बहुत पहले की बात है, मैं एक दिन बड़ा परेशान था। छोटे भाईकी बीमार स्त्री मृत्युसे लड़ रही थी। चार दिन बाद मेरी बहनकी शादी थी। रिश्तेदार आ गये थे। हम सबने मिलकर निश्चय किया कि सब रात्रि जागरण करें और मिलकर परमपिता परमात्मासे प्रार्थना करें कि हमारी परेशानी दूर हो। जागरणके पश्चात् प्रातः आरती की गयी और मेरे मुँहसे स्वयं ही ये शब्द निकले कि 'यदि बहू भी बच जाय और शादी भी निर्विघ्न समाप्त हो जाय तो मैं सालभरतक प्रतिमास एक दिन गंगास्नान करूँगा।' इसी संकल्पके साथ बहूको अस्पतालमें भर्तीकर हम लोग शादीकी तैयारीमें लग गये। परमात्माकी ऐसी कृपा हुई कि बहू ठीक होने लगी और शादीके दिन उसकी इच्छा हुई कि कोठीपर ले चलो-मैं तो वरको देखूँगी। उसकी ऐसी इच्छा देख वरको अस्पताल भेजा गया। बहूने उसके पैर पूजे और माला पहनायी। आठ दिनके भीतर शादी भी निर्विघ्न हो गयी और बहू भी अच्छी होकर अस्पतालसे घर लौट आयी।
हमारा परिवार आर्यसमाजी है। उसी वातावरणमें रहनेके कारण मुझे गंगाजीमें कोई श्रद्धा नहीं थी, परंतु अचानक मुँहसे उस दिन जागरणके पश्चात् सालभर प्रतिमास एक दिन गंगास्नान करनेकी बात न जाने कैसे स्वयं ही निकल गयी थी, अतः उसी निश्चयके बन्धनमें फँसकर मैंने प्रतिमास एक दिन गंगास्नान करना शुरू करदिया। गंगाजीके किनारे महात्माओंके दर्शन हुए। मुझे गंगास्नान करनेमें बड़ा आनन्द आने लगा। प्रतिमास चारों ओरसे कुछ-न-कुछ शुभ समाचार आते रहे। तीन अमेरिकन साधुओंने और भारतवर्षके कई उच्चकोटिके महात्माओंने स्वयं कोठीपर पधारकर सेवकको अनुगृहीत किया। एक महात्मा ‘ज्ञानेश्वरी' की पुस्तक मेरी मेजपर छोड़ गये। एक अमेरिकन महात्मा २१ दिन कोटीपर ठहरकर शिवलिंगकी मूर्ति मुझे दे गये। पूजाके कमरे में एक महात्मा श्रीकृष्णका चित्र फ्रेम कराकर रख गये। इन सब बातोंसे और ज्ञानेश्वरीको पढ़ते-पढ़ते में एक मूर्तिपूजक बन गया। शंख, कीर्तनकी खड़तालें, इकतारा, झाँझ इत्यादि सभी चीजें मेरे पूजाके कमरेमें आ गयीं। पूजा करनेमें सेवकको बड़ा आनन्द आने लगा। प्रतिदिन गंगाजलका प्रातः काल आचमन करनेके पश्चात् ही खाने-पीनेका संकल्प कर लिया। गंगाजलकी एक छोटी शीशी मैं सदा अपनी जेबमें रखने लगा। इस प्रकार १२ मास गंगास्नान करने में मुझे इतना आनन्द आया कि मैंने निश्चय किया कि अब भविष्यमें प्रतिमासका गंगास्नान करना जीवनभर जारी रखूँगा। बहुत -से अद्भुत चमत्कार
हुए, पर उनका यहाँ वर्णन करना ठीक नहीं जान पड़ता ।। यों ही पाँच वर्ष गंगास्नान करते बीत गये। फिर मेरी बड़ी पुत्रवधू बहुत बीमार हुई। छः महीने उसे अस्पतालमें रखना पड़ा। खर्च भी बहुत हुआ। एक दिनमहिला डॉक्टरोंने जवाब दे दिया कि अब इसके बचनेकीआशा नहीं। सभी रो रहे थे। मैं एक कोनेमें एक छोटी सी चारपाईपर बैठा था। एक हाथमें गंगाजलकी शीशी - दूसरे हाथमें गीताका सबसे छोटा गुटका और माला। शरीर काँप रहा था-आँखोंसे अश्रुधारा बह रही थी। मेरे मुँह से निकला -'भगवन्! आपकी इच्छा-बहू आपने ही दी थी, आप ले जाना चाहते हैं तो ले जाइये - मेरे कोई पाप होंगे, जिनका दण्ड मुझे मिल रहा है। पर इस बार आप इसपर कृपा करके जीवनदान दें तो मैं अब प्रतिमास दो दिन गंगास्नान किया करूँगा।' उधर उपचार चल रहा था। आधे घंटे बाद बड़ी डॉक्टरनीने आकर कहा कि बहू अब बच गयी- यकीन मानो मरेगी नहीं, पर पूरी तरहसे ठीक होनेमें शायद कुछ महीने और लग जायँ। मुझे घरवालोंने