवश दूसरे मरीजकी रिपोर्ट ले आये। यह महिला तो चार महीना पहले ही चली गयी होगी, इनकी सब रिपोर्ट दिखाइये। इनके लड़केने सब कुछ सविस्तार बता दिया, पर डॉक्टरको कतई विश्वास नहीं हुआ। डॉक्टरने कुछ दवाएँ देकर इन्हें वापस कर दिया।झाजी वापस आ गये पुरी, सब कुछ ठीक-ठाक चलने लगा। इसके तीस साल बाद माताजी अचानक चली गयीं, पर बीचकी अवधिमें कभी सर्दी-जुकामतक नहीं हुआ। किसी बीमारीके कारण डॉक्टर के पास गयी हों, किसीको मालूम नहीं। अभी झाजी अपने छोटे आई०एफ०एस० पुत्रके साथ भुवनेश्वरमें रहते हैं और कहते हैं ‘यह सब भगवान् जगन्नाथजीकी कृपा है, करने और करानेवाले वही हैं। इस कामके लिये उन्होंने मुझे निमित्त बनाया, यह मेरा अहोभाग्य है, मैं धन्य हो गया।'

[ डॉ० श्रीउदयनाथजी झा 'अशोक' ]



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kathin devaaraadhanase mrityu tal gayee

eeshvareey kripaakee anubhooti praayah jeevanamen sabheeko hotee hee hai, parantu kuchh log ise mahaj sanyogaka naam dekar eeshvarake prati apanee kritajnata vyakt naheen karate, jab ki yah hotee hai bhagavatkripa hee.

san 1997 men jab main karnaatakake shringereese puree (uda़eesaa) sthaanaantarit hokar aaya, to yahaanke nivartamaan praachaary daॉ0 shreeharihar jhaajeeke sambandhamen kaee parichit aparichit logonse bahuta-kuchh jaananeko milaa. un logonke kahane men ek baat to bilakul samaan thee ki jhaajeene apanee patneeko mrityuke mukhase bachaaya hai. kaalaantaramen unase milane par pooree baat samajhamen a gayee.

maataajee (jhaajeekee patnee) kainsarase peeda़it theen, katakake daॉktaronne unhen chandeegadha़ rephar kar diyaa. vahaan bhee daॉktaronne chhah maahaka mehamaan bataakar ilaaj to kiya, par poojaa- paathake prati prerit bhee kiyaa. jhaajee apane kisee sambandheeke paraamarshapar patneeko mumbaeeke taata memoriyal le aaye. aatur kya naheen.karata ? yahaan kaee jaana-pahachaan ke logonke satprayaasase unako bhartee karavaaya gaya, bhaleebhaanti ilaaj bhee chalaa. ek maahake baad daॉktaronne kaha ki 'ab gharamen hee rakhakar inakee shushroosha keejiye, jaisa rahana chaahen, rakhiye.' sab maajara samajhamen a gayaa. puree aakar jhaajee kathor saadhanaamen lag gaye. bhaagavataka paath, mrityunjay mahaamantraka jap, durgaasaptashateeka anushthaan aadi kyaa-kya naheen karate the. lagabhag chhah maahatak | keval doodh peekar, kabhee-kabhaar phal lekar aharnish devaaraadhan . neeche chataaeepar hee raatako do-ek ghanta so lena, subah snaana-sandhya, ishtamantraka jap, phir apane kaamamen lag jaana, yahee unakee dinacharya ban gayee. aavashyakata honepar kushaasanapar baithe-baithe ye sab kaaryaalayeey kaam nipataakar phir apanee saadhanaamen lag jaate. is avadhimen unhen kiseene kiseese n to baat karate dekha aur n kaheen gamanaagaman karate. patneeko dekhaneke liye, bachche aur naukar to the hee.maataajeekee sthiti jas kee tas koee sudhaar naheen. par inakee aaraadhanaamen uttarottar vriddhi aur vriddhi hee. phir chhah maahakee avadhi poora honepar jhaajee apanee patneeko lekar mumbaee a gaye. daॉktarako bina priskripshan itana thoड़e yaad rahata hai, usane priskripshan dekha aur mareejako dekhakar kaha ki shaayad aap bhoolavash doosare mareejakee riport le aaye. yah mahila to chaar maheena pahale hee chalee gayee hogee, inakee sab riport dikhaaiye. inake lada़kene sab kuchh savistaar bata diya, par daॉktarako kataee vishvaas naheen huaa. daॉktarane kuchh davaaen dekar inhen vaapas kar diyaa.jhaajee vaapas a gaye puree, sab kuchh theeka-thaak chalane lagaa. isake tees saal baad maataajee achaanak chalee gayeen, par beechakee avadhimen kabhee sardee-jukaamatak naheen huaa. kisee beemaareeke kaaran daॉktar ke paas gayee hon, kiseeko maaloom naheen. abhee jhaajee apane chhote aaee0epha0esa0 putrake saath bhuvaneshvaramen rahate hain aur kahate hain ‘yah sab bhagavaan jagannaathajeekee kripa hai, karane aur karaanevaale vahee hain. is kaamake liye unhonne mujhe nimitt banaaya, yah mera ahobhaagy hai, main dhany ho gayaa.'

[ daॉ0 shreeudayanaathajee jha 'ashoka' ]

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तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
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राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
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ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
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अपनी वाणी में अमृत घोल
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