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कुलदेवता श्रीभैरवनाथजीकी कृपानुभूति

घटना सन् १९८१ के आसपास की है, मेरा ज्येष्ठ पुत्र जो माननीय मुख्यमन्त्रीजीके स्टॉफमें पदस्थ था, एक दिन ऑफिससे घरकी ओर लौट रहा था, तभी उसकी गाड़ीके पीछे रखा व्यक्तिगत बैग रास्तेमें कहीं गिर गया। उस बैगमें ऑफिसकी महत्त्वपूर्ण आलमारियोंकी चाबियाँ, कुछ स्वयंके प्रमाणपत्र, कुछ नगदी एवं कार्यालयीय डायरियाँ इत्यादि भी थीं। दूसरे दिन मुख्यमन्त्रीकी आवश्यक मीटिंग होनेसे, अधीनस्थ जिलोंके अधिकारीगण उक्त मीटिंगमें आनेवाले थे, जिनसे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण फाइलें और दूसरे कागजात आलमारियोंमें रखे थे। इन आलमारियोंकी चाबियाँ उस बैगमें थीं, जो रास्तेमें कहीं गिर गया था। ऐसी स्थितिमें मेरा गया और किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसने तत्काल पुत्र घबरा नजदीक के ही पुलिस थानेमें उक्त बैगके गुम होनेकी रिपोर्ट दर्ज करवायी। उसकी रसीद प्राप्त की एवं खिन्न मनसे घर आया। अपनी माँको उक्त स्थितिसे अवगत कराया, जिस कारण उसकी माँ भी चिन्तित हो गयी। उस वक्त मेरा मकान निर्माणका कार्य भी अन्यत्र हो रहा था, जिसके कारण सन्ध्या - पूजाके समय मैं घर नहीं पहुँच पाता था, पत्नी भी चिन्तामें डूबी होनेके कारण सेवा-पूजा नहीं कर पायी। जब मैं विलम्बसे घर पहुँचा तथा नियमानुसार दैनिक क्रियाकलापोंसे निवृत्त होकर देवस्थानमें कुलदेवता श्रीभैरवनाथकी सन्ध्याकालीन सेवा पूजा करने बैठा ही था तो पत्नी एवं पुत्रको चिन्तामें डूबा देखा। पत्नी पुत्रसे कह रही थी कि तेरे पिताजी, जो कि रोज़ कुलदेवताकी सेवा, आरती, पूजा करते हैं; इनसे कहो कि कुलदेवताका यदि इतना प्रभाव है तो गुम हुए बैगको तत्काल प्राप्त करवा दें। यद्यपि पत्नी एवं पुत्रकी भी अटूट श्रद्धा कुलदेवतापर थी, तथापि चिन्ताके कारण उनके मुखसे ऐसे वचन निकले।

अब मेरे सामने ऐसी विकट स्थिति आ गयी कि मैं मनसे कुलदेवता श्रीभैरवनाथजीसे प्रार्थना करने लगा कि 'हे नाथ! आज मेरे सामने बड़ी समस्या एवं परीक्षाकी घड़ी उपस्थित हो गयी है। इससे हमें निकालें तथा मेरी लाज रखें।' प्रार्थना करते ही अचानक मेरे मुँहसे ये शब्द निकले कि 'देखो, अभी घड़ीमें शामके ८ बजे हैं। कल दोपहरतक धीरज रखो।'

अब अगले दिन प्रस्तावित मीटिंगके आयोजनकी तैयारीमें पुत्र यथाशीघ्र अपने कार्यालय पहुँचा एवं अपनी सीटपर बैठा ही था कि टेलीफोनकी घंटी बजी। मेरे पुत्रने टेलीफोन रिसीव किया तो आदेश मिला कि आजकी प्रस्तावित मीटिंग अपरिहार्य कारणोंसे स्थगित की जाती है। इसकी सूचना सम्बन्धित कार्यालयोंके अधिकारियोंको तत्काल दी जाय। पुत्रकी व्याकुलता थोड़ी कम हुई कि अचानक पुनः टेलीफोनकी रिंग बजी, फोन रिसीव किया तो वह फोन किसी प्रोफेसरका था। उन्होंने बताया कि मुझे आपका एक बैग मिला है, क्या आपका नाम एस०सी० पुरोहितजी हैं ? मेरे पुत्रने कौतूहलवश कहा 'जी हाँ!' तो उनके द्वारा कहा गया कि 'आप अपना बैग शामको ५ बजेके बाद आकर प्राप्त कर लें; क्योंकि मेरी पत्नी भी सर्विस करती हैं, इसलिये इसके पहले हम आपसे मिल नहीं सकते। मैंने आपका बैग पता- टेलीफोन नं० प्राप्त करनेके लिये खोला था, सारा सामान यथावत् ही रखा है।'

शामको ५ बजे मेरा पुत्र उन प्रोफेसर महोदयके घर पहुँचा, तो उन्होंने बताया कि, 'कल शाम ७ बजेके आस-पास मैं और मेरी पत्नी अपने पालतू कुत्तेके साथ एक नज़दीकी रिश्तेदारके घर मिलने गये थे । वहाँसे वापस लौटते समय कुछ दूर चले ही थे कि हमारा पालतू कुत्ता हमें छोड़ एक जगह इकट्ठी हुई भीड़के समूहमें घुस गया तथा उस भीड़में एक महिलाको भौंकने लगा। वह देखनेमें घरोंमें काम करनेवाली बाई जैसी लग रही थी, उसके हाथमें यह बैग था, और उसे पहलेसे ही चार पाँच आवारा कुत्ते घेरकर भौंक रहे थे। वे सभी श्वान (कुत्ते) उस बाईको आगे जाने नहीं दे रहे थे।' यहाँ इस बातको स्पष्ट करना आवश्यक है कि शास्त्रोंके अनुसार श्रीकालभैरवनाथजीकी सवारी/वाहन श्वान ही है।

'उपर्युक्त घटनाके दौरान रातके ८ बजेका समय हो रहा था।' प्रोफेसर महोदयने आगे बताते हुए कहा कि 'मेरी पत्नीने उस महिलासे डाँट-फटकारकर वह बैग छीन लिया। तत्पश्चात् इस बैगको आपतक पहुँचानेके लिये आपका पता बैग खोलकर देखा तथा आपको फोन करके बुलाया।' अब घर आकर लड़केने उक्त घटना हमें सुनायी तो हम दम्पती भावविभोर होकर प्रभु श्रीभैरवनाथजीके सामने नतमस्तक होकर उनकी जय-जयकार करने लगे।

जय श्रीभैरवनाथजी, जय कालभैरवजी,

जय कुलदेवता महाराज,

जय कुलदेवी माँ !
[ श्रीमोहनलालजी पुरोहित ]



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kuladevata shreebhairavanaathajeekee kripaanubhooti

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jay shreebhairavanaathajee, jay kaalabhairavajee,

jay kuladevata mahaaraaj,

jay kuladevee maan !
[ shreemohanalaalajee purohit ]

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