चाय पिलायी, तब कहीं मैं होशमें आया। प्रभुका और गंगामाईका बहुत बड़ा धन्यवाद किया। बहूको घर लिवा लाये और उसकी दशा प्रतिदिन सुधरती गयी। मुझे छः वर्षतक दमेकी बीमारी लग गयी। मैं सदा यह कहता रहता था कि जिस गलेमें प्रतिदिन गंगाजल जाता है, उस गलेमें दमेकी शिकायत नहीं रहेगी। किसी दिन गंगामाई कोई औषधि भेजेंगी और यह बीमारी चली जायगी। हुआ भी ऐसा ही-अनूपशहरके पास गंगास्नान करनेके एक दिन बाद किसीने मुझे धोखेसे ठंढाईकी जगह न जाने क्या खिला दिया। मैं १८ दिन सिरके दर्दमें पड़ा रहा, पर दमा ऐसे चला गया कि फिर कभी भी उसका दौरा नहीं पड़ा, मैंने इसे गंगाजीका प्रत्यक्ष प्रभाव ही माना।
श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्लीसे जब मैं सन् १९५४ ई० में रिटायर हुआ, तब मुझे युवराज श्रीकर्णसिंहजी सदरे रियासत जम्मू-कश्मीर अपने कॉमर्स कॉलेजका प्रिंसिपल बनाकर ले गये। कश्मीरसे प्रतिमास दो दिन गंगास्नान करने आना कठिन था। इसलिये पूज्य श्रीहरि बाबाजीके आज्ञानुसार मैंने प्रतिमास तीन दिनके हिसाब से वर्षमें ३६ दिन गंगास्नान तीन महीनोंकी छुट्टियोंमें करनेकानिश्चय किया और पाँच वर्ष ऐसा ही करता रहा और वहीं ३६ दिन गंगाके किनारे रहकर आनन्द लेता रहा। कश्मीरसे रिटायर होनेपर मेरी आयु ६५ वर्षकी हो गयी। तब फिर श्रीहरिबाबाजीके आज्ञानुसार यह नियम लिया कि प्रतिवर्ष १ दिन और अधिक गंगास्नानको बढ़ाता रहूँगा और गंगामाई सब निभा भी देंगी।
परिवारमें जब कोई बाहर जाता है, गंगाजलकी शीशी अपने साथ रखता है। मेरा छोटा भाई डॉ० आनन्दस्वरूप शर्मा बुलन्दशहर में है-उसके लड़किय थीं- लड़का नहीं था। आर्यसमाजका मन्त्री होनेके नाते उसे गंगाजीमें श्रद्धा नहीं थी, पर मेरे कहनेपर एक वर्षतक प्रतिमास गंगास्नान करनेपर गंगामाईकी कृपासे उसे पुत्ररत्न प्राप्त हुआ। इसी प्रकार मेरे एक करीबी रिश्तेदार- पं० परमानन्द बेकल एक मुकदमे में फँस गये-जीतनेकी कोई आशा नहीं थी। वे ज्योतिषी थे। मैंने उनसे कहा कि जबतक मुकदमा चले, प्रतिमास गंगास्नान करते रहो तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारी जीत होगी। तीन वर्ष मुकदमा चला और अंतमें उनकी ही जीत हुई। वे जबतक जीवित रहे, प्रतिमास गंगास्नान करते रहे।
मुझे जब कोई परेशानी हुई या नौकरीके सम्बन्धमें तरक्की इत्यादि और दूसरी इच्छाएँ हुई, तब में लिखकर अपनी अर्जीकी नकल गंगाजीमें डाल देता था। सच बात तो यह है कि जो कुछ भी मैंने गंगामाईसे मांगा, वह मुझे तुरंत ही मिला। प्रभुसे प्रार्थना है कि गंगामाई इसी प्रकार हमारे देशपर अमृतकी वर्षा करके सबको सुखी करती रहें। भगवान् श्रीकृष्णने गीतामें कहा है-
यो यो यक्तः श्रद्धयाचितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेपि मामेव कौलेय पजन्यविधिपूर्वकम्॥
(७:२१, १/२३)
श्रीगंगामाता! सबका उद्धार कर दें- दुखिया संसारको तू सुखिया संसार बना दे। [ श्रीमदनलालजी शाण्डिल्य ]
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yo yo yaktah shraddhayaachitumichchhati.
tasy tasyaachalaan shraddhaan taamev vidadhaamyaham ..
ye'pyanyadevata bhakta yajante shraddhayaanvitaah .
tepi maamev kauley pajanyavidhipoorvakam..
(7:21, 1/23)
shreegangaamaataa! sabaka uddhaar kar den- dukhiya sansaarako too sukhiya sansaar bana de. [ shreemadanalaalajee shaandily ]